Monday, July 11, 2016

मत बनाओ ऐसे चित्र

लगभग  चार दशक बाद फिर कुछ लिखने का मन हुआ।
कैसा लिखा ये आप बताएंगे

मत बनाओ ऐसे चित्र

मत बनाओ ऐसे चित्र ,पेंटिग ,
अट्टालिकांएऔर भवन, 
जिन्हे देख देखकर लोग दांतों तले उंगली दबाए,
प्रशंसां करें। उपहार दें।
इसके बाद कटवा  दें  तुम्हारे  हाथ।
ताकि दुबारा न बना सको तुम ,नया ताजमहल 
 किसी राजा के प्यार की यादगार में ।
बनाओ, तो बनाओ ऐसे झोंपड़े,
जिसमें रहकर बरसाती पानी गर्मी सर्दी से बचा जाए।
आम आदमी आसानी से गुजारे अपना कष्ट प्रद जीवन।
- बनाओ तो बनाओ ऐसे  चित्र 
जिसमें किसी राजा के प्यार की याद नहीं,
आम आदमी के सपने हों,
नई  आशांए हो,
 कठोर जीवन पथ पर चलने का विश्वास हो।
-कहानी लिखो तो ऐसी 
जिसमें विदेश में जा बसे बेटे को 
गांव में रहने वाली उसमी मां की याद आ जाए।
याद आ जाए कि उसकी मां 
डयोढ़ी पर बैठी उसका इंतजार कर रही होगी।
-कविता लिखों तो  ऐसी कि विदेश में बैठे बेटे को 
याद आ जाए कि दरवाजे पर बैठकर आज भी उसकी मां 
उस रास्ते का निहारती रहती है, 
जिससे उसका बेटा
 अपने सपने और भविष्य सवारनें 
 के लिए गया था सात समुन्दर पार,
 और मां जाने कैसे रोक पाई थी अपने आंसू।
-करो तो कुछ ऐसा कि लोग अपने गम भूल कर दो पल मुसकरांए।
गाए, नाचे।खुशी मनांए
-अशोक मधुप

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