Sunday, September 3, 2023

बिजनौर के इतिहास से गायब हैं क्रांति की मशाल जलाने वाले

 बिजनौर के इतिहास से गायब हैं क्रांति  की मशाल जलाने वाले

अशोक मधुप

बिजनौर जनपद में 1857 की क्राति में  प्रथम आहूति देने वाले जेल के राम स्वरूप जमादार को कोई जानता  भी नहीं।पूरे देश में शुरू हुई 1857 की क्रांति दस मई को मेरठ से  शुरू हुई।नौ मई 1857 को चर्बी लगी कारतूस का इस्तेमाल करने से मना करने वाले 85 सिपाहियों का कोर्ट मार्शल कर मेरठ की विक्टोरिया पार्क स्थित जेल में बंद कर दिया था। सैनिकों पर हुई इस कार्रवाई और अपमान ने क्रांति को जन्म दे दिया। 10 मई को शाम होते-होते अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह भड़क उठा। आम जनता और पुलिस ने जहां सदर बाजार में मोर्चा संभाला। उधर उसी समय 11वीं व 20वीं पैदल सेना के भारतीय सिपाही परेड ग्राउंड (अब रेस कोर्स) में इकट्ठे हुए और वहीं से अंग्रेजी सिपाहियों और अफसरों पर हमला बोल दिया। पहली गोली 20वीं पैदल सेना के सिपाही ने 11वीं पैदल सेना के सीओ कर्नल जार्ज फिनिश को रेस कोर्स के मुख्य द्वार पर मारी थी। इस बीच थर्ड कैवेलरी के जवान अश्वों पर सवार होकर अपने उन 85 सिपाहियों को बंदी मुक्त कराने विक्टोरिया पार्क स्थित जेल पहुंच गए, जिन्हें कोर्ट मार्शल के तहत सजा दी गई थी। इस तरह से रात होते-होते क्रांति पूरे शहर में फैल गई और सभी परतापुर के पास गांव रिठानी में एकजुट हुए और दिल्ली की ओर कूच कर गए। अंग्रेजों के खिलाफ मेरठ से शुरू हुए इस विद्रोह की आग पूरे देश में फैल गई। सर सैयद अपनी पुस्तक सरकशे जिला बिजनौर में बिजनौर में  1857 के पूरे घटनाक्रम का तारीख अनुसार वर्णन करते हैं।वह 1857 के  विद्रोह के समय बिजनौर में सदर अमीन थे।  उनकी यह पुस्तक उनकी डायरी है। इसमें उन्होंने तरीख अनुसार घटनांए दर्ज की   हैं।

वे सरकशे जिला बिजनौर में कहते हैं कि मेरठ की दस तारीख के विद्रोह की सूचना 12 मई में बिजनौर पंहुची।पर कोई विशेष घटना नही हुई। 16 मई को बिजनौर थाने के अंतर्गत आने वाले झाल और उलेढ़ा  गांव के बीच देवीदास बजाज को लूट लिया गया। मेरठ की क्रांति की सूचना मिलते ही अधिकारियों हर हालत से निपटने के  लिए तैयारी शुरू कर दी थीं1 20 मई को सेपर और माइनर कंपनी के 300 जवान विद्रोह कर नजीबाबाद पंहुचे। वहां वे नवाब महमूद से मिले। वे  चाहते थे कि नवाब उन्हें संरक्षण दं किंतु नवाब ने ने उन्हें बिजनौर जाकर उत्पात करनेके  के लिए कहा। किंतु ये नगीना  पंहुच गए और वहां लूटमार की।तहसील में रखा खजाना  लूट लिया।

धामपुर के रईस हरसुख लाल  लोहिया की बेटी की बारात आई हुई थी।उसके लिए बढ़िया खाना और मिठाई बन रही थीं।हरसुख लाल लोहिया जी नगीना से मुरादाबाद जा रहे इन विद्रोही जवानों का अपने घर ले आए।  सबको पेटभर कर खाना और मिठाई खिलाईं। ये देख धामपुर के लोग भी एकत्र हो गए।  जिससे जो बन पड़ा, देकर इन जवानों की मदद की।   

इधर बिजनौर के जेल के जमादार रामस्वरूप ने जेल का दरवाजा खोल दिया।लगभग एक बजे के आसपास अधिकारियों को जेल से फायर की आवाज सुनाई दी।अधिकारी जवानों के साथ  जेल की और भागे। इन्हें डर था कि जेल से निकले बदमाश स्थानीय शरारती लोगों को लेकर लूटमार न शुरू कर दें। किंतु ये बदमाश  जेल से निकल कर जंगल की और भाग  लिए।अधिकारियों ने इनका पीछा किया।  गोली लगने से कई  कैदी मारे गए और घायल हुए।इस समय नदियां उफान पर भी। कुछ भागते कैदी लहपी नदी के बहाव में  बह गए।

लहपी नदी मंडावली और रावली क्षेत्र में  बहने वाली गंगा की एक सहयोगी नदी थी।अब यह लुप्त हो गई। कुछ पुराने लोग ही  इसके बारे में    

जानते हैं। काफी कैदी पकड़ लिए गए।पकड़े जाने वालों को जेल में लाकर बंद कर दिया गया।

सर सैयद अपनी पुस्तक में लिखते हैं कि नवाब महमूद ने विद्रोही सेपर  और माइनर कंपनी के जवानों से बिजनौर जाकर हंगामा करने का कहा था, किंतु वे  बिजनौर न आकर नगीना धामपुर होते मुरादाबाद  चले गए1पहले लगा कि शायद रामस्वरूप ने स्थानीय  बदमाशों के हमले के डर से जेल का फाटक खेल दिया।किंतु हो सकता है कि इसे इन विद्रोही जवानों के बिजनौर आने की सूचना मिल गई हो,यह रामस्वरूप  भी इसी सैनिक कंपनी का जमादार था।इसलिए उसने ऐसा किया हो। सर सैयद  लिखते हैं कि नवाब महमूद को 6−7 जून की रात में जिले का चार्ज देकर अंग्रेज अधिकारी अपने परिवार के साथ  रूडकी चले गए।जिले का चार्ज मिलने के बाद से नवाब के दरबार में रामस्वरूप का सम्मान बहुत ही बढ़ गया।उनकी अदालत में उसकी रोज आवाजाही होने लगी।नवाब महमूद को जिले की बागडोर मिलने के बाद रामस्वरूप हवलदार ने नवाब के लिए सैनिकों की भर्ती शुरू कर दी।

रामस्वरूप ने अपने द्वारा भर्ती किये गए सिपाही बिजनौर में बांके राय के घर के आसपास तैनात कर दिए गए।बाद में रामस्वरूप ने इन्हें बहुत प्रताड़ित किया।उनके भाई बिहारी लाल को परेशान किया तथा कुछ रूपया भी वसूला।

सर सैयद की डायरी में रामस्वरूप  जमादार का एक दो जगह और जिक्र है।इसके बाद से वह गायब है।

इतिहास के जानकारों और खोज करने वाले आजादी के इन नायकों का पता करने का कोई प्रयास नही किया।किसी ने यह जानना गंवारा नहीं किया कि रामस्वरूप कौन था। कहां का रहने वाला था।  इसके परिवार में  कौन −कौन था।राम स्वरूप का क्या हुआ।इतना महत्वपूर्ण व्यक्ति इतिहास की अंधेरी गलियों में  गायब हो गया। 

जिले में अंग्रेज जब दुबारा  आया तो  उनसे जमकर जुल्म किया।नवाब महमूद के साथी के संदेह में जाने कितनों को सरेराह गोलियों से भून दिया गया।फांसी भी  दीं गईं।कितने लोग मरे , इस बारे में सर सैयद चुप हैं।रामस्वरूप का क्या हुआ,वह नही बताते।

जानी मानी लेखिका कुरतुल एन हैदर अपनी किताब कारे जहां दराज है ,में कहती हैं कि आजादी की जंग के असफल होने के बाद 27 हजार मुसलमानों को फांसी हुई। शेष को काले पानी की सजा हुई। जिला बिजनौर के बागियों की एक लाख तिरेसठ हजार एकड़ जमीन सरकार के हक में जब्त हुई।जब्त जमीन का बड़ा हिस्सा वफादर चौधरियों को अता किया गया।शेरकोट और हल्दौर के चौधरी साहेबान को राजा की उपाधि दी गई।ताजपुर  के चौधरी साहब का अमीर खां  पिंडारी के विरूद्ध सरकार की मदद करने में राय बहादुर की उपाधि से नवाजा  गया।सैयदों की साढ़े 15 हजार एकड़  जमीन सरकारी हक में जब्त हुई।दिल्ली की आजादी की लड़ाई में शामिल हुए मीर अहमद अली की जान बक्श दी गई किंतु उनकी पुशतैनी जमीन भी इस जब्त खुदा जमीन के साथ जब्त कर ली गई।  

वे कहती हैं कि 1857 की क्रांति के बाद जब बागियों की मिलकियतें जब्त हुईं तो चांदपुर के रहने वाले मीर सादिक अली और मीर रूस्तम अली रईसों का इलाका बगावत के जुर्म में सरकार ने जब्त कर लिया। यह इलाका सरकार ने सैयद अहमद (सरकशे बिजनौर के लेखक) को देना  चाहा किंतु उन्होंने लेने से मनाकर दिया।   1857  की आजादी की लड़ाई के बारे में जो कुछ सर सैयद से छूटा,  उसे कुरतुल एन हैदर ने अपनी पुस्तक में दर्ज किया। किंतु फिर भी सब कुछ अधूरा  सा है। जो कुछ है, वह न के बराबर।

अशोक मधुप





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