प्रसिद्ध भारतीय शास्त्रीय नृत्यांगना यामिनी कृष्णमूर्ति : जीवन, साधना और योगदान
भारतीय शास्त्रीय नृत्य परंपरा को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने वाली महान नृत्यांगनाओं में यामिनी कृष्णमूर्ति का नाम अत्यंत श्रद्धा और सम्मान के साथ लिया जाता है। उन्होंने नृत्य को केवल कला का माध्यम नहीं माना, बल्कि उसे साधना, अनुशासन और आध्यात्मिक अनुभूति का स्वरूप प्रदान किया। उनकी नृत्य शैली में शुद्धता, सौंदर्य और भावाभिव्यक्ति का ऐसा अद्भुत संगम दिखाई देता है, जिसने दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया। वे भारतीय सांस्कृतिक विरासत की सशक्त प्रतिनिधि रहीं।
यामिनी कृष्णमूर्ति का जन्म बीस दिसंबर उन्नीस सौ चालीस को तमिलनाडु के चिदंबरम नगर में हुआ। उनका परिवार विद्वान और सांस्कृतिक वातावरण से जुड़ा हुआ था। बचपन से ही उन्हें कला, संगीत और नृत्य के प्रति आकर्षण था। परिवार ने उनकी रुचि को पहचाना और उन्हें शास्त्रीय नृत्य की विधिवत शिक्षा दिलाने का निर्णय लिया। यही निर्णय उनके जीवन की दिशा तय करने वाला सिद्ध हुआ।
उन्होंने बहुत कम आयु में नृत्य की शिक्षा आरंभ कर दी थी। उन्हें भारत के प्रसिद्ध गुरुओं से प्रशिक्षण प्राप्त हुआ। उन्होंने भरतनाट्यम और कुचिपुड़ी जैसे शास्त्रीय नृत्य रूपों में गहन साधना की। कठोर अभ्यास, अनुशासन और गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण उनके प्रशिक्षण की विशेषता रही। वे घंटों अभ्यास करती थीं और नृत्य की सूक्ष्म से सूक्ष्म बारीकियों को आत्मसात करती थीं।
यामिनी कृष्णमूर्ति ने जब मंच पर पहली बार प्रस्तुति दी, तभी यह स्पष्ट हो गया था कि वे साधारण नृत्यांगना नहीं हैं। उनकी देह की भंगिमाएं, नेत्रों की भाषा, मुद्राओं की शुद्धता और भावों की गहराई दर्शकों को गहराई से प्रभावित करती थी। उनके नृत्य में सौंदर्य के साथ-साथ गंभीरता और आध्यात्मिक भाव भी स्पष्ट रूप से झलकता था।
उन्होंने भरतनाट्यम नृत्य शैली को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। उनकी प्रस्तुति में शास्त्रीय मर्यादा का पूर्ण पालन होता था, साथ ही उसमें नवीनता और सजीवता भी दिखाई देती थी। उन्होंने कुचिपुड़ी नृत्य को भी विशेष पहचान दिलाई। इन दोनों नृत्य शैलियों में उनकी समान दक्षता उन्हें अन्य कलाकारों से अलग बनाती है।
यामिनी कृष्णमूर्ति ने भारत ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी भारतीय शास्त्रीय नृत्य का व्यापक प्रचार किया। उन्होंने अनेक देशों में मंच प्रस्तुतियां दीं और भारतीय संस्कृति की गरिमा को विश्व के सामने प्रस्तुत किया। उनकी नृत्य प्रस्तुतियों ने विदेशी दर्शकों को भारतीय दर्शन, परंपरा और सौंदर्यबोध से परिचित कराया। वे सांस्कृतिक दूत के रूप में भारत का गौरव बनीं।
उनके योगदान के लिए उन्हें अनेक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मान प्राप्त हुए। उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्मश्री, पद्मभूषण और पद्मविभूषण जैसे सर्वोच्च नागरिक सम्मानों से सम्मानित किया गया। ये सम्मान न केवल उनकी व्यक्तिगत उपलब्धियों का प्रतीक हैं, बल्कि भारतीय शास्त्रीय नृत्य की प्रतिष्ठा को भी दर्शाते हैं। इसके अतिरिक्त उन्हें कई सांस्कृतिक संस्थानों और सभाओं द्वारा भी सम्मान प्रदान किया गया।
यामिनी कृष्णमूर्ति केवल एक महान नृत्यांगना ही नहीं, बल्कि एक श्रेष्ठ गुरु भी थीं। उन्होंने अपने ज्ञान और अनुभव को नई पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए नृत्य प्रशिक्षण संस्थान की स्थापना की। उनके शिष्य आज देश और विदेश में भारतीय शास्त्रीय नृत्य का प्रचार कर रहे हैं। गुरु और शिष्य परंपरा को उन्होंने पूरी निष्ठा और आदर के साथ निभाया।
निजी जीवन में यामिनी कृष्णमूर्ति अत्यंत अनुशासित और सरल स्वभाव की थीं। उनका जीवन कला और साधना को समर्पित था। वे मानती थीं कि नृत्य केवल मंच प्रदर्शन नहीं, बल्कि आत्मा की अभिव्यक्ति है। इसी विचारधारा ने उन्हें जीवनभर प्रेरित किया। उन्होंने कभी भी कला से समझौता नहीं किया और शुद्धता को सर्वोच्च स्थान दिया।
अपने जीवन के अंतिम वर्षों तक वे नृत्य और कला से सक्रिय रूप से जुड़ी रहीं। वे विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों, संगोष्ठियों और कार्यशालाओं में भाग लेती थीं और युवाओं को मार्गदर्शन देती थीं। उनका व्यक्तित्व प्रेरणास्रोत था और उनकी उपस्थिति मात्र से ही वातावरण में गरिमा का संचार हो जाता था।
यामिनी कृष्णमूर्ति का निधन तीस अगस्त दो हजार चौबीस को हुआ। उनके निधन से भारतीय कला जगत को अपूरणीय क्षति पहुंची। हालांकि वे शारीरिक रूप से हमारे बीच नहीं रहीं, लेकिन उनकी कला, शिक्षाएं और योगदान सदैव जीवित रहेंगे। वे आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का अमर स्रोत हैं।
समग्र रूप से यामिनी कृष्णमूर्ति भारतीय शास्त्रीय नृत्य की एक उज्ज्वल ज्योति थीं। उनका जीवन परिचय समर्पण, साधना और सांस्कृतिक गौरव की कहानी है। उन्होंने यह सिद्ध किया कि सच्ची कला समय और सीमाओं से परे होती है। भारतीय नृत्य परंपरा में उनका स्थान सदैव सर्वोच्च रहेगा और उनका नाम श्रद्धा के साथ स्मरण किया जाता रहेगा।
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