Sunday, March 4, 2018

देवी पूजा

१८ अप्रैल 1912
देवी पूजा
आज अष्ठमी है
नवरात्र की अष्ठमी।
भारत से बहुत दूर
अमेरिका में भी बसे
भारतीय हिंदू परिवार
भी मां को मानतें हैं,
नवरात्र में मां का
पूजन करते हैं।

नवरात्र शुरू होते ही
कुछ घरों में जोत जलाई जाती है।
कुछ भारतीय उपवास भी रखते हैं।
कुछ सप्तमी तक सात
या कुछ अष्ठमी तक आठ
व्रत रखतें हैं।
कुछ नवरात्र के प्रथम दिन
उपवास रखते है तो कुछ अंतिम दिन।
कुछ प्रथम और अंतिम दोनों दिन
रखतें हैं व्रत ।
सप्तमी तक उपवास करने वाले, 
अष्ठमी में अष्ठमी तक के उपवास
रखने वाले नवमी में देवी पूजते हैं।
कन्या जिमाते हैं।
जो उपवास नहीं रख पाते,
वो भी कन्याओं को जिमाने 
की रस्म करते हैं।
भोजन ,हलवा बनाते और
कन्याओं के घर में 
दक्षिणा सहित दे आते ।
कुछ दक्षिणा की जगह
 कन्याओं को दे आते है उपहार।
दो माह पूर्व हमारे परिवार में भी
आई है एक कन्या,
सुंदर सी बालिका।
खिलौना सी लाडली।
शिल्पी ने पूजन के बाद
उसका भी तिलक किया है।
शिल्पी की कई सहेली
पूजन कर अद्वीति के लिएं लाई उपहार,
दे गईं मिठाई और कुछ डालर।  
भारत में साल में  १८ दिन
पूजी जाती है बालिकाएं,
जिमाई जाती है, कन्याएं।
और फिर उसके बाद
पूरे साल परीक्षण कराकर
की जाती है उनकी हत्या, भ्रूण हत्या।
कहीं सम्मान के नाम पर
दे दीजाती है उनकी बलि।
या अमेरिका में तो ऐसा नहीं होता।
कन्या की भी लड़के की तरह दुलारते हैं।
बेटे की भांति बेटी को पालते हैं। 
बेटा हो या बेटी बच्चे के जन्मते ही,
जान पहचान वाले पहुंचने लगते है अस्पताल।
कोई न्यू बेबी लिखा बेलून लिए आता है,
तो कोई बेलकम न्यू बेबी 
लिखकर गिफ्ट लाता है।
अस्पताल के बेबी और मां के कक्ष में 
मनता है समारोह,
रहता है  जश्न का माहौल ।
अस्पताल से बेटी और मां के
घर आने के समय,
सजाया जाता है उनका कक्ष,
लगाई जाती है, बंदरबार।
कमरे में रंगे नोटिस बोर्ड पर
परिचित बेबी के लिए लिखते हैं
आशीर्वाद के संदेश।
  परिचित लड़कों की तरह 
लडकियों के लिए भी 
करते है दीर्घायु की कामना।
ऐसा तो भारत  में बेटे के लिए भी नहीं होता।
यहां अपार्टमेंट के गेट पर
कई मित्रों की पत्नियां घर आने पर
 तिलक कर बच्चे और मां की
आरती उतारती हैं,
मिठाई खिलाती हैं।
हमारे परिवार की नई
सदस्या अद्विती
दो माह की हो गई है।
इस समय हमारे कमरे में सो रही है
सोत सोते कभी हंसती है, कभी रोती रहती है।
लगता है कि वह सपनों में
खोई रहती है।
अच्छे सपने हंसाते है,
तो बुरे डराते हैं।
किंतु जरा सी 
आवाज या धमक
पर चौंक कर उठ जाती है,
लगता है कि बच्ची
समझती है, जानती है
नारी का भविष्य
इसी लिए डर जाती है,
वह भारत में नहीं जन्मी
वहां के बारे में कुछ 
जानती भी नहीं।
किंतु मां बाप और पूरा
परिवार तो भारतीय है,
कुछ चीजें संस्कारों से भी आती हैं।
बिना जाने बिन सीखें,
बहुत कुछ सिखा जाती हैं।
उसके  कदम की धमक
से  भी चौंकने,
बार -बार सपनों में
डरकर चीखने,
से मुझ लगता है कि
 भारत में 
कन्या और युवती पर हो रहे अत्याचार 
जुल्म उसे सोने नहीं देते।
डरावने सपने उसे
गहरी नींद में खोने नहीं देते।
पर मैं देखता हूं कि भारत मेंं
नहीं ,पूरी दुनिया में युवती के प्रति
समाज का व्यवहार एक सा है।
उन्हें ढंग से जीने नहीं देते।
हर जगह खूनी और मर्मभेदी
नजरों के वाण जगह -जगह डसते हैं।
बस्ती और गली कूचों में नहीं
कई बार घर में ही 
जहरीले सांप बसते हैं।
अशोक मधुप

No comments: