Wednesday, August 28, 2024

आरक्षण खत्म करने की बात कौन करेगा?

आरक्षण खत्म करने की बात कौन करेगा?

अशोक मधुप

वरिष्ठ  पत्रकार 

दलित और पिछड़े युवाओं के उत्थान के लिए लाया गया  आरक्षण अब सत्ता में पहुंचने माध्यम बनता जा रहा है। अलग −अलग राज्य में राजनैतिक दल जहां आरक्षण को  अपने  हिसाब से अदल − बदल रहे हैं, वही प्राइवेट सैक्टर में भी आरक्षण  लागू करने की कोशिश हो  रही है। कुछ राज्यों ने अपने यहां ये आरक्षण लागू किया पर वहां के हाईकोर्ट ने उसे  अवैध बताते  हुए रोक लगा दी, पर ये कोशिश  जगह –जगह जारी है। 

सर्वोच्च न्यायालय की सात न्यायधीश की संविधान पीठ आरक्षण में क्रीमीलेयर लागू करने की बात की तो  विपक्ष ने राजनैतिक लाभ उठाने के लिए इसका विरोध शुरू कर दिया। हालाकि प्रधानमंत्र नरेंद्र मोदी आश्वस्त कर चुके हैं कि आरक्षण में क्रीमीलेयर लागू नही होगा ,इसके बावजूद आरक्षण  समर्थक राजनैतिक दलों ने इसके विरूद्ध  आंदोलनरत हैं। अभी वे भारत बंद का आह्वान कर ही चुके हैं। इससे  पहले  कर्नाटक में प्राइवेट नौकरी में स्थानीय के लिए शत प्रतिशत आरक्षण को लागू करने पर खड़ा  हो गया। हालाकि प्रदेश कैबनेट में पांस किया गया ये कानून विरोध को देखते हुए ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है, पर खत्म नहीं किया गया। मुख्यमंत्री ने कहा है कि अगली केबनेट की बैठक में इसपर फिर विचार होगा।   

 हाल के लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण के आते –आते प्रचार आरक्षण पर आकर सिमट गया। भाजपा नेता  अपने भाषणों में दावा कर रहे है कि हम देश में मुस्लिम आरक्षण लागू नही होने देंगे।खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी सभाओं में मुस्लिम आरक्षण पर चिंता जाहिर कर   रहे हैं। वह कह रहे हैं कि सत्ता में आते ही इंडिया गठबंधन  दलित और पिछडों का आरक्षण काटकर  मुस्लिमों को दे देगा।वे देश  का विभाजन करवा देंगे।इस पर कुछ बड़े नेता तो  चुप्पी साधे है किंतु समाजवादी पार्टी के सांसद एसटी हसन ने एक बयान में कहा है कि इंडिया गठबधंन के सत्ता में आते ही संविधान में संशोधन कर मुस्लिमों को  सरकारी सेवाओं में आरक्षण  दिया जाएगा। 

देश को आजाद हुए 75 साल से ज्यादा हो गए।आजादी के बाद दलित समाज को विकास की धारा में शामिल करने के लिए  दस साल के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई थी।आज ये आरक्षण राजनेताओं को सत्ता में पंहुचने का  माध़्यम नजर आने लगा है,  वे इसे बढ़ाने की बात कर रहे हैं।खत्म करने की नहीं। किसी को यह सोचने की फुरसत नही कि आरक्षण की मार से बचने के लिए देश के प्रतिभाशाली युवा आज विदेशों में जाकर शिक्षा ले रहे है। शिक्षा पूरी कर वहीं नौकरी या व्यवसाय  कर चुने गए देश के विकास में योगदान कर रहे हैं।भारत के बाहरर जाकर बसी भारत की मेधा से प्रभावित  होते देश के विकास पर किसी को सोचने का समय नहीं ।

प्राइवेट सेक्टर की नौकरियों में आरक्षण को लेकर कर्नाटक सरकार ने यूटर्न ले लिया है। सरकार ने पहले सी और डी कैटेगरी की प्राइवेट नौकरियों में स्थानीय लोगों को आरक्षण देने की बात कही थी। फिलहाल, आरक्षण के उस फैसले पर रोक लगा दी गई है। कैबिनेट ने फैसला स्थगित कर दिया है। कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने प्राइवेट सेक्टर में कन्नड़ लोगों को 100 फीसदी आरक्षण देने को लेकर सोशल मीडिया एक्स पर पोस्ट की थी। अपनी इस पोस्ट में उन्होंने कहा, हम कन्नड़ समर्थक सरकार हैं।सरकार के इस फैसले का चौतरफा विरोध होने पर इस पर रोक लगा दी गई। सरकार का कहना है कि इस बिल पर वह पुनर्विचार करेगी. देश में यह पहला ऐसा मामला नहीं है। 

कर्नाटक से पहले प्राइवेट सेक्टर में स्थानीय लोगों को आरक्षण देने के लिए आंध्र प्रदेश और हरियाणा में कोशिश की गई थी. वहीं, मध्य प्रदेश में भी सरकार ने ऐसा ही कहा था, लेकिन यह कोशिश रंग नहीं ला पाई थी। 2019 में आंध्र प्रदेश में पहली बार ऐसा कोई कानून बना था जहां 75 प्रतिशत स्थानीय लोगों को प्राइवेट नौकरियों में आरक्षण देने की बात कही गई थी। पर हाईकोर्ट ने इसे असंवैधानिक बताते हुए रद्द कर दिया था। फिलहाल, ये मामला सुप्रीम कोर्ट में है।

महाराष्ट्र  में  2019 में शिवसेना-कांग्रेस और एनसीपी के गठबंधन की सरकार बनने के बाद प्राइवेट नौकरियों में स्थानीयों को 80 प्रतिशत  नौकरियां देने का प्रस्ताव लाया गया था। सरकार सरकार इसे विधानसभा में भी लाना चाहती थी। लेकिन इसे लाया नहीं गया।कर्नाटक में कई बार प्राइवेट जॉब में कन्नड़ों के लिए आरक्षण तय करने की कोशिश हो चुकी है। सिद्धारमैया सरकार में ये तीसरी बार है जब ऐसी कोशिश हो रही है। इससे पहले 2014 और 2017 में भी सरकार कोशिश कर चुकी है। वहीं अक्टूबर 2020 में येदियुरप्पा की अगुवाई में बीजेपी सरकार ने प्राइवेट नौकरियों में ग्रुप सी  और डी में 75  प्रतिशत  आरक्षण स्थानीयों को देने का ऐलान किया था। हालांकि, ये लागू नहीं हो सका था।

हरियाणा  में  2020 में तब की मनोहर लाल खट्टर की सरकार ने प्राइवेट नौकरियों में स्थानीयों को 75 प्रतिशत  आरक्षण देने के लिए कानून पास किया था। हाईकोर्ट ने पिछले साल नवंबर में इस कानून को रद्द कर दिया।झारखंड  में  दिसंबर 2023 में हेमंत सोरेन की सरकार ने सरकारी नौकरियों की ग्रुप तीन और चार  में स्थानीयों को 100 प्रतिशत  आरक्षण देने के मकसद से बिल पास किया था। ये बिल विधानसभा में पास हो गया था, लेकिन गवर्नर ने इसे लौटा दिया था।

आज के हालात का निष्कर्ष ये  है कि प्रत्येक दल आरक्षण की सीढ़ी से सत्ता में  पंहुचने के प्रयास में लगा है। उसे  उससे  वास्ता नही कि आरक्षण की जद में आने वाली प्रतिभांए इसे  लेकर क्या  सोचती हैं?

2012  में केंद्र सरकार प्रमोशन में आरक्षण का बिल ला चुकी है। संसद में बिल रखे जाने के दौरान एक सांसद द्वारा  मंत्री से छीन कर बिल की प्रति फाड़ दिए जाने के कारण ये अटक गया। नही तो प्रमोशन में भी आरक्षण लागे हो चुका होता।     

अब क्रीमीलेयर तै करने के बारे में सर्वोच्च न्यायालय की संविधान  पीठ के आंदेश को वे ही ठेंगा दिखाने को तैयार हैं जो अब तक इससे  लाभ  लेते  रहे हैं। आरक्षण का लाभ  उठा चुके उच्च स्थिति में  पंहुचने वाले ही विकास की धारा से वंचित अपनी जाति  वालों के  लिए आरक्षण का लाभ छोड़ने को तैयार नही हैं।

आज हालत यह है कि सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ आदेश करे या कोई  अन्य  मांग हो, आरक्षण को कम करने को कोई  राजनैतिक  दल छोड़ने को तैयार नही। कोई  इसके खत्म करने की बात नही कर रहा।सब बढ़ाने की बात कर रहे हैं।आरक्षण के दायरे से बाहर की जाति और उसे युवा ये सब देख रहे हैं। अभी हाल में यूपीएससी में लेटरल एंट्री को लेकर हुए बवाल ने बाद सरकार ने 45 पदों पर लेटरल एंट्री का प्रस्ताव वापस लेना पड़ा। विपक्ष का कहना था कि सरकार आरक्षण खत्म करने की कोशिश कर रही है। विपक्ष आरोप  लगा रहा है, सरकार अपनी छवि बचाने को बार −बार पीछे हटती जा रही है। ऐसे में आरक्षण  से बाहर रह रही युवा पीढ़ी के भविष्य की किसी को चिंता  नहीं।आरक्षण समर्थक कोई नेता और राजनैतिक दल ये नही सोच रहा कि ये आरक्षण से बाहर रहे युवा   उनके बारे में क्या विचार और सोच  बना रहे हैं?  


Tuesday, August 6, 2024

बांग्लादेश के हालात से बहुत संतर्क रहना होगा

 

अशोक मधुप

 वरिष्ठ पत्रकार

 

बांग्लादेश में महीनों से सुलग रही आरक्षण और सरकार विरोधी चिंगारी सोमवार को भीषण आग के रूप में फूटी। 300 लोगों की मौत के बाद सेना भी उग्र भीड़ को संभाल नहीं पाई। नतीजतन करीब डेढ़ दशक से बांग्लादेश की सत्ता पर काबिज प्रधानमंत्री शेख हसीना को जान बचाकर देश से भागना पड़ा है।  शेख हसीना भागकर फिलहाल भारत आई हैं। सूत्रों का कहना है कि शेख हसीना लंदन जाने की तैयारी कर रही हैं। शेख हसीना ने इंग्लैंड की सरकार से शरण मांगी है।बांग्ला देश में हिंसक प्रदर्शन जारी है। अब प्रदर्शनकारियों ने देश के चीफ ऑफ जस्टिस के घर में घुसकर तोड़-फोड़ की है।  प्रदर्शनकारियों ने घर में मौजूद कारफर्नीचर के साथ घर का सारा समान लूट ले गए हैं। प्रदर्शनकारियों ने सोमवार को ढाका में इंडिया कल्चर सेंटर पर हमला बोला। साथ ही काली व इस्कॉन समेत देशभर में कम से कम चार मंदिरों में भी तोड़फोड़ की गई है। बांग्ला देश के अल्प संख्यक डरे  और सहमें हैं। वहां क्या हालात बनेंगे? वहां  के अल्पसंख्यकों की सुरक्षा कैसे होगी , इस पर भारत को नजर रखनी होगी। ये भी  देखना  है कि सरकार कैसी बनता है?  उसका भारत के प्रति नजरिया कैसा होगा? नई  सरकार कहीं इस्लामिक कट्टरवाद को बढ़ावा  तो नही देगी।उसका रूख  पाकिस्तान और चीन संमर्थक तो  नही होगा ? भारत को  अपने देश की सीमा को पूरी तरह बंद रखना  होगा, ताकि वहां के हालात से डरे नागरिक अपने भारत में न आ सकें।

1971 में बांग्लादेश को पाकिस्तान से आजादी दिलाने की लड़ाई में शामिल क्रांतिकारियों के परिवारों को सरकारी नौकरियों में दिए जा रहे आरक्षण को खत्म करने की मांग के साथ पिछले महीने विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ। बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण पर पहले ही अंतरिम रोक लगा दी थी। ऐसे में सवाल उठता है कि प्रदर्शनकारी आखिर फिर से इतने हिंसक होकर सड़कों पर क्यों उतर आए। असल में हिंसा की यह नई लहर तब शुरू हुई जब प्रदर्शनकारियों ने असहयोग का आह्वान किया इसमें लोगों से कर या बिजली बिल का भुगतान न करने और रविवार को काम पर न आने का आग्रह किया गया। सोमवार को जब कार्यालयबैंक और कारखाने खुलेतो प्रदर्शनकारियों ने लोगों को काम पर जाने से रोकना शुरू कर दिया सेना ने प्रदर्शनकारियों से निपटने के लिए गोलियां चलानी शुरू कर दी। प्रदर्शनकारियों ने एक दिन पहले लगाए गए कर्फ्यू की परवाह किए बिना ढाका में प्रधानमंत्री आवास पर धावा बोल दिया।  प्रदर्शनकारियों ने ढाका के शाहबाग इलाके में स्थित एक प्रमुख सार्वजनिक अस्पताल बंगबंधु शेख मुजीब मेडिकल यूनिवर्सिटी पर हमला किया है। प्रदर्शनकारियों ने जगह-जगह सत्तारूढ़ पार्टी के कार्यालयों व वाहनों में भी आग लगा दी।

सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण पर रोक के बावजूद   प्रदर्शनकारी  प्रधानमंत्री शेख हसीना इस्तीफे पर अड़े रहे। 14 जुलाई को बतौर प्रधानमंत्री शेख हसीना ने कहा थास्वतंत्रता सेनानियों के पोते-पोतियों को आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा। इस पर  प्रदर्शनकारियों ने कहा कि क्या आरक्षण का लाभ रजाकारों के पोते-पोतियों को मिलेगा। प्रदर्शनकारी छात्रों ने इस बयान के बाद, ‘तुई केअमी के रजाकाररजाकार’ के नारे लगाने शुरू कर दिए और हिंसा ज्यादा भड़क गई।


बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान पाकिस्तानी सेना द्वारा गठित रजाकार क्रूर अर्धसैनिक बल था। रजाकारों ने मुक्ति संग्राम में शामिल स्वतंत्रता सेनानियों और आम लोगों के खिलाफ अत्याचार किया। आज भी यह शब्द वहां अपमानजनक माना जाता है। इसका इस्तेमाल देशद्रोहियों और अत्याचारियों के लिए किया जाता है।

बांग्लादेश में उथल-पुथल व तख्तापलट का इतिहास 1975 से शुरू होता है।हसीना के पिता और देश के पहले  प्रधानमंत्री शेख मुजीबुर रहमान की उनके परिवार के ज्यादातर सदस्यों की हत्या कर दी गई। जनरल जियाउर रहमान ने सत्ता पर कब्जा किया।1981 गेस्ट हाउस में घुसकर विद्रोहियों ने जियाउर रहमान की हत्या की। हालांकिसेना का बड़ा तबका वफादार होने से तख्तापलट नाकाम रहा।1982 रहमान के उत्तराधिकारी अब्दुस सत्तार को हुसैन मुहम्मद इरशाद के नेतृत्व में सत्ता से बेदखल कर दिया गया। इरशाद राष्ट्रपति बन गए। 2007 सेना प्रमुख ने एक कार्यवाहक सरकार का समर्थन कियाजो 2009 तक सत्ता पर काबिज रही।2009 अर्धसैनिक बलों का विद्रोह.. में 70 लोगों की हत्याइनमें से अधिकांश सैन्य अधिकारी थे।2012 सेना ने कहाशरिया या इस्लामी कानून से प्रेरित तख्तापलट के प्रयास को विफल कर दिया है।

स्पष्टतौर पर बांग्लादेश में सुलग रही हिंसा के केंद्र में आरक्षण है। बांग्लादेश की जनसंख्या17 करोड़ है और देश में लगभग 3.2 करोड़ युवा बेरोजगार हैं।1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में शामिल लोगों के वंशजों को मिल रहे आरक्षण को खत्म करने के लिए छात्र मांग कर रहे हैं। इसी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में शामिल रहे लोगों के वंशजों को 30 फीसदी आरक्षण दिया जाता है। 10 फीसदी आरक्षण महिलाओं के लिए भी है।
 
अल्पसंख्यकों को धर्म के आधार पर पांच प्रतिशत व विकलांगों को एक फीसदी आरक्षण का प्रावधान है। पिछड़े जिलों में रहने वालों को 10 प्रतिशत  आरक्षण मिलता है।बांग्लादेश में बेरोजगारी से परेशान युवक इस आरक्षण का विरोध कर रहे हैं।

 बांग्लादेश के सेना प्रमुख जनरल वकारहसीना के रिश्ते में बहनोई हैं।सेना प्रमुख जनरल वकार वहां  सबसे अहम चेहरा बनकर सामने आए हैं। उन्होंने ही शेख हसीना के देश छोड़कर जाने और इस्तीफे का एलान किया। 20 दिसंबर, 1985 को बांग्लादेश की सेना में शामिल हुए जनरल वकार की छवि एक बेहद अनुशासित अधिकारी की रही है। जानकारों का मानना है कि हसीना का बांग्लादेश छोड़कर जाना और वकार का कमान संभालना एक सोचा-समझा निर्णय है। शेख हसीना के देश छोडने के बाद देश के सेना प्रमुख ने कहा है कि वो सभी से बातचीत करके देश में अंतरिम सरकार बनवाएंगे!बांग्लादेश में तख्तापलट से पहले सत्तारूढ़ रही आवामी लीग पार्टी ने आरोप लगाया है कि देशव्यापी हिंसक प्रदर्शन के पीछे बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपीका हाथ है। आवामी लीग के मुताबिक आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी प्रधानमंत्री शेख हसीना के इस्तीफे की मांग दिखाती है कि विरोध-प्रदर्शनों के पीछे असल में छात्र नहींदेश के मुख्य विपक्षी राजनीतिक दल- बीएनपी और प्रतिबंधित संगठन- जमात-ए-इस्लामी की रणनीति है। इनका मकसद किसी भी तरह से देश की सत्ता हासिल करना है।

बांग्लादेश में देशव्यापी आंदोलन के कारण राजनीतिक अस्थिरता का माहौल है। देश के राष्ट्रपति ने कहा है कि संसद भंग कर अंतरिम सरकार बनाई जाएगी। राष्ट्रपति ने   विपक्षी नेता खालिदा जिया को रिहा करने का आदेश दिया है। खालिदा जिया विपक्षी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) की प्रमुख हैं और 1991-96 और 2001-06 के दौरान दो बार प्रधानमंत्री रह चुकी हैं।राष्ट्रपति बोले- खालिदा जिया की रिहाई के बाद अंतरिम सरकार का गठन  होगा।

बांग्लादेश के प्रदर्शनकारी नेताओं ने सोमवार को छात्रों से यह सुनिश्चित करने का आह्वान किया कि प्रधानमंत्री शेख हसीना के पद से हटने के बाद देश में पैदा हुए हालात में किसी को भी लूटने का मौका न मिलेऔर उनसे अपनी मांगें होने तक शांतिपूर्ण तरीके से विरोध करने का आग्रह किया।

बांग्लादेश में उथल-पुथल के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में सुरक्षा पर कैबिनेट समिति की बैठक हुई है। जिसमें विदेश मंत्री एस. जयशंकर प्रधानमंत्री मोदी के पड़ोसी देश के हालात पर जानकारी दी है।देखना  यह है कि बांग्ला देश में अब किसकी सरकार  बनती है।उसका भारत के प्रति रूख कैसा  होता  है?नई  सरकार  भारत समर्थक होगी या कट्टर इस्लाम का रास्ता स्वीकार कर पाकिस्तान को अपना आका मानेगी।हालाकि बांग्लादेश के सेना प्रमुख जनरल वकार शेख  हसीना के नजदीकी और रिश्ते में बहनोई लगतें हैं  ।उनसे उम्मीद है कि बांग्ला देश शेख  हसीना के पद चिंहों  पर चलेगा, किंतु वहां के राष्ट्रपति का रूख अभी  देखना होगा।उसी रूख के आधार पर भारत को  अपनी नई नीति बनानी होगी।

अशोक मधुप

( लेखक  वरिष्ठ पत्रकार हैं)