Saturday, September 4, 2010

सुलताना डाकू का किला


अशोक मधुप

Story published in AMAR UJALA ON EDITORIAL PAGE  Saturday, September 04, 2010 1:16 AM



बिजनौर जनपद में नजीबाबाद से लगभग ढाई किलोमीटर की दूरी पर स्थित पत्थरगढ़ का किला सुलताना डाकू के किले के रूप में विख्यात है। यह वही सुलताना डाकू था, जिसने ब्रिटिश सरकार को नाकों चने चबवाए थे। मजबूरन उसे पकड़ने के लिए ब्रिटिश सरकार को फे्रडी यंग के नेतृत्व में विशेष दल बनाना पड़ा था।



नजीबाबाद को रूहेला सरदार नजीबुद्दौला ने बसाया था। उसने यहां कई महल और मसजिदें बनवाईं। नजीबाबाद से लगभग डेढ़ किलोमीटर पूर्व में 40 एकड़ भूभाग में वर्ष 1755 में एक भव्य किला बनाकर इसे पत्थरगढ़ किला नाम दिया था। इसकी दीवारें इतनी मोटी थीं कि उन पर दो ट्रक बराबर में दौड़ सकते थे। आगे की दीवार इतनी ऊंची बनाई गई कि पीछे की दीवार पर स्थित फौज आराम से घूमकर दुश्मन का मुकाबला करती रहे और दुश्मन की उस पर नजर भी न पड़े। जिला गजेटियर के मुताबिक, इसमें मोरध्वज के किले के पत्थर लाकर लगाए गए। वर्ष 1857 में नजीबुद्दौला के एक वंशज नवाब महमूद खां ने अंगरेजों से सत्ता छीन ली। पर लगभग साल भर बाद ब्रिटिशों ने नवाब महमूद को हरा दिया और नजीबाबाद पर कब्जा कर पत्थरगढ़ के किले को तोड़-फोड़ दिया। नवाब महमूद सपरिवार नेपाल भाग गए और वहीं मलेरिया से उनका निधन हो गया।



भातू जनजाति के अपराध रोकने के लिए अंगरेजों ने इस किले को सुधार गृह बनाया। जगह-जगह से भातुओं को यहां लाकर विभिन्न लघु-उद्योगों का प्रशिक्षण दिया जाता था। अंगरेज इन पर बेइंतहा जुल्म करते और कठिन श्रम कराते। ब्रिटिशों के जुल्म से परेशान इस किले में रहनेवाला एक युवक बागी बन गया और भागकर अपराध को अंजाम देने लगा। सेठों को लूटने और गरीबों की मदद करने के कारण लोगों ने उसे सुलतान नाम से पुकारा। वही धीरे-धीरे सुलताना हो गया। तराई में सुलताना के अपराध और गरीबों के मदद के किस्से आज भी मशहूर हैं। कई साल की मशक्कत के बाद फे्रडी यंग के नेतृत्व में बने विशेष दल ने उसे पकड़ा और फांसी दे दी। उस विशेष दल में प्रसिद्ध शिकारी जिम कार्बेट भी शामिल थे। उन्होंने अपनी पुस्तकमाई इंडिया में सुलताना-इंडियन रॉबिनहुड नाम से एक लेख लिखा है, जिसमें उसकी जमकर प्रशंसा की गई है।

आज यह किला पुरातत्व विभाग की संपत्ति है। इसके दो भव्य द्वार हैं, जिसमें से एक नजीबाबाद की ओर खुलता है। इसके दरवाजों पर बनाए गए डिजाइन बहुत ही खूबसूरत हैं। इस समय किले की सिर्फ बाउंडरी ही बची है, जो देख-रेख के अभाव में जगह-जगह से टूट-फूट गई है। पुरातत्व विभाग द्वारा अब इस किले का जीर्णोद्धार कराया जा रहा है।

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