अशोक मधुप
आखिर बिहार में नीतीश और उनके जदयू ने विपक्ष के गठबंधन आई.एन.डी.आई.ए. से अपना नाता तोड लिया। नीतीश कुमार विपक्षी दलों के गठबंधन इंडिया अलायंस के सूत्रधार रहे हैं। उन्होंने ही भाजपा के विरूद्ध विपक्ष को एकजुट करने की शुरूआत की।एक दूसरे के धूर विरोधी दलों को एक साथ बैठाया, ऐसे में उनके पलटी मार देने से इस गठबंधन को लेकर भी सवाल खड़े होने लगे हैं। नीतीश को बिहार का पलटू राम कहा जाता है, पलटू राम इस बार पलटीमार कर विपक्ष की एकता की जड़े ही हिंला गए।उनके भाजपा के साथ जाने से जनता में साफ संदेश गया कि ये एका सिद्धांत का नही स्वार्थ का था। नीतीश का प्रयास विपक्ष का प्रधानमंत्री पद का उम्मीवार बनने का था।उसमें असफल होने और अपने प्रदेश में हुए घटनाक्रम के कारण वे अपनी मुख्यमंत्री की कुर्सी बचाने के लिए भाजपा के साथ चले गए।
नीतीश कुमार ने खुद विपक्षी दलों को एकजुट करने में पिछले कई माह काफ़ी मेहनत की थी। उन्होंने शुरुआत में ऐसे दलों को कांग्रेस के साथ बिठाने में कामयाबी हासिल की जो राहुल गांधी और उनकी पार्टी को लेकर सवाल उठाते रहे थे।नीतीश कुमार पश्चिम बंगाल में सरकार चला रहीं ममता बनर्जी, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव को साथ लाने में कामयाब रहे। पटना में गठबंधन की पहली बैठक कराने को भी उनकी कामयाबी माना गया। दूसरी बैठक के बाद से ही नीतीश कुमार के असहज होनी की चर्चा शुरू हो गई। तब कांग्रेस फ़्रंट फ़ुट पर आती दिखी । रिपोर्टों में दावा किया गया कि गठबंधन संयोजक न बनाए जाने से वो नाखुश हैं।विपक्षी गठबंधन का नाम इंडिया रखने को लेकर भी मीडिया रिपोर्टों में कहा गया कि नीतीश कुमार ने शिकायत की थी कि उनसे सलाह नहीं ली गई। उनका मानना था कि इंडिया में एनडीए आता है, इसलिए ये नाम न रखा जाए, कितुं उनकी नही सुनी गई। हालांकि, नीतीश कुमार ने अपनी नाराजगी की रिपोर्टों को खारिज कर दिया था।
रविवार को बीजेपी के अगुवाई वाले गठबंधन एनडीए के साथ जाने का फैसला करने के बाद खुद नीतीश कुमार ने अपनी असहजता को साफ़ बयां किया कि ‘कुछ ठीक नहीं चल रहा था। दरअस्ल यह चाहते थे कि उन्हें गठबंधन का प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया जाए, किंतु
19 दिसंबर को हुई इंडिया गठबंधन की बैठक कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे का नाम प्रधानमंत्री पद के लिए सुझाए जाने पर उन्होंने कोई प्रतिक्रिया तो नही दी किंतु उनका गठबंधन से मन उचटने लगा। उन्हें लगने लगा कि कांग्रेस विपक्षी गठबंधन पर हावी होना चाहती है। राहुल की भारत न्याय यात्रा ने इस विद्रोह में आग में घी का काम किया। कायदे ये यात्रा उन प्रदेशों में निकलनी चाहिए थी, जहां कांग्रेस की सरकार हैं। बिपक्षी दलों के सरकार वाले प्रदेश में स्थानीय दल की मर्जी से उसे साथ लेकर ये यात्रा की जानी चाहिए थी।किंतु ऐसा नही हुआ। बंगाल में यात्रा पह़ुंचने पर ममता बनर्जी को लगा कि उन्हें कमजोर करने के लिए उनके प्रदेश से यात्रा निकाली जा रही है। जरा−जरासी बात पर नाराज होने वाली ममता इस यात्रा के बंगाल में आते ही उछल गईं। उन्हें लगा कि राह़ुल और कांग्रेस इसके माध्यम से उन्हें कमजोर करना चाहती है। सो उन्होंने बंगाल में अकेले अपने बूते पर पूरे प्रदेश में चुनाव लडने की घोषणा कर दी।यात्रा बिहार में भी आनी थी।
बिहार में नीतीश को अपने सहयोगी रहे लालू यादव के रवैये से लगा कि वह उनकी पार्टी में तोड़फोड़ करना चाहते हैं। दरअस्ल नीतीश कुमार के इस पलट के पीछे उनकी पार्टी में चल रही राजनीति थी। नीतीश कुमार को पिछले महीने इसकी भनक तब लगी जब पार्टी के कुछ विधायकों ने पार्टी लाइन से हटकर मीटिंग की थी। इसके साथ ही नीशीथ ने तेजी दिखाते हुए ललन सिंह को पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से हटा दिया था तथा खुद पार्टी के अधयक्ष बन गए थे।तभी से कयास लगाए जा रहे थे कि उनकी पार्टी में सब कुछ सही नही चल रहा है और उनके और लालू यादव के रास्ते अलग होने वालें हैं। लालू यादव नीतीश पर दबाव दिए थे कि वे तेजस्वी को मुख्य मंत्री बनाए।नीतीश कुमार ने रविवार को बिहार के महागठबंधन से अलग होकर बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए का हाथ थाम लिया। दोनों ने मिलकर सरकार बना ली। शपथ भी हो गई। ये भी तै हो गया कि जदयू और भाजपा मिलकर बिहार में लोकसभा चुनाव लड़ेंगे।
बीजेपी का प्रयास था कि वह विपक्ष की एकता तोड़ सके, सो वह उसमें कामयाब हो गई।उसने बड़ा सोच समझकर ये निर्णय लिया। भाजपा को नीतीश के साथ लेने से लोकसभा चुनाव में बिहार में फायदा ही होगा नुकसान नही।दूसरे विपक्ष में टूट करके वह इस टूट का फायदा उठाने में लग गई है। उसने प्रचार शुरू कर दिया कि ये स्वार्थ का गठबंधन है। बिहार में सत्ता परिवर्तन के तुरंत बाद बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा कि ‘इंडी अलायंस’ सैद्धांतिक रूप से असफल हो चुका है।नड्डा ने पत्रकारों से कहा, “हम पहले भी कह चुके हैं कि इंडिया अलायंस अवित्र, ग़ैरवैज्ञानिक है और यह ज्य़ादा दिन तक नहीं चलेगा. और भारत जोड़ो यात्रा जो बेनतीजा समाप्त हुई और अभी की इनकी अन्याय यात्रा और भारत तोड़ो यात्रा और इंडी अलांयस है, यह सैद्धांतिक तौर पर विफल हो चुका है.”ये माना जाता है कि उनका संकेत विपक्षी गठबंधन में उनकी भूमिका को लेकर असमंजस की ओर था।
नीतीश के निर्णय से पहले ही टीएमटी भी बंगाल में अकेला चलो की राह पर निकल गई। पंजाब में आप कह ही चुकी है कि वह वहां अकेले चुनाव लड़ेगी। उत्तर प्रदेश में अखिलेश कांग्रेस को 11 सीट से ज्यादा देने को तैयार नही।
नीतीश कुमार के रुख को एकजुट होने में लगे सभी विपक्षी दल आश्चर्य में हैं। कांग्रेस अब भी असमंजस में दिख रही है। कांग्रेस के जयराम रमेश ने कहा, ‘जिस इंडिया गठबंधन के लिए 23 जून को नीतीश कुमार जी ने विपक्ष की 18 पार्टी को निमंत्रण दिया था, जिसकी पटना में बैठक हुई, फिर जुलाई में बंगलुरु में बैठक हुई, उसके बाद अगस्त में मुंबई में बैठक हुई और तीनों बैठकों में नीतीश जी का बड़ा योगदान रहा. तो हम मान कर चल रहे थे कि वो बीजेपी के खिलाफ लड़ेंगे।
दरअस्ल गैर सिद्धांत की एकजुटता में ऐसा ही होता है। यह एकता सिद्धांत को लेकर नही थी। स्वार्थ की एकता थी। मतलब का संबंध था। सब इसलिए एक हुए थे ,कि लोक सभा चुनाव में भाजपा को हराना है, इसलिए ये टूटना ही था।टूटने लगा। इससे पहले भी जब− जब ऐसी एकता हुई है तब – तब स्वार्थ के कारण यह टूटी है। इंदिरा गांधी को हराने के लिए हुआ एका हो या राजीव गांधी को सत्ता से बाहर रखने के लिए किया गया गठबंधन ।सब की परिणाम सदा टूटना और बंटना रही है।
अशोक मधुप
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
−−−−
No comments:
Post a Comment