Thursday, April 12, 2018

बहुत कुछ बदल गया ४८ साल में

४८ साल एक युग होता है। पर इतना भी नहीं जितना परिवर्तन हो गया। मैने आज से ४८ साल पहले हाई स्कूल परीक्षा पास की थी। उस समय जनपद में कुछ ही छात्र प्रथम श्रेणी पाते थे। अधिकतर को तृतीय श्रेणी मिलती। द्वितीय श्रेणी पाने वाला अपने को बहुत भाग्यशाली समझता। पूरे गांव में उसकी विद्वता के चर्चे होते। प्रदेश का रिजल्ट होता था लगभग ३०-३५ प्रतिशत। हॉल  प्रदेश का इंटर का रिजल्ट देखकर मैं चौंक गया। परीक्षा में ९२.२ प्रतिशत छात्र उत्तीर्ण हुए हैं। सर्वाधिक अंक पाने वाली छात्रा के ९७ प्रतिशत से ज्यादा है। मेरे पड़ौस में झालू में टेलर होते थे पीरजी । नाम क्या था, यह कोई नहीं जानता। सब उन्हें पीर जी कहते थे। उनका लड़का जहीर मेरे से सीनियर थे। इनकी हाई स्कूल में सेकेंड डिवीजन आई थी। वह कहते थे । सेकेंड डिवीजन लाना मामूली बात नहीं है।  साइन्स में तो   लोहे के चने चबाने पड़ते हैं। बहुत मेहनत करनी होती है, जब जाकर सेकेंड डिवीजन आती है। ४५ प्रतिशत अंक पर सेंकेड डिवीजन मिलती थी। मेरे पास विज्ञान विषय थे। मुझे ४५.५ प्रतिशत अंक आए थे। मात्र एक अंक ज्यादा मिलने पर मुझे सेकेंड डिवीजन मिली। वर्ना थर्ड ही रहती पर मुझे गर्व है कि मैने सेकेंड डिवीजन से हाई स्कूल पास किया । आज आश्चर्य होता है, जब उसी यूपी बोर्ड के छात्रों को ९५ प्रतिशत नंबर मिले देखता हूं ,जिस बोर्ड में सेकेंड डिवीजन से पास होना किसी समय एक जंग जीतना था | 

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