सोमवार।करवा चौथ से ठीक एक दिन पहले। निर्मल गंगा अविरल प्रवाह 2010। अभियान में 30 बोटशामिल थीं। बड़ा काफिला था।हरिद्वार से शुरू इस कारवां को गढ़मुक्तेश्वर पहुंचना था।काफिले में आईजी इंटेलीजेंस आदित्य कुमार मिश्रा भी थे। एकाएक एक बोट का फ्यूल खत्म हो गया। हम भटक गए। सात घंटे ‘गंगा मैया’-‘गंगा मैया’ करते बीते। अमर उजाला से जुड़े अशोक मधुप भी इसी बोट में थे। उन्हीं की जुबानी पूरी कहानी...
बिजनौर।रात के 11 बजे थे। चारों ओर पानी ही पानी।जाएं तो जाएं कहां? फ्यूल खत्म हो चुका था, हम रास्ता भटक गएथे। करें तो क्या करें? इन सवालों को लेकर हर कोई नौकायान के समय भयभीत था।
स्वामी अच्युतानंद मिश्र और पीएसी उत्तर प्रदेश के द्वारा चलाए जा रहे निर्मल गंगा अविरल प्रवाह यात्रा के साथ सोमवार को गंगा में बिताए आठ से ज्यादा घंटे किसी रोमांचक यात्रा से कम नहीं। रात के 11 बजे तक गंगा में घुप अंधेरे में नौकायन के महारथ की बदौलत रात साढे़ ग्यारह बजे गढ़मुक्तेश्वर के गंगा घाट पर सकुशल पंहुचना एक करिश्मा जैसा ही है। वह तो उस हालत में जब एक-एक कर वोट के पेट्रा्रल टैंक खाली होते जा रहे थे। इस यात्रा में हमारे एक साथी की तो तबियत बहुत ज्यादा खराब हो गई और उसे रास्ते के एक गांव में परिवार में शरण लेनी पड़ी ।
बिजनौर गंगा बैराज से सोमवार की शाम साढे़ तीन बजे हमने जब यात्रा शुरू की तो हमने सोचा भी नहीं था कि गंगा के बीच में घुप अंधेरे में हमें कई घंटे ऐसे भी बिताने होंगे । हम यह सेचकर यात्रा की एक मोटर वोट में सवार हुए थे कि चांदपुर क्षेत्र में बनने वाले मकदूमपूर सेतु पर उतर कर शाम पांच बजे तक बिजनौर आ जांएगे। वैसे यात्रा को गढमुक्तेश्वर शाम पांच बजे तक पंहुचना था। मेरे साथ एक पत्रकार अमित रस्तौगी और कांगे्रस के सीनियर नेता सुधीर पाराशर थे। वे बालावाली से यात्रा के साथ आए थे। उन्होंने हमारे अनुरोध पर मकदूमपुर तक चलना स्वीकर कर लिया था। वहां से लौटने के लिए अपनी गाड़ी मकदूमपुर बुला ली थी। बिजनौर से बैराज से 12 नाव का बेड़ा शाम साढे़ तीन बजे गढमुक्तेश्वर के लिए रवाना हुआ।
यात्रा को पांच बजे शाम गढमुक्तेश्वर पहुंचना था किंतु विदुर कुटी और गंज दारानगर पहुंचने में ही शाम पांच बज जाने पर हमें चिंता हुई। मकदूमपुर पुल के सामने से निकलते समय दिन छिपने लगा था। हमें यहां से छोटी धार से होकर अपनी गाड़ी तक पहुंचना था किंतु अंधेरा बढ़ता देख हम अपने नाविकों से बेडे़ से अपनी नाव को अलग धार में डालने का अनुरोध नही कर सके और गढ़मुक्तेश्वर से लौट आने का निर्णय लिया। (संबंधित खबरें और फोटो पेज छह पर भी)
1)निर्मल गंगा अविरल प्रवाह दल की एक नाव सूर्यास्त के समय गंगा से गुजरती हुई। (2) नाव से गुजरते महाराज अच्युतानंद।
निर्मल गंगा अविरल प्रवाह दल की नाव में गंगा से होकर गुजरते महाराज अच्युतानंद।
ऐसा तो कभी भी नहीं सोचा था!
बिजनौर। निर्मल गंगा अविरल यात्रा के साथ सफर करते समय यह कभी नहीं सोचा था कि सुबह पांच बजे घर वापसी होगी। इरादा यह था कि गंगा के बीच से जनपद के नजारे देखकर शाम पांच बजे तक बिजनौर लौट आया जाएगा। कल दुपहर दो बजे अमर उजाला के संवाददाता कुछ पत्रकार साथियों के कहने पर मकदूमूपुर तक चलने को तैयार हो गए।
लंबे समय से मेरा इरादा गंगा के मध्य से जनपद को देखने का था। उसके प्रस्ताव आने पर मैं इंकार न कर सका। कांगे्रस के वरिष्ठ नेता सुधीर पाराशर स्वामी अच्युता नंद के नजदीकी है, वे पीछे से यात्रा के साथ आए थे। सो हमने मकदूमपुर तक उन्हें साथ चलने के लिए तैयार कर लिया और कहा कि अपनी गाड़ी वहीं मंगा ले, उससे लौट आएंगे। यात्रा बिजनौर से चलकर शाम पांच बजे गढ़मुक्तेश्वर पहुंची थी तो हम यह सोचकर यात्रा के साथ हो गए कि अब चलकर पांच बजे तक बिजनौर आ जाएंगे। बिजनौर गंगा बैराज पर स्वामी अच्युतानंद और अन्य ढाई बजे गंगा घाट पर आ गए, लेकिन चलने में साढे़ तीन बज गए। मकदुमपुर से पहले एक जगह बोट रुकी तो एक पत्रकार साथी नौका दल के लीडर पीएसी के आईजी की बोट में उनका इंटरव्यू करने को बैठ गया। सुधीर पाराशर के चालक ने बताया कि पुल के सामने से मेन धार की जगह छोटी धार में आए। यहां पहुंचते ही अंधेरा छाने लगा था, अत: हम चालकों से यह न कह सके कि गु्रप छोड़कर वे अपनी वोट छोटी धार में ले चले। कार्यालय को विलंब हो रहा था। परिजनों को बिना बताए आने की चिंता भी थी, लेकिन बेडे़ को छोड़ने का हम नाविकों से आग्रह न कर पाए और यह सोचकर बैठ गए कि यहां प्रतिवर्ष बनने वाले नाव के पुल का रास्ता छोड़ने पर उतर जाएंगे। इस रास्ते के सामने गंगा में कुछ व्यक्तियों को ले जाती एक नाव दिखाई दी। हम उसमें सवार होना भी चाहते थे, लेकिन एक साथी के दूसरे नाव में होने के कारण नहीं उतरे और तय कर लिया कि गढ़मुक्तेश्वर से लौट आएंगे। सुधीर पाराशर ने अपनी गाड़ी के चालक को गढमुक्तेश्वर पहुंचने को कह भी दिया। अंधेरा होने पर एक साइड में सब बोट रोकी गई और एक साथ चलने के निर्देश दिए गए। इससे पहले अंधेरा होते देख किसी अनहोनी की आशंका को रोकने और इसका सामना करने के लिए मैने और सुधीर ने लाइफ सेविंग जैकेट पहन ली थी। जैकेट पहनते समय मेरा इरादा अंधेरा होने के साथ बढ़ती ठंड से खुद को बचाने का था।
दल में थी 12 बोट
यात्रा दल में 12 बोट थे। प्रत्येक बोट में तीन, चार यात्री और तीन तीन पीएसी के नाविक थे। एक बोट में यात्रा के संरक्षक स्वामी अच्युतानंद अपने शिष्यों के साथ थे। एक में पीएसी के आईजी आदित्य मिश्रा अपने अन्य अधिकारियों के साथ थे। अन्य नावों में टीम के अन्य सदस्य हमें मिली वोट में तीनों चालक थे। रेत में फंसने पर मोटर चलाने वाला दूसरे चालकों से चप्पू चलाने को कहता। अन्य दोनों चालकों की हालत यह थी कि वह चप्पू एक साथ नहीं चलाते थे। कभी नाव बाएं भागती तो कभी दाएं और मोटर चालक के टोकने पर वह सुधार करते। अंधेरे में कुछ भी न दिखाई देने पर मन में भय था और चिंता भी। किंतु उनकी बातों से यह सब भय खत्म हो रहा था और उनकी बातों में आनंद आ रहा था। रेत आने पर नाविक पानी में डंडा डालकर उसका जल स्तर नापते। पानी मिलने पर मोटर चला दी जाती, जबकि रेत मिलने पर नाविक नाव चप्पू से खेते या उतरकर पानी में खींचते।
रेत आने पर मोटर बंद कर ऊपर उठा दी जाती और पानी मिलने पर स्टार्ट कर दी जाती।
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रास्ता भूल गए और गोल-गोल घूमने लगे
बिजनौर।अंधेरा होने पर हम एक जगह रास्ता भूल गए और गोल-गोल घूमने लगे। सब वोट आमने-सामने पानी में फैल गई। इस नौकायान के समय मुझे याद आ गया महाभारत सीरियल का दृश्य। इसमें भी गीता उपदेश के समय भी सारे महारथी ऐसे ही खडे़ दिखाये गए थे।
रात होने पर दिखाई देना बंद हो गया। दूर दूर तक जल ही जल नजर आ रहा था। आकाश में चांद चमक रहा था किंतु तनाव और चिंता के माहौल में उसे निहारने में किसी की रूचि नही थी। पानी कम होने पर मोटर बंद कर वोट खींचकर पानी में लाने और उसे आगे बढा़ने का सिलसिला रात साढे़ 11 बजे तक तक जारी रहा।
रात नौ बजे से स्टीमर के पेट्रेल खत्म होने का भय सताने लगा। थोड़ी देर में एक मोटर वोट के तेल खत्म होने की सूचना आ गई। हालत यह कि कहीं कोई रोशनी भी नजर नही आ रही। सब चारों ओर टकटकी लगाए देखते जा रहे थे। गढ़मुक्टेश्वर की लाइट देखने को आखें फाड़ रहे थे। एक जगह रोशनी और कुछ मंदिर दिखाई दिए। यहां घट पर मौजूद हमारे एक साथी ने बात की और गढ़ के छह सात किलोमाटर दूर बताने पर हमारा काफला आगे चल दिया। 11 बजे के आसपास गढ़मुक्टेश्वर के रेलवे पुल की लाइट दिखाई देने पर सफर का पड़ाव नजर आने लगा । आधा किलोमीटर पहले हमारे वोट का भी पेट्रोल खत्म हो गया ।
अब तक पांच वोट के इंजिन बंद हा चुक थे । हम एक वोट को खींचकर ला रहे थे। हमारे चालक नें बंद इंजिन वाली वोट के चालक से एक बार इंजिन चलाकर देखने को अनुरोध किया। कोशिश पर वोट का इंजिन चल गया और अब उसने हमारी वोट को घाट तक पंहुचाया। शाम पांच बजे बिजनौर पंहुचने वाले हम सबेरे पांच बजे ट्रकों से बैठकर किसी तरह बिजनौर पंहुचे।
गढ़मुक्तेश्वर पहुंचे 11.30 बजे
हम साढे़ ग्यारह बजे गढ़मुक्तेश्वर घाट पर पहुंच गए। स्वामी जी तथा नौकाएं दल के पीएसी के जवानों का स्वागत चल रहा था। हम सुधीर पाराशर और उनके साथी को खोज रहे थे। पता लगा कि वह उस नाव में है, जिसका तेल सबसे पहले खत्म हुआ। हम उनके आने का इंतजार करने लगे। इनकी गाड़ी भी नहीं मिली। एक बजे एसपी पीएसी एक दुकान पर चाय पीते मिले। उन्होंने बताया कि सुधीर पाराशर व उनके साथी तिगरी में उतर गए हैं और वहीं पर उन्होंने गाड़ी मंगा ली है
मेरा यह यात्रा संस्मरण सत्ताइस अक्तूबर के अमर उजाला मेरठ में छपा है
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