Monday, April 5, 2021

स्वामी सच्चिदानंद

स्वामी सच्चिदानंद सैतालिस साल बीत गए स्वामी सच्चिदानंद को शहीद हुए। आज भी मैं वह दृष्य नहीं भूला। आश्रम में उनके और उनके साथी के शव पड़े थे । मैँ उन्हें देखने गया था।उस समय मैं बीए में पढ़ता था। मेर घर की दूरी खारी से दो किलो मीटर है। सूचना मिली कि गोविंदपुर आश्रम में स्वामी जी का कत्ल हो गया। रात में बदमाशों ने उनकी और उनके एक साथी की गोली मार कर हत्या कर दी। स्वामी जी की बहुत प्रसिद्घी थी। क्षेत्र में बहुत सम्मान था। उनकी हत्या की सुन धक्का सा लगा। समझ में नहीं आया कि उनकी हत्या क्यों हुई। इतने अच्छे आदमी का भी कोई दुश्मन हो सकता है।हम साइकिल से भाग कर आश्रम पंहुचे। आश्रम में कुछ दूरी पर दो शव पड़े थे। एक स्वामी जी का और एक उनके साथी किसी रेड़डी का। लोग बता रहे थे कि स्वामी जी बहुत बहादुर थे। बदमाश स्वामी जी को मारना चाहते थे। किंतु जिस कमरे को उन्होंने खुलवाया ,उसमें उनके मित्र रेड़डी रूके हुए थे। उन्होंने रेड्डी को स्वामी जी समय गोलीमार दी। गोली की आवाज सुन स्वामी जी अपने कक्ष से बाहर आए। जार से कहां कौन है? क्या हो रहा है। मारने वालों ने देखा कि यह तो वही स्वामी जी हैं ,जिन्हें मारना था। उन्होंने स्वामी जी पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसाकर स्वामी जी की हत्या कर दी। अगर स्वामी जी कक्ष से न निकलते , छिप जाते , भाग जाते तो वह बच सकते थे।किंतु वे बहादुर और निर्भीक थे। उन्होंने ऐसा नहीं ‌ क‌िया। बीए में मैँ वर्धमान कॉलेज में पढता था। डा एसआर त्यागी कॉलेज के प्राचार्य थे। स्वामी जी का उनके पास आना जाना था। स्वामी जी का वाहन साइकिल था। वे नंगे पांव रहते। कमर पर घुटनों तक एक चादर बांधते। गले मे उनके एक सफेद चादर पड़ी रहती। ये उनका पहनावा और उनकी पहचान थी। वहुत बार उन्हें आते जाते देखते। ब्रह्मचर्य का तेज उनके चेहरे से छलकता था। मैने 66 में हाई स्कूल किया। इंटर में प्रवेश लिया था। पिता जी चकबंदी में नौकरी करते थे। जनपद में चकबंदी का कार्य पूरा होने पर उसे जोनपुर भेज दिया गया। विभाग के सारे स्टाफ का भी जोनपुर को तबादला कर दिया गया। पिता जी को दादा जी ने जोनपुर नहीं जाने दिया। पिता जी ने नौकरी छोड़ दी। दादा जी हकीम थे।कोई ज्यादा आय नहीं थी।धनाभाग के कारण मुझे पढ़ाई छोड़नी पड़ी। झालू के पशु चिक‌ित्सालय पर श्याम बाबू सक्सैना वेटनरी स्टॉक मैन पद पर तैनात थे। उनके पास मेरी बैठ उठ थी। अधिकतर समय उनके साथ बीतता। स्वमी जी के आश्रम का कोई पशु बीमार हो जाता। वह उन्हें बलवा भेजते। मैँ भी उनके साथ जाता। आश्रम में दूध से हमारा स्वागत होता।चलते समय श्याम बाबू को दस और मुझे दो रुपये देना स्वामी जी कभी नहीं भूलते। मेरे मना करने पर भी दो का नोट जेब में डाल देते। पिछले आठ दस साल में कई बार आश्रम में जाना हुआ। स्वामी जी की एक तस्वीर जरूर नजर आई। अब तो बहुत कुछ बदल गया। अशोक मधुप 5 अप्रेल 2018

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