Monday, July 21, 2025

कांवड़ यात्रा के साथ आम यातायात पर भी ध्यान दें

 कांवड़ यात्रा के साथ आम यातायात पर भी ध्यान दें

अशोक मधुप

वरिष्ठ पत्रकार 

अबसे एक   दिन बाद 23 जुलाई  को   शिवरात्रि का पर्व है। लगभग एक सप्ताह से कावंड़ यात्रा चल रही है।सड़कों पर कांवड़ियों के समूह पवित्र नदियों से जल लेकर अपने गन्तव्यों के लिए रवाना हो चुके हैं। शिवरात्रि पर जलाभिषेक के बाद कावंड़ यात्रा पूर्ण हो   जाएगी।सड़कों   से गुजरते भोले के भक्तों  के काफले अपनी मंजिल पर पंहुचकर अगले छह माह के लिए रूक  जाएंगे।।जाड़ों में दुबारा शिवरात्रि पड़ेगी, तब ये यात्रा फिर शुरू होगी।फिर कांवड़ियों के काफलें सड़कों पर होंगे। ज्योतिर्लिंग वाले सभी प्रदेशों में इस यात्रा को देखते हुए व्यापक व्यवस्था की जाती है। अन्य शिवालयों पर भी भारी तादाद में श्रद्धालु जल चढ़ाते हैं।कई बार किसी कांवड़ से किसी के टकराने  या कावड़िए के दुर्घटनाग्रस्त होने पर कावड़िए प्रायः हंगामा करते हैं। कई  जगह तोड़−फोड आगजनी आदि पर उतर आते हैं,इसलिए प्रशासन पहले से सचेत रहता  है। केंद्र में भाजपा सरकार आने और कई  प्रदेशों में भाजपा की सरकार होने के बाद से इस कांवड़ यात्रा पर विशेष ध्यान दिया जाने लगा।इनके लिए आने −जाने के मार्ग निर्धारित होने लगे।इन कांवड़ियों की सुरक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाने लगा। अधिकतर महत्वपूर्ण मार्ग इनके लिए आरक्षित किए जाने के कारण इन मार्ग के वाहन दूसरे मार्ग पर भेजे जाने लगे। इससे आम लोगों को परेशानी होने लगी। तीन घंटे का रास्ता  छह से सात घंटे में पूरा होने लगा।  वाहनों को 60 से 70 किलो मीटर ज्यादा चलना पड़ा।  वाहनों के ज्यादा चलने के  तेल ज्यादा  लगा। तेल का  ज्यादा लगना राष्ट्रीय नुकसान है और व्यक्ति की समय की बरबादी। व्यवस्था  ऐसी बनाई जाए कि कांवड़ यात्रा भी निर्विघ्न रूप से पूरी हो और दूसरे वाहन  और यात्रियों को कोई परेशानी न हो। नियमित यातायात इस यात्रा के दौरान सुगमता से चलता रहे।

आज हालत यह है कि कई  दिन से उत्तर प्रदेश− दिल्ली  एनसीआर और उत्तरांचल के मार्गों पर दिन में ट्रकों  की आवाजाही बंद है।सड़कों के किनारे ट्रकों की लंबी− लंबी लाइन लगी है।पूरे दिन वह सड़क किनारे खड़े रहते हैं। रात में उन्हें चलने की अनुमति मिलती है। इस प्रक्रिया से राष्ट्र की कितनी शक्ति व्यर्थ  जाती है,  इसका अनुमान लगाया जा सकता है।  

शिवरात्रि भगवान शिव का पर्व है।यह पर्व पूरे भारत  वर्ष में मनाया जाता  है।करोड़ों की संख्या में शिव के उपासक  पवित्र नदियों के स्थलों से उनका   जल कांवड़ में लेकर आते और शिवालयों पर जाकर चढ़ाते हैं। ज्योतिर्लिंग पर तो शिवरात्रि पर जल चढ़ाने के साथ उत्तर भारत क्या  पूरे देश में यह पर्व श्रद्धा के साथ  मनाया जाता है। कांवड़ यात्रा कई –दिन चलती है। सड़कों पर कावड़ियों का रेला ही रेला  दिखाई  देता है। श्रद्धालु कावंड़ियों को ज्यादा से ज्यादा सुविधा उपलब्ध कराकर पुण्य  लाभ पाने के लिए तत्पर रहतें हैं।ये कांवड़ियों  मार्ग पर उनके खाने –पीने की ठहरने आदि की निशुल्क व्यवस्था  करते हैं।भंडारे लगाते  हैं। यात्रा पर निकलने से पहले कावंड़िए तैयारी करते हैं।कांवड़ , उसके सजाने  आदि और अपनी यात्रा का सामान खरीदते  हैं।अपने साथ चलने वाले वाहन  किराए पर लेते  हैं। इन पर किराए का म्युजिक सिस्टम लगाते  हैं।कांवडिए की अलग तरह की भगवा रंग की टीशर्ट  चल पड़ी ।इसका ही अब लाखों रूपये का कारोबार बन गया। कांवड़ यात्रा से हजारों लोगों का रोजगार चलता है। इस यात्रा पर खरबों रूपये का बिजनेस होता  है। इसलिए ये यात्रा  होनी चाहिए ।इस यात्रा की व्यवस्थाएं  भी भव्य होनी चाहिए।कांवड़ियों की व्यापक सुरक्षा और बढ़िया मार्ग की व्यवस्था होनी चाहिए।जगह− जगह आपातकाल में इनके उपचार के प्रबंध हों । इनकी सुविधा के लिए  कोई कसर उठकर नही रखी जानी चाहिए। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ   इस व्यवस्था  पर स्वंय नजर रखते हैं।वे  हैलिकाप्टर से कांवड़ियों पर फूलों की वर्षा भी  करते हैं।

उत्तर भारत में सावन की शिवरात्रि पर श्रद्धालुओं में विशेष  उत्साह रहता है।कावड़ यात्रा के कारण उत्तर भारत में यातायात बुरी तरह प्रभावित होता है। हरिद्वार प्रशासन के अनुसार पिछले साल  साढ़े चार करोड़  से ज्यादा शिवभक्त  जल लेने  हरिद्वार पंहुचे।2023 में चार करोड़ श्रद्धालु आए थे।ये यात्रा  अभी चल रही है,अनुमान है कि इस बार अकेले हरिद्वार से ही कांवड़ लाने वाले श्रद्धालुओं की संख्या  पांच करोड़ से ज्यादा हो जाएगी,किंतु कुछ स्थानों पर पूरे सावन कांवड़ चढ़ती हैं।श्रद्धालु के समूह हरिद्वार  आते और जल लेकर अपने गंत्व्यों की ओर रवाना होते रहते  हैं।

 उत्तर भारत की इस कांवड़ यात्रा को देखते  हुए उत्तरांचल, उत्तर प्रदेश,दिल्ली  और हरियाणा  सरकार  व्यापक व्यवस्थाएं करती हैं, किंतु  यात्रा के समय ये सब व्यवस्थांए बौनी पड़  जाती हैं।इसी कारण कई  जगह कांवड़ियों के  हंगामा करने की सूचनाएं आती हैं।कुछ जगह तोड़फोड़  और आगजनी तक हो  जाती है।इस सबका   कारण  यात्रा से कुछ पहले तैयारी करना  है, जबकि इसके लिए पूरे साल तैयारी की जाती चाहिए। इसके लिए अलग  से विभाग  होना  चाहिए, किंतु ऐसा होता नहीं।  

 केंद्र और राज्य सरकारों को कावंड़ियों की सुविधा के साथ  आम आदमी की सुविधा  का भी ध्यान रखा जाना चाहिए।  व्यवस्था की जानी चाहिए कि कांवड़ यात्रा के दौरान आम यातायात प्रभावित न हो।केंद्र एक्सप्रेस वे बना  रहा है ताकि यातायात के किसी वाहन को परेशानी न हो। इसके लिए  कांवड  यात्रा वाले  प्रदेश की सरकारों  का केंद्र के साथ मिल बैठ कर प्लान करना  चाहिए। कावंड यात्रा वाले मार्ग पहले ही इस तरह बनाए जांए कि उसकी साइड से आम यातायात सुगमता से अनवरत चलता  रहे। कांवड1  यात्रा वाले मार्ग  पर कांवड़ यात्रियों के लिए पहले से ही दो अलग लेन बनाकर रखी जा  सकती हैं। यात्रा के समय में  इन पर कांवड़िए और उनके वाहन चलें , बाद में ये लेन आम ट्रैफिक के लिए प्रयोग हों।कांवड़ यात्रा वाले मार्ग  पर कांवड़ यात्रियों के आराम रूकने के स्थान पहले से चिंहित हों।स्थान ऐसे हों कि यहीं कांवड़ शिविर भी  लग सकें।

1990 के आसपास कांवड़  यात्रा  का इतना  प्रचलन नही था। आज यह बढ़ता  जा  रहा है।अब साढे चार करोड़ के आसपास कांवड़िए हरिद्वार से  कांवड़  ला रहे हैं। इनकी बढ़ती संख्या को देखते  हुए   हो सकता है कि आने वाले कुछ सालों में यह संख्या बढ़कर दुगनी या उससे भी ज्यादा हो जाए। इसलिए हमें अभी से इसके लिए व्यवस्था  बनानी होगी। प्लानिंग करनी होगी। हरिद्वार आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या को देखते  हुए हरिद्वार के लिए  अतिरिक्त ट्रेन  चलानी होंगी।  कावंड़ यात्रा के समय आम यात्री को कांवडियों की भीड़ के कारण  भारी परेशानी होती है।  ट्रेन के साथ –साथ इनकी  संख्या को देखते  हुए  स्पेशल बसे चलाईं जांए।कांवड़ यात्रा के कारण छात्रों की परेशानी को देखते हुए कई  जगह स्कूल काँलेज  बंद करने पड़तें हैं। शहरों के स्थानीय निवासियों की गतिविधि और आवागमन  प्रभावित होता है,व्यवस्था  ऐसे बनाई जाए कि कांवड़  यात्रा भी चले और उस क्षेत्र के आम निवासी की गतिविधि और दिनचर्या  भी प्रभावित न हों। इस पार उत्तर प्रदेश  और उत्तरांचल सरकार ने हुडदंग करने वाले कांवड़ियों के विरूद्ध  कार्रवाई  शुरू की है।  ये व्यवस्था तो पहले से होनी चाहिए।भगवान शिव के भक्तों को तो बहुत सरल और सौम्य  होना होगा।

अशोक मधुप

(लेखक वरिष्ठ  पत्रकार हैं)

Tuesday, July 1, 2025

बड़ी चुनौती है फैक्ट्री के धमाकों को रोकना

  

अशोक मधुप

वरिष्ठ  पत्रकार

तेलंगाना के संगारेड्डी जिले के पासमैलारम फेज एक इलाके में सोमवार को एक केमिकल फैक्टरी में हुए विस्फोट में 34 कर्मचारियों  की मौत हो गई । तीन दिन पहले  उत्तर प्रदेश के नोएडा के थाना फेस वन क्षेत्र स्थित डी-93 सेक्टर-दो स्थित शाम पेंट इंडस्ट्रीज केमिकल की कंपनी में भीषण आग लग गई। आग इतनी भयावह थी कि लपटें आसमान तक छूती नजर आई। करीब ढाई घंटे की मशक्कत के बाद आग पर काबू पाया जा सका। फायर ब्रिगेड टीम ने इस आग की घटना में किसी प्रकार के जानमाल के नुकसान न होने की बात कही है। इसी 16 जून को उत्तर प्रदेश के अमरोहा जनपद के रजबपुर थाना क्षेत्र के गांव अतरासी से करीब दो किलोमीटर दूर यह फैक्ट्री चार महिलाओं की मौत हो चुकी थी। नौ घायल मजदूरों को अस्पताल में भर्ती कराया गया।आरोप है कि फैक्ट्री संचालक ने पटाखे बनाने के लिए आसपास की रहने वाली महिलाओं को कम मजदूरी पर रखा था। उन्हें केवल 300 रुपये दिहाड़ी दी जाती थी।  मजदूरों को न कभी ट्रेनिंग दिलाई और नही आपातस्थित से  निपटने का कोई  प्रशिक्षण दिया गया। फैक्ट्री में दुर्घटनाएं  होने  पर कुछ दिन शोर मचता है। मृतकों और घायलों के लिए मुआवजे की घोषणा होने के बाद सब शांत हो जाता  है।दुर्घटनाएं रोकने की कोई योजना नही बनती।नही फैक्ट्री के श्रमिकों को दुर्घटना होने के समय की चुनौती बताई जाती हैं। दुर्घटना होने के समय की चुनौती  के समय के लिए प्रशिक्षित भी नही किया जाता।दुर्घटना  होने  पर क्या किया जाए इसका भी  प्रशिक्षण नही दिया  जाता। फैक्ट्री लगती है  किंतु उनका तकनीकि निरीक्षण  नही होता। निरीक्षण करने वाली अधिकारी पैसे के बल पर अपने आफिस में ही बैठकर रिपोर्ट बना देते है।  सही मायने में फैक्ट्रियों में होने वाली दुर्घटनाओं और उनमें होने वाली मौत का जिम्मेदार वह अमला भी है जो समय −समय पर इनके सुरक्षा  तंत्र का निरीक्षण करता है।

श्रम और रोजगार मंत्रालय के महानिदेशालय फ़ैक्ट्री सलाह सेवा और श्रम संस्थान (DGFASLI) द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिकभारत के पंजीकृत फ़ैक्ट्रियों में दुर्घटनाओं के कारण हर दिन औसतन तीन मज़दूरों की मौत हुई है और 11 घायल होते हैं।नवंबर 2022 में आरटीआई जवाब के अनुसारभारत में रजिस्टर्ड फ़ैक्ट्रियों में हर साल होने वाली दुर्घटनाओं में  1,109 वर्करों की मौत हो गई और 4,000 से अधिक वर्कर घायल हुए। ये 2017 से 2020 के बीच आंकड़ों के आधार पर है।वहीं विशेषज्ञों का मानना है कि यह संख्या और भी ज्यादा है क्योंकि बड़े पैमाने पर असंगठित क्षेत्रों में होने वाले हादसों की रिपोर्ट दर्ज ही नहीं की जाती है।

निदेशालय जनरल फैक्ट्री एडवाइस सर्विस एंड लेबर इंस्टीट्यूट्स की रिपोर्ट2022 के अनुसार 2021 मेंमहाराष्ट्र में 6,492 खतरनाक फैक्ट्रियों में से केवल 1,551 का निरीक्षण किया गयाजिससे 23.89 प्रतिशत निरीक्षण दर प्राप्त हुई। इसके अतिरिक्त39,255 पंजीकृत फैक्ट्रियों में से केवल 3,158 का निरीक्षण किया गया इससे 8.04 प्रतिशत  निरीक्षण मिली। अन्य प्रमुख औद्योगिक राज्यों में भी यह प्रवृत्ति दिखाई देती है। तमिलनाडु में सामान्य निरीक्षण दर 17.0 प्रतिशत  और खतरनाक फैक्ट्रियों की निरीक्षण दर 25.39 प्रतिशत  थी। गुजरात में सामान्य निरीक्षण दर 19.33 प्रतिशत  और खतरनाक फैक्ट्रियों की निरीक्षण दर 19.81 मिली।। 2021 के लिए अखिल भारतीय आंकड़े सामान्य निरीक्षणों के लिए 14.65 प्रतिशत और खतरनाक फैक्ट्रियों के लिए 26.02 प्रतिशत  थे उपर्युक्त विवरण से लिया  गया है।

खराब निरीक्षण दरों का एक कारण कर्मचारियों की कमी है। महाराष्ट्र में निरीक्षकों की नियुक्ति दर केवल 39.34 प्रतिशत थी इसमें 122 स्वीकृत अधिकारियों में से केवल 48 कार्यरत थे। गुजरात में नियुक्ति दर 50.91 प्रतिशत रही  तो  तमिलनाडु में यह 53.57 प्रतिशत  थी। अखिल भारतीय नियुक्ति दर 67.58 प्रतिशत थी। स्वीकृत पदों की संख्या पंजीकृत फैक्ट्रियों की संख्या के सापेक्ष वार्षिक निरीक्षण सुनिश्चित करने के लिए अपर्याप्त रही है। 2021 मेंअखिल भारतीय स्तर पर 953 स्वीकृत निरीक्षकों में से प्रत्येक को वार्षिक रूप से 337 पंजीकृत फैक्ट्रियों का निरीक्षण करना पड़ता है ।

मई 2024 मेंमहाराष्ट्र इंडस्ट्री डेवलपमेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष ने एक मीडिया रिपोर्ट में स्वीकार किया कि सुरक्षा निरीक्षण और प्रमाणन अक्सर ऑडिटरों और फैक्ट्री मालिकों या प्रबंधकों के बीच "समझ" के आधार पर किए जाते थे। यह संकेत देता है कि नियोक्ता भी श्रम निरीक्षकों के समान ही दोषी हैंऔर भ्रष्ट प्रथाओं की "आपूर्ति पक्ष" को संबोधित करना "मांग" पक्ष के सुधार के समान ही महत्वपूर्ण है।

प्रदेश सतर पर विशिष्ट सीमा मात्रा के साथ खतरनाक रसायनों और ज्वलनशील गैसों की एक सूची स्थापित की जानी चाहिए।प्रत्येक राज्य को प्रमुख खतरे वाले कार्यस्थलों की सूची बनाए रखनी चाहिए समें सुविधा का प्रकारउपयोग किए गए रसायन और संग्रहीत मात्रा का विवरण हो। खतरनाक सामग्री की सूची और इन्वेंट्री को एक केंद्रीकृत डेटाबेस में संग्रहीत करेंजिस तक नियामक निकायआपातकालीन प्रतिक्रियाकर्ताऔर जनता आसानी से पहुंच सकें।निरीक्षण प्रणाली को उदार बनाने के बजायसरकारों को आईएलओ सम्मेलन के प्रावधानों का पालन करके मजबूत श्रम बाजार शासन सुनिश्चित करना  होगा। प्रौद्योगिकी में तेजी से प्रगति और खतरनाक और रासायनिक पदार्थों के उपयोग को देखते हुएसख्त निरीक्षणों की आवश्यकता  है।

 औद्योगिक आपदाओं की पुनरावृत्ति सरकार की विफलता को दर्शाती है कि उसने पिछले घटनाओं से सबक नहीं सीखा है। सुधारों और कमजोर शासन के नाम परराज्य अपने मूल कर्तव्य से पीछे नहीं हट सकता कि वह एक सुरक्षित कार्य और जीवन सुनिश्चित करे। एक प्रभावी और नैतिक श्रम निरीक्षण प्रणाली सुनिश्चित करने के लिए सार्थक सुधारों की आवश्यकता है जो श्रमिकों और समुदाय की सुरक्षा और कल्याण को प्राथमिकता दें। इसके साथ ही फैक्ट्री श्रमिकों का आपदा के समय सुरक्षा के उपाए, कैसे बचाव करें आदि का बार −बार प्रशिक्षण देना होगा। सभी उद्योगों के निरीक्षण के लिए तकनीकि विशेषज्ञों की टीम बनानी होगी। उन्हें नियमित निरीक्षण के निर्देश करने होंगे। इससे किसी दुर्घटना होने पर मौत और घायलों का आंकड़ा कम किया जा सकता है। दुर्घटना होने के हालात में इन तकनीकि अधिकारियों की जिम्मेदारी भी फिक्स करनी होगी।देखने में आ रहा है कि निरीक्षण स्टाफ की फेक्ट्री स्वामियों से मिलीभगत  होने के कारण  उद्योग स्वामी प्रायः  प्रशिक्षित स्टाफ नही रखते । उत्तर प्रदेश के अमरोहा के अगवानपुर की दुर्घटना ग्रस्त पटाखा फैक्ट्री का भी ये ही कारण रहा।  फैक्ट्री स्वामी ने सस्ते के चक्कर में फैक्ट्री के आसपास रहने वाली महिलाएं रख  रखी थी। उन्हें वह मात्र तीन सौ रूपया रोज मजदूरी देता था। उनकी सामजिक सुरक्षा आदि का भी प्रबंध नही था।  

 केंद्र ही नही प्रदेश सरकारों को भी उद्योग स्वामियों   को बताना  होगा कि उनके  यहां  काम करने वाले श्रमिक और तकनीकि विशेषज्ञ देश की धरोहर है। उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी उद्योग के साथ  देश और समाज की भी है।घटना होने  पर मात्र  जांच के आदेश  और मुआवजा देने से ही काम नही चलेगा। दुर्घटना के लिए जिम्मेदारी भी तै करनी होगी। जिम्मेदार लोगों को दंडित भी करना होगा तभी  जाकर ये दुर्घटनाएं रूकेगी। एक बात और यदि उद्योग में सुरक्षा मानक कड़े हों, उद्योग श्रमिकों को समय −समय पर सुरक्षा संबधी प्रशिक्षण मिले तो दुर्घटनाएं ही न हों। हों तो मौत और घायलों की संख्या बहुत कम रहे। दुर्घटनाएं न हो तो उद्योग भी न मरे।दुर्घटनाएं  होने  से श्रमिकों के साथ एक प्रकार से  संबधित उद्योग भी मर जाता है। अधिकतर दुर्घटनाग्रस्त उद्योग के स्वामी दुर्घटना के  कारण  हुए नुकसान ,श्रमिकों को मुआवजा आदि देने के  कारण  बर्बाद हो जाते हैं। वे दुबारा से मुश्किल से ही काम  को जोड़ पाते हैं। इससे देश का  एक व्यापारी,एक व्यवसायी भी एक प्रकार से मर जाता है।उसका आर्थिक रूप से मरना  देश की प्रगति को भी   नुकसान देता है।      

अशोक मधुप

 ( लेखक वरिष्ठ  पत्रकार हैं)