Wednesday, January 5, 2011

अपनी लाइन लंबी करो, दूसरे की छोटी नहीं :अतुल माहेश्वरी

 अशोक मधुप

सोमवार को मैं दफ्तर में बैठा था कि एक फोन ने मुझे स्तब्ध कर दिया। समझ नहीं आया कि क्या हुआ?, कैसे हुआ? कुछ देर मेरी चेतना शून्य सी हो गई। एक ऐसा व्यक्ति जिसमें नेतृत्व का गुण था। मार्गदर्शन और निर्देशन की काबिलियत थी। कभी मन भटका तो उनसे बात की और चुटकियों में समस्या का हल करने वाले अमर उजाला के एमडी अतुल माहेश्वरी नहीं रहे, सुन कर यकीन नहीं हुआ। अतुलजी के अचानक चले जाने की सुन गहरा आघात लगा। मेरे से उम्र में छोटे थे, लेकिन मेरे लिए एक अभिभावक के रूप में रहे। मैंने 1977-78 के आसपास अमर उजाला बरेली में काम शुरू किया। उस समय एक स्थानीय दैनिक में काम करता था। किसी बात पर बिजनौर के पे्रस कर्मचारी हड़ताल पर चले गए, इससे बिजनौर में निकलने वाले सभी समाचार पत्रों का प्रकाशन बंद हो गया। हड़ताल 26 दिन तक चली। तब बिजनौर में अमर उजाला की 125 प्रतियां आती थीं। अखबार के विस्तार को बेहतर मौका था। मैने आदरणीय अतुलजी से बात की। मैंने कहा कि प्रेस एंपलाइज संकट में हैं। हम श्रमिकों की मदद कर अन्य अखबारों को ठप कर सकते हैं! इससे हड़ताल लंबी चलेगी और हमारी प्रसार संख्या बढ़ जाएगी। उन्होंने मुझे समझाया कि अखबार के प्रसार के लिए यह हथकंडा ठीक नहीं हैं। अतुलजी ने कहा कि हमें दूसरों को नुकसान पहुंचा कर आगे नहीं बढ़ना चाहिए। हम बिजनौर मुख्यालय से निकलने वाले अखबार के बंद होने पर प्रयास करें तो बेहतर है, लेकिन किंतु श्रमिकों को धन देकर हड़ताल को लंबा चलाना ठीक नहीं है। ऐसा ही उस समय हुआ जब बिजनौर में श्री सूर्यप्रताप सिंह डीएम थे। तहसील दिवस में जूस पीने से उनकी तबियत खराब हुई। एक समाचार पत्र ने प्रकाशित किया की डीएम को मारने की कोशिश की गई। समाचार प्रकाशित करने वाला स्थानीय दैनिक उस समय बिजनौर में सर्वाधिक प्रसार संख्या में था। इस प्रकरण में कुछ कर्मचारियों पर कार्रवाई होनी तय थी। उस समाचार पत्र ने सिर्फ डीएम के पक्ष को प्रकाशित किया। दूसरे पक्ष की उपेक्षा की गई। हमने दोनों पक्षों की आवाज को लोगों के सामने लाने का प्रयास किया। हमनेजहर देने के प्रकरण की उच्च स्तरीय जांच की आवाज उठाई। समाचार छापने का क्रम चल ही रहा था कि स्थानीय दैनिक ने अमर उजाला परिवार से जुड़े आईएएस दीपक सिंघल के विरुद्घ समाचार प्रकाशित कर दिया। मेरी अतुलजी से बात हुई। मैंने कहा कि हम भी उनके खिलाफ छापेंगे। अतुलजी ने स्पष्ट रूप से इंकार कर दिया। बोले, अपनी लाइन लंबी करो, दूसरों की छोटी करने में मत लगो। समय बीत गया। आज उस समाचार पत्र की प्रसार संख्या सिमट चुकी है। एक दिन किरतपुर से लौटते समय अतुलजी मेरे साथ बिजनौर कार्यालय आ गए। वह जब मिलते थे, सभी परिचित और जानकारों के बारे में पूछा करते थे। स्थानीय समाचार पत्र के बारे में चर्चा हुई। मैंने बताया कि 400 या 500 प्रतियां ही छप रही हैं। उन्होंने कहा-याद है मैंने कहा था कि अपनी लाइन बड़ी करते रहो।

यादों में लौटता हूं तो याद आता है कि मैं आज जिस मकान में रहता हूं मकान मालिक उसे बेच रहे थे। उनका पहला ऑफर मेरे लिए था। मेरे पास इतने पैसे नहीं थे। मैं बरेली गया था अतुलजी से बात हुई । मैंने कहा कुछ रुपयों की जरूरत होगी। उन्होंने कहा बैनामा होने से एक दिन पहले बता देना। मैंने फोन किया तो रात को टैक्सी से ड्राफट मिल गया।

बरेली से प्रकाशित होने वाले अमर उजाला में उर्दू शायर स्व. निश्तर खानकाही व्यंग्य लिखते थे, मेरठ संस्करण में व्यंग्य छपना बंद हो गया। अतुलजी ने इस बारे में मुझसे जानकारी मांगी। निश्तर खानकाही से मैंने पूछा तो उन्होंने कहा कि कुछ लेख का पारिश्रमिक नहीं मिला है। मैने अतुलजी को बताया। अतुलजी ने शीघ्र ही उन्हें पारिश्रमिक भिजवाया। अतुलजी के साथ बिताए गए छोटे से सफर में उनकी मदद करने की फेहरिस्त बहुत लंबी है। अतुलजी ने कितने लोगों की मदद की, शायद यह उन्हें भी याद नहीं होगा।

अतुलजी बहुत ही सरल और विनम्र थे। उनके साथ काम करते हुए कभी ऐसा महसूस नहीं हुआ कि हम मालिक के साथ हैं। हमेशा उन्होंने दोस्ताना व्यवहार कायम रखा। एक बार मै बरेली गया था। देर रात को टेलीपि्रंटर पर खबर आ गई कि रूस के राष्ट्रपति नहीं रहे। कार्यालय के पत्रकार साथी गोपाल विनोदी वामपंथी विचारधारा के थे। अतुलजी ने विनोदीजी एवं अन्य सभी साथियों को बुलाया। अतुलजी ने कहा कि रूस के राष्ट्रपति का निधन हो गया है। शायद विनोदजी को मौका मिल जाए।

 5december 2011 ke amar ujala me prakashit

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