बिजनौर में जन्मी प्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ,आर्य विदुषी तथा शिक्षाशास्त्री चंद्रावती लखनपाल को बिजनौरवासी जानते भी नहीं । आज 20 दिसंबर चंद्रावती लखनपाल का आज जन्मदिन है। बिजनौरवासी ये भी नहीं जानते कि चंद्रावती लखनपाल दो बार राज्यसभा की सदस्य भी नहीं।
चंद्रावती लखनपाल का परिवार बिजनौर नई बस्ती के आर्यनगर में रहता था। इनके पिता पंडित जयनारायण शुक्ला नगरपालिका बिजनौर में लेखाकार थे। इनकी मां भगवान देवी बालिका नार्मल स्कूल की मुख्य अध्यापिका थी। जयनारायण शुक्ला कई साल तक आर्य समाज बिजनौर के मंत्री और कोषाध्यक्ष रहे। पांच संतानों में सबसे बड़ी चंद्रावती को पिता पंडित जयनारायण शुक्ला ने उच्च शिक्षा दिलाने इलाहाबाद भेजा। चंद्रावती ने इलाहाबाद विश्वविद्वालय से १९२६ में स्नातक की डिगरी प्राप्त की ।
डा सत्यवृत सिद्धांतालकार ने अपनी बायोग्राफी “रेमीनिसेंसेज एंड रिफलेक्शन्स आफ ए वैदिक स्कालर“ में लिखा है कि शादी के समय वे (डा सत्यवृत कांगड़ी )गुरूकुल विश्वविद्वालय में तुलनात्मक धर्म विज्ञान के महोपाध्याय थे। चंद्रावती की इच्छा थी कि स्नातक करने के बाद ही शादी हो। उनकी इच्छा के अनुरूप स्नातक करने के बाद 15 जून 1926 को शादी हुई। । शादी के बाद चंद्रावती ने इलाहाबाद से विश्वविद्यालय से अंग्रेजी से एमए किया।डा सत्यवृत और चंद्रावती लखनपाल दोनों आजादी के आंदोलन में सक्रिय रहे। स्वतंत्रता आन्दोलन के समय चंद्रावती लखनपाल ने शराबबन्दी और स्वदेशी का प्रचार किया। १९३२ में उन्हें कांग्रेस के संयुक्त प्रान्तीय राजनैतिक सम्मेलन महिला विंग की अध्यक्ष चुना गया। 20 जून 1932 को सम्मेलन के लिए आगरा पहुँचने पर वे गिरफ्तार कर लीं गयीं। उन्हें एक साल की सजा हुई।
वे महादेवी कन्या पाठशाला( एक डिगरी काँलेज )देहरादून की प्राचार्य बनी। कार्यकाल पूरा होने उसके बाद चंद्रावती लखनपाल दो जुलाई 1945 को कन्या गुरुकुल देहरादून की आचार्या पद पर नियुक्त हुई।अप्रैल 1952 में राज्यसभा की सदस्या चुनी गई । पहले चार साल और दूसरी बार छह कुल 10 साल तक इस पद पर रहीं।1934 में चन्द्रावती जी को “स्त्रियों की स्थिति“ ग्रन्थ पर सेकसरिया पुरस्कार तथा 20 मई 1935 में उन्हें “शिक्षा मनोविज्ञान” ग्रन्थ पर महात्मा गांधी के सभापतित्व में मंगलाप्रसाद प्रसाद पारितोषिक पुरस्कार दिया गया।
चंद्रावती लखानपाल के पति डा सत्यवृत सिद्धान्तालंकार गुरूकुल विश्वविद्यालय कनखल के दो बार कुलपति रहे। वे जाने माने लेखक थे।वेद, समाज शास्त्र और होम्योपैथी पर भी उनकी कई पुस्तक हैं। डा सत्यवृत भी राज्य सभा के सदस्य रहे।
चंद्रावती लखनपाल ने महिलाओं को स्वावलम्बी बनाने के लिए १९६४ में अपनी सम्पूर्ण आय दान देकर एक ट्रस्ट की स्थापना की।३१ मार्च १९६९ को मुबंई में इनका निधन हुआ।
जन्म 20 दिसंबर 1904 −− निधन 29 मार्च 1969
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