कौन जिम्मेदार है , मै नहीं जानता। किंतु आज हम हिंदू और मुुसलमान में बंट गए हैँ। छोटी- छोटी बात पर लड़ाई झगड़े पर उतर आते हैं।
जबकि हिंदुओं में आज भी ऐसा नहीं है। हमारे कई कार्य मुस्लिम धर्म गुरू के बिना संभव नहीं । हाल में छोटे बेटे की शादी थी। शादी के बाद दुल्हन के हाथ से मीरा की कढ़ाई होती है। इसका नाम मीरा की कढ़ाई क्यों पड़ा , मैं ये नहीं जानता। किसी साथी को पता हो तो बताने का कष्ट करें।
मीरा की कढाई में गुरूवार के दिन दुल्हन कढ़ाई में मीठे पूड़े बनाती है। मुस्लिम धर्म गुरू कढ़ाई कराते हैं। उन्हें सम्मान के साथ बुलाया जाता है। कढ़ाई में एक बार में जितने पूड़े उतरतें हैं। उनको किसी बर्तन में लेकर दुल्हन हाथ जोड़कर उनके सामने बैठ जाती है। मुसलिम धर्म गुरू दुआ की स्थिति दोनों हथेली मिलाकर कुछ पढ़ते हैं। हो सकता है। कलमा पढ़ते हो। या दुआ करते हों। उसे पढ़ने केबाद वे दुल्हन के सिर पर फूंक मारते हैं।
इसके बाद मुसलिम विद्वान पूड़े ले लेतें हैं। श्रद्धानुसार उन्हें दक्षिणा ( धन ) भी दिया जाता है।
मुसलिम धर्म गुरू क्या पढ़तें हैं मै नहीं जानता। किंतु यह सिलसिला चलता चला आ रहा है।
मीरा की कढ़ाई बड़े बेटे की शादी में भी मेरे घर के सामने रहने वाले एक सज्जन ने कराई थी। इस बार दूसरों ने कराई है।
क्या कोई बतायगा कि मुसलिम धर्म गुरू क्या पढ़तें हैं। इसका मीरा से क्या संबंध है। इस क्रिया का नाम मीरा की कढ़ाई क्यों पड़ा। इसकी क्या मान्यता है।