Wednesday, April 16, 2014

नेताओं के लिए ऐसा स्कूल हो

आज १६ अप्रैल के अमर उजाला में सम्पादकीय पेज पर छापा मेरा एक व्यंग 

नेताओं के लिए ऐसा स्कूल हो
मियां जुम्मन आजकल परेशान हैं। उन्हें समझ में नहीं आ रहा कि क्या बिजनेस करें। जिस जगह वह हाथ डालते हैं, वही उल्टा बैठता है। मैंने उन्हें सुझाव दिया, ऐसा करो, एक स्कूल खोल लो। ऐसा स्कूल खोलो, जिसमें नेताओं को गाली देना सिखाया जाए। दूसरों को अपमानित करने का फॉर्मूला बताया जाए। स्कूल में सिखाई गई गाली और अपमानित करने की कला ऐसी होनी चाहिए कि चुनाव आयोग उस पर कार्रवाई न कर सके। यानी गाली दी भी जाए, तो पार्लियामेंटरी भाषा में। इन स्कूलों में ऐसे शिक्षक रखे जाएं, जो राजनेताओं के लिए नई भाषा गढ़ें।
आज सारे नेता परेशान हैं। वे कुछ भी बोलते हैं, मीडिया उसे झट से पकड़ लेता है। उसके पकड़ते ही चुनाव आयोग कार्रवाई करता है। वह नेताओं के खिलाफ मुकदमे दर्ज कराता है। उत्तर प्रदेश में तो कमाल हो गया। दो बड़बोले नेताओं की आयोग ने बोलती बंद कर दी। अब दोनों परेशान हैं कि काम कैसे चले। बिना बोले वे रह नहीं सकते और मुंह खोलते ही मीडिया उनका मुंह पकड़ लेता है। नए स्कूल में इन्हें ऐसे शब्द सिखाए जाएं, जिन्हें न मीडिया पकड़ सके, न आयोग। जैसे अपने समय की सबसे विदूषी विद्योतमा को नीचा दिखाने के लिए उस समय के विद्वानों ने किया था। उन्होंने विद्योत्तमा से उस महामूर्ख कालिदास का शास्त्रार्थ करा दिया था, जो उसी डाली को काट रहा था, जिस पर वह बैठा था।
जुम्मन बोले, एक बात और हो सकती है। नेताओं को ऐसी ट्रेनिंग भी दी जाए कि उन पर फेंके गए जूते-चप्पल उन्हें न लगे। जूडो-कराटे में तो दुश्मन से बिना शस्त्र लड़ने की कला सिखाई जाती है। इन स्कूलों में जूते-चप्पल और टमाटर से बचने की कला सिखाई जाए। अभी तो नेताओं से निराश जनता ने गुस्सा करना सीखा है। आगे चलकर नेताओं के आचरण से जनता में गुस्सा और ज्यादा बढ़ेगा। ऐसे में नेताओं के हित में रहेगा कि जूते-चप्पल के हमले से बचने की कला सीखी जाए।
मैंने कहा, देख लो, मौका है। अभी किसी को यह आइडिया सूझा नहीं है। तुम शुरू कर दो, लाभ में रहोगे।
अशोक मधुप

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