Sunday, November 8, 2015

दीपावली और कंदील


दीपावली का एक महत्वपूर्ण  भाग कंदील या कंडील  अब दीपावली से गायब हो गया। दीपावली पर कंदील बनाने का काम कई  सप्ताह पूर्व से शुरूकर दिया जाता था।
बासं की खप्पच बनाई  जातीं।  इनसे कंदील का ढांचा बनता। इस ढाचें पर रंग ‌ब‌िंरगी पन्नी लगाई जाती। कंदील इस तरह बनाया जाता कि उसमें आराम से बड़ा दीपक रखा जा सकता। 
कंदील बनाने से बड़ा काम होता  उसे टांगना। कई  बांस जोड़कर उसपर कंदील टांगने  की व्यवस्था की जाती। बांसं के ऊपर एक लंबी लकड़ी इस प्रकर लगाई जाती कि कंडील उतारते चढ़ाते बांस से न टकरांए। कंदील को उतारने -चढाने के लिए बांस के ऊपर लगी लकड़ी में गिररी लगाई  जाती। कंदील में दीप चलाकर धीरे- धीरे रस्सी के सहारे उसे ऊपर सरकाया जाता। ये ध्यान रखा जाता कि वह कम से कम हिले। जितना ज्यादा हिलता, कंडील के दीपक से उतना ही तेल ज्यादा गिरता। ज्यादा तेल गिरने दीपक जल्दी बुझ जाता। बाद में दीपक की जगह बिजली के वल्ब न ले ली। 
एक चीज और प्रत्येक व्यक्ति का प्रयास होता कि उसका कंदील ज्यादा ऊंचा हो।  इसके लिए कई बार कंप्टीशन हो जाता। कुछ जगह तो  ऊचाई बढ़ाने के लिए लोहे के पाइप और बल्ली तक प्रयोग जाती
कंदील भी कई तरह  के हो ते। गोल, हांडी जैसे तो कुछ नाव की तरह के कुछ कई कोणीय कंडील होते। दीपावली की रात अमावस की रात होती है।  आकाश में जलते ये दीप बहुत सुंदर लगते। ऐसा लगता कि आकाश में रंग बिरंगे तारे चमक रहे हों।  दीपावली से कई  दिन पहले से कंडील जलने  शुरू हो जाते और कई दिन बाद तक जलते रहते।
दीपावली के बाद इन कंदील को कपड़े में इस तरह लपेटकर रखा जाता कि वह अगले साल तक सुरक्षित रहे।
कंदील की पन्नी फट जाती तो अगले साल बदल दी जाती। उसका् ढांचा तो कई  साल तक चलता रहता।

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