Friday, July 2, 2021

अब्दुर्रहमान बिजनौरी

 क्या आप जानते हैं?

दुनिया जिसे  #अब्दुर्रहमान #बिजनौरी के नाम से जानती है। वे #स्योहारा के थे। 


मेरी किताब "मेरे देश की धरती" से 

स्योहारा के रत्न 4 

अब्दुर्रहमान बिजनौरी 

के बारे में जाने--


वो अब्दुर्रहमान  बिजनौरी है, हमारा है, सिबारा है।

उर्दू अदब के आसमान पर चमकता जो सितारा है।

प्रोफेसर ज्ञान चंद जैन का ये शेर उर्दू अदब में अब्दुर्रहमान बिजनौरी के योगदान का मुखर प्रमाण है। ग़ालिब के दीवान की समालोचना के कारण अदब की दुनिया में ऊंचा मक़ान बनाने वाले डा. अब्दुर्रहमान बिजनौरी भी स्योहारा (तब सिबारा) के थे। उन्होंने पूरी दुनिया को ग़ालिब से परिचित ही नहीं कराया वरन उन्होंने ग़ालिब की शायरी को अपनी समालोचना से उस मर्तबे तक पहुंचाया जहां आज उनकी गिनती महान शायरों में होती है। यह कहना गलत न होगा कि बिजनौरी की समालोचना से पहले ग़ालिब जैसा अजीम शायर शोहरत की बुलंदियों से दूर एक आम शायर की तरह ही थे। उनके द्वारा पांच भागों में लिखा गया "मोहसिन ए कलाम ए ग़ालिब" उर्दू समालोचना साहित्य की बहुमूल्य समावेश है, जो अपने साथ नए दृष्टिकोण और नई विचारधारा लाया है। बिजनौरी ने ग़ालिब के दामन पर लगे उन तमाम एतराज को हटा दिया। जो दूसरे आलोचकों ने बेबुनियाद उनके सर पर मंढ रखे थे। बिजनौरी की समालोचना ही के कारण ग़ालिब पश्चिमी शायरों के मुकाबले ऊंचे दिखाई देने लगे। उन्होंने अपनी किताब 'मुहासिने कलाम ग़ालिब' के पहले पेज के दूसरे पैरा में लिखा कि ' हिंदुस्तान की अवतरित किताबें दो हैं, एक मुकद्दस वेद और दूसरी दीवाने ग़ालिब। बिजनौरी का ये कथन विस्तृत अध्ययन और ग़ालिब की बुलन्दियों में चार चांद लगाने वाला है। 

डा. अब्दुर्रहमान बिजनौरी के पत्रों और उनके घटनाक्रम पर दो और किताबें भी प्रकाशित हुईं थीं। 'बाकयाते बिजनौरी' और 'यादगार बिजनौरी'। इन किताबों में इनकी कुछ नज्में भी हैं। उनके द्वारा भेजे गए पत्रों में अपने छोटों और बड़ों के परम्परागत शिष्टाचार का अद्भुत नमूना है। उन्होंने रवीन्द्रनाथ टैगोर की गीतांजलि को सर्व प्रथम उर्दू में प्रकाशित किया था। 

बिजनौरी की गिनती अपने समय के अरबी, फारसी, जर्मनी, अंग्रेजी, उर्दू के वरिष्ठ साहित्यकारों और शायरों में होती थी। उन्होंने जर्मन भाषा में क़ुरआने मजीद का तर्जुमा भी किया। उनके वालिद का नाम नुरुलइस्लाम था। जिन्हें खान बहादुर की पदवी मिली थी। वे स्योहारा के मुहल्ला काज़ियान के सम्मानित परिवार से सम्बंधित थे। बिजनौरी की वालेदा नाम आमना खातून और भाई का नाम हबीबुर्रहमान था। वे सन 1882 में पैदा हुए थे। प्रारम्भिक शिक्षा सिबारा में मुंसी रहीमुद्दीन द्वारा दी गयी। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवसिर्टी से डिग्री हासिल की। उसके बाद विलायत चले गए।  वहां बैरिस्टरी का इम्तहान पास किया। बाद में जर्मन की बर्लिन यूनिवर्सिटी से अरबी फारसी में पीएचडी की डिग्री प्राप्त की। मजहबी जुनून चढ़ा तो अपने जर्मन में रहते हुए जर्मनी भाषा में 'शआयर ए मौहम्मदी' किताब लिखी। सैर सपाटे के लिये बाल्कान के युद्ध के समय में क़ुस्तुन्तुनिया गए। वतन वापस आने के बाद दो वर्ष तक मुरादाबाद में बैरिस्टरी की। उसके बाद रियासत भोपाल में नबाब हमीदुल्ला खां के यहां शिक्षा प्रोत्साहन की जिम्मेदारी का वहन किया।  बिजनौरी पर तुर्की के प्रवास के दौरान जासूसी का इल्जाम लगा और लगभग छह माह वहां की जेल में भी रहे। बिजनौरी हिंदुस्तान की आजादी की लड़ाई में गांधी जी के विचारों से सहमत थे। आप की मृत्यु मात्र मात्र 37 वर्ष की उम्र में 1919 में भोपाल में हो गयी। बिजनौरी की मृत्यु से उर्दू साहित्य ने महान साहित्यकार खो दिया। 

चर्चित उर्दू साहित्यकार डा. तक़ी आबिदी का कहते हैं कि बिजनौरी की समालेाचना का कोई जवाब नहीं। गुलशने दीवाने गालिब का पहला दरवाजा खोलने वाला पहला शख्स बिजनौरी ही हैं। साहित्य अकादमी के पूर्व अध्यक्ष तथा उर्दू के प्रख्यात समालोचक प्रो. गोपीचंद नारंग ने कहा है कि बिजनौरी में एक-एक शब्द में हिंदुस्तान और उसके मजहबों की मोहब्बत से भरे हैं।  उनका सर्वाधिक प्रसिद्ध जुमला है कि हिंदुस्तान की दो पवित्र किताबें है, पहली-वेद ए मुक़द्दस और दूसरी दीवाने ग़ालिब। ऐसी बात भारत जैसे सांस्कृतिक बहुलता वाले उदार देश में ही स्वीकार्य हो सकता है। उन्होंने बिजनौरी को इंसानियत के सच्चे पुजारी बताते हुए कहा कि बिजनौरी जैसी शख्सियत कोई दूसरी नहीं हो सकती। 

प्रसिद्ध शायर मासूम रज़ा का कहते हैं कि मिर्ज़ा ग़ालिब के प्रख्यात समालोचक अब्दुर्रहमान बिजनौरी थे। ग़ालिब के संबंध में उनका एक वाक्य काफ़ी मशहूर हुआ, "भारत में दो ही महत्वपूर्ण पुस्तकें हैं, वेद मुकद्दस (पावन) और दूसरा दीवाने ग़ालिब." पता नहीं अब्दुर्रहमान बिजनौरी को वेदों की संख्या का ज्ञान था या नहीं लेकिन एक पुस्तक की चार ग्रंथों से तुलना तर्क संगत नहीं लगती। फिर भी यह वाक्य बिजनौर के एक क़लमकार की कलम से निकला था और पूरे उर्दू-संसार में मशहूर हुआ।

तन्जो मिजाह के इंटरनेशनल ख्याति प्राप्त शायर हिलाल स्योहारवी कहते थे कि डा. अब्दुर्रहमान बिजनौरी ने मिर्ज़ा ग़ालिब के कलाम के कई अनछुए पहलू के नए अंदाज से दुनिया को परिचित कराया है।

डॉ वीरेंद्र सेवहारा की फेसबुक वॉल से

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