सबसे बड़ा मिट्टी का बांध
उत्तराखंड में रामगंगा नदी पर बना कालागढ़ डैम दुनिया के प्रसिद्ध अजूबों जैसा ही है। इसे एशिया का सबसे बड़ा मिट्टी का डैम होने का सौभाग्य प्राप्त है। डैम एरिया में मैसूर के कावेरी नदी पर बने वृंदावन गार्डन की तर्ज पर विकसित शानदार उद्यान भी है। कालागढ़ से कार्बेट में प्रवेश के लिए एक गेट भी है। इस गेट से प्रवेश कर कार्बेट के वन्य प्राणियों का भी आसानी से अवलोकन किया जा सकता है। यहां से कंडी मार्ग से कोटद्वार और रामनगर भी जाया जा सकता है।
शिवालिक पहाड़ियां पर्यटकों को हमेशा अपनी ओर आकर्षित करती रही हैं। दिल्ली से लगभग 250 किलोमीटर की दूरी पर रामगंगा के तट पर कालागढ़ स्थित है। दिल्ली से मेरठ, बिजनौर होकर लगभग पांच घंटे में कालागढ़ पहुंचा जा सकता है। कालागढ़ में सिंचाई विभाग के कुछ रेस्ट हाउस और प्रशिक्षण केंद्र हैं। डैम बनने के समय कर्मचारियों और अधिकरियों के लिए कुछ कॉलोनी बनाई गई थीं। रिजर्व वन होने के कारण डैम बनने के बाद कालागढ़ की भूमि कार्बेट प्रशासन को सौंप दी गई। उसने यहां बनी कई कॉलोनी गिरा दी। हालांकि कुछ कालोनी अब भी हैं। यहां एक छोटा बाजार भी है।
मिट्टी का डैम होने के कारण कालागढ़ एक दर्शनीय स्थल है। रामगंगा के पानी को रोकने के लिए पहाड़ियों के बीच रेत-सीमेंट का ढांचा नहीं, बल्कि मिट्टी और पत्थर लगाए गए हैं। बांध के साथ ही बिजली घर भी बना है। यहां 66-66 मेगावाट की तीन यूनिट लगी हैं। तीनों मिलाकर 198 मेगावाट बिजली बनाती है। डैम में 365.3 मीटर पानी सिंचाई के लिए रिजर्व वाटर के रूप में रखा जाता है।
बांध के नजदीक शानदार पार्क तो है ही, इसमें बनी सुरंग भी कम आकर्षक नहीं है। लगभग 70 मीटर गहरी इस सुरंग से रामगंगा के जल के नीचे पहुंचा जा सकता है। जल के नीचे अपने को खडे़ देखकर शरीर में अजीब-सी झुरझुरी उठने लगती है। यहीं एक सुरंग अंदर ही अंदर बिजलीघर तक चली जाती है। डैम के नीचे एक तरह से सुरंगों का जाल बिछा हुआ है। सुरक्षा की दृष्टि से इनमें प्रवेश नहीं दिया जाता।
रामगंगा नदी में घड़ियाल तथा विभिन्न प्रकार की मछलियां हैं। डैम एरिया में वृंदावन गार्डन की तरह विकसित एक उद्यान के 450 मीटर लंबे फव्वारे में बहता पानी और उस पर पड़ती रंग-बिरंगी रोशनी मन को मोह लेती है। इस उद्यान में विभिन्न प्रजातियों के पौधे और फूल भी कम आकर्षक नहीं हैं। हालांकि देखरेख के अभाव में उद्यान इस समय खस्ता हालत में हैं। अगर कालागढ़ पर पर्याप्त ध्यान दिया जाए, तो यह एक शानदार पर्यटक स्थल के रूप में विकसित हो सकता है।
अशोक मधुप
( मेरा यह लेख अमर उजाला में 14 अगस्त 2010 को संपादकीय पेज पर सबसे अलग में छपा है)
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