मिलते जुलते चुनाव चिन्ह की वजह से हार गए थे रामविलास पासवान
मामूली पांच हजार मतों के अंतर से जीतीं थी मीरा कुमार
बिजनौर, १६ मार्च
अशोक मधुप
कभी कभी नेता के कद के आगे उसका चुनाव चिन्ह आड़े आने से भी चुनाव की तस्वीर बदल जाती है। साल १९८५ में बिजनौर सीट पर हुए दिलचस्प उपचुनाव में केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान को एक से चुनाव चिन्ह का भारी खामियाजा भुगतना पड़ा था। पूरे चुनाव में हर किसी को पासवान के जीतने की उम्मीद थी। पर इस सीट से चौधरी जगजीवन राम की पुत्री और कांग्रेस प्रत्याशी मीरा कुमार ने बाजी मार ली थी।
कांग्रेस सांसद गिरधारी लाल की मौत के बाद बिजनौर लोकसभा सीट से कांग्रेस ने १९८५ में हुए उपचुनाव में दिग्गज कांग्रेसी नेता बाबू जगजीवन राम की पुत्री मीरा कुमार को चुनाव मैदान में उतारा। बसपा से मायावती चुनाव लड़ रहीं थी। दलित मजदूर किसान पार्टी से केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान चुनाव मैदान में डटे थे। देशभर के नेताओं का बिजनौर में जमावड़ा लगा था। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी , पूर्व मुख्यमंत्री वीरबहादुर सिंह, भजनलाल, पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह, एनडी तिवारी, हरियाणा के मुख्यमंत्री बंशीलाल मीरा कुमार के चुनाव में प्रचार करने के लिए आए थे। वीररामविलास पासवान के चुनाव प्रचार में पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह, पूर्व उपप्रधानमंत्री देवीलाल, मुलायम सिंह यादव, शरद यादव, बीजू पटनायक समेत कई दिग्गज चुनाव मैदान में उतरे थे। इस चुनाव में रामविलास पासवान का चुनाव चिन्ह हल जोतता किसान था। एक निर्दलीय प्रत्याशी को कंधे पर हल रखे किसान का चुनाव चिन्ह मिल गया।
पूरे चुनाव में पासवान - जिताओ, पासवान जिताओ की बात होती रही। सभाओं में पासवान जिताने के नारे लगे। चुनाव चिन्ह का किसी ने प्रचार नहीं किया।
वोटरों ने मुगालते में रामविलास पासवान की जगह निर्दलीय प्रत्याशी को खूब वोट दिए। मीरा कुमार को एक लाख २८ हजार ८६ वोट मिले। रामविलास पासवान को एक लाख २२ हजार ७५३ व बसपा सुप्रीमो मायावती को ६१ हजार ५०४ वोट मिले। रामविलास पासवान इस दिलचस्प चुनाव को 5333 मतों से हार गए। निर्दलीय को 13766 मत मिले।किसी को भी उनके चुनाव में हारने की उम्मीद नहीं थी।
अशोक मधुप
मामूली पांच हजार मतों के अंतर से जीतीं थी मीरा कुमार
बिजनौर, १६ मार्च
अशोक मधुप
कभी कभी नेता के कद के आगे उसका चुनाव चिन्ह आड़े आने से भी चुनाव की तस्वीर बदल जाती है। साल १९८५ में बिजनौर सीट पर हुए दिलचस्प उपचुनाव में केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान को एक से चुनाव चिन्ह का भारी खामियाजा भुगतना पड़ा था। पूरे चुनाव में हर किसी को पासवान के जीतने की उम्मीद थी। पर इस सीट से चौधरी जगजीवन राम की पुत्री और कांग्रेस प्रत्याशी मीरा कुमार ने बाजी मार ली थी।
कांग्रेस सांसद गिरधारी लाल की मौत के बाद बिजनौर लोकसभा सीट से कांग्रेस ने १९८५ में हुए उपचुनाव में दिग्गज कांग्रेसी नेता बाबू जगजीवन राम की पुत्री मीरा कुमार को चुनाव मैदान में उतारा। बसपा से मायावती चुनाव लड़ रहीं थी। दलित मजदूर किसान पार्टी से केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान चुनाव मैदान में डटे थे। देशभर के नेताओं का बिजनौर में जमावड़ा लगा था। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी , पूर्व मुख्यमंत्री वीरबहादुर सिंह, भजनलाल, पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह, एनडी तिवारी, हरियाणा के मुख्यमंत्री बंशीलाल मीरा कुमार के चुनाव में प्रचार करने के लिए आए थे। वीररामविलास पासवान के चुनाव प्रचार में पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह, पूर्व उपप्रधानमंत्री देवीलाल, मुलायम सिंह यादव, शरद यादव, बीजू पटनायक समेत कई दिग्गज चुनाव मैदान में उतरे थे। इस चुनाव में रामविलास पासवान का चुनाव चिन्ह हल जोतता किसान था। एक निर्दलीय प्रत्याशी को कंधे पर हल रखे किसान का चुनाव चिन्ह मिल गया।
पूरे चुनाव में पासवान - जिताओ, पासवान जिताओ की बात होती रही। सभाओं में पासवान जिताने के नारे लगे। चुनाव चिन्ह का किसी ने प्रचार नहीं किया।
वोटरों ने मुगालते में रामविलास पासवान की जगह निर्दलीय प्रत्याशी को खूब वोट दिए। मीरा कुमार को एक लाख २८ हजार ८६ वोट मिले। रामविलास पासवान को एक लाख २२ हजार ७५३ व बसपा सुप्रीमो मायावती को ६१ हजार ५०४ वोट मिले। रामविलास पासवान इस दिलचस्प चुनाव को 5333 मतों से हार गए। निर्दलीय को 13766 मत मिले।किसी को भी उनके चुनाव में हारने की उम्मीद नहीं थी।
अशोक मधुप