Saturday, November 7, 2015

बात दीपावली की करिए

  बात दीपावली की करिए
बात  असहिष्णुता की है। मौसम दीपावली का। इस मौसम में ये अच्छा नहीं लगता।
- ये तो रोशनी का पर्व  है। प्रकाश का पर्व  है। बात प्रकाश की होनी चाह‌िए।
- बात शमा की होनी चाह‌िए। उसपर फिदा होने वाले परवाने की होनी चाहिए।
-दीपावली पर दीपक की बात होनी चाहिए। मिठाई की बात होनी चाहिए।
- विकास समय का चक्र है। चलता रहता है ।  चलना   भी चाहिए। विकास गंगा जब बहेगी तो गंगोत्री से निकलेगी। पृथ्वी को  हरा भरा करेगी। शस्य श्यामला करती समुद्र  तक पंहुच जाएगी। ये ही तो यात्रा है। इस यात्रा में हमने इस पति‌त पावनी को पति‌त कर दिया।
-गंगा हमारे पाप धोती थी हमने कूड़ा करकट गंदगी डालकर इसे अपने कार्य ये विमुख कर दिया।उसे इस जगह पंहुचा दिया कि अब इसकी सफाई की जंग लड़नी पड़ रही है।
- बात दीपावली की थी। दीपावली पर हमने घरों को सुंदर -सुुदर पेंट से रंगना शुरू कर दिया।पहले हम पिडोल से घर की पुताई करते थे। आगन में गोबर से गोबरी होती थी। इनकी भीनी भीनी सुंगध को महसूस किया जा सकता है। बताया नहीं जा सकता।
अब  रंगब‌िंरगी झालरों से  घर को  रोशन करने का सिलसिला चल पड़ा। अपने घर को प्रकाशवान करने का । अपनी सपंन्नता दिखाने का। विकास चक्र में बिजली की झालर में हमने दीपक  को भुला दिया।
-पहले ऐसा नही था। दीपावली अलग तरह का पर्व  होता था।  दीपावली पूजन के बाद दीपों  की पूजा  की जाती थी। इन दीपों को  मंदिर ,जलस्त्रोत और रास्तों पर रखा जाता था। अन्य व्यक‌्त‌‌ियों की सुव‌िधा  के लिए, आराम के लिए।
-एक बड़ा  काम और होता था। अपने घर को प्रकाशित करने से पूर्व  आसपास वालों और पर‌िचितों के द्वार के  दोनों किनारों पर दीप रख्रकर उनकी समृद्ध‌ि की कामना की जाती थी। मनोत‌ि  मांगते कि हमारी तरह इनका घर भी प्रकाशवान हो। आसपास में घरों के द्वार पर दीप रखने का कार्य प्रायः परिवार की कन्याएं करती थी। इस कार्य के बाद अपने घर में प्रकाश होता था। दीप जलाए जाते थे।
&कुछ जगह ये काम अब भी होता है। गांव अब भी एक परिवार है। वहां ये सिलसिला आज भी जारी है ।
- शहरों में आज  हम अपने घर में प्रकाश करने में लगे है। अपने घर को जगमगा रहे है। आसपास वालों से कोई  लेना देना नहीं । हम एकांकी होते जा रहे हैं। समाज की बात भूल रहे हैं। सम्रग्रता की बात भूल रहे हैं।विश्व कुटुंबकम की बात करने वाले अब  अपने घर को सजा कर प्रसन्न हो रहे हैं। क्या हो गया हमें?

अशोक मधुप
https://likhadi.blogspot.com

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