Sunday, October 31, 2021

दुबई के साथ हुए कश्मीर में विकास के समझौते पर चुप्पी क्योंॽ 26 अक्तूबर 2021

 दुबई के साथ हुए कश्मीर में विकास के समझौते  पर चुप्पी क्योंॽ

अशोक मधुप

दुबई की सरकार  ने जम्मू −कश्मीर में विकास का बड़ा ढांचा तैयार करने का बहुत बड़ा  निर्णय लिया है। इसके लिए उसने जम्मू −कश्मीर सरकार से एमओयू( समझौता) किया है। चार दिन  पहले हुआ समझौता देश  और दुनिया के लिए बड़ी खबर था,  पर देश की राजनीति और अखबारी दुनिया में ये समाचार  दम तोड़ कर रह गया। हालत यह है कि इस बड़े कार्य के लिए देश की पीठ थप−थपाने वाले भारत के अखबार− पत्रकार और नेता चुप हैंजबकि इस समझौते को लेकर पाकिस्तान में हलचल है।

जम्मू −कश्मीर के विपक्षी नेताओं से इस समझौते पर कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया की उम्मीद नहीं थी। उनके लिए तो ये खबर पेट में दर्द करने वाली ज्यादा है।हाल में कांग्रेस सासंद राहुल गांधी ने जम्मू− कश्मीर में बाहरी व्यक्तियों की मौत पर नाराजगी जताई थी। उन्होंने ये भी कहा था कि अनुच्छेद 370 हटाने का क्या लाभ हुआॽ जब लाभ  हुआ तो उनकी बोलती बंद है।  

दुनिया के अधिकांश देश जम्मू− कश्मीर को  विवादास्पद क्षेत्र मानते रहे हैं।  पाकिस्तान जम्मू− कश्मीर विवाद को प्रत्येक मंच पर उठाकार भारत को बदनाम करने की कोशिश करता  रहा है।इस सबके बावजूद ये समझौता भारत सरकार की बड़ी उपलब्धि है।

जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने इस बारे में बताया कि दुबई सरकार और जम्मू-कश्मीर सरकार ने एक समझौता किया है।दुबई से समझौते में औद्योगिक पार्कआईटी टावरबहुउद्देश्यीय टावररसद केंद्रएक मेडिकल कॉलेज और एक स्पेशलिटी हॉस्पिटल सहित बुनियादी ढांचे का निर्माण होना शामिल है।राज्यपाल ने  दुबई की ओर जम्मू-कश्मीर प्रशासन के साथ यह समझौता इस क्षेत्र में (केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद) किसी विदेशी सरकार की ओर से पहला निवेश समझौता है। यह समझौता आत्मानिर्भर जम्मू-कश्मीर बनाने की हमारी प्रतिबद्धता की पुष्टि करता है।

केंद्रीय एवं वाणिज्य उद्योग मंत्रालय ने सोमवार को एक प्रेस रिलीज़ में बताया था कि इस समझौते के तहत दुबई की सरकार जम्मू-कश्मीर में रियल एस्टेट में निवेश करेगीजिनमें इंडस्ट्रियल पार्कआईटी टावर्समल्टीपर्पस टावरलॉजिस्टिक्समेडिकल कॉलेजसुपर स्पेशलिटी अस्पताल शामिल हैं।ये तो नहीं बताया गया कि दुबई की सरकार  कितना निवेश करेगी।पर यदि वह यहां एक भी रूपया लगाता है तो ये देश की बड़ी उपलब्धि है। जबकि वह कश्मीर में करोड़ों डालर निवेश करने जा रहा है ।अनुच्छेद 370 हटने के बाद दुबई दुनिया का पहला देश है जो जम्मू कश्मीर के विकास में निवेश करने जा रहा है।ये समझौता ऐसे समय में हुआ है जब घाटी में आतंकियों ने मासूम नागरिकोंखासतौर पर गैर-मुस्लिमों को निशाना बनाना शुरू कर दिया है। 

भारत की मीडिया और नेता देश की उपलब्धि पर भले ही चुप हो पर पाकिस्तान में हलचल है। इस मुद्दे पर पाकिस्‍तान के पूर्व राजनयिक अब्‍दुल बासित ने इसको भारत की बड़ी जीत बताया है।  अब्‍दुल बासित पाकिस्‍तान के भारत में राजदूत रह चुके हैं।  बासित ने यहां तक कहा है कि इस एमओयू के साइन होने के बाद ये बात साफ होने लगी है कि अब कश्‍मीर का मुद्दा पाकिस्‍तान के हाथों से निकलता जा रहा हैउन्‍होंने कश्‍मीर मुद्दे के फिसलने को मौजूदा इमरान सरकार की कमजोरी बताया है। उन्‍होंने ये भी कहा कि नवाज शरीफ सरकार में भी कश्‍मीर के मुद्दे को कमजोर ही किया। बासित के मुताबिक दुबई और भारत के बीच हुए इस सहयोग के बाद निश्‍चित तौर पर ये भारत की बड़ी जीत है।

पाकिस्‍तान के राजनयिक के मुताबिक दुबई की इस्‍लामिक सहयोग संगठन में काफी अहम भूमिका है। इस नाते भी ये करार काफी अहमियत रखता है।बासित ने कहा है कि  अब ये हाल हो गया है कि एक मुस्लिम देश भारत के जम्मू− कश्मीर में निवेश के लिए एमओयू साइन कर रहा है। बासित ने ये भी कहा कि आने वाले दिनों में ये भी हो सकता है कि ईरान और यूएई जम्‍मू कश्‍मीर में अपने काउंसलेट खोल दें। उन्‍होंने कहा कि हाल के कुछ समय में पाकिस्‍तान को कश्‍मीर के मुद्दे पर मुंह की खानी पड़ी है। इस मुद्दे पर वो पूरी तरह से अलग-थलग पड़ चुका है।

छोटी−मोटी बात पर सरकार की आलोचना करने वाला आज देश का विपक्ष इस महत्वपूर्ण उपलब्धि पर चुप्पी साध जाएमीडिया में खबर को जगह न मिले,  इस पर संपादकीय न लिखे जांएतो यह आपकी सोच को बताता है।

 अशोक मधुप

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

 

Saturday, October 16, 2021

अमेरिका में भारतीय भी मनाते हैं हैलोवीन फेसबुक 31 अक्तूबर 2021

अमेरिका में भारतीय भी मनाते हैं हैलोवीन
अशोक मधुप
हेलोवीन ईसाइयों का त्योहार है पर अमेरिका में रहने वाले रहने वाले भारतीय भी इसे उत्साह से मनाते हैं।
हैलोवीन शब्द का इस्तेमाल पहली बार 16वीं शताब्दी में हुआ था। इसके बारे में बहुत सी अलग- अलग कहानी है।हर जगह की अपनी कहानी । माना जाता है कि किसान लोग बुरी आत्माओं से फसलों को बचाने के लिए भूतिया कपड़े पहनते हैं ताकि बुरी आत्माओं को डराकर भगाया जा सके। ऐसे में हेलोवीन ही वो दिन है जिस दिन किसान भूतिया कपड़े पहनकर आत्माओं को डराते हैं। यह भी मान्यता है कि 31 अक्टूबर का दिन फसल कटाई का आखिरी दिन होता है। ऐसे में पूर्वजों की आत्माएं फसल की कटाई में हाथ बंटाने के लिए आती हैं। अमेरिका में बसे भारतीय अपने भारतीय पर्व की तरह इस हैलोवीन डे को भी उत्साह के साथ मनाते हैं।
तीन साल पहले अक्टूबर माह में हम पति−पत्नी अमेरिका में थे।बेटा अंशुल कुमार वहां फ्लोरिडा राज्य के टेम्पा शहर में रहता है। ये पर्व मुख्य रूप से 31 अक्टूबर को मनाया जाता है। पर्व से एक सप्ताह पहले से लोगों के घरों के दरवाजे पर भूत और अस्थि पंजर के पोस्टर दिखाई देने लगे। कुछ ने अस्थि पंजर के डिजाइन घर के द्वार के पास लगा लिए । बेटा अंशुल भी एक ऐसा काले रंग का गुब्बारा लेकर आया। उसने गुब्बारा फुलाकर ऊपर अपने कमरे की बालकनी में लगा दिया। उसमें लाइट की भी व्यवस्था थी।लाइट के जलने पर यह जगमगाता भूत ही लग रहा था। वह
वॉलमार्ट से एक पैकेट भी लाया।इसमें से निकला धागा सा घर के बाहर पेड़ों की झाडियों फैला शुरू दिया। बताया कि पापा यहां ईसाई लोग 31 अक्टूबर को हेलोवीन डे मनाते हैं। वे यह मानते हैं इस दिन रात के समय भूत घूमते हैं। इसलिए दरवाजों के बाहर भूत की उपस्थिति जैसी चीजें तैयार की जाती है। पेड़ पौधों पर मकड़ियों के जाले लगा दिए जाते हैं, जिससे लगे कि यह खंडहर है और यहां भूत प्रेत रहते हैं। दरवाजों के बाहर भूत की तस्वीरें चिपका दी जाती है। मान्यता है कि इसे देख रात में घूमने निकले भूत दूर से ही वापिस चले जातें हैं।
30 की शाम में अंशुल ने मुझसे कहा कि पापा तैयार हो जाओ ।सोसाइटी के हेलोवीन फंक्शन में चलना है। मैं ,पत्नी निर्मल शर्मा,पोती अदिति अंशुल के साथ कार्यक्रम में चले गए। हॉल में अंधेरा हो रहा था। लाइटों की शेड चमक रहे थे। बच्चे भूत के कपड़े पहने हुए, भूत का डरावना मुखोटा लगाए हॉल में गोल-गोल घूमकर डांस कर रहे थे। काफी देर तक कार्यक्रम चला।
उसके बाद युवा और बड़े व्यक्तियों ने भूत बने बच्चों को टॉफी और चॉकलेट बांटी। सोसाइटी की ओर खाने की व्यवस्था थी। हमने खाना खाया और चले आए।
अगले दिन सोसायटी में रहने वाले भारतीय इस पर्व को मनाने वाले थे। दोपहर में भारतीय बच्चे और महिलाएं चेहरे पर तरह-तरह के मुखोटे लगाएं सोसाइटी में भारतीय परिवारों के घर गए। इन घरों पर आने वाले बच्चों को तोहफे में टॉफी और चॉकलेट दी गईं। युवक अपने− अपने आफिस गए थे, इसलिए वे कार्यक्रम से दूर रहे।
हमारा घर सोसाइटी के शुरुआत में पड़ता था। सोसाइटी के बैक साइड से भूत बने आए बच्चे और महिलाएं हमारे घर आईं। यहां बच्चों को चॉकलेट दिये गए। घर के बाहर सबने ग्रुप कराया और आगे बढ़ गए।
भूत बने भारतीय बच्चे मास्क लगाए खूब मनोरंजन कर रहे थे। एक दूसरे को डरा रहे थे । कुछ बच्चे आपस में मास्क बदलकर फोटो भी करा रहे थे।हेलोवीन में कद्दू की लालटेन बनाने की परंपरा है। सूखे कद्दू को खोखला करके उसमें डिजाइन से आदमी का चेहरा बनाया जाता है। कद्दू में छेद किए जाते हैं। इस कद्दू के बीच में रोशनी के लिए मोमबत्ती लगाई जाती है। इसे लेकर हेलोवीन की रात में लोग घूमते हैं। बाद में अपने दरवाजे पर टांग देते हैं।
इस त्योहार का प्रचार हुआ तो मांग के अनुरूप कद्दू की बनी लालटेन मिलनी बन्द हो गई। कद्दू की जगह प्लास्टिक की लालटेन ने ले ली है। भारतीय बच्चे भी अपने हाथों में लालटेन लिए हुए थे। पर इनमें रोशनी नही थी।बड़ों से मिलने टॉफी और चॉकलेट उसमें रखते जा रहे थे।
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Saturday, October 2, 2021

गांधी जयंती पर मेरा लेख

 प्रभासाक्षी में मेरा स्तम्भ।इसी लेख को सनशाइन न्यूज पोर्टल और घमासान.काम पोर्टल ने भी चलाया।आभार सम्पादक जी।


 

स्तंभ

गांधीजी के जमाने का नहीं, बहुत पुराना है शांति और अहिंसा का संदेश

अशोक मधुप Oct 02, 2021 10:13

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गांधीजी के जमाने का नहीं, बहुत पुराना है शांति और अहिंसा का संदेश

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स्तंभ

शांति अहिंसा का संदेश महात्मा गांधी का संदेश नहीं था। यह भारत का युगों-युगों का संदेश है। उन्होंने भारत के प्राचीन शान्ति और अहिंसा के आदेश को आगे बढ़ाया। प्रारंभ से भारतवासी शांति और अहिंसा के पुजारी रहे हैं। उन्होंने कभी अपनी ओर से युद्ध नहीं छेड़ा।

आज गांधी जयन्ती है। महात्मा गांधी का जन्मदिन। वही महात्मा गांधी, जिनका देश को आजादी दिलाने में बड़ा योगदान माना जाता है। आजादी के इस आंदोलन के साथ उन्होंने शांति और अहिंसा का संदेश दिया। कोशिश की कि अंग्रेज अहिँसा की शक्ति को पहचानें। अंग्रेज जो खुद ईसाई थे। वे प्रभु यीशु के अनुयायी थे। प्रभु यीशु जो अपने शत्रुओं को भी क्षमा करने की बात करते थे। अपने को नुकसान पहुंचाने वालों को माफ करने में जिनका यकीन था।


शांति अहिंसा का संदेश महात्मा गांधी का संदेश नहीं था। यह भारत का युगों-युगों का संदेश है। उन्होंने भारत के प्राचीन शान्ति और अहिंसा के आदेश को आगे बढ़ाया। प्रारंभ से भारतवासी शांति और अहिंसा के पुजारी रहे हैं। उन्होंने कभी अपनी ओर से युद्ध नहीं छेड़ा। अपने आप तलवार नही उठाई। उनकी कोशिश रही कि सब शांति से निपट जाए। पर जब सामने वाले ने शांति और अहिंसा को मानने वाले की कायरता समझी तो मजबूरी में उन्हें युद्ध करना पड़ा। महात्मा बुद्ध और महावीर स्वामी दोनों का युग एक था। दोनों युद्ध के विपरीत थे। दोनों ने शांति की बात की। ऐसा नहीं है कि यह भगवान बुद्ध और भगवान महावीर के समय में हुआ हो। ये तो आदि काल से चला आया है। यह तो आर्यवृत की संस्कृति है। विरासत है।

महाभारत काल में भी कौरव पांडव के बीच युद्ध ना हो, इसके लिए बार-बार प्रयास हुए। युद्ध टालने के लिए समझौते के प्रस्ताव लेकर दूत गए। महाभारत काल में तो भगवान श्रीकृष्ण पांडव के दूत बनकर स्वयं कौरवों के पास पहुंचे। किसी भी प्रस्ताव पर तैयार न होने पर उन्होंने दुर्योधन से पांडवों को सिर्फ पांच गांव देने का ही प्रस्ताव किया। इस प्रस्ताव को स्वीकार न करने के बाद ही पांडवों को युद्ध का निर्णय लेना पड़ा। कौरवों ने भगवान श्रीकृष्ण का पांच गांव देने का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया होता तो महाभारत जैसा विनाशकारी युद्ध ना होता। एक ही परिवार वाले एक दूसरे के खून के प्यासे ना बनते। महाभारत काल में अनगिनत महाबली योद्धा थे। ये सब कुरुक्षेत्र के मैदान की भेंट चढ़ गए। यदि दुर्योधन ने शान्ति का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया होता तो कुरुक्षेत्र के मैदान में लाशों के ढेर न लगते। और सब शांति के साथ में निपट गया होता। एक महाविनाश बच जाता।

ऐसे ही भगवान राम ने महाबली रावण के पास शांति का प्रस्ताव भेजा। सीता का पता लगाने के नाम पर पहले हनुमान श्रीलंका गए। रावण को समझाया। ना मानने पर लंका जलाकर यह भी बता दिया कि भगवान राम की सेना का एक ही वीर श्रीलंका को जला सकता है तो श्रीराम और उनकी सेना तो उनका महाविनाश करने में भी पूरी तरह सक्षम है। पर रावण नहीं माना। इसके बाद भी युद्ध की शुरुआत से पूर्व भगवान राम ने रावण के पास अंगद को शांति का प्रस्ताव लेकर भेजा। भगवान राम चाहते थे कि किसी तरह रावण को सद्बुद्धि आ जाए। वह माता सीता को ससम्मान वापस कर दे और महाविनाश बच जाए। अंगद ने भरपूर कोशिश की। सब प्रकार से महाबली रावण को समझाना चाहा। हठी स्वभाव के कारण शांति का प्रस्ताव स्वीकार न करने पर भगवान राम और रावण का महा भीषण युद्ध हुआ। दोनों पक्षों को क्षति तो हुई पर श्रीलंका के मेघनाथ और कुंभकरण जैसे महाबली इस युद्ध की भेंट चढ़ गये। एक राक्षस संस्कृति इस विनाश की भेंट चढ़ गई।


-अशोक मधुप