Monday, January 20, 2025

क्या इरडा बीमा कंपनियों की नकेल कस सकेगा?

 क्या इरडा बीमा कंपनियों  की नकेल कस सकेगा?

अशोक मधुप

वरिष्ठ पत्रकार

बीमा कंपनियों के बारे में हाल ही में इरडा ( भारतीय बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण) ने एक  रिपोर्ट जारी की है कि बीमा कंपनियां बीमा खरीदार द्वारा किए 100  रूपये के भुगतान पर 86 रूपये ही क्लेम देती हैं।इस रिपोर्ट में  और भी बहुत कुछ है किंतु इरडा ने यह नही बताया कि कम भुगतान करने वाली कंपनियों पर इरडा क्या कार्रवाई कर रही है?कितने मामलों में उसने पूरा भुगतान कराया?इस व्यवस्था में सुधार के लिए उसके द्वारा किए गए निर्णय क्या हैं?बिल प्राप्त हो जाने के बाद बिलों भुगतान क्यों नही हो रहा?भुगतान में विंलब की अवधि का उपभोक्ता  को सूद क्यों नही दिलाया जा रहा?

भारतीय बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण (इरडा) की हालिया रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि सामान्यस्वास्थ्य और सरकारी बीमा कंपनियां 100 रुपये का प्रीमियम लेकर सिर्फ 86 रुपये ही क्लेम देती हैं। कुछ बीमा कंपनियां तो 100 रुपये के एवज में 56 रुपये ही क्लेम दे रही हैं।रिपोर्ट में कहा गया है कि 2023-24 में सामान्य बीमा कंपनियों ने पॉलिसीधारकों को दावे के एवज में 76,160 करोड़ रुपये का भुगतान किया। यह 2022-23 की तुलना में 18 फीसदी अधिक है।

2023-24 में बीमा कंपनियों ने कुल 83 फीसदी दावों का निपटान किया और 11 फीसदी खारिज कर दिया। छह फीसदी दावे 31 मार्च2024 तक लंबित रहे। इस अवधि में सामान्य और स्वास्थ्य बीमा कंपनियों ने कुल 2.69 करोड़ स्वास्थ्य दावों का निपटान कर 83,493 करोड़ रुपये का भुगतान किया। प्रति क्लेम औसत रकम 31,086 रुपये रही। विश्लेषकों का कहना है कि प्रीमियम लेने और दावों के निपटान में क्रमशः 100 फीसदी और 80 फीसदी का औसत ठीक-ठाक है।

कुल दावों में से 72 फीसदी थर्ड पार्टी (टीपीए) ने निपटाए। बाकी 28 फीसदी दावों का निपटान कंपनियों ने अपने तरीके से किया। 66.16 फीसदी दावे कैशलेस तरीके से निपटाए गएजबकि 39 फीसदी में रिइंबर्समेंट मिला।

सरकारी कंपनियों का क्लेम 100 रुपये के प्रीमियम के एवज में 90 रुपये से अधिक रहा है। नेशनल इंश्योरेंस ने 100 रुपये प्रीमियम लेकर 90.83 रुपये क्लेम दिया है। न्यू इंडिया ने 105.87 रुपयेओरिएंटल ने 101.96 रुपये और यूनाइटेड इंडिया ने 109 रुपये क्लेम दिया है। सभी सरकारी बीमा कंपनियों का क्लेम औसत 103 रुपये रहा है।

भारतीय बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण (इरडा) की हालिया रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि सामान्यस्वास्थ्य और सरकारी बीमा कंपनियां 100 रुपये का प्रीमियम लेकर सिर्फ 86 रुपये ही क्लेम देती हैं। ये इरडा की रिपोर्ट है, जबकि सच्चाई कुछ और है। आप क्लेम मांग  कर देखिए ,ये कंपनियां कितना परेशान करती हैं। उपभोक्ता के बिल में  मनमर्जी  की कटौती तो आम बात है। इरडा  जो  बीमा कंपनियों पर नियंत्रण करती है।उनकी गतिविधियों पर रोक लगाती है।उसका कार्य है कि बीमा कंपनियों द्वारा अवैघ रूप से रोके गए भुगतान दिलाए।  उसके नियंत्रण के बावजूद  क्यों नही बीमा कंपनियों पर सही से नियत्रंण नही हो रहा। इरडा ने कहा कि  बीमा कंपनियां 100 रूपये के प्रीमियम पर 86 रूपया ही क्लेम दे रही है । रिपोर्ट में यह भी कहा गयाहै कि है। कुछ बीमा कंपनियां तो 100 रुपये के एवज में 56 रुपये ही क्लेम दे रही हैं।इरडा ने ये रिपोर्ट तो जारी कर दी किंतु यह नही बताया कि प्रीमियम की  एवज में कम भुगतान करने वाली बीमा कंपनियों के विरूद्ध वह क्या कार्रवाई कर रहा है?वह ऐसा कर कर रहा है कि बीमा कंपनियां पूरा भुगतान दें। उसे इस रिपोर्ट पर उठाए गए कदम और आदेश भी बताने चाहिए थें।

दरअस्ल  बीमा कंपनियों की भुगतन में मनमर्जी चलती है।बीमा कराने वाले की कोई नही सुनता। मेरा ओरिंयटल इंशोरेंस कंपनी का दस लाख का मैडिक्लेम है।दस साल से पुरानी पोलिसी है। पहले यह बीमा पांच लाख रूपये का था। लगभग छह साल पहले मैंने इसे बढ़ाकर दस लाख का करा लिया।दस लाख में मैं और मेरी पत्नी दोनों कवर है।मैंने लगभग  चार साल पहले  अपनी पत्नी की आंख का मोतियाबिदं का आपरेशन देहरादून के अमृतसर  क्लीनिक में कराया। कंपनी का कहना है कि मोतियाबिदं के आपरेशन में हम चालिस हजार रूपये  का भुगतान करेंगे। आपने खर्च कितना ही किया हो, हमें इससे कुछ नही लेना।मैंने दोनों आखों के आपरेशन का 40− 40 हजार रूपये  का बिल कंपनी को  भेजा । पहले आपरेशन का इन्होंने अपनी मनमर्जी से 22 हजार का भुगतान किया। दूसरी आंख का चालिस हजार रूपये का भुगतान दिया। मैंने लिखा पढ़ी की तो उत्तर आया कि हम कर सकते हैं। हमने कर दिया।काफी लिखा पढ़ी करने  और धमकाने पर काफी समय बाद बचे 18 हजार रूपये भुगतान किया।इसके बाद मैंने घुटनों का ट्रांसप्लांट कराया।पहले घुटने का बिल भेजा। दो लाख 38 हजार का। इन्होंने भुगतान किया  दो लाख 36 हजार का।दूसरे घुटने के  आपरेशन का बिल बना दो लाख 42 हजार । इन्होंने इस भुगतान किया दो लाख 38 हजार । यह ठीक था । इतनी कटौती हो सकती है।इस पर किसी भी उपभोक्ता को आपत्ति नही होगी।

 पिछले साल मैं छोटे बेटे के पास राजकोट में था।वहां मुझे बाईपास सर्जरी करानी पड़ी।इस  सर्जरी का खर्च में इन्होंने करीब  70 हजार की कटौती की।इसमें 55 हजार के आसपास  आपरेशन के दौरान अस्पताल द्वारा मुझे खिलाए भोजन के साथ ही  आपरेशन में प्रयुक्त हुए सामान निडिल, ग्लोबज और सिरेंज  आदि के व्यय की की गई। अब को इनसे पूछने वाला नही कि आपरेशन के दौरान अस्पताल में रहने के दौरान क्या मरीज भोजन नही करेगा? क्या बिना भोजन किए आठ दिन रहा जा सकता है? इंजेक्शन सिरेंज , निडील ,ग्लोबस आदि के बिना आपरेशन हो सकता है, ? कितुं कोई सुनने वाला  नही।ये मेरा ही नही औरों का भी ये ही किस्सा है। उन्होने भी कहा कि उनके भी आपरेशन में प्रयोग हुईं  निडिल सिरेंज गलोब्स के भुगतान में मनमर्जी है। किसी केस में भुगतान कर देते हैं किसी में नहीं। ये समझ नही  आता कि भुगतान में  बीमा कंपनियों मनमर्जी क्यों करती हैं?  इरडा को स्पष्ट आदेश करना चाहिए कि वे क्या भुगतान करेंगी क्या नही।ये ही आदेश वाहनों के बारे में होना चाहिए।   इरडा ने पीछे आदेश किया कि अप्रेल 2024 से सभी  अस्पताल में कैशलेश की सुविधा मिलेगी, किंतु सभी कंपनी ऐसा नही कर रही। एक बात और अप्रेल 2024 से पहले अस्पताल को कैशलैश के पैनल में शामिल करने में भी बड़ा खेला है।प्राइवेट कंपनियां  तो केशलैश के पैनल में अस्पताल को शामिल करने में बहुत उदार हैं, कितुं सरकारी  कंपनी नहीं ।पत्नी की आखों का मोतियांबिंद का आपरेशन देहरादून के प्रसिद्ध  25 साल से ज्यादा पुराने अस्पताल अमृतसर आई क्लीनिक में कराया। इतना पुराना ये अस्पताल ओरियंटल इंशोरेंस कंपनी के पैनल में नही था ।गुजराज का स्टर्लिंग अस्पताल वहां का बड़ा और 25 साल पुराना अस्पताल है।इसकी गुजरात में कई ब्रांच है।यह भी  इस कंपनी के पैनल में नही है।छोटे शहरों के अस्पताल की तो बात ही क्या की जाएं।  पिछले अप्रेल से इरडा ने आदेश किया है कि पैनल में न होने वाले अस्पतालों में भी कैशलैश की सुविधा मिलेगी, किंतु अब भी इन कंपनी की मनमर्जी  चल रही है। सभी को कैशलैश की सुविधा नही मिल रही।मजबूरन लोगों को अस्पताल को पहले खुद भुगतान करना पड़ता है, बाद में बीमा कंपनी भुगतान करती हैं, वह भी मनमर्जी से । इस भुगतान में भी कई –कई माह लगा देती हैं। इरडा को चाहिए कि बीमा कंपनियों को यह भी आदेश करे कि बीमा कंपनियां बिल प्राप्त होने के बाद 15 दिन में बिल की राशि का भुगतान करें। भुगतान में विलंब होने पर बाजार दर से उपभोक्ता को  उसके बिल की राशि पर सूद दे।  

अशोक मधुप

 (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

Thursday, January 16, 2025

अखबारों की सुर्खी नही बना प्रवासी सम्मेलन

  अखबारों की सुर्खी नही बना  प्रवासी सम्मेलन

अशोक मधुप

वरिष्ठ पत्रकार

आठ से दस जनवरी  तक चला 18वां प्रवासी भारतीय दिवस सम्मेलन अखबारों की सुखियां भी नही बन सका।उड़ीसा राज्य के भुवनेश्वर में हुए इस  तीन दिवसीय सम्मेलन की कामयाबी पर न लेख लिखे गए न संपादकीय।  ये  सम्मेलन एक रूटिन का कार्यक्रम ही बन कर रह गया।सरकार ये वह भी नही बताया कि देश की विकास याजनाओं में बाधक देश में फैले   भ्रष्टाचर को रोकने की उसकी क्या योजनाएं हैं?प्रवासी भारतीयों के भारत के विकास में योगदान के लिए आने वाले प्रोजेक्ट की अनुमति आदि की मानिटरिंग के लिए उच्च स्तर पर इसकी देखरेख करने के लिए क्या करने का इरादा हैं? उच्च स्तर पर ये भी   देखा जाए कि  प्रोजेक्ट की अनुमति में अनावश्यक विलंब तो नही किया जा रहा?रिश्वत की चाहत में उद्योगपति को परेशान तो नही किया जा रहा?   

इस बार के प्रवासी भारतीय दिवस सम्मेलन का विषय-‘विकसित भारत में प्रवासी भारतीयों का योगदान’ जरूर रहा किंतु इसमें न कोई निर्णय हुए न कोई विशेष प्रस्ताव। प्रवासियों को भारत के चुनाव में मत देने का अधिकार है, किंतु न वे वोट बनवाने में रूचि रखते हैं, न वोट डालने में। उनसे वोट बनवाने और देश के विकास के लिए अपनी सरकार बनाने के लिए वोट करने की अपील की जा सकती थी किंतु वह भी नही की गई। 2003  से मनाना  शुरू हुई  प्रवासी सम्मेलन अभी तक एक औपचारिकता ही लगा।

भुवनेश्वर में  इस प्रवासी भारतीय दिवस सम्मेलन की शुरुआत बुधवार को   विदेश मंत्री एस जयशंकर के उदबोधन से हुई। उन्होंने प्रवासी भारतीयों और भारतीय मूल के लोगों से 'विकसित भारत' के निर्माण में सक्रिय रूप से भाग लेने का आह्वान किया। ओडिशा को असीमित अवसरों की भूमि बताते हुए मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी ने गुरुवार को प्रवासी भारतीयों से राज्य की विकास यात्रा में भाग लेने का आह्वान किया।

इस प्रवासी भारतीय दिवस के उद्घाटन समारोह में बोलते हुए श्री माझी ने कहा, “ओडिशा सिर्फ़ अपने गौरवशाली अतीत और प्राकृतिक सुंदरता के लिए ही नहीं जाना जाता; यह भविष्य के लिए असीम अवसरों की भूमि है।” ओडिशा के निवेशक-अनुकूल वातावरण पर प्रकाश डालते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य अब भारत में निवेश के लिए सबसे स्वागत योग्य स्थलों में से एक है। मुख्यमंत्री ने कहा, "मैं आप सभी से इन अवसरों का लाभ उठाने और अपनी मातृभूमि के विकास और समृद्धि में योगदान देने का आग्रह करता हूं। वैश्विक भारतीय प्रवासी समुदाय के सदस्य के रूप में, आप दुनिया के लिए हमारे राजदूत हैं। मैं आपको ओडिशा और भारत के लिए एक उज्ज्वल भविष्य को आकार देने में हमारे साथ हाथ मिलाने के लिए आमंत्रित करता हूं। हम सब मिलकर 2047 तक विकसित भारत का लक्ष्य हासिल कर सकते हैं।"

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नौ को जनवरी,  सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि आज विश्व भारत की बात सुनता है, तथा देश अपनी विरासत के कारण ही अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को यह बताने में सक्षम है कि भविष्य युद्ध में नहीं, बल्कि बुद्ध में निहित है।

इस मौके पर प्रधानमंत्री मोदी ने प्रवासी भारतीय एक्सप्रेस को भी हरी झंडी भी दिखाई। यह भारतीय प्रवासियों के लिए स्पेशल टूरिस्ट ट्रेन है, जो दिल्ली के निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन से चली और तीन सप्ताह तक कई टूरिस्ट प्लेसेज तक जाएगी। विदेश मंत्रालय की प्रवासी तीर्थ दर्शन योजना के तहत इसका संचालन किया जा रहा है। गौरतलब है कि इस कार्यक्रम के लिए 70 देशों से तीन हजार से ज्यादा प्रतिनिधि ओडिशा पहुंचे हैं।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुरुवार को सम्मेलन में चार प्रदर्शनियों का उद्घाटन किया, जिनमें भारत की सांस्कृतिक विरासत, परंपराओं और प्रवासी भारतीयों के योगदान को प्रदर्शित किया गया। उन्होंने कहा कि  प्रवासी भारतीय दिवस, भारत और उसके प्रवासियों के बीच संबंधों को प्रगाढ़ करने वाली एक संस्था बन चुकी है। श्री मोदी ने उल्‍लेख किया कि हम सब मिलकर भारत, भारतीयता, अपनी संस्कृति और प्रगति का उत्‍सव मनाते हैं और साथ ही अपनी जड़ों से जुड़ते हैं।राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने 10 जनवरी के समापन सत्र में प्रवासी भारतीयों को संबाधित किया। और प्रवासी भारतीय सम्मान पुरस्कार प्रदान किए।

राष्ट्रपति ने इस अवसर पर अपने संबोधन में कहा कि प्रवासी भारतीय हमारे देश की सर्वश्रेष्ठ पहचान हैं। चाहे वह प्रौद्योगिकी, चिकित्सा, कला या उद्यमिता का क्षेत्र हो, प्रवासी भारतीयों ने अपनी ऐसी छाप छोड़ी है जिसे दुनिया स्वीकार करती है और सम्मान देती है।

दुनिया भर से आए सैकड़ों प्रवासी भारतीय सम्मेलन में भाग लेने के लिए भुवनेश्वर के जनता मैदान में एकत्र हुए। उन्होंने गर्मजोशी से स्वागत और इस आयोजन की तैयारियों को लेकर ओडिशा की सराहना की। प्रवासी भारतीयों ने कहा कि यह आयोजन राज्य की जीवंत सांस्कृतिक धरोहर का अनुभव करने का एक बेहतरीन अवसर प्रदान कर रहा है।

पचास वर्षों से स्लोवेनिया में रहने वाली एक प्रवासी भारतीय कोकी वेबर ने इस आयोजन में शामिल होने को लेकर खुशी जाहिर की। वह नमस्ते नाम का एक कारोबार चलाती हैं, जिसमें भारतीय हस्तशिल्प को बढ़ावा दिया जाता है। उन्होंने कहा, मैं भारतीय हस्तशिल्प से बने चमड़े के सामान, रेशमी स्कार्फ, अगरबत्तियां और इनर गारमेंट्स बेचती हूं, जो सभी भारत में बने होते हैं। कोकी ने ओडिशा को भारत का एक छिपा हुआ रत्न बताया। 

इस सम्मेलन के आयोजन से पूर्व सरकार द्वारा वह नही बताया गया कि अब तक आयोजित 17 प्रवासी सम्मेलन की उपलब्धि कया है। इसके माध्यम से देश में कितने उद्योग आए।कितनी भारतीय प्रतिभाएं स्वदेश  वापिस लौटी। हालाकि यह सर्व विदित है कि प्रवासी भारतीय  पहले के मुकाबले अब सूदूर देश में अपने को ज्यादा सुरक्षित महसूस करते हैं। वे मानते  है कि मुसीबत की घड़ी में उनका देश और वहां की सरकार उनके साथ मजबूती से खड़ी होगी और भरसक मदद करेगी।

इस सम्मेलन में केंद्र द्वारा  प्रवासियों से भारत के विकास में योगदान की अपील के साथ यह नही बताया गया कि वे देश  विकास का माहौल बनाने के लिए क्या कर रहा है।  हाल में एक सर्वे में दावा किया गया है कि 100 में से 66 लोगों को अपना काम  कराने के लिए सरकारी तंत्र को रिश्वत देनी पड़ती है। चलते देश में उद्यमिता को बढ़ावा देने की सिंगल विंडो क्लियरेंस और ईज आफ डुइंग बिजनेस जैसे प्रयासों को पलीता लग रहा है।एक सर्वे में यह बात सामने आई है कि करीब 66 प्रतिशत कंपनियों को सरकारी सेवाओं का लाभ लेने के लिए रिश्वत देनी पड़ती है। कंपनियों ने दावा किया कि उन्होंने सप्लायर क्वॉलीकेशन, कोटेशन, ऑर्डर प्राप्त करने तथा भुगतान के लिए रिश्वत दी है। लोकल सर्कल्स की रिपोर्ट के अनुसार कुल रिश्वत का 75 प्रतिशत कानूनी, माप- तौल, खाद्य, दवा, स्वास्थ्य आदि सरकारी विभागों के अधिकारियों को दी गई।जांच रिपोर्ट कहती है कि कई कारोबारियों ने जीएसटी अधिकारियों, प्रदूषण विभाग, नगर निगम और बिजली विभाग को रिश्वत देने की भी सूचना दी है। पिछले 12 महीनों में जिन कंपनियों ने रिश्वत दी, उनमें से 54 प्रतिशत को ऐसा करने के लिए मजबूर किया गया, जबकि 46 प्रतिशत ने समय पर काम पूरा करने के लिए भुगतान किया। इस तरह की रिश्वत जबरन वसूली के बराबर है।केंद्र सरकार को  इस रिपोर्ट के बारे  टिप्पणी करनी चाहिए थी। यह भी बताना चाहिए था कि इस भ्रष्टाचार के नाम पर इस जबरन वसूली रोकने की इसकी क्या योजनांए है?देश में उद्योग लगाने के लिए माहौल बनाने के लिए उसकी क्या तैयारी हैं?

अशोक मधुप

 (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

Wednesday, January 8, 2025

आदमी अब घर से बाहर क्या खाएं?

आदमी अब घर से बाहर क्या खाएं? अशोक मधुप वरिष्ठ पत्रकार हाल में खबर आई है कि आगरा में 18 प्रसिद्ध और बड़ी कंपनियों के नाम से नकली घी तैयार हो रहा था। तैयार घी की पूरे यूपी समेत कई प्रदेशों में सप्लाई होती थी।इस घी से बाजार में फास्ट फूड तैयार होते हैं।पहले भी समय –समय पर नकली घी पकड़ा जाता रहा है। बाजार में पनीर, दूध, मावा और अन्य खाद्य पदार्थ के नकली होने की शिकायतें मिलती रहती हैं।आटा,दाल और अन्य खाद्य सामन भी घटिया क्वालिटी का पकड़ा जाता रहा है।पिछले कुछ समय से खाने या पानी में थूकने, पेशाब करने , खाने के बर्तन को नाली के पानी में धोने की शिकायते रहीं हैं। ऐसे में प्रश्न पैदा होता है कि आदमी घर से बाहर अब क्या खाएं? सफर में पेट भरने के लिए आदमी क्या करे? क्या हमें पुरानी स्थिति पर जाना होगा, जब आदमी घर से ही खाना लेकर चलता था। घर का खाना खत्म होने पर फल खाकर काम चलाता था, किंतु बाजार का नही खाता था। या अब उसे घर से बड़ी कंपनियों के रेटीमेड फूट पैकेट लेकर चलने होंगे? आगरा के ताजगंज के मारुति सिटी रोड पर नवविकसित कॉलोनी के प्लॉट में नकली देसी घी तैयार करके पूरे प्रदेश में सप्लाई किया जा रहा था। पुलिस और एसओजी की टीम ने छापा मारकर अमूल, मधुसूदन, पतंजलि सहित 18 मशहूर ब्रांडों के नाम की पैकिंग में नकली देसी घी जब्त किया है। इसमें रिफाइंड व अन्य कैमिकल की मिलावट की जा रही थी। फैक्टरी के मैनेजर सहित पांच लोग गिरफ्तार किए हैं। डीसीपी सिटी सूरज कुमार राय ने बताया कि मारुति सिटी रोड पर मारुति प्रभासम कॉलोनी में राजेश अग्रवाल नामक व्यक्ति के प्लॉट में टिन शेड डालकर फैक्टरी संचालित की जा रही थी। प्लॉट किराए पर ले रखा था। पूछताछ में बताया गया कि ग्वालियर निवासी बृजेश अग्रवाल, पंकज अग्रवाल, नीरज अग्रवाल का प्योर इट के नाम से देसी घी का ब्रांड है। उन्होंने करीब छह माह पूर्व फैक्टरी खोली थी। कॉलोनी के राजेश भारद्वाज को मैनेजर बनाया था। बाजार से जिस ब्रांड की डिमांड मिलती थी, उसी ब्रांड के स्टिकर लगाकर टिन और डिब्बों में पैक कर दिया जाता था। प्रेस को यह भी बताया गया कि फैक्टरी में भारी मात्रा में बना हुआ घी, कच्चा माल, कई कंपनियों के स्टीकर, प्रयोग की जाने वालीं मशीन, पैकिंग मशीन आदि बरामद की गई हैं। बरामद माल की कीमत करोड़ों में बताई जा रही है। पुलिस फैक्टरी के संचालक और कर्मचारियों के विरुद्ध अपनी तरफ से मुकदमा दर्ज कर रही है। एफएसडीए की टीम को भी कार्रवाई के लिए बुलाया गया है। आरोपियों से पूछताछ की जा रही है। पुलिस ने बताया कि छापे से कुछ देर पहले ही नकली देसी घी के 50 टिन की खेप मेरठ भेजी गई थी। इस माल की बरामदगी के प्रयास किए जा रहे हैं। पुलिस ने बताया कि नकली देसी घी प्रदेश के अलावा आसपास के राज्यों में सप्लाई किया जा रहा था। पॉम आयल, रिफाइंड, वनस्पति और एसेंस से तैयार हो रहा था।सुगंध असली घी जैसी और दाने भी रवेदार, एकबारगी तो पुलिस टीम को भी असली घी का भ्रम हुआ। डीसीपी सिटी सूरज कुमार राय ने बताया कि वह खुद मौके पर पहुंचे। सबसे पहला सवाल यह किया कि घी कैसे बनाते थे। आरोपियों ने बताया कि देसी घी की लोगों को पहचान नहीं है। कोई खुशबू देखता है तो कोई दाने। वो लोग पॉम ऑयल, रिफाइंड, वनस्पति घी, कैमिकल को मिलाकर देसी घी तैयार किया करते थे। उसमें एसेंस मिलाते थे। ताकि खुशबू आए। मौके से एक्सपाइरी डेट का रिफाइंड भी मिला। पुलिस ने आरोपियों से पूछा कि इसको क्यों खरीदा। मजदूरों ने बताया कि एक्सपाइरी डेट का माल सस्ता मिलता है। जब वे देसी घी बनाते थे तो इस रिफाइंड का भी प्रयोग करते थे। आगरा पुलिस के अनुसार बिल्टियों की जांच में पता चला कि नकली देसी घी को राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, असम व बिहार के अलावा उत्तर प्रदेश के दो दर्जन से ज्यादा शहरों के फास्ट फूड बाजारों में सीधे बेचा जाता था। इसी घी से डोसा, भल्ले, समोसे और आमलेट तक बनाया जाता था। खाद्य और औषधि विभाग ग्वालियर के अनुसार रामनाथ अग्रवाल व उनके परिवार के लोग पहले नकली घी के कारोबार में लिप्त थे और रासुका भी लगी थी।2010 के बाद से इन्होंने ग्वालियर छोड़ दिया था। इससे पहले 24 नवंबर 2023 को दिल्ली पुलिस ने द्वारका में एक ऐसी फैक्ट्री का भंडाफोड़ किया है, जहां मिलावटी घी बनाया जाता था और उसे पतंजलि, मदर डेयरी और अमूल जैसे ब्रांड का स्टिकर लगे हुए कंटेनर में भरकर बेचा जाता था। बाबा रामदेव की नामी-गिरामी कंपनी पतंजलि ब्रांड गाय के घी का सैंपल खाद्य सुरक्षा और औषधि विभाग के द्वारा साल 2021 में दीपावली के पर्व पर टिहरी जनपद के घनसाली में एक दुकान से सैंपल भरा गया था। इसके बाद सैंपल को राज्य की प्रयोगशाला में जांच के लिए भेजा गया तो, सैंपल फेल पाया गया। खाद्य संरक्षा विभाग के द्वारा कंपनी को नोटिस जारी किया तो, कंपनी ने राज्य की लैबोरेट्री को रिपोर्ट को गलत साबित किया। खाद्य संरक्षा विभाग के द्वारा केंद्रीय प्रयोगशाला में सैंपल भेजा गया तो केंद्रीय प्रयोगशाला में भी बाबा रामदेव की पतंजलि ब्रांड गाय के घी का सैंपल फेल पाया गया। आज लोगों का घर से निकलना, घूमना, यात्र करना, विभागीय कार्य से बाहर जाना आम बात है।इन लोगों को ऐसे में घर से बाहर ढ़ाबों, होटल और फाष्ट फूड सैंटर से ही पेट भरना होता है। बाजार में नकली दूध पनीर की पहले ही शिकायत रही हैं।अन्य खाद्य पदार्थ की भी शुद्धताकी कोई गारंटी नही। बिजनौर जनपद के चांदपुर क्षेत्र में पिछले साल नवरात्रि के अवसर पर बाजार में बिक रहे घटिया क्वालिटी का कोटू का आटा का खाकर काफी व्यक्ति पहले ही बीमार पड़ चुकें हैं। पिछले एक डेढ़ वर्ष से शिकायत मिल रही हैं कि कुछ लोग खाने में थूक रहे हैं। फलों पर पेशाब डालकर छिड़क रहे हैं।ब्रेड में थूका जा रहा है। खाने की सामग्री अपवित्र कर बेची जा रही है। मानव की फितरत रही है कम पैसा लगाकर ज्यादा से ज्यादा लाभ कमाना। उसे इससे कोई मतलब नही कि उसके द्वारा उत्पादित खाद्य सामग्री खाने से खाने वाले पर क्या असर पड़ेगा। नकली सामान तैयार करने वालों को इससे कोई लेना − देना नही कि उनके द्वारा तैयार नकली और निम्न क्वालिटी के सामान के प्रयोग करने वाला बीमार होगा या नही ।क्या असर होगा। वह मरेगा या जिएगा। इसे मिलावट को रोकने के लिए सरकार का आगे आना होगा। मिलावट करने वालों के खिलाफ कड़ी और आजीवन कारावास जैसी सजा, संपत्ति की जब्ती जैसी कार्रवाई अमल में लानी होगी।भोजन को अशुद्ध करने के मामले में धर्म गुरूओं को आगे आकर जनचेतना पैदा करनी होगी। यदि ऐसा न हुआ तो हो सकता है, कि आने वाले समय में आदमी आज से 100 साल पीछे की हालत में चला जाए।यह घर से खाना और सफर में तैयार किए जाने वाले खाने का सामान लेकर चलता । इस सामान के खत्म होने पर यह विवशता में फल आदि खाकर काम चलाता था, किंतु बाजार का कुछ नही खाता था। यह भी हो सकता है कि आने वाले समय में सफर पर जाने वाला अपने साथ बड़ी कंपनी की तैयार खाद्य सामग्री लेकर चले और सफर में उसी से उदर पूर्ति करे। अशोक मधुप ( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)