दीपावली पर अब गिफ्ट का चलन है।गिफ्ट में मिठाई , फ्रूट्स्र, मेवे और जाने क्या? क्या? होता है। काम निकलने के लिए अधिकारी और नेताओं को प्रसन्न करने वाले गिफ्ट अलग होतें हैं।याद आता है पचास -पचपन साल पहले का जमाना।उस समय इस तरह की मिठाई बहुत कम होती थी। खांड की बनी मिठाई होती थी। खांड एक तरह की पिसी चीनी जैसी होती। इस खांड से मिठाई बनती। इसे पक्की मिठाई कहा जाता था। ये खांड के क्यूब होते थे । दीपावली की मशहूर मिठाई थी तो खांड के बने खिलौ्ने। खांड के बने हाथी, ऊंट,घोड़े।धान की खील के साथ ये ही खाने को मिलते थे।खील और खिलौने की मिलने वालों के यहां भेजे जाते। उनके यहां से भी यही आते । मावे की मिठाई तो घर में दीपावली या किसी महत्वपूर्ण अवसर पर आती। कुछ घरों में अब भी दीपावली पर ये खिलोने आते है किंतु नाम मात्र को।
दावतों में मिठाई की जगह बूंदी के लड़्डू होते थे। दावत में जाने वाले अपने साथ रूमाल लेकर जाते। बड़ों को चार और बच्चों को दो लड्डू मिलते। आधे लड्डू खा लेते । आधे रूमाल में बांध कर घर ले आते। घर पर रहे परिवार के सदस्यों के खाने के लिए ये लड्डू लाए जाते थे। अधिकतर दावत - शादी- विवाद में ये बूंदी के ही लड्डू होते। कोई बहुत बड़ा संपन्न व्यक्ति होता तो उसके यहां कागज की प्लेट में पांच मिठाई होती। इमरती पेड़ा , मावे का लड्ड़ू,गुलाब जामुन आदि। अन्यथा एक ही मिठाई उस समय थी बूंदी के लड़डू।
दावतों में मिठाई की जगह बूंदी के लड़्डू होते थे। दावत में जाने वाले अपने साथ रूमाल लेकर जाते। बड़ों को चार और बच्चों को दो लड्डू मिलते। आधे लड्डू खा लेते । आधे रूमाल में बांध कर घर ले आते। घर पर रहे परिवार के सदस्यों के खाने के लिए ये लड्डू लाए जाते थे। अधिकतर दावत - शादी- विवाद में ये बूंदी के ही लड्डू होते। कोई बहुत बड़ा संपन्न व्यक्ति होता तो उसके यहां कागज की प्लेट में पांच मिठाई होती। इमरती पेड़ा , मावे का लड्ड़ू,गुलाब जामुन आदि। अन्यथा एक ही मिठाई उस समय थी बूंदी के लड़डू।
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