Wednesday, December 2, 2020

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की स्थापना पर जमीन न देने के कारण बिजनौर में नहीं बना ये विश्व विद्यालय

 अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की स्थापना पर

जमीन न देने के कारण बिजनौर में नहीं बना ये विश्व विद्यालय


बिजनौर। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को बने आज 100 साल हो गए। एक दिसंबर 1920 को इस विश्वविद्यालय की स्थापना हुई थी। एएमयू के संस्थापक सर सैयद अहमद खां इस विश्व विद्यालय को बिजनौर में बनाना चाहते थे। उन्होंने बहुत कोशिश की। पर उस सयम के लोग इनके सोच को गलत मान बैठे। इनका विरोध किया। बाद में सर सैयद अहमद खां को बिजनौर में विश्वविद्यालय बनाने का इरादा छोड़ना पड़ा।

सर सैयद 1857 में बिजनौर में सदर अमीन थे। इनकी तैनाती के समय ही 1857 का प्रसिद्ध विद्रोह हुआ। अंग्रेज कलेकटर को नजीबाबाद के नवाब महमूद को जिले का कार्य भार सौंप कर भागना पड़ा। ये इस दौरान बिजनौर में ही सक्रिय रहे। कोशिश रही कि अंग्रेंज वापस आएं। नवाब महमूद की एक गलती से आजादी की ये लड़ाई हिंदू-मुस्लिम जंग में बदल गई। मजबूरी में हिंदू रईस अंग्रेजों के साथ हो गए। एक साल बाद अंग्रेज वापस आ गए। उनके विरोधियों को भागना पड़ा। जो पकड़ गए उन्हें मार दिया गया। विरोध करने वालों की संपत्ति जब्त कर ली गई।

समय आगे बढ़ गया। सर सैयद अहमद खां बिजनौर से चले गए किंतु उनका लगाव खत्म नहीं हुआ। उनकी कोशिश रही कि वे विश्वविद्यालय बिजनौर में बनाएं। उन्होंने कोशिश शुरू की। लोगों से बात की। कहा कि उन्हें जमीन दिलाने में सहयोग करें। उनकी छवि अंग्रेज बन गई थी। वे कहते भी थे कि वे नई रोशनी की शिक्षा दिलाना चाहते हैं। वे चाहते है कि कौम के बच्चे पढ़ें और आगे बढ़े। लोगों को लगा कि इनके यहां की पढ़ाई हमारी परंपरागत शिक्षा से अलग होगी। इससे धार्मिक शिक्षा खत्म हो जाएगी।

यह बात लोगों के मन में घर करती गई। उन्होंने सर सैयद अहमद खां का विरोध शुरू कर दिया। ‌बिजनौर के इतिहास के जानकार शकील बिजनौरी कहते हैं कि सैयद साहब ने लोगों को अपनी बात समझानी चाही, किंतु वे उनकी बात सुनने को तैयार ही नहीं थे। बिजनौर के ही रहने वाले उर्दू फारसी के विद्वान नजीर बिजनौरी से बात की। नजीर बिजनौरी के कहने पर लोगों ने सर सैयद अहमद की बात तो सुनी पर कोई मदद नहीं की ।

जमीन देने की बात भी हो गई किंतु विरोध बढ़ता देख उन्होंने बिजनौर में विश्वविद्यालय खोलने का इरादा छोड़ दिया।

बिजनौर इटर कालेज के प्रधानाचार्य आफताब अहमद का कहना है कि उस समय के लोगों का मानना रहा कि सर सैयद अहमद के विद्यालय की शिक्षा अंग्रेजों के लाभ के लिए होगी। हमारी शिक्षा, धा‌र्मिकता हमारे संस्कार, परंपराओं को नुकसान पंहुचाएगी।

दिल्ली विश्वविद्यालय में उर्दू के प्रवक्ता खालिद अलवी कहते हैं कि बिजनौर जिले का मुसलमान उस समय अंग्रेजों से नाराज था। वह किसी भी कीमत पर अंग्रेजों को बर्दाश्त करने को तैयार नहीं था। वह सर सैयद अहमद को कट्टर अंग्रेज परस्त मानता था। इसलिए इनकी कोई बात सुनने और मानने को तैयार नहीं था। इसीलिए सर सैयद अहमद और उनकी शिक्षा का उसने विरोध किया।

अन्ना हजारे के आंदोलन से जुड़े शमून कासमी का कहना है कि अगर बिजनौर में विश्वविद्यालय बनता को बहुत लाभ होता। लोगों को नौकरी मिलती। उस समय बिजनौर के मुस्लिम जमींदारों ने जमीन नहीं दी थी। अगर विश्वविद्यालय बिजनौर में बनता तो पूरे देश में बिजनौर का नाम रोशन होता।\


2 disambar 2020

No comments: