Saturday, December 20, 2025

भारतीय सिनेमा की प्रसिद्ध अभिनेत्री नलिनी जयवंत : जीवन और कृतित्व

 भारतीय सिनेमा की प्रसिद्ध अभिनेत्री नलिनी जयवंत : जीवन और कृतित्व

भारतीय सिनेमा के स्वर्णिम युग में जिन अभिनेत्रियों ने अपनी सशक्त अभिनय प्रतिभा, गरिमामय व्यक्तित्व और सजीव अभिव्यक्ति से दर्शकों के मन पर अमिट छाप छोड़ी, उनमें नलिनी जयवंत का नाम अत्यंत सम्मान के साथ लिया जाता है। उन्होंने अपने अभिनय से न केवल नायिका की पारंपरिक छवि को सुदृढ़ किया, बल्कि संवेदनशील और सशक्त स्त्री पात्रों को भी नई पहचान दी। उनका जीवन संघर्ष, साधना और सिनेमा के प्रति समर्पण का अनुपम उदाहरण है।

नलिनी जयवंत का जन्म चौदह फरवरी उन्नीस सौ छब्बीस को मुंबई में हुआ। उनका परिवार शिक्षित और सांस्कृतिक मूल्यों से परिपूर्ण था। बचपन से ही उनमें कला के प्रति विशेष रुचि दिखाई देती थी। संगीत, नृत्य और अभिनय की ओर उनका झुकाव स्वाभाविक था। परिवार ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया। उनकी प्रारंभिक शिक्षा मुंबई में ही हुई, जहां उन्होंने अध्ययन के साथ-साथ रंगमंच और सांस्कृतिक गतिविधियों में सक्रिय भागीदारी की।

फिल्मी दुनिया में उनका प्रवेश किशोरावस्था में ही हो गया था। आरंभिक दौर में उन्हें छोटे और सहायक भूमिकाएं मिलीं, किंतु उनकी सहज अभिनय शैली और प्रभावशाली उपस्थिति ने शीघ्र ही फिल्म निर्माताओं का ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने जिस भी भूमिका को निभाया, उसमें स्वाभाविकता और गहराई स्पष्ट दिखाई देती थी। धीरे-धीरे वे मुख्य नायिका के रूप में स्थापित होने लगीं।

नलिनी जयवंत का अभिनय सौंदर्य केवल बाहरी आकर्षण तक सीमित नहीं था। उनकी आंखों की अभिव्यक्ति, संवाद अदायगी और भावनात्मक संतुलन उन्हें अन्य अभिनेत्रियों से अलग पहचान देता था। वे दुख, प्रेम, संघर्ष और आत्मसम्मान जैसे भावों को अत्यंत सजीव ढंग से प्रस्तुत करती थीं। यही कारण था कि दर्शक उनसे भावनात्मक रूप से जुड़ जाते थे।

उनके फिल्मी जीवन की सबसे महत्वपूर्ण फिल्मों में सामाजिक और पारिवारिक कथानक वाली रचनाएं शामिल रहीं। उन्होंने कई ऐसे पात्र निभाए जो उस समय की सामाजिक परिस्थितियों, स्त्री की पीड़ा और उसके आत्मसम्मान को उजागर करते थे। उनकी भूमिकाओं में एक गरिमा और गंभीरता रहती थी, जो दर्शकों को सोचने पर विवश कर देती थी। वे केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं थीं, बल्कि समाज का आईना भी प्रस्तुत करती थीं।

नलिनी जयवंत ने अपने अभिनय करियर में अनेक प्रसिद्ध कलाकारों के साथ काम किया। उनके सह कलाकारों के साथ उनकी जोड़ी को दर्शकों ने खूब सराहा। पर्दे पर उनकी उपस्थिति संतुलित और प्रभावशाली रहती थी। वे कभी भी अपने अभिनय को अतिरंजित नहीं करती थीं, बल्कि सहजता के साथ पात्र में ढल जाती थीं। यही विशेषता उन्हें एक सशक्त अभिनेत्री के रूप में स्थापित करती है।

उनके अभिनय की सराहना आलोचकों द्वारा भी की गई। उन्हें कई बार प्रशंसा और सम्मान प्राप्त हुए। उनकी फिल्मों को न केवल व्यावसायिक सफलता मिली, बल्कि कलात्मक दृष्टि से भी उन्हें महत्वपूर्ण माना गया। उन्होंने यह सिद्ध किया कि सिनेमा में सफलता के लिए केवल बाहरी सौंदर्य नहीं, बल्कि गहन अभिनय क्षमता और अनुशासन भी आवश्यक है।

निजी जीवन में नलिनी जयवंत अत्यंत सादगीपूर्ण और आत्मसम्मान से परिपूर्ण महिला थीं। उन्होंने फिल्मी चकाचौंध से दूर रहकर एक संतुलित जीवन जीना पसंद किया। अभिनय के साथ-साथ वे साहित्य और संगीत में भी रुचि रखती थीं। उनका जीवन अनुशासन और आत्मनियंत्रण का उदाहरण था। उन्होंने कभी भी अनावश्यक विवादों या प्रचार से स्वयं को नहीं जोड़ा।

अपने करियर के उत्कर्ष काल में भी उन्होंने सीमित फिल्मों में काम किया। वे केवल वही भूमिकाएं स्वीकार करती थीं जिनमें उन्हें सार्थकता दिखाई देती थी। इस चयनशीलता के कारण उनका फिल्मी जीवन अपेक्षाकृत संक्षिप्त रहा, किंतु अत्यंत प्रभावशाली रहा। उनकी प्रत्येक भूमिका दर्शकों के मन में स्थायी स्मृति बनकर रह गई।

समय के साथ उन्होंने सिनेमा से दूरी बना ली और शांत जीवन को अपनाया। यह निर्णय उनके आत्मसम्मान और स्वाभाविक प्रवृत्ति को दर्शाता है। उन्होंने यह सिद्ध किया कि कलाकार का मूल्य उसके कार्य से होता है, न कि निरंतर परदे पर बने रहने से। उनके द्वारा निभाए गए पात्र आज भी सिनेमा प्रेमियों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं।

नलिनी जयवंत का निधन बीस दिसंबर उन्नीस सौ छानवे को हुआ। उनके निधन से भारतीय सिनेमा ने एक संवेदनशील और सशक्त अभिनेत्री को खो दिया। हालांकि वे आज हमारे बीच नहीं हैं, परंतु उनका अभिनय, उनकी फिल्में और उनकी गरिमामय छवि आज भी जीवित है। वे उन अभिनेत्रियों में शामिल हैं जिन्होंने सिनेमा को केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि सामाजिक अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया।

समग्र रूप से देखा जाए तो नलिनी जयवंत भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय हैं। उनका जीवन परिचय संघर्ष, साधना और आत्मसम्मान की कहानी है। उन्होंने अपने अभिनय से यह प्रमाणित किया कि सच्ची कला समय की सीमाओं से परे होती है। आज भी जब उनके अभिनय को स्मरण किया जाता है, तो उनके व्यक्तित्व की गरिमा और कला की ऊंचाई स्पष्ट रूप से अनुभव की जा सकती ।

चौदह बरस की हीरोइन
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हिन्दी सिनेमा के शुरुआती दौर के निर्माता-निदेशकों में से एक थे- चमनलाल देसाई। वीरेन्द्र देसाई इन्हीं चमनलाल देसाई के पुत्र थे। उनकी एक कंपनी थी 'नेशनल स्टूडियोज़'। एक दिन दोनों पिता-पुत्र फ़िल्म देखने सिनेमाघर पहुँचे। शो के दौरान दोनों की नज़र एक लड़की पर पड़ी, जो तमाम भीड़ में भी अपनी दमक बिखेर रही थी। यह नलिनी जयवंत थीं, जिनकी आयु उस समय बमुश्किल 13-14 बरस की ही थी। दोनों पिता-पुत्र की जोड़ी ने दिल ही दिल में इस लड़की को अपनी अगली फ़िल्म की हीरोइन चुन लिया और ख़्यालों में खो गए। फ़िल्म कब ख़त्म हो गई और कब वह लड़की अपने परिवार के साथ ग़ायब हो गई, इसकी ख़बर तक दोनों को न हुई।
एक दिन वीरेन्द्र देसाई अभिनेत्री शोभना समर्थ से मिलने उनके घर पहुँचे तो देखा कि नलिनी वहाँ मौजूद थीं। नलिनी को देखते ही उनकी आँखों में चमक आ गई और बाछें खिल गईं। असल में शोभना समर्थ, जिन्हें बाद में अभिनेत्री नूतन और तनूजा की माँ और काजोल की नानी के रूप में अधिक जाना गया, नलिनी जयवंत के मामा की बेटी थीं। इस बार वीरेन्द्र देसाई ने बिना देर किए नलिनी के सामने फ़िल्म का प्रस्ताव रख दिया। नलिनी के लिए तो यह मन माँगी मुराद पूरी होने जैसा था। डर था तो सिर्फ पिता का, जो फ़िल्मों के सख्त विरोधी थे। लेकिन वीरेन्द्र देसाई ने उन्हें मना लिया। इस मानने के पीछे एक बड़ा कारण था पैसा। उस समय जयवंत परिवार की आर्थिक स्थिति कुछ ठीक नहीं थी। रहने के लिए भी उन्हें अपने एक रिश्तेदार के छोटे-से मकान में आश्रय मिला हुआ था। इस प्रकार नलिनी जयवंत की पहली फ़िल्म थी 'राधिका', जो 1941 में प्रदर्शित हुई। वीरेन्द्र देसाई के निर्देशन में बनी इस फ़िल्म के अन्य कलाकार थे- हरीश, ज्योति, कन्हैयालाल, भुड़ो आडवानी आदि। फ़िल्म में संगीत अशोक घोष का था। इस फ़िल्म के दस में से सात गीतों में नलिनी जयवंत की आवाज़ थी।
बीस दिसम्बर 2010 को इस बॉलीवुड फिल्म अभिनेत्री की चेम्बूर, मुम्बई में मृत्यु हुई।
रजनीकांत शुक्ला



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