Saturday, December 4, 2010

सबसे अलग

 जांबाजों का गांव
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         बिजनौर जनपद के नूरपुर थाने के अंतर्गत अस्करीपुर गांव का इतिहास भी अजीब-ओ-गरीब है। यहां के लोगों ने जब गोरों का साथ दिया, तो पूरी निष्ठा के साथ और जब महात्मा गांधी के आह्वान पर विरोध पर उतरे, तो अंगरेज सरकार की नाक में दम कर दिया।
मुरादाबाद-नूरपुर मार्ग पर मुरादाबाद से लगभग 35 किमी और मेरठ से लगभग 145 किमी की दूरी पर स्थित है अस्करीपुर। गांव के पुराने लोग बताते हैं कि प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान अंगरेजों की ओर से गांव के नौजवानों ने जर्मनी के विरुद्ध लड़ाई में हिस्सा लिया था। उनमें से एक शहीद भी हो गया। गांव के प्राथमिक विद्यालय में एक पत्थर लगा है, जिस पर अंगरेजी में लिखा है-अस्करीपुर, इस गांव के दस व्यक्तियों ने 1914 से 1919 के ‘गे्रट वार’ में भाग लिया था और एक ने बलिदान दिया।
लेकिन 1942 में महात्मा गांधी द्वारा भारत छोड़ो आंदोलन का आह्वान करने पर इस गांव के युवक अंगरेज सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए पूरी ताकत से जुट गए। गांव में गुप्त सभाएं होती थीं और अंगरेजों को देश से खदेड़ने की नीतियां बनती थीं। आंदोलनकारियों ने तय किया कि 16 अगस्त, 1942 को नूरपुर थाने पर तिरंगा फहराया जाएगा। इसके लिए पहली रात नूरपुर को जोड़ने वाले सभी मार्गों पर गड्ढे खोदकर उन्हें बंद कर दिया गया, ताकि अन्य स्थानों से गोरी पुलिस नूरपुर न पहुंच सके। रिक्खी सिंह एवं हरस्वरूप सिंह के नेतृत्व में आजादी के हजारों दीवानों ने 16 अगस्त को नूरपुर में एक जुलूस निकाला। थाने पर तिरंगा फहराते समय रिक्खी सिंह ब्रिटिश पुलिस की गोली से जख्मी हो गए थे, जिन्होंने जेल ले जाते समय अम्हेड़ा के पास दम तोड़ दिया। पड़ोसी गांव गुनियाखेड़ी के निवासी परवीन सिंह गोली लगने से मौके पर ही शहीद हो गए थे।
गांव के अनेक नामदर्ज लोगों के पकड़े न जाने पर अंगरेज सरकार ने उन्हें भगोड़ा घोषित कर गांव पर सामूहिक रूप से तीन सौ रुपये का जुर्माना लगाया। आजादी की लड़ाई में भाग लेने के कारण इस गांव पर गोरी सेना ने बर्बर जुल्म किए। गांव वालों पर अत्यधिक जुल्म होते देख आजादी के दीवानों की ओर से जनपद में एक परचा बंटवाकर गोरे अधिकारियों से कहा गया कि नूरपुर थाने पर झंडा फहराने में उनका हाथ है। तब जाकर गांव पर गोरी सरकार की ज्यादती रुकी। आजादी के बाद जब जुर्माने की रकम गांव वालों को लौटाई गई, तो उन्होंने इस पैसे को पास के गांव गोहावर में बने संपूर्णानंद इंटर कॉलेज में लगाया। आज की पीढ़ी भले ही इस गांव के इतिहास से अनभिज्ञ हो, किंतु इतिहास के पन्नों में इस गांव की जांबाजी और बलिदान की कहानी दर्ज है।
अशोक मधुप

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