Thursday, September 21, 2023

नही रहे जाने माने चित्रकार सुशील वत्स

नही रहे जाने माने चित्रकार सुशील वत्स अशोक मधुप देश के जाने−माने चित्रकार सुशील वत्स का 26 जुलाई 2023 को मंडी धनौरा के आनन्द आश्रम में निधन हो गया।वे 93 वर्ष के थे। वत्स का जन्म 19 सितंबर को 1930 चांदपुर के मोहल्ला साहुआन में हुआ। सुशील वत्स के पिता मंडी रघुवीर सिंह शर्मा धनौरा के जूनियर हाईस्कूल में मुख्य अध्यापक थे। उनके पिता दीवारों पर सीमेंट से देवी- देवताओं की मूर्तियां बनाते थे। इन मँर्ति को देखकर बालक सुशील में चित्रकला के प्रति शौक पैदा हुआ। वे चित्र बनाने लगे। इस शौक में वे इतने रमें कि उसी को जीवन का लक्ष्य बना लिया। कुछ कर गुजरने के जज्बे ने सुशील वत्स के हाथ में कूंची दे दी और विश्व प्रसिद्ध बना दिया। सुशील वत्स ने कला की बारीकियों को समझा और मोड्रन आर्ट में अपना कैरियर बनाना तै किया। उन्होंने पूरी दुनिया में अपने चित्रों की प्रदर्शनी लगाई।उनकी पेंटिंग पांच लाख रूपये मूल्य तक में बिकीं। एक साक्षात्कार में सुशील वत्स बताते हैं कि जब उन्होंने कला में भविष्य बनाना तै किया और अपना निर्णय अपने पिता जी को बताया।उनके पिताजी ने समझाया कि कलाकार बनोगे तो भूखे मरोगे, किंतु उन्होंने उनकी बात नही मानी। और दिल्ली जा बसे। दिल्ली को अपना केंद्र बनाया।शुरू में 140 रूपये में नौकरी की। 20 रूपये महीना के एक टिन शेड़ में सर छुपाने की व्यवस्था हुई। कहीं जीने की सीढ़ियों पर बैठकर तो कही पेड़ की छावं में बैठकर वे अपने जुनून को परवान चढ़ाने में लग गए। वे रामजस काँलेज में कार्डिनेटर रहे।उनकी एक पेंटिग को 1956 में इंडियन अकेडमी आँफ फाइन आर्ट अमृसर ने गोल्ड मैडिल दिया।इस पुरस्कार के बाद उनकी कला को बेइंतहा सम्मान मिला। उन्होंने मुंबई, दिल्ली और केलीफोर्निया के अलावा पूरी दुनिया में अपने चित्रों की प्रदर्शनी लगाई।उन्हें कई नेशनल अवार्ड मिले।यूनेस्को फलोशिप मिली। सुशील वत्स की पेंटिंग पांच लाख रुपये तक में बिकी है। सुशील वत्स मंडी धनौरा के सन्त स्वर्गीय हीरानंद के अनुयायी है। दिल्ली में रहते हुए भी वे अधिकतर समय स्वामी हीरानंद के ही धनौरा स्थित आनंद आश्रम में बिताते रहे। मृत्यु पर्यन्त वे लंबी अवधि तक इसी आश्रम में रहे।उनके तीन पुत्री और एक पुत्र हैं।उनके शौक का उनके परिवार के किसी सदस्य ने अपना कैरियर नही बनाया। श्री सुशील वत्स की विशेषता थी कि वह कभी खाली नही बैठते थे।विजिंटिग कार्ड हो या अखबार वे उसपर कुछ न कुछ बनाते ही रहते थे।कुछ समय पूर्व कृष्णा काँलेज में चित्रकला प्रतियोगिता के उदघाटन के लिए वे आए हुए थे।काँलेज की दीवार चित्र बनाने के लिए।यहीं उन्होंने दो पेंटिंग बनाईं थीं। जीवन की यादें श्री वत्स बताते थे कि एक बार वह घर से भागकर बरेली पहुंच गए। वहां वे फौज में भर्ती हो गए। परिवार में पता चला तो हंगामा मच गया। पिता जी की लिखत –पढ़त क करने पर तीन माह बाद उन्हें सेना की सेवा से मुक्ति मिली। श्री सुशील वत्स की पुत्री सारिका पटेल कहती हैं कि उनके पिता ने आनन्द आश्रम को 70 साल दिए।किंतु आश्रम वालों ने उनकी बीमारी में उनके कमरे का ताला तोड़कर सारा सामन गायब कर दिया।आज उनके पास वत्स साहब की समृति के नाम पर कुछ भी नही है। अशोक मधुप

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