Tuesday, August 18, 2020

पत्रकारिता जीवन की भूली बिसरी कहानी 13

 पत्रकारिता जीवन की भूली बिसरी कहानी 13

23 दिसंबर 1989 को श्रमजीवी पत्रकार संघ के सम्मेलन में भाग लेने के लिए मुझे स्वगीय राजेंद्र पाल सिंह कश्यप, वीरेशबल आदि को गांधीनगर गुजरात जाना था। कार्यक्रम काफी पहले से निर्धारित था। हम उसकी तैयारी में लगे थे । पता चला कि नजीबाबाद के साथी जितेंद्र जैन को पुलिस ने पकड़ा। थाने में बुरी तरह मारा- प‌ीटा। दरवाजे के किवाड़ में देकर उनकी उंगली कुचल दीं गई। प्लास से नाखून खींचे गए। पुलिस जितना कर सकती थी ,उनके साथ किया। जितेंद्र जैन जेल भेज दिए गए।

नजीबाबाद के साथी अपने साथ मुझे भी जितेंद्र जैन से मिलने जेल ले गए। जितेंद्र जैन की हालत देखकर सबको बहुत गुस्सा आया। उन्होंने आप बीती भी सुनाई। यह बात मैंने वरिष्ठ पत्रकार स्वर्गीय राजेंद्र पाल सिंह कश्पय को बताई। उन्होंने कहा कि हमें कल निकलना है। मैंने कहा निकलना तो शाम को है। बड़ी ज्यादती हुई है। कल दिन में प्रदर्शन कर लेते है्ं। वहीं से मैंने श्री बाबूसिंह चौहान साहब से बात की। चौहान साहब ने कहा कि वे भी जेल मेंं जितेंद्र जैन से मिलकर आए हैं। वास्तव में उसके साथ बहुत ही ज्यादती हुई है। बात चीत हुई।सहमति बनी की ज्यादती हुई है। आवाज उठाई जाए।अगले दिन 11 बजे प्रदर्शन करना तै हुआ। यह भी बात हो गई कि प्रदर्शन होगा, यह खबर सुबह के सब अखबारों में छप जाए।

बिजनौर के पत्रकारों में भी अन्य जगह की तरह धड़े बदी है। ,खेमें हैं। इसके बावजूद यह भी सत्य है कि पत्रकारों के विरुद्ध होने वाली ज्यादती पर एक साथ खड़े हो जाते हैं।

उस समय डा कश्मीर सिंह एसपी थे। नजीबाबाद में सत्तार नाम एक बदमाश था। उसके आंतक से सब परेशान थे। उसने जाब्ता गंज के सतीश की निर्ममता पूर्वक हत्या कर दी थी। उसके परिवार जन सत्तार की गिरफ्तारी की मांग कर रहे थे।पोस्टमार्ट के बाद सतीश का शव नजीबाबाद आया। उसे जाब्तागंज जाना था किंतु लोगों ने घोषणा कर दी कि उसका अंतिम संस्कार कल्लू गंज में किया जाएगा। कल्लू गजं में शव जमीन पर रखकर ।अग्नि देने की प्रकिया चल रही थी कि एसडीएम और क्षेत्राध‌िकारी मौके पर पंहुच गए। शव कब्जे में लेकर भीड़ को भगा दिया गया। बताया जाता कि अधिकारियों ने इस मामले में नजीबाबाद के पत्रकारों से बात की थी।कहा था कि इस प्रकरण में पत्रकार जितेंद्र जैन की भूमिका संदिग्ध है। हो सकता है कि प्रशासन को लगा हो कि पत्रकार नहीं बोलेंगे । इसीलिए उसने जितेंद्र जैन के साथ बरबरता की।

अगले दिन समाचार छपा । 11 बजे पूरे जनपद से पत्रकार एकत्र हुए। प्रदर्शन हुआ।हमने कहा कि हम यूनियन के गुजराज सम्मेलन में जा रहे हैं। ये बात यहां उठाएंगे। हम रात में निकल गए।

बिजनौर में श्री बाबू सिंह चौहान रह गए। अधिकारी चौहान साहब का सम्मान करते ही थे। डरते भी थे। क्योंकि वे बड़े से बड़े प्रभाव के आगे दबते नहीं थे।

तत्कालीन एसपी डा कश्मीर सिंह अलग तरह के अधिकारी थे। उनके बिजनौर की मीडिया समेत समाज के सभी महत्वपूूर्ण लोगों से संबंध थे। हालत यह थी कि उनके तबादले पर जगह जगह विदाई कार्यक्रम हुए थे। शहर की दुकानों पर मिठाई नही बची थी।प्रदर्शन और चौहान साहब का रूआब जितेंद्र जैन को रिहा कराने में कामयाब आ गया। मामला खत्म हुआ।

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