Friday, April 23, 2021

बिजनौर में जन्मे थे आर्य विज्ञान सत्य प्रकाश सरस्वती

23 अप्रैल 2021 में अमर उजाला में प्रकाशित मेरा लेख

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यूपी के इस जिले में सत्यप्रकाश सरस्वती ने लिया था जन्म, अंग्रेजी में किया था वेदों का अनुवाद



डॉ. सत्यप्रकाश (स्वामी  सत्यप्रकाश सरस्वती)
(1905-1995)  
आपका अध्ययन इलाहाबाद विश्वविद्यालय में हुआ। आपने रसायन शास्त्र विभाग से  Physico chemical studies of inorganic jellies  विषय पर डी.एससी. की उपाधि 1932ई.में प्राप्त की। 1930 ई. से ही रसायन शास्त्र विभाग में अध्यापन आरम्भ किया। 1962 ई. में विभागाध्यक्ष तथा 1967 ई. में सेवानिवृत्त हुये। आपके निर्देशन में 22 विद्यार्थियों ने डी.फिल. की उपाधि प्राप्त की।आपके 150से अधिक शोध पत्र प्रकाशित हुये। वैज्ञानिक विकास की भारतीय परम्परा,  Founder of Sciences in Ancient India, A Critical study of Brahmagupta and his works, The Bakhshali manuscript( भारतीय अंकगणित की उपलब्ध प्राचीनतम पाण्डुलिपि का गणितीय प्रक्रियाओं के साथ सम्पादन)   Coins in Ancient India  (मुद्राशास्त्र पर लिखा गया शोधपूर्ण ग्रन्थ)  Advance Chemistry of Rare element,  रासायनिक शिल्प की एकक संक्रियाएं सी एस आई आर से प्रकाशित "भारत की सम्पदा" (Wealth of India- 22vol. ) के प्रमुख सम्पादक आदि उनके कुछ प्रमुख ग्रन्थ है। जितने विविध विषयों पर स्वामी सत्यप्रकाश जी का लेखन है शायद ही विश्व के किसी व्यक्ति ने इतना लिखा हो। वेद, शुल्बसूत्र, ब्राह्मण ग्रन्थ, उपनिषद्,  रसायन विज्ञान,भौतिक विज्ञान, अग्निहोत्र, अध्यात्म, धर्म,  दर्शन, योग, आर्यसमाज, स्वामी दयानन्द, नवजागरण आदि विविध विषयों पर सैकड़ों ग्रन्थ और लेख स्वामी सत्यप्रकाश जी द्वारा लिखे गये। चारों वेदों का अंग्रेजी में अनुवाद(23खण्डों में), शुल्बसूत्रों का सम्पादन,  The critical study of philosophy of Dayanand  और मानक हिन्दी अंग्रेजी कोश का सम्पादन उनके द्वारा किये गये उल्लेखनीय कार्य हैं। आप 1942ई. में स्वतन्त्रता आन्दोलन में जेल भी गये। स्वदेशी नमक आन्दोलन के समय जब अंग्रेजों ने भारतीय नमक खाने के योग्य नहीं है कहा तब नेहरूजी के कहने पर शोध कर लीडर अखबार में चार शोध पूर्ण लेख लिख कर दुनियाभर के वैज्ञानिकों की बोलती बन्द कर दी।  शतपथ ब्राह्मण पर आपके द्वारा  700पृष्ठों में  भूमिका लिखी गई जो ग्रन्थ को समग्रता से समझने में बहुत सहायक है। आपने  21बार से अधिक विभिन्न  देशों की यात्रायें की।विज्ञान परिषद प्रयाग से हिन्दी मासिक विज्ञान पत्रिका का सम्पादन १०वर्षों तक किया। विश्वविद्यालय में रहते हुये डॉ. सत्यप्रकाश का लेखन मुख्यत: विज्ञान के क्षेत्र में रहा और संन्यास के बाद का लेखन वैदिक साहित्य आर्य समाज और स्वामी दयानन्द विषयक। स्वामी सत्यप्रकाश जी वैज्ञानिक विचारक चिन्तक संन्यासी थे। वे अपने विचारों को लेखों और भाषणों के माध्यम से व्यक्त भी करते थे। उनके विचार कई बार भिन्नता लिये होते और असहमति का कारण बन जाते परन्तु उस विषय में उनका चिन्तन जारी रहता था। स्वामी जी की शताधिक रेडियो वार्तायें तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित लेख हैं जिनका संकलन और प्रकाशन अभी शेष है।स्वामी सत्यप्रकाश जी द्वारा अंग्रेजी में लिखे ग्रन्थों का हिन्दी में अनुवाद भी हिन्दी भाषी पाठकों के लिये अत्यन्त उपयोगी होगा। आपका निर्वाण 18जनवरी 1995 ई. में अपने *प्रिय शिष्य पं. दीनानाथ शास्त्री जी के आवास में अमेठी में हुआ। अन्त्येष्टि आर्य समाज विमान पुरी एच ए एल कोरवा अमेठी के प्रांगण में हुई। 

-प्रिय शिष्य पं. दीनानाथ शास्त्री
 

Monday, April 5, 2021

स्वामी सच्चिदानंद

स्वामी सच्चिदानंद सैतालिस साल बीत गए स्वामी सच्चिदानंद को शहीद हुए। आज भी मैं वह दृष्य नहीं भूला। आश्रम में उनके और उनके साथी के शव पड़े थे । मैँ उन्हें देखने गया था।उस समय मैं बीए में पढ़ता था। मेर घर की दूरी खारी से दो किलो मीटर है। सूचना मिली कि गोविंदपुर आश्रम में स्वामी जी का कत्ल हो गया। रात में बदमाशों ने उनकी और उनके एक साथी की गोली मार कर हत्या कर दी। स्वामी जी की बहुत प्रसिद्घी थी। क्षेत्र में बहुत सम्मान था। उनकी हत्या की सुन धक्का सा लगा। समझ में नहीं आया कि उनकी हत्या क्यों हुई। इतने अच्छे आदमी का भी कोई दुश्मन हो सकता है।हम साइकिल से भाग कर आश्रम पंहुचे। आश्रम में कुछ दूरी पर दो शव पड़े थे। एक स्वामी जी का और एक उनके साथी किसी रेड़डी का। लोग बता रहे थे कि स्वामी जी बहुत बहादुर थे। बदमाश स्वामी जी को मारना चाहते थे। किंतु जिस कमरे को उन्होंने खुलवाया ,उसमें उनके मित्र रेड़डी रूके हुए थे। उन्होंने रेड्डी को स्वामी जी समय गोलीमार दी। गोली की आवाज सुन स्वामी जी अपने कक्ष से बाहर आए। जार से कहां कौन है? क्या हो रहा है। मारने वालों ने देखा कि यह तो वही स्वामी जी हैं ,जिन्हें मारना था। उन्होंने स्वामी जी पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसाकर स्वामी जी की हत्या कर दी। अगर स्वामी जी कक्ष से न निकलते , छिप जाते , भाग जाते तो वह बच सकते थे।किंतु वे बहादुर और निर्भीक थे। उन्होंने ऐसा नहीं ‌ क‌िया। बीए में मैँ वर्धमान कॉलेज में पढता था। डा एसआर त्यागी कॉलेज के प्राचार्य थे। स्वामी जी का उनके पास आना जाना था। स्वामी जी का वाहन साइकिल था। वे नंगे पांव रहते। कमर पर घुटनों तक एक चादर बांधते। गले मे उनके एक सफेद चादर पड़ी रहती। ये उनका पहनावा और उनकी पहचान थी। वहुत बार उन्हें आते जाते देखते। ब्रह्मचर्य का तेज उनके चेहरे से छलकता था। मैने 66 में हाई स्कूल किया। इंटर में प्रवेश लिया था। पिता जी चकबंदी में नौकरी करते थे। जनपद में चकबंदी का कार्य पूरा होने पर उसे जोनपुर भेज दिया गया। विभाग के सारे स्टाफ का भी जोनपुर को तबादला कर दिया गया। पिता जी को दादा जी ने जोनपुर नहीं जाने दिया। पिता जी ने नौकरी छोड़ दी। दादा जी हकीम थे।कोई ज्यादा आय नहीं थी।धनाभाग के कारण मुझे पढ़ाई छोड़नी पड़ी। झालू के पशु चिक‌ित्सालय पर श्याम बाबू सक्सैना वेटनरी स्टॉक मैन पद पर तैनात थे। उनके पास मेरी बैठ उठ थी। अधिकतर समय उनके साथ बीतता। स्वमी जी के आश्रम का कोई पशु बीमार हो जाता। वह उन्हें बलवा भेजते। मैँ भी उनके साथ जाता। आश्रम में दूध से हमारा स्वागत होता।चलते समय श्याम बाबू को दस और मुझे दो रुपये देना स्वामी जी कभी नहीं भूलते। मेरे मना करने पर भी दो का नोट जेब में डाल देते। पिछले आठ दस साल में कई बार आश्रम में जाना हुआ। स्वामी जी की एक तस्वीर जरूर नजर आई। अब तो बहुत कुछ बदल गया। अशोक मधुप 5 अप्रेल 2018