राजगोपाल सिंह नहीं रहे। राजगोपाल बिजनौरी कवि, गीतकार के साथ साथ एक बहुत अच्छे मित्र थे। मेरे कॉलेज के सखा। बी.ए में अध्ययन के दौरान उनसे परिचय हुआ। कई साल साथ रहा। उनका गला बहुत अच्छा था। बहुत शानदार गीत गाते , रतजगे करते कब गीत लिखने लगे पता नहीं चला।
दिल्ली पुलिस में नौकरी मिलने के बाद फिर कभी संपर्क नहीं हुआ। जीवन की व्यसतता में बिजनौर आने पर वे कभी मिले नहीं। दिल्ली मैं जाते बहुत बचता हूं। कभी इस सुदामा को जरूरत भी नहीं हुई।
हां गाहे -बगाहे उनकी कवितांए दोहे पढ़ने को मिलते रहे। टीवी पर एक बार लालकिले से उन्हें कविता पाठ करते देख बहुत सुखद लगा। प्रत्येक कवि का सपना होता है वह लाल किले में होने वाले कवि सम्मेलन में कविता पाठ करे। यह सपना उनका कई बार पूर्ण हुआ।
आज सवेरे डा अजय जनमेजय के फोन से उनके निधन का पता चला। यह भी पता चला कि कई माह से बीमार थे। उनके परिवार जनों से उनकी खूब सेवा की।
बिजनौर के भाटान स्कूल से राजकीय इंटर कॉलेज के जाने वाले रास्ते पर उनका घर है। यहीं उनका एक जुलाई १९४७ में जन्म हुआ। बिजनौर की गलियों में खेलकूद कर बड़े हुए राजगोपाल सिंह बिजनौरी अब हमारे बीच नही रहे।
श्रद्धांजलि स्वरूप उनके कुछ दोहे प्रस्तुत हैं-
बाबुल अब न होएगी,भाई बहन में जंग।
डोर तोड़ अनजान पथ, उड़कर चली पतंग।
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बाबुल हमसे हो गई आखिर कैसी भूल,
क्रेता की हर शर्त जो, तूने करी कबूल।
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रोटी रोजी में हुई सारी उम्र तमाम,
कस्तूरी लम्हे हुए बिना मोल नीलाम।
धरती या किसान से,हुई किसी से चूक,
फसलों के बदले खेत में लहके है बंदूक
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अदभुत है, अनमोल है महानगर की भोर,
रोज जगाए है हमें कान फोड़ता शोर।
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राजगोपाल की कुछ गजल
मैं रहूँ या न रहूँ, मेरा पता रह जाएगा
शाख़ पर यदि एक भी पत्ता हरा रह जाएगा
बो रहा हूँ बीज कुछ सम्वेदनाओं के यहाँ
ख़ुश्बुओं का इक अनोखा सिलसिला रह जाएगा
अपने गीतों को सियासत की ज़ुबां से दूर रख
पँखुरी के वक्ष में काँटा गड़ा रह जाएगा
मैं भी दरिया हूँ मगर सागर मेरी मन्ज़िल नहीं
मैं भी सागर हो गया तो मेरा क्या रह जाएगा
कल बिखर जाऊँगा हरसू, मैं भी शबनम की तरह
किरणें चुन लेंगी मुझे, जग खोजता रह जाएगा
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छीनकर पलकों से तेरे ख़्वाब तक ले जाएगा
एक झोंका याद के सारे वरक ले जाएगा
वक्त इक दरिया है इसके साथ बहना सीख लो
वरना ये तुमको बहाकर बेझिझक ले जाएगा
रास्ते चालाक थे देते रहे हमको फ़रेब
यह सुरग ले जाएगा और वो नरक ले जाएगा
दूल्हा बनकर हर ख़ुशी के द्वार आँसू एक दिन
आएगा और मांग भर, करके तिलक ले जाएगा
किसको था मालूम मौसम का मुसाफ़िर लूट कर
तितलियों से रंग, फूलों से महक ले जाएगा
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मौज-मस्ती के पल भी आएंगे
पेड़ होंगे तो फल भी आएंगे
आज की रात मुझको जी ले तू
चांद-तारे तो कल भी आएंगे
चाहतें दोस्ती की पैदा कर
रास्ते तो निकल भी आएंगे
आइने लाए जाएंगे जब तक
लोग चेहरे बदल भी आएंगे
अजनबी बादलों से क्या उम्मीद
आए तो ले के जल भी आएंगे
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हमसे करते रहे दिल्लगी रात भर
नींद भी, ख़्वाब भी, आप भी रात भर
रात भर बादलों ने उड़ाई हँसी
छटपटाती रही इक नदी रात भर
ऐसा लगता है मौसम का रुख़ देखकर
बफ़र् शायद कहीं पर गिरी रात भर
फूल बनते ही कल जो बिखर जाएगी
याद आती रही वो कली रात भर
चांदनी पर ही सबने कहे शेÓर क्यों
सोचती ही रही तीरगी रात भर
......
राजगोपाल सिंह
चुप की बाँह मरोड़े कौन
सन्नाटे को तोड़े कौन
माना रेत में जल भी है
रेत की देह निचोड़े कौन
सागर सब हो जाएँ मगर
साथ नदी के दौड़े कौन
मुझको अपना बतलाकर
ग़म से रिश्ता जोड़े कौन
भ्रम हैं, ख़्वाब सलोने पर
नींद से नाता तोड़े कौन
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चढ़ते सूरज को लोग जल देंगे
जब ढलेगा तो मुड़ के चल देंगे
मोह के वृक्ष मत उगा ये तुझे
छाँव देंगे न मीठे फल देंगे
गंदले-गंदले ये ताल ही तो तुम्हें
मुस्कुराते हुए कँवल देंगे
तुम हमें नित नई व्यथा देना
हम तुम्हें रोज़ इक ग़ज़ल देंगे
चूम कर आपकी हथेली को
हस्त-रेखाएँ हम बदल देंगे
राजगोपाल के काव्य संग्रह चिराग से ली गई रचनांए
अशोक मधुप
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