Monday, June 1, 2020

1jun 2020 Amar Ujala Bijnor
आज के शहर में कभी बहती थी गंगा की धारा, अब भी मिलते हैं प्राचीन मंदिर
गंगा के तट वाले इलाके में आज भी हैं ढ़लान वाले तट
फोटो
अशोक मधुप
बिजनौर। आज गंगा दशहरा है। बिजनौर और आसपास के लोग गंगा स्नान के लिए गंगा बैराज जाते हैं। यहीं शव का अंतिम संस्कार करते हैं। आज से 25-30 साल पहले गंगा औेर विदुर कुटी गंगा स्नान के लिए जाते ‌थे। आज से लगभग 200 साल पहले बिजनौर शहर में गंगा बहती थी और बिजनौर वासी यहीं स्नान करते थे। अब गंगा की धारा दस किलोमीटर से ज्यादा पीछे जा चुकी है।
बिजनौर के पुराने शहर में काजीपाड़ा, जाटान आदि बहुत गहराई पर बसे मोहल्ले हैं।जब‌कि शास्त्री चौक से घंटाघर पुरानी तहसील होने सदुपुरा जाने वाले रास्ते रास्त से पूरब की साइड में बसे मुहल्लों का तल सामान्य है। अचारजान में बाल कृष्ण खन्ना की कोठी से दो साइड को रास्ता गया है। इन रास्तों का ढाल 40 से 45 फिट तक है। पुराने लोग बताते रहे हैं कि कभी यहां गंगा बहती थी। ये ढाल गंगा के खोले(ढाल वाला तट) है। बताते हैं कि कभी गंगा की धार भरत विहार, नुमाईश ग्राउंड, काजीपाड़ा होते हुए बहती थी। ये ढाल गंगा के पुराने मार्ग को दर्शाता है। भगत सिंंह चौक से काजीपाड़ा, बालकृष्ण खन्ना की कोठी के दोनों साइड के ढाल, सरस्वती विद्या मंदिर से आगे का ढाल, रम्मू के चौराहे के पास से दाई ओर नीचे जाने वाला ढाल बताता है कि कभी गंगा यहां तक वही है। ये गंगा के खोले हैं। बिजनौर में गंगा सन् 1800 के पास पास तक बहती थी। इसके बाद उसकी घार दूर होती चली गई। आज यह बिजनौर से 12 किलो मीटर दूर बहती है। इस एरिया के ऊपर कई पुराने छोटे छोटे मंदिर हैं। वैसे ही मंदिर जैसे गंगा के किनारे होते हैं। रूड़की में 1825 के आसपास गंग नहर बनी। इसी दौरान बालावाली में रेलवे पुल बना। इससे गंगा की धार बंध गई। गंज के केवलानंद आश्रम के स्वर्गीय स्वामी सुखानंद जी अपने शिष्यों को बताते थे कि उन्होंने गंगा में चलते बड़े बड़े जहाज देख्रे हैं।
काजीपाड़ा के रहने वाले खाल‌िद असरार बतातें हैं कि उनके पूर्वजों ने मकान की जमीन 1872 में खरीदी। उससे पहले गंगा काजीपाड़ा से पीछे जा चुकी थी। वे कहते हैं कि काजीपाड़ा की जामा मस्जिद भी ढाल से ऊपर इसलिए बनी है क्योंकि नीचे गंगा का पानी आ जाता था।
अचारजान के निवासी संजय खन्ना एडवोकेट बताते हैं कि उनके दादा जी बताते थे कि उनकी कोठी के पीछे गंगा के खोलें हैं। वे वहते हैं कि उनकी (बाल कृष्ण खन्ना की ) कोठी के सामने की धर्मशाला बहुत ऊंची उठाकर इसलिए बनाई गई थी कि यहांतक गंगा का पानी आ जाता था।
जाटान के रहने वाले न्यूज पेेपर एजेंट दिनेश शर्मा कहते हैं कि उनके घर से मुख्य शहर में जाने के लिए सभी साउड से 40 -45 फिट की ऊचांई चढ़नी पड़ती है। वे कहते हैं कि छुटपन में घर के सामने जब वे खेलते थे तो मिट्ठी के नीचे गंगा का रेत निकलता था।
बिजनौर के इतिहास के बड़े जानकार शकील बिजनौरी कहते हैं कि कि आज से लगभग 200 साल पूर्व गंगा बिजनौर के पुराने शहर से होकर बही है। पुुरानी तहसील चौराहे से प‌श्चिम का ढाल बताता है कि ये गंगा के खोले हैं। इस ढाल के ऊपर के पुराने छोटे छोटे मंदिर गंगा किनारे बने मंदिर हैं।पुरानी तहसील से आगे एक रास्ता सदुपुरा को गया है। एक जाटान को । जाटान के ढाल से गंगा आगे बढ़ गई। इससे सदुपुरा और जलालपुर घाट वाले मार्ग को प्रभावित नही किया।
जाटान के रहने वाले बिजली विभाग से सेवानिवृत बिजेन्द्र पाल ‌सिंह बताते हैं कि मुहल्ले के वृद्ध कढेरा सिंह बताते थे कि वे इस ढाली के कुछ आगे गंगा में खूब नहाए हैं। पहले यहां गंगा बहती थी।
मोहल्ला जाटान निवासी 85 वीरेंद्र अग्रवाल सर्राफ बताते हैं कि वे चार पीढ़ियों से जाटान में रह रहे हैं। उनके पिता बताते थे कि जहां उनका घर है वहां कभी गंगा बहती थी। उनका घर गंगा के तट जैसे टीले पर दस फीट की ऊंचाई पर है। उनके मकान से भी ऊपर तक ये टीले थे। उनके अनुसार जब वे छोटे थे तो गांव गोकलपुर वाली जगह में गंगा बहती थी। वह वहां खूब नहाते थे। जहां चामुंडा मंदिर है वहीं से गंगा की रेती शुरू हो जाती थी। शीतला माता मंदिर के पास गंगा का तट था। शीतला माता मंदिर में खड़ा पिलखन गंगा तट पर था। वहां रखी शिवलिंग व नंदी की मूर्ति भी गंगा तट से ही मिली थीं। अब तो गंगा की धारा वहां से कई किलोमीटर दूर खिसक चुकी है।
जाटान निवासी डा.दीपक विश्नोई बताते हैं कि जहां उनका घर है उसके सामने कभी श्मशान घाट था। यहां गंगा के किनारे शवों का अंतिम संस्कार होता था। शहर तो बहुत थोड़ा सा घंटाघर की ओर ही था। धीरे धीरे गंगा की धारा पीछे की ओर गई तो यहां शहर बस गया।
अशोक मधुप

No comments: