Friday, December 8, 2023

कार सेवा के लिए वह जनून अदभुत, अकल्पनीय था


कार सेवा के लिए वह जनून अदभुत, अकल्पनीय था अशोक मधुप वरिष्ठ पत्रकार उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की सरकार। भाजपा और विश्व हिंदू परिषद ने अयोध्या में राम मंदिर के लिए कार सेवा करने का आह्वान किया। तारीख 30 अक्तूबर 1990 निर्धारित की गई।मुलायम सिंह ने कहना शुरू कर दिया कि कार सेवा की बात क्या कोई अयोध्या की बाबरी मश्जिद की और मुंह करने देख भी नही सकेगा।अयोध्या में परिंदा भी पर नही मार सकेगा। उसके ये भाषण हिंदू समाज के लिए चेतावनी थे। सनातन धर्म को खुला चैंलेंज था।ऐसे में हिंदुओं में अपनी ताकत, क्षमता, शौर्य और साहस दिखाने की ललक प्रज्जवित हो गई।सिर पर भगवा लपेट कर राम पर सर्वस्व लुटाने के लिए धर्मरक्षक घरों से अयोध्या के लिए निकल पड़े। किसी ने ये नही सोचा की क्या होगा।कोई लाठी−डंडा , तलवार भाला, बंदूक कुछ नही।सिर्फ आत्मशक्ति के बूते एक जोड़ी कपड़े ,हलका −फुल्का रास्ते में खाने− पीने का सामान लेकर दीवानों की टोलियां पूर देश से अयोध्या के लिए निकल पड़ीं। दरअस्ल हम भारतीय सब कुछ बर्दांश्त कर सकतें हैं। धर्म और सम्मान का अपमान नही। देश लगभग 700 साल मुस्लिम और दो सौ साल अंग्रेजों का गुलाम रहा।इस दौरान कोई बगावत नही हुई। कोई विद्रोह नही हुआ। मेरी राय में इन नौ सौ साल मे सिर्फ दो बार विद्रोह हुआ।पहला 1857 में दूसरा1990 में । दोनों बार तक विद्रोह हुआ, जब 1857 मेंसत्ता पर बैठे मदांध अंग्रेज और 1990 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिहं ने हिदू धर्म को ललकारा। उसे चेतावनी दी। अंग्रेजों की गुलामी से देशवासी परेशान थे। उनकी और पिट्ठुओं की ज्यादति बर्दाश्त से बाहर हों रहीं थीं। ऐसे में अंग्रेजों द्वारा सेना के प्रयोग के लिए लाये गए गाय और सुअर की चर्बी के कारतूसों ने विद्रोह की ज्वाला में पूरी आहूति ही दे दी।इन कारतूस को बंदूक में भरने से पहले सैनिक को कारतूस का मुंह अपने मुंह से खोलना पड़ता था।गाय को हिंदू पवित्र मानता है।मुसलमान सुअर को अपवित्र मानता है । काररतूस में गाय और सुअर की चर्बी लगी होने की सूचना ने बड़ी चिंगरी का काम किया। इसका पता लगते ही अंग्रेजों से नाराज हिंदू और मुस्लिम जवान विद्रोह पर उतर आए।पूरे देश की सैनिक छावनी धधक उठीं। अंग्रेजों का कत्ले आम शुरू हो गया।1990 में मुलायम सिंह ने अयोध्या में कार सेवा की सूचना पर जब कहा कि अयोध्या में परीदां भी पर नही मारेगा। बाबरी मश्जिद की ओर कोई नजर उठाकर भी नही देख सकेगा, तो हिंदू समाज ने इसे अपना अपमान माना। 30 अक्तूबर को कार सेवा शुरू होनी थी । उससे पहले भाजपा और विश्व हिंदू परिषद ने कार्यकर्ताओं को आदेश दिए कि 24 अक्तूबर का अपने घर से पूजन −अर्चन कर अयोध्या के लिए प्रस्थान करें। 30 अक्तूबर को कार सेवा शुरू होनी थी किंतु उससे पहले ही मुलायम सिंह ने प्रदेश की सीमा सील करा दीं। प्रदेश की सीमाओं पर बड़ी तादाद में सशस्त्र फोर्स लगा दी ।दूसरे प्रदेशों के कार सेवकों को यहां रोक कर वापिस भेजा जाने लगा। ।प्रदेश के जनपदों की सीमांए सील कर दी गईं तो कि दूसरे जिले के कार सेवक उस जनपद में प्रवेश न कर सकें।प्रदेश की सीमा के आने वाली ट्रेनों की तलाशी शुरू हो गई। परिणाम यह हुआ कि प्रदेश की सीमाओं पर कारसेवकों को रोका जाने लगा।उन्हें वापस जाने का आदेश दिया जाने लगा। कारसेवकों की ये टोली जहां रोकी जातीं, वही कुछ पीछे हटतीं।यहां तैनात वालिंटियर इन्हें आगे जाने के रास्ते बता देते।ये कहीं रेलवे की पटरी के किनारे –किनारे चले तो कहीं खेतों के किनारे की पगडंडियों से। रास्ते में नदी आई तो गांव वालों ने बताया कि कहां कम पानी है। कहां से निकला जाना है। रास्ते में जगह जगह− गांवों में इनके खाने की व्यवस्था भी थी। खाना शुद्ध सात्विक देसी घी से बना। सनातन समाज इन धर्मरक्षकों के स्वागत और सुरक्षा के लिए पलक पांवडे विछाए था। कार सेवकों का देवदूत और धर्मरक्षक की तरह स्वागत किया जाता । उनको कही गांव के स्कूल में टिकाया गया, तो कहीं अपने घर में । सबका मेहमानों से बड़ा स्वागत किया गया। बिजनौर में गंगा बैराज पर सहारनपुर, पंजाब और हरियाणा से आने वाले कार सेवकों को रोका गया। उधर हरिद्वार पर बिजनौर का बार्डर सील कर दिया गया। ये कार सेवक रोके जाने पर रूकते कुछ पीछे दांए− बाएं हटकर गांव के रास्तों से तो कुछ गंगा पार कर आगे के लिए चल दिए। गिरफ्तार किये गए कारसेवकों के लिए जेल में जगह कम पड़ गई तो स्कूल काँलेज में स्थायी जेल बनाई गई। यहां से ये कार सेवक मौका पाकर आगे के लिए रवाना होने लगे। स्थानीय कार्यकर्ता इन्हें आगे का रास्ता और योजना बताने लगे। अयोध्या से दो सौ किलो मीटर की दूरी से तो सुरक्षा और सख्त होने लगी। बिजनौर के कार सेवकों को लखनऊ में ट्रेन से उतर दिया गया। ये यहां से लगभग 150−160 किलोमीटर की यात्रा करके पैदल ही अयोध्या पंहुचे।एलआईयू इस तलाश में थी कि बिजनौर के कार सेवकों का रवानगी का पता चले किंतु ये 24 अक्तूबर को अपने घरों पर पूजन कर चुपके से रवाना हुए।रवाना होने से पूर्व परिवार वालों ने तिलक कर इन्हें विदाई दी। कामना की कि ये जिस कार्य के लिए जा रहे है, उसे पूरा करके लौंटे। पुलिस और एलआईयू को झांसा देकर ये कार सेवक जनपद के एक छोटे से स्टेशन चंदक से ट्रेन में बैठे। बिजनौर के कार सेवकों को लखनऊ में ट्रेन से उतार लिया गया। ये किसी तरह से पुलिस को चकमाकर आगे चल दिए। रास्ते पर जगह −जगह मार्गदर्शक इन्हें मिलते रहे । बताते रहे । कहां जाना है। कैसे जाना है। कहां रूकना है। ये धीरे− धीरे अयोध्या की ओर बढ़ते रहे। बिजनौर के एक कार सेवक स्वर्गीय मयंक मयूर बताते थे कि एक जगह पीएसी ने उन्हें गिरफ्तार कर दिया गया। उनके साथ एक साधु भी था। साधु ने इनसे धीरे से कहा − वह कुछ करेगा। भागने के लिए तैयार रहो। साधु ने अपनी भगवा धोती हटाकर अपने कमंडल में पेशाब किया। पीएसी वाले नही समय पाए कि वह क्या कर रहा है । फिर साधु ने अपनी चुल्लू में पेशाब लेकर चारों ओर फेंकना शुरू कर दिया। पेशाब के छींटों से बचने के लिए पीएसी वाले पीछे हटे।उनका घेरा ढीला हुआ और उनकी हिरासत में बैठे सारे कार सेवक भाग लिए। साधु भी उनके साथ चल दिया। वैसे भी पीएसी वाले उस साधु के पास आते अब बच रहे थे। वह बताते थे कि अयोध्या में कर्फ्यू लगा था। वे अयोध्या से सटे गांव में एक किसान की पशुशाला में पूरी रात छिपे रहे। पुलिस की रात भर गश्त और घरों की तलाशी जारी थी। उनका जत्था बहुत सवेरे अयोध्या के लिए निकल लिया।भारी सुरक्षा और पुलिस और अयोध्या में कर्यूार होने के बाद भी सवेरे अचानक लाखों कार सेवक जब अयोध्या में चारों ओर से उमडे तो पुलिस और प्रशासन हक्का −बक्का रह गया। उन्हें कार सेवको के आने की सूचना नही थी। उम्मीद थी तो ये कि ज्यादा से ज्यादा 50 − 100 ही कार सेवक आ सकेंगे। कारसेवा के आयोजक चाहते थे कि कार सेवा प्रतीकात्मक हो, किंतु ये तो धर्म पर जान फिदा करने निकल थे। पहले लाठी चार्ज हुआ।फिर अश्रुगैस छोड़्री गई।उसके बाद भी जब कार सेवक गुंबद पर पहुंच गए तो गोली चली।मयंक मंयूर इस कार सेवा का जिक्र करते रोमांचित हो जाते थे। उनमें जोश उमड़ आता था।गोलाकांड के समय भीड के बारे में खुद मुलायम सिंह ने स्वीकार किया था 11 लाख की भीड़ लाकर खड़ी कर दी गई थी। अशोक मधुप ( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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