Monday, July 29, 2024

पुस्तक समीक्षा नॉवल नौलखी कोठी हिंदी अनुवाद


अनुवादक : डा. रख्शंदा रूही मेहदी

समीक्षा : अशोक मधुप

 

अली अकबर नातिक़ का नौलखी कोठी विभाजन -पूर्व पंजाब में उर्दू में लिखा गया  उपन्यास है। इसकी कहानी  विलियम के इर्द-गिर्द घूमती है। ये उपन्यास एक बीते  समय की  कहानी  है।जो पुरानी यादों से भरी हुई है।

 

56 अध्यायों और 581  पेज के इस उर्दू उपन्यास का अनुवाद प्रसिद्ध  उर्दू  लेखिका और कहानीकार डा. रख्शंदा रूही मेंहदी ने किया है।

कहानी पंजाब की  पृष्ठ भूमि पर है। यह ब्रिटिश भारत में शुरू होती है। विभाजन से पहले के वर्षों में चलती है और उन्नीस-अस्सी के दशक के आसपास समाप्त होती है। उपन्यास  हमें इस जगह की जीवंत संस्कृति से रूबरू कराता है। पूरा ग्रामीण पंजाब क्षेत्र के हमारे सामने चित्रित  हो उठता है।

नौलखी कोठी  में तीन कहानी एक साथ चलती हैं। विलियम इंग्लैंड से पढ़कर  आठ साल बाद भारत लौटता है। उसे जलालाबाद का सहायक आयुक्त नियुक्त किया जाता है।  विलियम रेगीस्तान बने जलालाबाद को हरा भराकरने की कोशिश में लगता है किंतु  पंजाब के गांवों में मुसलमानों और सिखों के बीच के झगड़े उसके कार्य में व्यवधान पैदा करते हैं।वह ब्रिटिश प्रशासकों की भूमिका के दायरे में  कानून और व्यवस्था बनाए रखने की कोशिश करता  है। पूर्वी पंजाब के जलालाबाद में सहायक आयुक्त के रूप में काम करने के दौरान  वह अपने दादा द्वारा बनवाए गए बंगलेनौलखी कोठी में बसने  का सपना देखता था। विलियम को कठोर आयुक्त हैली द्वारा चेतावनी दी जाती है कि स्थानीय लोगों के प्रति उसका व्यवहार और नरमी हिंदुस्तान में रहने वाले किसी भी ब्रिटिश अधिकारी के लिए अच्छी नहीं है। उनसे कहा गया कि वे शासक और शासित के बीच दूरी बनाए रखें तथा न्याय करते समय स्वयं को गलत करने वाले और अन्याय का शिकार हुए व्यक्ति से दूर रखें।

जलालाबाद में चार साल तक तैनात रहने के दौरान विलियम ने कई क्रांतिकारी कदम उठाए। उन्होंने इतनी लगन से काम किया कि वे इस इलाके की सूरत ही बदल देने में कामयाब हो गए। शिक्षा का स्तर पंजाब की सभी तहसीलों  से कहीं आगे निकल गया था । उन्होंने एक नई नहर और कई अन्य छोटी-छोटी धाराएँ भी बनवाईं। इसके परिणामस्वरूपतहसील में पानी की भरपूर आपूर्ति होने लगी और गेहूँचावल और मक्के की फ़सलें भरपूर मात्रा में पैदा होने लगीं।लोगों के चेहरों पर एक सामान्य खुशहाली दिखने लगी। कई उतार-चढ़ावों के बादबार-बार तबादलों के बाद और युद्ध छिड़ जाने के बादउन्हें एहसास हुआ कि एक बड़ी साज़िश चल रही थी जिसमें हिंदूमुसलमान और अंग्रेज़ सभी ने मिलकर उनके खिलाफ़ हाथ मिला लिया था। उपन्यास के अंत में अपनी पूर्व ब्रिटिश शान और शक्ति से वंचित होकर नौलखी कोठी में एकाकी जीवन जी रहा है।  उसकी पत्नी और बच्चे उसे छोड़कर इंग्लैंड वापस चले गए। लेकिन जल्द ही उसे उस जगह से भी निकाल दिया गया । वह पास की एक नहरी कोठी  में रहने  लयाऔर अंत में वह एक कंगाल और लावारिस की तरह मर गया।

विलियम गाँव की मस्जिद के मुख्य इमाम करामत अली को स्कूल में छोटे बच्चों को उर्दू− फारसी पढाने के लिए  40 रूपये  माहवार तन्खवाह पर मास्टर रख देता है। इससे  पहले कयायत  मुश्किल से अपना गुजाराकर पाता था।गाँव के गरीब लोग जो मुश्किल से अपना गुजारा कर पाते थेउन्हें वेतन नहीं दे पाते थेबल्कि उन्हें रोज़ाना रोटियाँ देते थे। धीरे− धीरे  मौलवी की किस्मत चमकती है। धीरे-धीरे उनका बेटा फ़ज़ल दीन एक परिपक्व और समझदार सरकारी बाबू बन जाता है  । गवर्नर हाउस में दो साल काम करने के बाद फ़ज़ल दीन के पास अपनी ज़मीन खरीदने और घर बनाने के लिए काफ़ी पैसे थे। विभाजन के बाद फ़ज़ल दीन का काम काफ़ी बढ़ गया और फ़र्जी संपत्ति के दस्तावेज़ तैयार करने के लिए पर्याप्त साधन होने के कारण वह भ्रष्टाचार में फंस गया और उसने काफ़ी धन इकट्ठा कर लिया।

 

कहानी में सबसे महत्वपूर्ण पहलू मुसलमानों और सिखों के बीच निरंतर दुश्मनी है।  शेर हैदर क्षेत्र का जमींदार थाउसे सरदार सौदा सिंह और उसके आदमियों ने सरे आम मार डाला शेर हैदर के बेटे गुलाम हैदर को उसकी प्रजा और रिश्तेदारों ने नया उत्तराधिकारी बनाया। दो प्रतिद्वंद्वी धार्मिक समूहों के बीच हुई कई घटनाओंलूटपाट और लड़ाई के बादउनकी किस्मत में उतार-चढ़ाव आते रहे जबकि आम ग्रामीण पीड़ित होते रहे। हत्या का आरोपी सिख नेता अभी भी आज़ाद था । गुलाम हैदर खुलेआम हथियारों के साथ घूमकर अपनी वीरता दिखाई।सिख नेता के साथ  उसके साथियों का भी कत्ल कर दिया। दस साल फरार रहा।इस दौरान फांसी की सजा हो गई किंतु मुस्लिम लीग के नेता क़ाईदे आजम जिन्ना की शिफारिश  ने उसकी फांसी ही माफ नही हुई,अपितु जब्त की गई  सारी संपत्ति उसे  वापिस मिल गई।

इस उपन्यास में लेखक  कथानक को पूरे उपन्यास में इतनी शानदार ढंग से पिरोया हैउसके साथ न्याय करना मुश्किल है। विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश शासकों के सामने आई समस्याएंभारत छोड़ो आंदोलन के साथ देश में बदलते समीकरणस्वतंत्र पाकिस्तान के लिए जिन्ना की नीतिमुस्लिम लीग की भूमिकाहिंदुस्तान छोड़कर अंग्रेजों का चुपचाप पलायनविभाजन का विचार जिसने चुपचाप आबादी को चीरना शुरू कर दिया थाविभाजन की आधिकारिक घोषणा के बाद शरणार्थियों का प्रवाहपलायन - इन सभी का भी कथा में विस्तृत उल्लेख है।

अली अकबर नातिक़ की अनूठी कथा शैली और डा. रख्शंदा रूही मेहदी का अनुवाद जो उर्दू कहानी के करीब रहता है और क्षेत्रीय बोली के साथ उर्दू के स्वाद को बनाए रखता है। उपन्यास सरल भाषा शैली में होने के बहतु ही रोचक और पठनीय है।पूरे उपन्यास में पात्रों और घटनाओं का बहुत विस्तृत विवरण पाठक पर एक शानदार दृश्य प्रभाव पैदा करता है। नातिक़ ने अध्यायों को इस तरह से जोड़कर कहानी के कुशलता से पिरोया है कि उपन्यास पढ़ते वे हमारी आँखों के सामने नजर आते हैं। उपन्यास की मोटाई को देखकर एक बार  डर लगता है किंतु जब पढ़ना शुरू  हो  जाता है  तो  पाठक उसे खत्म करके ही रूकता है। उपन्यास पाठक को पूरे समय  अपने  से जोड़े  रखता है और   उसे  कहीं बोर नही होने देता ।

 

शीर्षक: नौलखी कोठी (उर्दू उपन्यास)

 

लेखक: अली अकबर नातिक़

अनुवादक : डा. रख्शंदा रूही मेहदी

प्रकाशक : रेख्ता पब्लिकेशन नोयडाउत्तर प्रदेश

समीक्षक: अशोक मधुप

कोंचिंग सैंटर में हुई छात्रों की मौत का जिम्मेदार कौन?

 

 

कोंचिंग सैंटर में हुई छात्रों की मौत का जिम्मेदार कौन?

अशोक मधुप

 

 

दिल्ली के ओल्ड राजेंद्र नगर स्थित राव आईएएस स्टडी (कोचिंग )  सेन्टर के बेसमेंट में अचानक बारिश का पानी घुस जाने से चार घंटे से अधिक समय तक फंसे रहने से तीन छात्रों की मौत हो गई.घटना के समय बेसमेंट के पुस्तकालय में 30−35 छात्र थे. पानी आते देख बाकी निकल गए. तीन फंसे  रह गए ,उनकी मौत हो गई.कोचिंग सेंटर के स्वामी और कार्डिनेटर को गिरफ्तार कर लिया गया है. इससे  पहले मुकर्जी नगर  दिल्ली के एक  कोचिंग सेंटर में  (15 जून 2023 ) को आग लग गई. छात्रों को कोचिंग सेंटर की खिड़की से निकलकर जान बचानी पड़ी. इस हादसे में 60 छात्र घायल भी हुए. कोंचिंग सैंटर में हादसे होना , प्रतिभागियों का आत्महत्या करना आज आम है.घटना  होती है. जांच के आदेश  होते  हैं किंतु  होता कुछ नही।कोंचिंग सैंटर चलाने  वाले भारी प्रभावशाली है. दूसरे  हमारी व्यवस्था पूरी तरह भ्रष्टाचार में डूबी है. पैसे के सामने इंसान की मौत की फाइले कूड़े  में चली जाती हैं, फिर एक नया हादसा  होता  है.फिर जांच  होती है,फिर फाइल कूड़े में चली जाती है.

राजेंद्र नगर के कोचिंग सैंटर में  मृतक छात्रों की पहचान तानिया सोनी, श्रेया यादव (दोनों की उम्र 25 वर्ष) और नवीन डेल्विन (28) के रूप में की गई है. तानिया तेलंगाना और श्रेया उत्तर प्रदेश की थीं, जबकि नवीन केरल के निवासी थे. वे सभी सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे थे। शनिवार को कई छात्र कोचिंग सेंटर की बेसमेंट में बनी लाइब्रेरी में थे कि अचानक सैलाब सा आया और उसमें तीन छात्रों की तड़पकर मौत हो गई.बताया जाता है कि बेसमेंट की परमीशन स्टोर के लिए थी,लाइब्रेरी के लिए नही.फिर भी लाइब्रेरी चल रही थी.  दिल्ली पुलिस इस बात की जांच कर रही है कि पानी बेसमेंट तक कैसे पहुंचा, जिसका इस्तेमाल कोचिंग संस्थान लाइब्रेरी के तौर पर कर रहा था. प्रारंभिक जांच से पता चलता है कि बेसमेंट, जो जमीन से लगभग आठ फीट नीचे है, में एक लाइब्रेरी थी, जहां शनिवार शाम को कई छात्र मौजूद थे. सूत्रों के मुताबिक, भारी बारिश के बाद कोचिंग सेंटर का गेट बंद कर दिया गया . पानी को बिल्डिंग में प्रवेश करने से रोकने के लिए कोचिंग सेंटर के प्रवेश द्वार पर एक स्टील शेड लगाया गया है.पुलिस और अग्निशमन विभाग जांच कर रहे हैं कि बेसमेंट में पानी कैसे भरा .दिल्ली की मेयर शैली ओबेरॉय ने शहर के उन सभी कोचिंग सेंटरों के खिलाफ कार्रवाई का आदेश दिया जो इमारतों के बेसमेंट में चल रहे हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे कोचिंग सेंटर भवन निर्माण उपनियमों का उल्लंघन हैं और मानदंडों के अनुरूप नहीं हैं. बताया जाता  है कि नगर निगम की मिलीभगत से राजेंद्र नगर में 95 प्रतिशत कोचिंग बेसमेंट में चल रहे हैं.

 लगभग एक साल  पहले दिल्ली  हाईकोर्ट    ने मुखर्जी नगर स्थित एक कोचिंग सेंटर में 15 जून 2023  गुरुवार को लगी आग की घटना का शुक्रवार को खुद से संज्ञान लिया­. कोर्ट ने दिल्ली सरकार, दिल्ली फायर सर्विस डिपार्टमेंट, दिल्ली पुलिस और एमसीडी को नोटिस जारी कर उनसे जवाब मांगा है. कोर्ट ने फायर सर्विस डिपार्टमेंट को निर्देश दिया कि वो ऐसे सभी संस्थानों में आग से बचाव के इंतजामों (फायर सेफ्टी ऑडिट) और उनके फायर सेफ्टी सर्टिफिकेट की जांच करे. ये आदेश  दिल्ली  हाईकोर्ट ने 16 जून 2023 को दिए। जांच ये भी  होनी चाहिए कि कोर्ट के आदेश पर हुई जांच में क्या  हुआ? कहीं सब खानापूरी होकर ही तो  नही रह गई?  यदि उस समय सही से  जांच हो जाती। गलत रूप से चल रहे केंद्र बंद हो जाते तो  निश्चित रूप से ये हादसा नही होता।ये हादसा इस बात को चिल्ला− चिल्लाकर बता रहा है  कि ये जांच सही  नही हुई।

घटना  होती है. जांच के आदेश  होते हैं.ये ही आदेश  जांच अधिकारियों को   लूट का अधिकार दे देते हैं.इस आदेश के बाद जांच अधिकारी जाएंगे,  कोचिंग सैंटर में कमी निकालेंगे.नोटिस देंगे. अपना  सुविधा शुल्क वसूलेंगे और कुछ दिनों बाद सब फाइलों में  दबकर रह जाएगा. कुछ समय बाद फिर हादसा होगा, फिर जांच होंगी।फिर अधिकारियों को आपदा में अवसर मिलेंगे.फिर खेल होगा. सब ऐसे ही चलता रहेगा, जैसे चल रहा है। इस भ्रष्ट हो चुकी सरकारी मशीनरी के सुधरने की उम्मीद नहीं लगती।  कठोर अनुशासन लागू किये बिना  ये सुधरने वाली नहीं।जरूरत सरकारी तंत्र को सुधारने की है.
दरअस्ल मुकर्जी नगर
  हिंदी भाषी छात्रों और राजेंद्र नगर अंग्रेजी भाषी छात्रों  का सिविल सेवा की तैयारी करने के बड़े केंद्र  बन गया है।   यहां कई कोचिंग संस्थानों का घर है.हर वर्ष सिविल सर्विसेज की परीक्षा में सबसे ज्यादा अभ्यर्थी भी यहीं से चयनित होते हैं.
एक जानकारी के अनुसार यूपीएससी की सिविल सर्विसेज परीक्षा की तैयारी करने के लिए मुखर्जी नगर व आसपास के क्षेत्रों में प्रत्येक वर्ष करीब एक
 लाख छात्र तैयारियों के लिए पहुंचते है। मुखर्जी नगर इलाका अपने आप में मिनी भारत है। यही हालत राजेंद्र नगर की भी है. यहां हर वर्ष प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने के लिए उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, हरियाणा, कर्नाटक, उड़ीसा, पूर्वोत्तर राज्यों से भी छात्र पहुंचते हैं.मुखर्जी नगर और राजेंद्र नगर में में  यूपीएससी की सिविल सर्विसेज की तैयारी करने वाले महंगे से लेकर सस्ते कोचिंग भी मौजूद हैं. यही वजह है कि यहां पर आर्खिक रूप से कमजोर परिवार से आने वाले बच्चे भी अपनी तैयारी आसानी से कर लेते हैं.
मुखर्जी नगर और राजेंद्र नगर क रिहायशी इमारतों में व्यावसायिक गतिविधियां चलाने का गढ़ बन चुका है­­. बीते एक दशक में यहां
 कोचिंग सेंटरों की बाढ़ आ गई है. ज्यादातर घरों में या तो कोचिंग सेंटर चल रहे हैं या फिर लाइब्रेरी या पीजी बनाकर संपत्ति मालिक चांदी काट रहे हैं लेकिन नगर निगम को शुल्क देने में अब भी कतराते  हैं. इन संपत्तियों का व्यावसायिक उपयोग हो रहा है. ज्यादातर इमारतों को कोचिंग संस्थान में बदलने के लिए भवन उपनियमों का उल्लंघन किया गया है. तय मानकों को नजरअंदाज कर कमरों को हाल में तब्दील कर दिया गया है। इसके चलते कई इमारतें ढांचागत रूप से कमजोर भी हो गई हैं.
 यूपीएससी
, एसएससी आदि की तैयारी करने वाले छात्र कोचिंग संस्थान संचालकों की मनमानी के खिलाफ आवाज नहीं उठा पाते . इन्हें क्लास में भेड़-बकरियों की तरह ठूस कर  पढ़ाया जाता है. 25 मई  2019 को गुजरात के सूरत के एक कोचिंग में आग लगने से 22 छात्र की मौत  के बाद  गुजरात सरकार ने अग्नि सुरक्षा निरीक्षण किए जाने तक गुजराज सरकार ने राज्य के सभी निजी कोचिंग केंद्रों को बंद करने का आदेश दिया. सरकार ने स्कूलों, कॉलेज, कोचिंग सेंटरों, अस्पतालों, शॉपिंग मॉल और अन्य व्यावसायिक भवनों के अग्नि सुरक्षा निरीक्षण का भी आदेश दिया. दिल्ली अग्निशमन सेवा ने दिल्ली के सभी कोचिंग सेंटरों का अग्नि सुरक्षा निरीक्षण करने का निर्णय लिया  था. उस समय भी आदेश हुए थे.जांच हुई. नियमों के विपरीत चलने वालों को नोटिस देकर कार्रवाई पूरी कर दी गई. लोगों से संबधित अधिकारियों का प्रसन्न कर दिया.  काम पहले ही तरह ही चलता रहा.इसमें भी  ऐसा ही होता लगता है।दरअस्ल इस तरह की बड़ी घटनाएं  संबधित अधिकारियों  की आय  का माध्यम बनते हैं.देखने में आया है कि  विभाग के अधिकारी निरीक्षण कर कमी  बता देते हैं।  नोटिस भेज देतें हैं.प्राय इन्होंने ही अग्निशमन सुरक्षा के उपकरण लगाने वालों से मेल−जोल कर रखा है। ये उपकरण  लगाने वाले विभागीय अधिकारियों के चहेते होते हैं तो काम मानक के अनुरूप नही करते। पूरा पैसा लेकर  भी काम पूरा नही करते।सब  पहले की तरह ही चलता  रहता है. ऐसे में हादसे होने पर जब तक व्यवस्था के लिए  जिम्मेदार अधिकारियों पर कठोर कार्रवाई  नही होती , तब तक कुछ सुधरने वाला  नही है. जांच करानी चाहिए कि इसमें किस− किस विभाग के अधिकारी की गलती रही है. किसने जिम्मेदारी नही निभाई.जिम्मदारी तै होने वाले अधिकारियों पर कठोर कार्रवाई भी होनी चाहिए,उनपर गैर इरादतन हत्या के मुकदमें दर्ज होने  चाहिएं,भले ही वह रिटायर हो गए हों. यह भी तै  होना  चाहिए कि 2019 की सूरत की  घटना के बाद हुई जांच में क्या हुआ था।इसके बिना कुछ होने वाला नही है.इस प्रकरण में तो नगर निगम् की लापरवाही सीधे− सीधे नजर आती है। बिना अनुमति बेसमेंट में चलते कोंचिग पर रोक लगाना उसकी जिम्मेदारी है।दूसरी नालों की  सफाई  उसीका कार्य  है। दोनो में लापरवाही हुई  है।  
अशोक मधुप

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)