Monday, May 2, 2022

 

परशुराम  जंयती पर तीन मई  पर विशेष

गौरी शंकर सुकोमल जी ने लिखी 0





 परशुराम पर भगवान परशु रामायण

अशोक मधुप

आज भगवान परशुराम की जयंती  अक्षय तृतीया है। आज भगवान परशुराम का अवतरण दिवस है।दुनिया के सात अमर व्यक्तियों में भगवान परशुराम की भी गणना होती है।भगवान परशुराम पर भक्तों और श्रद्धालुओं द्वारा  सदियों से लिखा जा रहा है।सबने अपने – अपने   दृष्टिकोण से भगवान परशुराम को पढ़ा, देखा और लिया।

उत्तर प्रदेश के धामपुर नगर के तो विद्वान पंडित गौरी शंकर शर्मा सुकोमल ने भगवान परशुराम के जीवन चरित्र  पर पूरी परशु रामायण लिख दी। इस परशु रामायण की विशेष बात यह है कि ये गेय है। राधेश्याम कथा वाचक की रामायण की तर्ज पर लिखी ये रामायण गाई जा सकती है। गाई जाती है। गाई जा रही है।

 17 फरवरी 1943 में जन्में पंडित गौरी शंकर शर्मा सुकोमल बीए, साहित्य रत्न हैं। वे मूल  रूप से पत्रकार और  लेखक हैं। रंगमंच और कथावाचन से जुडे गौरीशंकर शर्मा जी के मन में

आया कि भगवान परशुराम पर तथ्यात्मक  रूप से  कुछ नही मिलता।ये  विचार आते ही उन्होंने भगवान परशुराम पर रामायण लिखने का निर्णय लिया। ये भगवान परशुराम पर मिले साहित्य के अध्ययन में लग गए।इस विषय पर उपलब्ध साहित्य का अध्ययन किया। तर्कना पर कसा। इस कार्य में कई  साल लग गए। दिन रात लगकर  जब विषय सामग्री एकत्र हुई तो प्रश्न था कि भाषा− शैली क्या हो। ये  रामायण  आम आदमी तक कैसे पंहुचे और लोकप्रिय हो ,गाई भी जा सके। इसके बाद इन्होंने विभिन्न धार्मिक ग्रन्थों का  अध्ययन किया।विद्वानों से विचार किया। बताया गया कि भगवान राम पर बहुत कुछ लिखा गया।किंतु राधे श्याम कथा वाचक की रामायण ज्यादा गेय है।निर्णय हुआ कि राधेश्याम शर्मा कथा वाचक की रामायण की त्तर्ज पर इसे लिखा जाए।इस पर  इन्होंने राधेश्याम शर्मा की रामायण के शिल्प को समझा। उसका मनन किया।

इसके बाद जो लिखना शुरू किया तो परशु रामायण को पूरी करके रूके। इस कार्य के लिए इन्होंने दिन −रात एक कर दिए।परशु रामायण  तो तैयार हो गई किंतु इसके प्रकाशन की समस्या आई । कहीं से भी मदद न मिलने पर सुकोमल जी निराश नही हुए।उन्होंने अपने संकल्प को पूरा करने के लिए अपनी गृहणी के जेवर भी बेच दिए।   

श्री गौरी शंकर सुकोमल जी स्वीकार करते हैं कि उन्होंने सामग्री संजोने और एकत्र करने में तीन−  चार साल लग गए। परशु रामायण  में अपनी  बात शीर्षक के अंतर्गत वह स्वीकार करते हैं कि मैं मूल रूप से कवि और साहित्यकार हूं फिर भी इसे कथावाचन के उद्देश्य से लिखने का प्रयास किया। इन्होंने  अपने ग्रन्थ का आधार बनाया डा. डी आर शर्मा के शोध ग्रन्थ भगवान परशुराम को । सुकोमल जी बताते हैं कि वह गद्य में है। उन्होंने अपनी पुस्तक का कथा  वाचन के हिसाब से गेय बनाया। अपनी कसौटी पर आए तर्क को शामिल किया।

कुल 12 संर्गो में विभक्त परशु रामाणय को को 224 शीर्षक में विभक्त किया गया है। यह परशु रामाणय 500 पृष्ठों  में है। 17 बार क्षत्रियों के विनाश की बात पर वह कहते है कि भगवान परशुराम ने से दुष्टों का संघार किया जो  आर्य  विरोधी थे। इसे गलत रूप में समाज में प्रचारित किया गया।

परशु रामायण के कुछ अंश−

महर्षि जमदग्नि के वध  का जब समाचार, चंहु और गया।

ऋषिगण, संबंधी, राजागण, सबके मन को झकझोर गया।

सब समझ गए, सब जान गए, इसमें कोई संदेह नहीं,

यह क्रूर कृत्य अर्जुन सुत का, इसमें कोई अंदेह नहीं।

मिल गया शोक संदेश तभी,आश्रम परशुराम लौट आए।

युवको की आर्य सेना भी, वह साथ− साथ लेते आए।−−−−

माता का ये रूदन सुन , बिलख उठे भ्रगुनाथ।

सांत्वना  भरे शब्द कुछ, बोले तक मुनि नाथ।

पृथ्वी पर जिसने जन्म लिया, वह निश्चय एक दिन मरता है।

जो जलता है, वह बुझता है, जो फलता है, वह झरता है।

हे माता क्यों अज्ञान युक्त, तुम रिश्तों का दम भरती हो1

जो नही शोक करने लायक, उसका क्यों गम करती हो।

कुछ चले गए इस दुनिया से, बाकी के भी सब फानी हैं।

दोनों पर जिनको शोक नहीं,बस वे ही सच्चे ज्ञानी हैं।

यह नही आत्मा नाशवान, एक अदभुत सुंदर ज्योति है।

वस्तु ये एक अनादि है, जो सबके अंदर होती है।

क्षण भंगुर है सुख−दुख सभी,जो  इस शरीर  पर आते हैं।

तुम सहन करो सब धीरज से,ये अपना चक्र चलाते हैं।

−−−

लाचार हो गया भ्रगुवंशी, भ्रगुकुल का गौरव रखना है।

मदमत्त हुए हैह्यवंशी,  इसका फल उनको चखना है।

  अब आर्य धरा पर ये श्रत्रप,  चैन नही ले पांएगे।

जो प्रजा विरोधी राजा हैं, सीधे यमलोक में जांएगे।

मैं शपथ पूर्वक कहता हूं, चुन− चुन दुष्टों को मारूंगा।

संस्थापन धर्म हेतु अब, राक्षस नरेश संहारूंगा।

पंडित  गौरी शंकर शर्मा सुकोमल जी लिखी परशु रामायण का अध्ययन करने वाले विद्वानों की राय है कि  ये परशु रामायण मात्र कथा काव्य नही है।ये एतिहासिक तथ्यों को विश्लेषण  हैं।

अशोक मधुप

(लेखक  वरिष्ठ  पत्रकार हैं)

 

 

 

Sunday, May 1, 2022

आज भी गाईं जाती हैं शेवन बिजनौरी की कव्वाली,गीत, गजल और भजन

 30 अप्रेल के लिए


शेवन बिजनौरी के जन्म दिन पर 



आज भी गाईं जाती हैं शेवन बिजनौरी की कव्वाली,गीत, गजल और भजन

फोटो

अशोक मधुप 

आज शेवन  बिजनौरी का जन्म दिन है।आज वे हमारे बीच नही है किंतु उनकी लिखी कव्वाली, गीत, गजल और भजन आज भी लोग गाते और सुनते हैं। उनके लिखी कव्वाली,भजन,गजल और   गीत बहुत मशहूर हुए।

फैय्याज  अहमद उर्फ शेवन बिजनौरी का जन्म  बिजनौर के मुहल्ला मिर्दगान में 30 अप्रेल 1930 का हुआ।  फैय्याज अहमद उर्फ शेवन बिजनौरी के पिता बदर हुसैन कव्वाल थे।दादा नत्थू खां शिक्षक थे। शेवन बिजनौरी बचपन से अपने पिता के साथ रहते थे।  पिता की कव्वाल पार्टी में जाने के कारण इन्हें कव्वाली गायन के सारे हुनर आ गए। शायरी का शौक बचपन से  ही था।1952 में मदीना प्रेस के एक मुशायरे में जिगर मुरादाबादी आए। शेवन  बिजनौरी तभी उनके बाकायता शार्गीद बन गए। इसके बाद शेवन बिजनौरी की शायरी परवाज चढ़ने लगी। 1957 मे पिता का देहान्त होने के बाद  शेवन बिजनौरी अकेले रह गए। वे बिजनौर छोडकर मेरठ चले गए। वहां शायर शौरिश मुजफ्फरनगरी से बाकायदा शायरी की सलाह लेने लगे।उन्होंने अपनी  कव्वाली की पार्टी बना ली। शेवन बिजनौरी अपनी कव्वाल पार्टी को लेकर वे अहमदाबाद चले गए।अहमदाबाद में  उनका कामयाब प्रदर्शन रहा। उस समय वहां  इस्माइल आजाद,शंकर− शंभू,युसूफ आजाद आदि की प्रसिद्ध कव्वाल पार्टी थीं। शेवन बिजनौरी खुद ही गजल ,गीत शेर और कव्वाली लिखते और गाते थे,  इसलिए कोई भी दूसरी पार्टी मुकाबलों में उनसे जीतती नहीं थी। ये प्रोग्राम में हाथों−हाथ कव्वाली का जवाब लिखते  और गाते।  इनकी कव्वाली लोगों द्वारा गुनगुनाई और गाई  जाने लगीं।

1969−1970 में आपका नातियां जमाले मुहम्मद  दीवान  दिल्ली की रतन एंड कंपनी ने छापा।यह बहुत पंसद किया गया।आपके  कलाम की  हिलाले अरब, मुस्लिम के लाड़ले, कव्वाली मजमुआ आदि छोटी− मोटी लगभग 500 किताबें छपीं।1973 में गजलों का दीवान सैल−ए− रवां के नाम से छपा।एक दीवान प्रीत के धागे हिंदी में छपा।1980 में घूंघट की आड़ में दीदार अधूरा रहता है, प्रकाशित हुआ। इन सब से इनकी प्रसिद्धि आसमान पर पंहुच गई। घूंघट की आड़ में दीदार अधूरा रहता है, दीवान की इसी नाम की  कव्वाली घूंघट की आड़ में दीदार अधूरा  रहता है, को 1985 में बाबू लाल कव्वाल ने कैसिट सोनियों टोन कंपनी दिल्ली के लिए गाया। ये ही कव्वाली डाइरेक्टर नासिर हुसैन ने अपनी फिल्म हम हैं राही प्यार के में नदीम श्रवण के संगीत में गायक कुमार शानू और कविता कृष्ण मूर्ति ने गवाई।  ये कव्वाली इतनी हिट हुई कि 1993 में इसे फिल्म फेयर अवार्ड मिला। 1990 में टी सीरीज के लिए गुलाम अली म्यूजिक डाइरेक्टर के अलबम अफसाना में वो  मुझको छोड़के जाना  चाहता है,अनुराधा पौडवाल और सोनू निगम ने गाया। भारत के अलावा दूसरे मुल्कों के कव्वाल मेंहदी हसन,परवेज मेंहदी,नुसरत फतह अली खां  ने भी शेवन बिजनौरी को  गाया।        

 शेवन बिजनौरी के पुत्र प्रसिद्ध ढ़ोलक वादक आसिफ अक्काशी बतातें हैं कि उनके पिता की कव्वाली गजल और कलाम देश के अधिकांश मशहूर गायक और कव्वालों ने गाए।युसूफ  आजाद कव्वाल ने  उनकी कव्वाली सीने में मुहब्बत की रहती है, जलन बरसों, जानी बाबू कव्वाल मुंबई ने ऐ जाने तमन्ना जाने जिगर,अजीज नांजां मुंबई ने मुहब्बत का जमाना आ गया है,फिल्मी सिंगर अनुराधा पौडवाल ने  वह मुझको छोड़ जाना चाहता है,अनूप जलौटा ने भजन −पकड़े गए कृष्ण भगवान,अलताफ राजा ने तू मेरी जान है,राम शंकर ने कैसेट जलवा है जलवा, अलका याज्ञनिक ने फिल्म हम हैं राही प्यार के में घूंघट की आड़ में दिलवर का गाए।

आसिफ अक्काशी बतातें हैं कि 1999 में तबियत खराब होने के कारण उनके पिता शेवन बिजनौरी अपने घर  बिजनौर आ गए । 22 जून 2021 को उनका निधन हो गया।शेवन बिजनौरी की याद में उनके घर के सामने  वाले मार्ग का नाम उनके नाम  पर किया गया। 2016 से जिला कृषि और औद्योगिक प्रदर्शनी में 2016 से शेवन बिजनौरी नाइट का आयोजन किया जाता है।इसमें सूफी कव्वाली,गजल और फिल्मी गीत प्रस्तुत किए जाते हैं। 

शेवन बिजनोरी के बड़े बेटे मुहम्मद वामिक अक्काशी उर्फ  साजन  बाबू भी मशहूर कव्वाल  हुए।दूसरे बेटे आसिफ अक्कशी मशहूर तबला वादक हैं।इन्होंने लक्ष्मीकांत − प्यारे लाल और भूपेंद्र सिंह मैताली की टीम के कार्यक्रम में तबला बजाया।देश− विदेश में हुए कार्यक्रम में शामिल हुए। तीसरे बेटे मुहम्मद खालिद अक्काशी ब्यूटीशियन हैं। चौथे बेटे मुहम्मद आरिफ अक्काशी  प्रसिद्ध तबला वादक हैं।     

अशोक मधुप

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं