Wednesday, August 5, 2020

पत्रकारिता जीवन की भूली बिसरी कहानी -7

पत्रकारिता जीवन की भूली बिसरी कहानी -7
एक नेक्सलाइड के साथ बाढ़ में एक दिनआज देश के कई भाग में नेक्सलाइड का जोर है। सुरक्षा दलों पर ये घात लगाकर हमला करते रहें हैं। इस माहौल में सन् 84 के आसपास का एक नक्सली नेता के साथ बाढ़ में एक दिन बिताने का संस्मरण याद आ रहा है।
कॉलेज के समय से मैं मार्क्सवादी कम्युनिष्ट आंदोलन से जुड़ गया था। इसी दौरान वामपंथी आंदोलन की अलग -अलग विचारधाराओं से परिचय हुआ।कुछ समय शिक्षण कर पूर्णकालिक पत्रकारिता से जुड़ गया। लगभग 45 साल पूर्व अमर उजाला से जुड़ा। 80 के आसपास मैं घर  से समाचार भेजता था। घर ही एक तरह से मेरा कार्यालय था।
एक दिन कुर्ता पायजामा पहने कंधे पर थैला लटकाए एक साहब घर आए। उन्होंने अशोक कुमार के रुप में अपना परिचय दिया। अपने को सीपीआईएमएल की प्रदेश कार्यकारिणी का सदस्य बताया। सीपीआईएमएल भारत की कम्युनिष्ट पार्टी मार्क्सवादी लेलिनवादी है।इसके कई भाग हो गए। अधिकतर सत्ता प्राप्त‌ि के लिए सशस्त्र  आंदोलन के रास्ते पर निकल गए। इन्हे की नेक्सलाईड कहा गया ।   अपने घर पर एक नेक्सलाईड को देख कर अचकचा गया। लगा कि इसके बैग में हैंड ग्रेनेट या स्टेनगन हो सकती है। मेरे दिमाग में नेक्सलाइड की यही छवि थी। खैर कुछ देर मुझे सामान्य होने में लगे। अशोक से बातचीत हुई। वह मेरे ही जनपद के रानीपुर गांव के रहने वाले हैं। बाद में उससे अच्छी दोस्ती हो गई। वह यदा - कदा आने लगे। अशोक मंडावर के गंगा खादर क्षेत्र में अपना संगठन बना रहा थे। इसी दौरान गंगा में बाढ़ आ गई। गंगा बहुत तबाही कर रही थीं। अशोक ने कहा कि गंगा बहुत तबाही कर रही है। चलो बाढ़ घुमाता हूं।
मुझे बाढ़ में जाने का कोई अनुभव नहीं था। तै हो गया कि अगले दिन सबेरे सात बजे मंडावर बस स्टैंड पर मिलेंगे। मुझे ध्यान नहीं था,कि अगले दिन तीज का पर्व है। बाढ का भी कोई  अनुभव नही था। ये ही दिमाग में भी कि गंगा किनारे जांऊगा। एक डेढ़ घंटे में देखकर लौट आउंगा।पत्नी निर्मल से नौ बजे तक आने को मैं कहकर कैमरा लेकर घर से निकल गया। अशोक मुझे मंडावर मिले। उसके साथ बैलगाड़़ी में बैठकर गंगा के किनारे बसे गांव डैबलगढ़ पहुंच गया। यह गांव अंग्रेज कलेक्टर डैबल द्वारा बसाया गया ब्रिटीशकालीन गांव हैं।
यहां नाश्ताकर हम नाव से बाढ़ देखने चल दिए। गंगा का जल पूरे उफान पर था। बड़े -बडे़ पेड़ पहाड़ों से बहकर आ रहे थे। गंगा की धार की जोरदार आवाज से ही डर लग रहा था। मुझे तैरना नहीं आता ।एक बार ज्योतिषी ने कहा था कि पानी से बचना। पानी में ले जाने वाले को अपना दुश्मन मानना। पानी में किसी के साथ नहीं जाना। गंगा की तेज उठती पटारों को देखकर मुझे डर लग रहा था। ऐसे में ज्योतिषी की बताई इस बात के याद आने पर मेरा डर और बढ़ गया। नाव में अशोक उनकी पार्टी का स्टेट सेकेट्री और लगभग एक दर्जन गांव वाले सवार थे। नाव खेवकों को गंगा की धार को पार करना था। अतः वे नाव को खींचकर धार से ऊपर की साइड में ले गए। ऐसी जगह देखकर क‌ि जहां से नाव पानी में बह कर दूसरी साइड में सही जगह जाकर लगे।
उन्होंने नाव धार में डाल दी। वे तेजी से चप्पू चलाकर नाव को दूसरी साइड में ले जाने की कोशिश कर रहे थे। नाव के दोंनो किनारों के बीच में बीच में छेद करके मोटे रस्से बांधे गए थे। इन रस्सों में चप्पू फंसे थे। खेवक इन्हीं रस्सों में चप्पू चलाकर नाव नियंत्रित कर रहे थे।नाव धार के बीच पहुंची थी कि चप्पू को रोकने वाली दांई एक साइड की रस्सी टूट गईं। चप्पू के रस्सी के फंदे से बाहर होते ही नाव दूसरी साइड को वह चली। नाविकों का कंट्रोल नाव से खत्म हो गया।नाव में बैठे एक युवक ने टूटी रस्सी को चप्पू के चारों ओर घुमाया ।छेद में टूटा सिरा निकाला और उसे कसकर पकड़कर बैठ गया। उसने ये काम बहुत जल्दी किया। खेवक ने तेजी से चप्पू चलाना प्रारंभ कर दिया । नाव संभल गई। अपने गंतव्य की ओर चलने लगी। यहां से हम गंगा के बीच के गांव खैरपुर ,खादर ,लाडपुर लतीफपुर और इन्छावाला आदि गांव पहुंचे। यहां के रहने वालों ने गंगा की बाढ़ को देख अपने - अपने परिवार मुजफ्फर नगर जनपद के शुक्रताल नामक स्थान पर पहुंचा दिए थे। शुक्रताल प्रसि़द्ध धार्मिक स्थल हैं। यहां बहुत सारी धर्मशालाएं हैं। इनमें इनके परिवार रुके थे।इन गांव से शुक्रताल  जाना सरल है। पानी को देखकर  किसानों ने   काफी पशु खोलकर आजाद कर  दिए  । ताकि वह बहकर अपनी जान बचा लें।कुछ पशु थे तो वह घुटनों तक पानी में खडे़ थे। हालाकि ग्राम वालों ने गांव और घरों के बाहर के किनारे मिट् टी और पत्थर लगाकर पानी रोकने के लिए उपाए किए थे फिर भी घरों में दो फुट तक पानी भरा था। बुग्गी के उपर चूल्हे रखकर खाना बनाने की व्यवस्था की हुई थी। प्रत्येक घर  का एक दो पुरुष सदस्य गांव में रूका था।लोगों से बात कर फोटो खींच हम यहां से लौट लिए।पानी में जौंक थी। ये आसपास के खेतों के किनारे की छोटी -छोटी झाड़ियों पर बैठी थीं। तिड़क कर नाव में आ जाती थीं। मुझे इनसे बचाने को नाव के बीच में पटरे पर बैठाया हुआ था । इसके बावजूद डर लग रहा था। जौंक एक छोटा कीड़ा होता है। यह आदमी और पशु के शरीर पर लगकर उसका खून चूंसता हैं। छोटा सा यह कीट खून पीकर काफी बड़ा हो जाता है। नाम में सवार एक दो गांव वालों को यह लगी। उन्होंने जोक को पकड़ा ।खींचकर छुडाया । पानी में फेंक दिया। खींचने में जौंक लगने की जगह से खून भी निकलने लगा।
हमें शाम हो गई थी किंतु नाव नदी में लाने के लिए स्थान नहीं मिल रहा था। नदी में उसी स्थल पर नाव डाली जाती हैं, जहां नदी और खेत का स्तर बराबर होता है। यहां खेत नदी से काफी ऊंचाई पर था। ढांग ढूढते अंधेंरा हो गया। इस दौरान डाक मक्खी निकलने लगीं। यह बहुत खतरनाक काले- नील  रंग की मोटी मक्खी होती है। इसके काटने से बड़े पशु तक के शरीर से खून निकलने लगता हैं।डाक मक्खी और जोक के डर से मैं सहमा और सुकड़ा बैठा था। चांदनी रात थीं, ऐसे में नाव का सफर बहुत सुहाना और सुखद लग रहा था। पर गहरे पानी में डूबने ,जौंक और डाक मक्खी के काटने के डर ने सब कुछ गड़बड़ कर रखा था। घर की भी चिंता हो आई थी। सबेरे के नौ बजे तक आने को कह आया था । अब रात के आठ बजने को हैं। त्योहार का दिन होने के कारण पत्नी निर्मल परेशान, मेरे इंतजार में बिना खाए -पिए बैठीं होगी।रात नौ बजे हम गांव में आकर पड़े । जल्दी -जल्दी पेट भरा। घर की चिंता दी। मैने खाना खाकर गांव वालों से कहा कि मुझे मंडावर पंहुचा दें किसी ट्रक आदि से बिजनौर पंहुच जाऊंगा। उन्होंने मनाकर दिया । कहा -रास्ते में बदमाश लगते हैं। अब जाना ठीक नहीं। घर की चिंता में ढंग से नींद भी नहीं आई। इस समय फोन होते नहीं थे, जो घर सूचित किया जा सके।सबेरे जल्दी उठकर मंडावर से पहली बस पकड़कर  लगभग नो बजे बिजनौर पंहुचा। घर पर निर्मल का रोते बुरा हाल था।  । निर्मल ने  बताया कि वह अभी  कुलदीप सिंह के यहां गई थी। मेरे अमर उजाला के दूसरे साथी कुलदीप सिहं उस सयम मुहल्ले में ही कुछ दूर पर रहतें थे। उनसे एसपी को कहलवाया है। एसपी ने पूछा -किसके साथ गए है, तो कुलदीप सिंह बताया कि एक नेक्सलाइड अशोक है, उसके साथ है। एसपी होशियार सिंह बलवारिया थे। वे भी बहुत नाराज हुए।
आकर मैने एसपी को फोन किया। बलवारिया मेरे बहुत अच्छे दोस्त थे। मैंने उन्हें बताया कि मैं आ गया हूं, वह बहुत नाराज हुए। कहा नेक्सलाईड के साथ जाना ठीक नहीं । अभी एनएसए की फाइल चल रही है। ये और उसमें शामिल हो जाएगा।कई दिन लगे निर्मल का गुस्सा शांत होने में । उनका गुस्सा इस बात को लेकर था,कि त्योहार के दिन क्यों गए। हमारा त्यौहार खराब हुआ। बनाया खाना भी बेकार रहा।
अशोक मधुप
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