Sunday, March 4, 2018

एक अंगडाई लो सुस्ती त्यागो मित्र जागो


 एक अंगडाई लो सुस्ती त्यागो
मित्र जागो

तुम उदास हो, रो रही हो,
तुमने पति खोया है।
वक्त ने तुम्हारे जीवन में विष बीज बोया है।
जीवन पथ पर तुम्हें सहारा देने वाले,
अब वो मजबूत हाथ  नहीं रहे ।
45 साल साथ साथ  चलने वाले 
अब वह तुम्हारे साथ नहीं रहे।
अब तुम अकेली हो, परेशान हो,
उनको याद कर अपना 
आपा खो देती हो,
बात बात पर जब -तब रो देती हो,
तुम्हारी पीड़ा को वही जान सकता है,
जिसका जीवन संबल गया हो,
सहारा  खोया हो,
होठों की  मुस्कान गई हो,
मांग का  ‌सिंदूर छिना हो,
जीवन का हीरों गया हो,
जो जार जार रोया हो,
जिसने जीवन  का संबल खोया हो ।
एक बात बताओ,
क्या ऐसा पृथ्ची पर पहली बार हुआ है,
क्या इससे  पहले लोगों ने जीवन साथी
अपने ‌प्र‌िय को नहीं गवांया।
क्या यह दुख तुम पर ही पहली बार आया ।
तुम पर यह दुख आया, 
तुम रो रही हो,
उदास हो, जीवन से निराश हो।
किंतु यहां तो कोई भी अमर नहीं है,
जो आया है, उसे जाना है,
जाकर फिर नए रूप में   आना है।
ये  जीवन चक्र है, चलता ही रहेगा,
जो पृथ्वी पर आया,  वह किसी न किसी 
प्र‌िय की मृत्यु
का दुख, दर्द  जरूर सहेगा ।
किसी का भाई, जाएगा तो किसी का बेटा,
किसी की पत्नी विदा होगी तो किसी का प्रेमी।
और फिर  किसी -किसी के यहां 
बेटा आएगा तो किसी का भाई।
कहीं रोना होगा तो कहीं  गाना्, 
कहीं मातम ‌होंगे  तो कही खुशी।
यही तो है  जीवन चक्र  ,
समय का पहिंया।
आज वह गए हैं, कल कोई और जाएगा,
किसी न किसी द‌िन तुम्हारा 
और हमारा नंबर भी आएगा।
सबके नंबर लगे हैं,
डेट फिक्स है,
किसी की फोर है,
तो किसी की सिक्स है।
यह कर्म भूमि है,
जिसका जबतक कर्म बकाया है,
तब तक हर हाल में रहना है।
जीते जी नई खुशी पर आनन्द  मनाना है,
   ‌हर प्रिय के जाने का दुख उठाना है।
रावण बध के बाद राम को राज नहीं करना था,
कार्य समाप्ति पर वापिस जाना था,
महा भारत का कार्य  निपटाकर 
कृष्ण को भी प्राण गवांना था।
यहां सब कुछ एक क्रम में बंधा है, नियति नि‌श्च‌ित है,
काम समय निर्धारित हैं।
क्रम तै हैँ।
समय चक्र जारी है,
हां पति के निधन की पीड़ा 
तुम पर जरूर भारी है।
पर जीवन चक्र चलता रहता है,
किसी के खो जाने से नहीं रूकता।
कोई  भी पूर्ण  जीवन साथ नहीं चलता।
ये ट्रेन का सफर हो।
कोई कुछ देर  बाद 
अपनी यात्रा पूरी कर ट्रेन से उतर जाता है।
कोई   गंतव्य तक हमारे साथ जाता है।
पूरे समय कोई  साथ नहीं देता,
कोई हर वक्त ,हर पल साथ नहीं रहता।
अंधेरे में हमारी छाया भी 
हमारा साथ छोड़ देती है।
जीवन पथ में रोज साथी मिलते हैं,
रोज मौत  उन्हें हर लेती है।
 जो हुआ,उसे बिसराओ,
आओ कुछ नया करने
नए मित्र  बनाओ।
यहां जो तुम्हारा कार्य 
शेष है, उसे पहचानो।
 जीवन जीने के लिए
नए  संकल्प ठानो।
दुखद स्वपन भूलो,
मित्र समझो, जग जाओ,
तुम्हें अपने परिवार 
मित्रों के  लिए जीना है,
जीवन में पान करने को 
जाने अभी कितना विष शेष है,
जाने कितना  और 
हलाहल पीना है।
अपने शेष कार्य करने पर लग जाओ,
मित्र,
 जग जाओ।
एक अंगडाई लो सुस्ती त्यागो,
नया कार्य करने को
 पूरी ताकत से लग जाओ |
अशोक मधुप
बिजनोर 246701
  

No comments: