Tuesday, October 15, 2024

मदरसों के बंद करने का नही ,सुधार का सुझाव देना था

 


अशोक मधुप

वरिष्ठ पत्रकार

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को पत्र लिख मदरसों और मदरसा बोर्डों को दी जाने वाली सरकारी फंडिंग बंद करने की सिफारिश की है. NCPCR ने मदरसा बोर्डों को बंद करने का भी सुझाव दिया है. आरटीई अधिनियम, 2009 के अनुसार मौलिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए मदरसों से बाहर और स्कूलों में दाखिला दिए जाने की बात कही है. राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की ये सिफारिश न्यायसंगत  नही है. आयोग को चाहिए था कि मदरसा व्यवस्था में सुधार की सिफारिश करता.सुधार के लिए मदरखा बोर्ड और  मदरसों को समय देता. दी गई निर्धारित  अवधि में आदेश न  मानने वाले मदरसों और उनके बोर्ड की  सहायता  रोकने की सिफारिश करता.

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग NCPCR ने ये भी सिफारिश की है कि सभी गैर-मुस्लिम बच्चों को मदरसों से निकालकर स्कूलों में भर्ती कराया जाए. इसके साथ ही, मुस्लिम समुदाय के बच्चे जो मदरसा में पढ़ रहे हैं, चाहे वे मान्यता प्राप्त हों या गैर-मान्यता प्राप्त, उन्हें औपचारिक स्कूलों में दाखिला दिलाया जाए.NCPCR ने ये भी सिफारिश की है कि सभी गैर-मुस्लिम बच्चों को मदरसों से निकालकर आरटीई अधिनियम, 2009 के अनुसार बुनियादी शिक्षा प्राप्त करने के लिए स्कूलों में भर्ती कराया जाए. साथ ही, मुस्लिम समुदाय के बच्चे जो मदरसा में पढ़ रहे हैं, चाहे वे मान्यता प्राप्त हों या गैर-मान्यता प्राप्त, उन्हें औपचारिक स्कूलों में दाखिला दिलाया जाए और आरटीई अधिनियम, 2009 के अनुसार निर्धारित समय और पाठ्यक्रम की शिक्षा दी जाए. NCPCR की ये रिपोर्ट इस उद्देश्य से तैयार की गई है कि हम एक व्यापक रोडमैप बनाने की दिशा में मार्गदर्शन करें जो यह सुनिश्चित करे कि देश भर के सभी बच्चे सुरक्षित, स्वस्थ वातावरण में बड़े हों. ऐसा करने से वे अधिक समग्र और प्रभावशाली तरीके से राष्ट्र निर्माण प्रक्रिया में सार्थक योगदान देने के लिए सशक्त होंगे.

वर्ष 2021 में आयोग ने अल्पसंख्यक समुदायों के बच्चों की शिक्षा पर भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21ए के संबंध में अनुच्छेद 15(5) के तहत छूट के प्रभाव पर एक रिपोर्ट जारी की. रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया कि किस तरह मदरसा जैसे धार्मिक शिक्षण संस्थानों में पढ़ने वाले बच्चों को भारत के संविधान द्वारा दिए गए शिक्षा के उनके मौलिक अधिकार का लाभ नहीं मिल रहा है.इसके बाद वर्ष 2022 में जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने प्राथमिक स्तर पर बच्चों को औपचारिक स्कूलों से दूर रखने के कृत्य को उचित ठहराने के लिए NIOS के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए. इस समझौता ज्ञापन के तहत मदरसा में पढ़ने वाले बच्चों को ओपन स्कूल से परीक्षा देने की अनुमति दी गई. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21ए के अनुसार निःशुल्क और अनिवार्य प्रारंभिक शिक्षा सभी बच्चों का मौलिक अधिकार है.शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 बच्चों को यह अधिकार प्रदान करता है और कक्षा III, V और VIII के लिए ओपन स्कूलिंग की पेशकश करना शिक्षा के अधिकार अधिनियम, 2009 के साथ सीधे टकराव में है. देश में लगभग 15 लाख स्कूल हैं और सरकार ने बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा तक पहुंच प्रदान करने के लिए हर 1-3 किलोमीटर पर स्कूल स्थापित किए हैं. हालांकि, यदि राज्य सरकार कुछ क्षेत्रों में स्कूल को मान्यता प्रदान नहीं कर रही है, तो NIOS छात्रों को ओपन स्कूल के माध्यम से प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने का विकल्प प्रदान कर सकता है. उन्होंने NIOS की भूमिका की भी जांच की मांग की है.

बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने मदरसों और मदरसा बोडौँ को सरकारी फंडिंग पर सवाल उठाते हुए कहा है कि इन्हें सरकारी अनुदान (फंडिंग) बंद कर देना चाहिए. शीर्ष बाल अधिकार संस्था ने मदरसों के कामकाज को लेकर गंभीर चिंता जताते हुए यह भी कहा कि मदसा बोर्ड भी बंद होने चाहिए. कानूनगो ने इस संबंध में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को पत्र लिखा है. आयोग ने हाल ही में मदरसों पर एक रिपोर्ट "गार्जियन आफ फेथ आर ओग्रेसस आफ राइट्स ? कान्स्टीट्यूशनल राइटस आफ चिल्ड्रन वर्सेस मदरसा" भी जारी की है यानी आस्था के संरक्षक या अधिकारों के बाधक. आयोग ने राज्यों को भेजी चिट्ठी के साथ यह रिपोर्ट भी संलग्न की है. इसमें कहा है कि राइट टु एजूकेशन (आरटीई) एक्ट 2009 के दायरे से बाहर रहकर धार्मिक संस्थाओं के काम करने से बच्चों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। मदरसों को आरटीई एक्ट से छूट देने से इनमें पढ़ने वाले बच्चे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से वंचित रहते हैं.

मदरसों को सरकारी फंडिंग रोकने की सिफारिश करते हुए कहा गया है कि सरकारी फंड ऐसे किसी संस्थान पर खर्च नहीं किया जा सकता जो शिक्षा के अधिकार में बाधा हो, क्योंकि ऐसा करना बाल अधिकारों का हनन होगा. आयोग ने कहा है कि धार्मिक शिक्षा प्रदान करना संबंधित समुदाय की जिम्मेदारी है और उसके लिए उन्हें संविधान में उचित प्रविधान दिए गए हैं. राज्य बिना किसी तुष्टीकरण के संविधान और आरटीई एक्ट के तहत उसे दी गई जिम्मेदारी को समझें और बच्चों को गुणवत्तापूर्ण औपचारिक शिक्षा देना सुनिश्चित करने में संसाधन लगाएं. ऐसा नहीं करना संस्थागत तरीके से मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करना है.

आयोग ने कहा है कि सिर्फ एक बोर्ड गठित कर देने या यूडीआइएसई कोड ले लेने का मतलब यह नहीं है कि मदरसा आरटीई एक्ट के प्रविधानों का पालन कर रहे हैं. किसी भी संस्था को शिक्षा की आड़ में दी गई फंडिंग अगर आरटीई एक्ट को लागू करने में बाधा डालती है तो यह असंवैधानिक है. इसलिए आयोग सिफारिश करता है कि सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में मदरसों और मदरसा बोर्ड को दी जाने वाली स्टेट फंडिंग बंद की जाए. मदरसा बोर्ड को बंद किए जाएं.एनसीपीसीआर ने यह भी कहा है कि गुणवत्तापूर्ण औपचारिक शिक्षा पाना सभी बच्चों का आरटीई एक्ट के तहत अधिकार है और इसे उपलब्ध कराना राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है. इस कर्तव्य को पूरा न करना न सिर्फ बच्चों के कल्याण के खिलाफ है बल्कि संवैधानिक सिद्धांतों और मूल्यों के भी खिलाफ है. आयोग ने रिपोर्ट में सिफारिश की है कि राज्य सरकारें सुनिश्चति करें कि मदरसों में पढ़ने वाले सभी मुस्लिम बच्चों का औपचारिक स्कूलों में दाखिला हो और वे आरटीई एक्ट के पाठ्यक्रम के मुताबिक शिक्षा ग्रहण करें. मदरसों में पढ़ने वाले गैर मुस्लिम बच्चों को भी मदरसों से निकाला जाए और उन्हें औपचारिक स्कूल में दाखिला दिया जाए.

अपने पत्र में NCPCR ने ये भी कहा है कि मदरसों से निकलकर मुस्लिम बच्चों को बेहतर तालीम के लिए सरकारी या निजी स्कूल में दाखिल कराया जाय. NCPCR के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने यह पत्र लिखा है. इसकी कॉपी वायरल हो रही है. कानूनगो ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को यह पत्र लिखा है. उन्होंने सभी सक्षम अधिकारियों से मदरसों को मिलने वाली फंडिंग रोकने को कहा है. 

एनसीपीसीआर निदेशक प्रियांक कानूनगो ने इसी के साथ मदरसा बोर्ड को भंगद करने की मांग की है. आयोग ने इस मुद्दे पर नौ साल तक अध्ययन करने के बाद अपनी अंतिम रिपोर्ट जारी की है. उस रिपोर्ट में कहा गया है कि लंबे रिसर्च के बाद ये पता चला है कि करीब सवा करोड़ से ज्यादा बच्चे अपने बुनियादी शिक्षा के अधिकार से वंचित हैं. उन्हें इस तरह से टॉर्चर किया जा रहा है कि वे कुछ लोगों के गलत इरादों के मुताबिक़ काम करेंगे.

जिन लोगों ने इन मदरसों पर कब्जा कर लिया है, वे कहते थे कि वे भारत-पाकिस्तान विभाजन के दौरान पूरे भारत में इस्लाम का प्रचार करना चाहते थे. 7-8 राज्यों में मदरसा बोर्ड हैं. मदरसा बोर्डों को बंद करने की सिफारिश की है क्योंकि उनके जरिए चंदा इकट्ठा किया जा रहा है. इस फंडिंग को रोका जाना चाहिए और मदरसा बोर्ड को भंग किया जाना चाहिए. और इन मदरसों में पढ़ने वाले हिंदू बच्चों को फौरन स्कूलों में एनरोल किया जाना चाहिए.

देवबंदी उलेमाओं ने इस आदेश का विरोध किया है. उन्होंने  कहा कि हमारे अकाबिर इसलिए नही चाहते थे कि दीनी मदरसों के लिए चलाने को   सरकारी मदद ली जाए.उन्होंने कहा कि यदि आयोग को लगता है कि मदरसा बोर्ड  द्वारा संचालित मदरसे सही काम नही कर रहे तो  उनकी कमियों को दूर करने का सुझाव  दिया  जाना  चाहिए था।

दरअस्ल मदरसा  शिक्षा कभी भी  सरकारी मदद लेने के पक्ष में नही रही.राजनैतिक दल अपने मफाद के लिए खुद मदरसों और मदरसा बोर्ड को सहायता देने लगे.बाहरी मदद किसे  बुरी लगती है.परिणाम स्वरूप मदरसा बोर्ड  और मदरसे इस सुविधा  को लेने लगे. आयोग के आदेश पर भाजपा  सरकारें जरूर मदरसा बोर्ड  की सहायता रोकेंगी ,  बाकी दूसरी  सरकारें  अपने  राजनैतिक मफाद देखेंगी. हालाकि भाजपा दलों की प्रदेश   सरकारों को यह निर्णय लागू  करना  सरल नही होगा. सहायता रूकने  पर मामला न्यायालय  जाएगा. न्यायालय भी यही कहेगा कि पहले व्ययस्था में सुधार के लिए कहा  जाना  चाहिए था.उसके लिए समय दिया  जाता. आदेश न मानने  वाले मदरसा बोर्ड  और मदरसों पर उसके बाद कार्रवाई होनी चाहिए थी.

अशोक मधुप

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

 

 

 

 

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