याद रही एक पुरानी कविता
चीन ने भारत पर १९६२ में हमला किया था । में उस समय कक्षा छह का छात्र था । दिल्ली के नव भारत टाइम्स और हिंदी हिंदुस्तान बिजनोंर में आते थे। वीर अर्जुन के नरेन्द्र का बहुत ही प्रसिद्ध अख़बार था । झालू में छतरी वाले कुए के सामने दुमंजले पर कुछ युवकों ने मिलकर लाइब्रेरी खोली थी । मै वहां जाकर अख़बार पढता था । उसी समय चीन के हमले पर किसी अख़बार में छपी ये कविता मैं आज तक नहीं भूला ।
भारत माँ के वीर अंश हम नहीं किसी से डरते हैं ,
ओ गद्दारों तुमसे तो क्या यम से भी लड़ सकतें हैं ।
भाई तुमको माना हमने , इसी लिए सह् गए सभी,
और पडोसी अपना जान खडग उठाया नहीं कभी ,
अब जागे हैं सिंह सभी ,खून तुम्हारा पीने को ,
साँस तभी लेगें जब तुमको ,एक ना छोड़ें जीने को ।
चीन ने भारत पर १९६२ में हमला किया था । में उस समय कक्षा छह का छात्र था । दिल्ली के नव भारत टाइम्स और हिंदी हिंदुस्तान बिजनोंर में आते थे। वीर अर्जुन के नरेन्द्र का बहुत ही प्रसिद्ध अख़बार था । झालू में छतरी वाले कुए के सामने दुमंजले पर कुछ युवकों ने मिलकर लाइब्रेरी खोली थी । मै वहां जाकर अख़बार पढता था । उसी समय चीन के हमले पर किसी अख़बार में छपी ये कविता मैं आज तक नहीं भूला ।
भारत माँ के वीर अंश हम नहीं किसी से डरते हैं ,
ओ गद्दारों तुमसे तो क्या यम से भी लड़ सकतें हैं ।
भाई तुमको माना हमने , इसी लिए सह् गए सभी,
और पडोसी अपना जान खडग उठाया नहीं कभी ,
अब जागे हैं सिंह सभी ,खून तुम्हारा पीने को ,
साँस तभी लेगें जब तुमको ,एक ना छोड़ें जीने को ।
No comments:
Post a Comment