Wednesday, September 23, 2009

श्रीमती तारा प्रकाश की दो कविताएं


खुद को तपाइए
उनके चेहरे की झुर्रियों के न जाइए
उनकी तरह से आप भी खुद को तपाइए।
आसान है बोना बहुत ये नफरतों के बीज
इंसान हैं गर आप तो मुहब्बत उगाइए।
हैवानियत के दौर से,घबरा गए हैं लोग
अब दौर नया लाइए,।इंसा बनाइए।
मौत की सौगात तो दरिदें ही लाएंगे
गर हो सके तो जिंदगी, बस बांट जाइए।
विकलांग गर मंजिल पा गए अपनी,
तारीफ उनकी कीजिए, हंसी न उगाइए।
फल के पीछे दौडना, अब छोडिए जनाब
बस कर्म अपना की कीजिए और भूल जाइए।
उम्मीदों के सांए में
अंजाने चेहरों की हमको नही खली बातें
पहचानों के दरवाजों से सदा चली बातें।
तनहाई ने हमकों काटा , यादों के क्षण में
कमरे में, आंगन में, दर में जहां पलीं बातें।
सदियां बीती मन की बातें कहने की धुन में,
अधर हुए खामोश की जब जब यहां चलीं बातें।
उम्मीदों के साए में जागे सोते सपने
संघर्षो के सांचे में क्या खूब ढली बातें।
पथराई आंखों से आंसू सारी रात झरे
छुप छुप जब बोझिल सांसों के साथ चलीं बातें।

सच हुए सपने से साभार

2 comments:

दिगम्बर नासवा said...

सुन्दर रचना है ......

ज्योति सिंह said...

bahut hi achchhi rachana .happy dashhara .