Tuesday, March 25, 2025

अंगदान बढ़ाने को एमपी का रास्ता अपनाएं


अशोक मधुप

वरिष्ठ  पत्रकार

मध्य प्रदेश सरकार ने अंगदान करने वालों को सम्मानित करने के साथ उनके परिवार को आयुष्मान भारत योजना का लाभ देने जा रही है। इसमें अंगदान करने वाले के परिवार को  प्रति वर्ष पांच लाख रुपये तक का निःशुल्क इलाज मिलेगा। जागरूकता बढ़ाने के लिए 18 लाख रुपये की डॉक्यूमेंट्री बनाई जा रही है। राज्य का स्टेट आर्गन एवं टिश्यू ट्रांसप्लांट पोर्टल भी तैयार हो रहा है। मध्य प्रदेश चिकित्सा विभाग के संचालक डॉ. एके श्रीवास्तव ने बताया कि शीघ्र ही इस संबंध में शासन स्तर पर निर्णय हो जाएगा। निश्चय ही यह निर्णय भारत की  महर्षि दधिचि की देहदान की परम्परा को आगे बढ़ाएगा।मध्य प्रदेश सरकार का यह निर्णय लोगों को अंगदान के लिए प्रेरित करेगा।वैसे जो कार्य मध्य प्रदेश सरकार करने जा रही है, उसे प्रत्येक प्रदेश को लागू करना चाहिए।अच्छा हो कि ये केंद्र की ओर से लागू हो।इस कार्य के लिए जागरूकता अभियान भी चलाने की जरूरत है। इसके लिए लोगों को प्रेरित करने के साथ प्रोत्साहित भी करना होगा।

भारत में प्रतिवर्ष पांच लाख से ज्यादा लोग वक्त पर अंग न मिलने से मौत का शिकार हो जाते हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार

 इनमें से दो लाख के आसपास लोगों की  मौत लिवर नहीं मिलने की वजह से होती है।इन मरने वालो में अधिकतर वे लोग  

होतें हैं जो पैसा देकर अंग नही खरीद सकते। पैसे वाले तो  मन मांगा मोल देकर अंग खरीद लेते हैं।इसी कारण मानव अंगों 

के अवैध कारोबार को बढ़ावा मिलता है।भारत  में प्रतिवर्ष दस लाख व्यक्तियों में अंगदान करने वालों की संख्या 0.16 है। 

विकसित देशों जैसे अमेरिकाब्रिटेननीदरलैंड और जर्मनी में यह संख्या 10 से 30 के मध्य है। हमारे देश में इस संख्या के कम 

होने के कारण हैं-सही जानकारी का अभावधार्मिक मान्यतासांस्कृतिक भ्रांतियां और पूर्वाग्रह। कई देशों में अंगदान ऐच्छिक न 

होकर अनिवार्य है। भारत में ऐसा कर पाना संभव नहीं हैलेकिन जागरूकता पैदाकर इस संख्या को बढ़ाया जा सकता है।

लोगों में अंधविश्वास है कि यदि मृत व्यक्ति की आंखों को दान दिया जाता है तो उसे मरने के उपरांत स्वर्ग नहीं मिलता या अगले जन्म में वह आंख या उस अंग के बिना पैदा होगा, जबकि अंगों को शरीर से निकालने से परंपरागत अंत्येष्टि क्रिया या दफन क्रियाओं में कोई बाधा नहीं आती। इससे शरीर के रंग-रूप में भी कोई परिवर्तन नहीं होता।अपने अंगों को मृत प्राय: रोगियों को बहुमूल्य उपहार के रूप में दान देकर अपनी मृत्यु को जीवन समान सार्थक बनाया जा सकता है।

एक मृत व्यक्ति के अंगदान से नौ लोगों को नया जीवन मिल सकता है। सरकारी आंकड़ों के अनुसारराष्ट्रीय अंग प्रत्यारोपण प्रतीक्षा सूची में 1,04999 पुरुषमहिला और बच्चे आज भी इस इंतज़ार में हैं कि कोई अंगदान करेगा और वे अपना जीवन जी सकेंगे। राष्ट्रीय अंग प्रत्यारोपण प्रतीक्षा सूची में अकेले किडनी के जरूरतमंद  व्यक्ति ही 88551 है।भारत में प्रतिवर्ष लगभग डेढ़ लाख मौतें सड़क हादसों से होती हैं। वर्ष 2022 में ही 168491 मौत हुईं। इसका मतलब औसतन हर रोज सड़कों पर 1000 से ज्यादा दुर्घटनाएं होती हैं और 400 से ज्यादा लोग दम तोड़ देते हैं।

इनमें सबसे पहले मस्तिष्क पूरी तरह से कार्य करना बंद कर देता हैऐसा शरीर अंगदान के लिए उपयुक्त होता है। फिर भी बमुश्किल दो -तीन प्रतिशत  भाग्यशाली लोगों को नए अंग मिलते हैं।हृदयफेफड़ेलिवरकिडनीआंतपैंक्रियाज ऐसे अंग हैंजो मृत व्यक्ति के परिजनों  द्वारा दान किए जा सकते हैं। आंख का कॉर्नियाहड्‌डीत्वचानसमांसपेशियांटेंडनलिगामेंटकार्टिलेजहृदय वाल्व भी मृत्यु के बाद किसी अन्य व्यक्ति के काम आ सकते हैं। जीवित व्यक्ति एक पूरी किडनी व लिवर का कुछ हिस्सा दान में दे सकता है। शेष एक किडनी से दानदाता का जीवन व्यतीत हो सकता है । लिवर समय के साथ बढ़ जाता है और पुन: अपनी पुरानी अवस्था में लौट आता है इसलिए दाता को किसी प्रकार की कोई दिक़्क़त नहीं होती है।

भारतीय संस्कृति विश्व की प्राचीन एवं महान संस्कृति है। दानधर्म एवं उच्च संस्कार प्राचीन काल से ही हमारे समाज में वरिष्ठ स्थान रखते रहे हैं। महर्षि दधीचि ने दान की पराकाष्ठा का उदाहरण समाज के समक्ष रखा। वह भारतीय संस्कृति के प्रथम अंगदानी कहे जाते हैं।  देवता और दानव में युद्ध  चल रहा था !दानव देवताओं पर भारी पड़ रहे थे। देवताओं को समझ नहीं आ रहा था कि युद्ध में कैसे विजय पाई जाए। इसके लिए वे   ब्रह्मा जी के पास गए। ब्रह्मा जी ने सुझाव दिया कि महर्षि दधीचि की अस्थियों से बने अस्त्र से दानवों को पराजित  किया जा सकता है। देवता महर्षि दधीचि के पास गए। याचना की। महर्षि दधीचि द्वारा दी गई अस्थियों से बने वज्र से राक्षास ब्रजासुर का बद्ध हुआ।   दानव पराजित हुए।

0आर्यव्रत की हजारों साल पुरानी देहदान  और अंगदान की इस परंपरा में आज भी लोगों की रुचि नहीं है।  मुझे याद है कि लगभग 40 साल पहले उत्तर प्रदेश के बिजनौर के स्टेडियम में खेल प्रतियोगिता के दौरान भाला लगने से एक कर्मचारी घायल हो गया था। उसे खून की जरूरत थी।कहे जाने पर भी उसके परिवारजनों ने खून नहीं दिया था। उसकी मदद के लिए स्टेडियम के खिलाड़ी आगे आये। उनके रक्त देने से कर्मचारी की जान बची।अच्छा यह है कि अब रक्तदान के प्रति तो लोगों में जागरूकता बढ़ी है, किंतु  अंगदान के प्रति अभी  चेतना नही है।अंगदान के प्रेरित करने  वाले  चिकित्सकों की भी कमी है।यदि बड़े  और सरकारी अस्पताल के चिकित्सक मृतक के परिजनों को अंगदान के लिए प्रेरित करने  लगे तो बड़ा  काम हो सकता है।

हालांकि हेल्थ प्रोफेश्नल आमतौर पर अंगदान के विषय पर मृतक के परिजनों से बात करने में अटपटा महसूस करते हैं। नई दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में लिवर ट्रांसप्लांट सर्जन डॉ समीरन नंदी ने डीडब्लू को बताया, "डॉक्टर मृतक के अंगों को दान देने के बारे में पूछने से कतराते हैं. कोई इस बारे में प्रोत्साहन भी नहीं है और बदले की कार्रवाई का डर भी रहता है।"एक बात ओर अंगदान करने के इच्छुक लोग बढ़ भी जाएं तो सभी अस्पतालों में अंग प्रत्यारोपण से जुड़ी तमाम प्रक्रियाओं के लिए जरूरी साजो सामान या उपकरण  मौजूद नहीं हैं।

भारत में सिर्फ 250 अस्पताल ही नेशनल ऑर्गन एंड टिश्यू ट्रांसप्लांट ऑर्गनाइजेशन (नोटो) से पंजीकृत हैं। ये संगठन देश के अंग प्रत्यारोपण कार्यक्रम का समन्वय करता है।यानी देश में प्रत्येक 43 लाख नागरिकों के लिएतमाम सुविधाओं और उपकरणों वाला सिर्फ एक अस्पताल है. भारत के देहाती इलाकों में तो ट्रांसप्लांट सेंटर कमोबेश हैं भी नहीं।

अंगदान की प्रक्रिया बहुत लाभकर है पर जिस तेजी से बढ़नी चाहिएउस तेजी से नहीं अंगदान के नाम पर आंख देना ही शुरू हुआ है।यह भी  न के बराबर।जबकि मानव कल्याण के लिये अंगदान का प्रचार प्रसार बहुत जरूरी है।रक्तदान में जरूर तेजी आई है।

प्रत्येक वर्ष तीन अगस्त को अंगदान दिवस मनाया जाता है।एक दिवस में इस महत्वपूर्ण कार्य की इतिश्री कर दी जाती है।जबकि प्रत्येक पल अंगदान के लिए प्रेरित करने की जरूरत है। अंगदान के लिए जनजागरण की जरूरत है। स्कूली शिक्षा  से छात्रों में जनजागरण के लिए जागरूकता  विकसित की जानी चाहिए। अन्य अभियानों की तरह अंगदान के  लिए भी अभियान चलाने की जरूरत है।इसके लिए विभिन्न   धर्मगुरूओं से संपर्क कर उनसे अनुरोध किया जाए कि वह अंगदान के लिए अपने समर्थकों को प्रेरित  करें।मध्य प्रदेश की तरह अंगदान करने वालों परिवारों के सममानित करने के साथ उन्हें प्रोत्साहित करने आयुष्मान योजना जैसी सरकारी योजना का लाभ दिलाने की भी जरूरत है।   

वैसे हाल में अंगदान के लिए कई अच्छे स्लोगन  सामने आए हैं।मरने के बाद भी यदि दुनिया की खूबसूरती देखते  रहना चाहते हों तो आंखे  दान करो।मरने के बाद भी दिल की धड़कन महसूस करनी होंतो दिल दान करों।इस तरह के और रोचक नारे और स्लोगन बनाकर बढ़ियाकर प्रचार करने महर्षि  दधीचि की देहदान की परम्परा को ओर आगे बढ़ाया जा सकता है और ज्यादा लोगों की जान बचायी  जा सकती हैं।

अशोक मधुप

 (लेखक वरिष्ठ  पत्रकार  हैं)

Thursday, March 6, 2025

कुंभ समाप्त, अब चार धाम यात्रा की तैयारी कीजिए


 अशोक मधुप 

वरिष्ठ  पत्रकार

कुंभ यात्रा लगभाग बीत गई । इसके बाद 30 अप्रेल से चार धाम यात्रा शुरू हो जाएगी।श्रद्धालुओं का  जो काफिला कुंभ में दिखाई दिया ,ऐसा ही कमोबेश चार धाम यात्रा में नजर आने की आशा है ।कुंभ के सफल आयोजन की जिम्मेदारी जहां उत्तर प्रदेश सरकार और वहां के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की थी।ऐसी ही जिम्मेदारी चार धाम यात्रा में उत्तरांचल की सरकार और यहां के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की होगी।पुष्कर सिंह धामी इस श्रद्धालुओं के रेले को किस तरह नियंत्रित करते हैं। इस यात्रा

की किस तरह तैयारी करते है। इसकी योग्यता उन्हें प्रदर्शित करने का  अवसर आ रहा है। हालाकि उत्तरांचल में भाजपा की सरकार है।केंद्र उन्हें इस आयोजन में पूरी मदद करेगा ,हर संभव मदद करेगा, किंतु श्रद्धालुओं के रेले को तो उत्तरांचल सरकार को ही संभालना होगा।26 फरवरी को महाकुंभ का अंतिम स्नान था। शिवरात्रि तक 66 करोड 21 लाख श्रद्धालु स्नान कर चुके। अभी ये चलेगा।एक तरह से फरवरी के बाद भी कुछ समय ये चलेगा। आयोजन की समाप्ति तक एक अनुमान के अनुसार कुंभ स्नान करने वालों की संख्या 70 करोड़ के आंकड़े को पार कर जाएगी।

देश में दशकों के बाद सनातन  ने करवट ली है । वह अपने आस्था स्थलों की ओर बेतहाशा दौड़ रहा है।राम मंदिर के निर्मित होते ही सनातन का ऐसा उदय हुआ जैसा कभी 1000 वर्ष पहले हुआ करता होगा । कुंभ आने का प्रचार पहली बार भारत से बाहर निकल दुनिया के तमाम देशों के टीवी चैनल्स तक पंहुच गया । अनेक देशों की सरकारों को निमंत्रण पत्र देने भारत के राजदूत गए ।परिणाम स्वरूप60 करोड 21 लाख  श्रद्धालु शिवरात्रि तक कुंभ स्नान चुके हैं । काशी –अयोध्या− चित्रकूट  में जगह खाली नहीं थी । लोगों का जिस तरह प्रयागराज जाना लगातार चल रहा है उसे देखते हुए साफ हो जाता है कि कुंभ समापन तक  70 करोड़ श्रद्धालु संगम की डुबकी लगा चुके होंगे । इस रिकॉर्ड की  मिसाल पूरी दुनिया में कभी नहीं मिलेगी।

 ये महाकुंभ मार्च के प्रारंभ में  समाप्त हो जाएगा।इसके बाद शुरू होगी चारधाम यात्रा।चार धाम यात्रा के दो धाम   यमुनोत्री और गंगोत्री के पवित्र द्वार तीर्थयात्रियों के लिए अक्षय तृतीया के पवित्र दिन अर्थात 30 अप्रेल को खुलेंगे।यमुनोत्री और गंगोत्री के खुलने के कुछ ही दिनों बादमई के तीसरे या चौथे सप्ताह से अन्य दो मंदिरकेदारनाथ और बद्रीनाथ तीर्थयात्रियों से भर जाएँगे। जबकिश्रद्धालु विजय दशमी के शुभ दिन बद्रीनाथ धाम को विदा करते हैंउसके बाद दीपों के त्योहार दिवाली पर गंगोत्री धाम को बंद कर दिया जाता है और केदारनाथ और यमुनोत्री धाम एक साथ यम द्वितीया/भाई दूज पर बंद कर दिए जाते हैं।

चूंकि चारधाम यात्रा घड़ी की सुई की दिशा में चलती हैइसलिए पवित्र यात्रा यमुनोत्री से शुरू होती है। उसके बाद क्रमशः गंगोत्री और केदारनाथ से गुजरते हुए चार धाम की पवित्र यात्रा बद्रीनाथ पंहुचती है।

 इसमें को शक नही कि कुंभ यात्रियों का ये रेला, सनातन धर्म के श्रद्धालु दो माह मार्च और अप्रेल आराम करके अब चार धाम  यात्रा की ओर निकलेंगे। उत्तराखंड वासियों के लिए अतिथि भगवान होता है लेकिन यहां  ये कुम्भ जैसी भीड़ आई को कैसे संभालेगा, ये समय बताएगा।  से उत्तरांचल के बडी चुनौती होगा। श्रद्धालुओं को मुसीबत झेलनी पड़ सकती है। आज भी गर्मी के मौसम में कुछ साल से पहाड़ पूरी तरह पैक हो जाते हैं। लोगों को यहां न होटल में जगह मिलती है, न वाहन पार्किग को स्थान। यहां का भूगोलमौसम और इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी कई मोर्चे पर चुनौती पेश करती है। 2013 की केदारनाथ की दारुण आपदा को दुनिया  देख −सुन चुकी हैं।इस बार उत्तराखंड सरकार और शासन को भी अतिरिक्त सतर्कता बरतन होगी. चारधाम की यात्रा सबके लिए सुरक्षित और सुखद रहे,ये सरकार की जिम्मेदारी और भीड़ प्रबंधन पर निर्भेर करता है।

राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह से शुरू हुआ कुंभ से  उपजा  सनातन का जोश और आस्था आजकल हिंदू समाज में हिलोरे ले रही है।कुंभ  यात्रा के बावजूद  इस बार शिवरात्रि पर कांवड़ियों की संख्या पर प्रभाव नहीं पड़ा। कुछ ज्यादा ही रहे। कावंड लाने वालों में इस बार महिलाएं और युवती भी ज्यादा नजर आईं । कांवड़ सेवा शिविर  भी  पहले से काफी ज्यादा नजर आए।कांवड यात्रा के प्रत्येक सौ कदम पर अबकि बार शिविर लगे थे।  उनमें स्त्री −पुरूष मिलकर  सेवा कर रहे थे। कांवड यात्रा के मार्ग पर लोग कारों में फल और बिसलरी की पानी की बोलते भरे खड़े थे। वे आने वाले कांवड़ियों को फल और पानी की बोतल बांट रहे थे। लेखक का जनपद हरिद्वार से सटा है। यहां डाक कांवड़ और कलश की बंहगी में जल लाने का प्रचलन नही है, किंतु  इस बार डाक कांवड काफी संख्या में  दिखाई दी। कुंभ यात्रा और कावंड यात्रा का यह   सनातन का रेला आने वाली चार धाम यात्रा में भी   दीखने की पूरी उम्मीद है।  

उत्तरांचल सरकार  को देखना  है कि वह आने वाले चार धाम यात्रा के श्रद्धालुओं को कैसे संभालती है। अभी  उसके पास यात्रा की तैयारी के लिए दो माह का समय है। मेरठ−पोड़ी नेशनल हाई −वे को फोर  लेन करने का काम जारी है।उम्मीद है कि यात्रा की शुरूआत हरिद्वार और ऋषिकेश से कर उसकी वापसी पौड़ी मार्ग से होगी।ऐसा है तो  उसे इस मार्ग का तैयार कराने के लिए केंद्र को अभी से दबाव देना होगा।

राम मंदिर पारण प्रतिष्ठा के बाद देशवासी जिस तरह अपने तीर्थों की ओर दौड़ रहे हैं उम्मीद है ऐसे ही श्रद्धालु चार धाम यात्रा में उमड़ेंगे। वे  चार धाम यात्रा के लिए सरकारी साधन  बस ,ट्रेन और  विमानों से आएंगे तो भारी तादाद में श्रद्धालु अपने वाहन और टैक्सियों से आएंगे।इन वाहनों कार, टैक्सियों और बसों को उत्तरांचल कैसे संभालेगा,  उसे देखना है।  प्रयागराज से तो इसलिए सब कुछ हो गया कि  वहां आयोजन प्लेन में था। उत्तरांचल में तो  सब कुछ पहाड़ों में है। वहां तो पार्किग भी प्राय सड़क किनारे ही होती है।इस सब का प्रबंधं कैसे हो,  इसकी व्यवस्था अभी से बनानी होगी। 

दरअस्ल पिछले कुछ सालों देश में संपन्नता  बढ़ी है।अब पंजाब,  हरियाणा और दिल्ली एनसीआर के युवक रविवार और शनिवार का अवकाश देख शुक्रवार की शाम पिकनिक के लिए पहाड़ की ओर निकल जाते हैं।इसलिए पिछले कुछ साल में इन अवकाश के दिनों विशेषकर गर्मियों के मौसम  में उत्तरांचल के होटल पूरी तरह भरे होतें हैं। सड़कों पर वाहनों का रेला होता है। पहाडों के होटल भरे होने और सड़कें पर जाम की खबर अखबारों की सुर्खियां  बनती रहती हैं। ये ही गर्मी का मौसम चार धाम यात्रा का है।ऐसे में उत्तराचल सरकार को प्रयास करना होगा कि ये सैलानी चार धाम यात्रा के स्थल गढ़वाल न आए।उन्हें कुमायूं और अन्य पर्वतीय प्रदेशों की और भेजना होगा। इसके लिए अभी से प्रचार करना  होगा। जनता को जागरूक करना होगा और माहौल बनाना  होगा। 

अभी चार धाम यात्रा में दो माह का समय है। इसी समय में उत्तरांचल सरकार को तैयारी करनी है।भीड़ नियंत्रण का प्लान बनाना है। यात्रा के श्रद्धालु  और उनके वाहन के पार्किग की अभी से प्लानिंग करनी होगी। ये दो माह उसके लिए  युद्धस्तर पर कार्य करने और व्यवस्था बनाने के लिए हैं।  कुंभ यात्री के दौरान दिल्ली में हुए हादसे से रेलवे को सीख लेनी होगी।उसे भी बड़ी प्लानिंग करनी होगी।

अशोक मधुप

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

Sunday, March 2, 2025

एनएच भी बनाइए, पेड़ भी बचाइए

 
अशोक मधुप
वरिष्ठ पत्रकार
केंद्र में भाजपा सरकार आने के बाद  देश में नेशनल हाई−वे  और एक्सप्रेस वे का निर्माण बड़ी तेजी के साथ शुरू हुआ।यह कार्य अनवरत जारी है। 2014-15 में जब केंद्र में भाजपा की सरकार बनी तो देश में कुल 97,830 किमी लंबे राष्ट्रीय राजमार्ग थे। मार्च 2023 तक देश भर में अलग-अलग 145,155 किमी लंबे राजमार्ग हो चुके थे। ये कार्य निरंतर जारी है।राजमार्ग के साथ ही तेजी से जगह जगह स्टेट हाई वे और जिला मार्ग भी बन रहे हैं। इन मार्ग के  बनाने के लिए भारी संख्या  में सड़क के किनारे के पेड़ कट रहे हैं।कटने वालों पेड़ के  मुकाबले लगने वाले  वृक्षों की संख्या कम है।  सरकारी आंकड़े हैं कि लगने वाले वृक्षों लगभग 24 प्रतिशत मर जाते हैं।  ऐसे में आज जरूरत है कि किसी भी तरह का मार्ग बनाया जाए उसके किनारे के बड़े और पुरान पेड़ न काटें जांए  ।उन्हें दूसरी जगह शिफ्ट कर दिया जाए ।
 लोक सभा में 22 जुलाई 2019 को दी गयी जानकारी में बताया गया था कि 2014 से 2019 के पांच साल के अंतराल में 1.09 करोड़ पेड़ काटने की अनुमति दी गई।सबसे ज्यादा अनुमति 2018 - 19 में 2691028 पेड़ काटने की दी गई। यह संख्या तो अनुमति लेकर काटे गए पेड़ों की है। मानना है कि इससे भी कई गुना पेड़ प्रति वर्ष बिना अनुमति लिए कट जाते हैं। ये काम उन अधिकारियों से मिलकर होता है, जो पेड़ों के कटान रोकने के लिए जिम्मेदार है। 13 दिसंबर 2021 को संसद में पेश किए गए एक लिखित जवाब के मुताबिक वित्त वर्ष 2016-17 से 2020-21 के बीच देश भर में वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 के तहत जितने पौधे लगाए गए थे, उसमें से 4.84 करोड़ पौधे खत्म हो गए.
उन्होंने दावा किया कि इन पांच वर्षों में कुल 20.81 करोड़ पौधे लगाए गए ।इसमें से 15.96 करोड़ पौधों को ही बचाया जा सका है। इस आधार पर यदि राष्ट्रीय औसत देखें तो प्रतिपूरक वनीकरण के तहत वन कटाई के बदले जितने पौधे लगाए जा रहे हैं, उसमें से 24 फीसदी पौधे तमाम कारणों से खत्म हो जाते हैं। एक पेड़ की कीमत  जानने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित कमेटी की  रिपोर्ट के मुताबिक, किसी भी एक पेड़ की कीमत 74 हजार 500 रुपये प्रति सालाना हो सकती है । हर हर साल बीतने के साथ ही उसकी कीमत में ये राशि जुड़ जाती है।इस एक पेड़ की कीमत से हम अनुमान लाग सकते है कि प्रतिवर्ष लाखों पेड़ काट कर देश की कितनी बड़ी संपदा का हम दौहन कर रहे हैं।
व‌िकास के लिए जहां  पेड़ों का कटना जरूरी है वहीं समय की जरूरत कुछ और है । वनों का तेजी के साथ दोहन होने से पर्यावरण बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। जलवायु  बदल रही है।सासों पर संकट बढ़ रहा है।पोल्यूशन बढ़ने के कारण आक्सीजन मिलना दुर्लभ होता जा रहा है।इसी से महानगरों में आदमी की आम आयू कम हो रही है।इसीलिए आज जरूरी हो गयाहै कि विकास के लिए पेड़ों को न काटा जाए।इन पेड़ों को काटने की जगह यदि इन्हें दूसरी खाली जगह पर ले जाकर लगाया जाए तो समस्या का निदान हो सकता है। कुछ जगह पर यह कार्य हुआ भी है। गाजियाबाद- दिल्ली  ऐलिवेटेड  रोड को बनाते समय 64 पेड़ उठाकर दूसरी जगह लगाए गए। उत्तराचंल में भी कईं साल पहले यह कार्य हुआ।इसके लिए हम यह कर सकतें हैं कि छोटे पेड़ काट दिए जाएं  किंतु बड़े पेड़ दूसरी जगह लगा दिए जाएं। पेड़ का लगाना बहुत सरल है। उसे देखरेख करना बड़ा करना बहुत ही कठिन है।
पेड़ों के दोहन में सरकारी नीति भी जिम्मेदार है। नियम है कि पेड़ के काटने के आवेदन के साथ -सा‌थ यह वायदा कराया जाता है कि आज कटे एक पेड़ की जगह दो पेड़ लगाएंगे । प्रति पेड़ काटने के लिए वन विभाग को दो सौ रुपया प्रति पेड़ सुरक्षा धन जमा करना होता है। पेड़ लगाकर वन अधिकारी को आप दिखा देंगे कि पेड़ लगा दिए तो सुरक्षा धन वापस हो जाएगा। आज के समय में दो सौ रुपये कोई मूल्य नहीं रखता । इसलिए कोई पेड़ लगाता नहीं। वन अधिकारी ये दो सौ रुपया सुरक्षा राशि जब्त कर लेते हैं। इस राशि से विभाग बरसात में वृक्षारोपण करता है। पेड़ लगवाने हैं तो हमें यह दो सौ की सुरक्षा राशि बढ़ाकर कम से कम पांच हजार करनी होगी। यह भी आदेश करना होगा कि दस साल से बड़े पेड़ कटेंगे नहीं। दूसरी जगह स्थानांतरित कर दिए जाएंगे।
एक बात और अवैध रुप से  पेड़ कटान  का दंड पांच हजार रुपया है। न पकड़े गए तो कुछ भी नहीं। पकड़े जाने पर वन अधिकारी खेल कर लेते हैँ। कटते सौ पेड़ हैं दिखाते दस है।इसी तरह से कम पेड़ की अनुमति लेकर ज्यादा पेड़ काटे जाने का प्रायः चलन है।किसान को  जरूरत के लिए अपनी भूमि से वृक्ष काटने की अनुमति हो किंतु अवैध रूप से पेड़ काटने पर एक पेड़ पर कम से कम 50 हजार रुपया जुर्माना और छह माह की सजा का प्राव‌िधान होना चाहिए।कोई भी सड़क या उद्योग का प्रोजेक्ट पास करने से पहले पूछा जाना चाहिए कितने पेड़ हैं?   दस साल से ज्यादा आयु के पेड़ की संख्या और उससे बड़े इन पेड़ों को किस जगह लगाया जाएगा इस योजना और बजट की जानकारी भी दें।  ऐसा करने  से हमको ज्यादा पेड़ नहीं लगाने पड़ेंगे। हमारी  भूमि भी  हरी  भरी रहेगी।
पर्यावरण के संरक्षण के लिए काम कर रहे जानकार बताते हैं कि पौधारोपण के नाम पर आमतौर पर सजावटी और विदेशी पौधे रोप दिए जाते हैं जो कम समय में बड़ा आकार ले लेते हैं लेकिन वे किसी भी दृष्टि से पर्यावरण के लिए लाभकारी नहीं होते। इस बात की निगरानी होनी चाहिए और साथ ही जिम्मेदारी भी तय होनी चाहिए कि काटे गए पेड़ों के स्थान पर ईमानदारी से पौधारोपण कर हरियाली को बरक़रार रखने की कवायद हो।पेड़ फलदार हों या परम्परागत भारतीय पेड़ लगे।पीपल ,वटवृक्ष,नीम,पिलखन,  साल, शीशम ,जामुन और आम जैसे वृक्ष प्रमुखता से लगाए जाएं।
अशोक मधुप
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)