पंडित भवानी प्रसाद
आर्य विद्वान पंडित
भवानी प्रसाद जन्म 1878 में हल्दौर
में हुआ। वे गुरूकुल कांगड़ी के स्नातक रहे। वहां से विद्यालकार तक शिक्षा ग्रहण की।
आपके परिवारजन भी इनके बारे में कुछ नहीं बता पाते। इनके चार पुत्र और दो पुत्री
हुईं। एक पुत्री सुशीला का विवाह प्रसिद्ध
इतिहासकार और गुरूकुल विशवविद्यालय के कुलपति डा सत्यकेतु विद्यालंकार से हुआ।
इनके पुत्र डा. क्षेमेंद्र
गुप्ता रिषीकेश ने बताया कि मूल रूप से उनका परिवार मीरापुर का रहने वाला था। वे
वैश्य हैं।हल्दौर रियासत के राजा लोग उनके पूर्वजों से कर्ज लेते रहते थे।क्योंकि
गंगा हल्दौर −मीरापुर के बीच में पड़ती थी। उन्हें परेशानी होती थी। सो पूर्वजों
को अपने महल के पास उन्होंने आठ बीघे जमीन दे दी। जिन्हें जमीन दी , वे दो भाई
थे।बड़े भाई ने अपने और दूसरे भाई के लिए
आमने –सामने बिल्कुल एक जैसे दो महल बनवाए।दोंनों
भाई उसमें रहने लगे। उनकी परिवार की जमींदारी जिले में कई जगह थी। नजीबाबाद के पास
जहानाबाद खोबड़ा में भी जमींदारी थी। पिता भवानी प्रसाद जहानाबाद खोबड़ा में रहकर
जमींदारी देखते थे। वहीं1948 में उनका
निधन हुआ।
भवानी प्रसाद जी
हल्दौर आने वाले पूर्वजों की चौथी पीढी से थे। वे पांच भाई और दो बहने हैं।
पंडित भवानी प्रसाद ने बिजनौर मंडल आर्य समाज का इतिहास लिखा। ये एक ऐतिहासिक दस्तावेज है।लेखक के पास इसकी मूल प्रति है। लेखक ने इस पुस्तक की चार फोटो स्टेट कराकर डीएम निवास बिजनौर,आर्य विद्वान जयनारायण अरूण, इस्माइलपुर निवासी बिजनौर गीतानगरी में रहने वाले कुशलपाल सिंह और चिंगारी के संपादक सूर्यमणि रघुवंशी जी को सौंप दी , ताकि शोधकर्ताओं को सरलता से उपलब्ध रहे।
पंडित भवानी प्रसाद ने आर्य पर्व पद्यति , आर्य पर्वावलि,संस्कृत चारूचरितावलि,कांगड़ी− गुरूकुलीय आर्यभाषा −पाठावलि नामक पुस्तक लिखीं।इनकी संग्रहित पुस्तक है−कांगडी़−गुरूकुल−विश्वविद्यालय अंतर्गत−महाविद्यालयपाठ्य बिंदुचतुष्टयात्मक साहित्य सुधा संगृह।
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