Sunday, May 1, 2022

आज भी गाईं जाती हैं शेवन बिजनौरी की कव्वाली,गीत, गजल और भजन

 30 अप्रेल के लिए


शेवन बिजनौरी के जन्म दिन पर 



आज भी गाईं जाती हैं शेवन बिजनौरी की कव्वाली,गीत, गजल और भजन

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अशोक मधुप 

आज शेवन  बिजनौरी का जन्म दिन है।आज वे हमारे बीच नही है किंतु उनकी लिखी कव्वाली, गीत, गजल और भजन आज भी लोग गाते और सुनते हैं। उनके लिखी कव्वाली,भजन,गजल और   गीत बहुत मशहूर हुए।

फैय्याज  अहमद उर्फ शेवन बिजनौरी का जन्म  बिजनौर के मुहल्ला मिर्दगान में 30 अप्रेल 1930 का हुआ।  फैय्याज अहमद उर्फ शेवन बिजनौरी के पिता बदर हुसैन कव्वाल थे।दादा नत्थू खां शिक्षक थे। शेवन बिजनौरी बचपन से अपने पिता के साथ रहते थे।  पिता की कव्वाल पार्टी में जाने के कारण इन्हें कव्वाली गायन के सारे हुनर आ गए। शायरी का शौक बचपन से  ही था।1952 में मदीना प्रेस के एक मुशायरे में जिगर मुरादाबादी आए। शेवन  बिजनौरी तभी उनके बाकायता शार्गीद बन गए। इसके बाद शेवन बिजनौरी की शायरी परवाज चढ़ने लगी। 1957 मे पिता का देहान्त होने के बाद  शेवन बिजनौरी अकेले रह गए। वे बिजनौर छोडकर मेरठ चले गए। वहां शायर शौरिश मुजफ्फरनगरी से बाकायदा शायरी की सलाह लेने लगे।उन्होंने अपनी  कव्वाली की पार्टी बना ली। शेवन बिजनौरी अपनी कव्वाल पार्टी को लेकर वे अहमदाबाद चले गए।अहमदाबाद में  उनका कामयाब प्रदर्शन रहा। उस समय वहां  इस्माइल आजाद,शंकर− शंभू,युसूफ आजाद आदि की प्रसिद्ध कव्वाल पार्टी थीं। शेवन बिजनौरी खुद ही गजल ,गीत शेर और कव्वाली लिखते और गाते थे,  इसलिए कोई भी दूसरी पार्टी मुकाबलों में उनसे जीतती नहीं थी। ये प्रोग्राम में हाथों−हाथ कव्वाली का जवाब लिखते  और गाते।  इनकी कव्वाली लोगों द्वारा गुनगुनाई और गाई  जाने लगीं।

1969−1970 में आपका नातियां जमाले मुहम्मद  दीवान  दिल्ली की रतन एंड कंपनी ने छापा।यह बहुत पंसद किया गया।आपके  कलाम की  हिलाले अरब, मुस्लिम के लाड़ले, कव्वाली मजमुआ आदि छोटी− मोटी लगभग 500 किताबें छपीं।1973 में गजलों का दीवान सैल−ए− रवां के नाम से छपा।एक दीवान प्रीत के धागे हिंदी में छपा।1980 में घूंघट की आड़ में दीदार अधूरा रहता है, प्रकाशित हुआ। इन सब से इनकी प्रसिद्धि आसमान पर पंहुच गई। घूंघट की आड़ में दीदार अधूरा रहता है, दीवान की इसी नाम की  कव्वाली घूंघट की आड़ में दीदार अधूरा  रहता है, को 1985 में बाबू लाल कव्वाल ने कैसिट सोनियों टोन कंपनी दिल्ली के लिए गाया। ये ही कव्वाली डाइरेक्टर नासिर हुसैन ने अपनी फिल्म हम हैं राही प्यार के में नदीम श्रवण के संगीत में गायक कुमार शानू और कविता कृष्ण मूर्ति ने गवाई।  ये कव्वाली इतनी हिट हुई कि 1993 में इसे फिल्म फेयर अवार्ड मिला। 1990 में टी सीरीज के लिए गुलाम अली म्यूजिक डाइरेक्टर के अलबम अफसाना में वो  मुझको छोड़के जाना  चाहता है,अनुराधा पौडवाल और सोनू निगम ने गाया। भारत के अलावा दूसरे मुल्कों के कव्वाल मेंहदी हसन,परवेज मेंहदी,नुसरत फतह अली खां  ने भी शेवन बिजनौरी को  गाया।        

 शेवन बिजनौरी के पुत्र प्रसिद्ध ढ़ोलक वादक आसिफ अक्काशी बतातें हैं कि उनके पिता की कव्वाली गजल और कलाम देश के अधिकांश मशहूर गायक और कव्वालों ने गाए।युसूफ  आजाद कव्वाल ने  उनकी कव्वाली सीने में मुहब्बत की रहती है, जलन बरसों, जानी बाबू कव्वाल मुंबई ने ऐ जाने तमन्ना जाने जिगर,अजीज नांजां मुंबई ने मुहब्बत का जमाना आ गया है,फिल्मी सिंगर अनुराधा पौडवाल ने  वह मुझको छोड़ जाना चाहता है,अनूप जलौटा ने भजन −पकड़े गए कृष्ण भगवान,अलताफ राजा ने तू मेरी जान है,राम शंकर ने कैसेट जलवा है जलवा, अलका याज्ञनिक ने फिल्म हम हैं राही प्यार के में घूंघट की आड़ में दिलवर का गाए।

आसिफ अक्काशी बतातें हैं कि 1999 में तबियत खराब होने के कारण उनके पिता शेवन बिजनौरी अपने घर  बिजनौर आ गए । 22 जून 2021 को उनका निधन हो गया।शेवन बिजनौरी की याद में उनके घर के सामने  वाले मार्ग का नाम उनके नाम  पर किया गया। 2016 से जिला कृषि और औद्योगिक प्रदर्शनी में 2016 से शेवन बिजनौरी नाइट का आयोजन किया जाता है।इसमें सूफी कव्वाली,गजल और फिल्मी गीत प्रस्तुत किए जाते हैं। 

शेवन बिजनोरी के बड़े बेटे मुहम्मद वामिक अक्काशी उर्फ  साजन  बाबू भी मशहूर कव्वाल  हुए।दूसरे बेटे आसिफ अक्कशी मशहूर तबला वादक हैं।इन्होंने लक्ष्मीकांत − प्यारे लाल और भूपेंद्र सिंह मैताली की टीम के कार्यक्रम में तबला बजाया।देश− विदेश में हुए कार्यक्रम में शामिल हुए। तीसरे बेटे मुहम्मद खालिद अक्काशी ब्यूटीशियन हैं। चौथे बेटे मुहम्मद आरिफ अक्काशी  प्रसिद्ध तबला वादक हैं।     

अशोक मधुप

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं

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