Monday, September 8, 2025

रिश्तों की गरिमा की पुनर्स्थापना का यक्ष प्रश्न

 


अशोक मधुप

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आज जगह – जगह रिश्तों का खून हो रहा है। हैं।हालत यह है कि बाप बेटी को मार रहा है ।बेटी बाप को मार रही है ।पति-पत्नी को मार रहा है। पत्नी −पति की हत्याकर रही है।भाई− बहिन को मारते नही झिझक रहा तो भाई की हत्या करते बहन के हाथ नही कांप रहे।मां − बेटे और बेटी का हत्या कर रही है तो बेटा और बेटी मां को ही नही बाप की भी हत्या कर रहे हैं।ऐसा लगता है कि भारत की परिवार व्यवस्था टूट चुकी है। रिश्तों पर स्वार्थ हावी हो गया है। 

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आज समाज का सबसे दुखद और चिंताजनक पहलू यह है कि जिन रिश्तों को सबसे पवित्र और मजबूत माना जाता है, वहीं रिश्ते टूट रहे हैं और हिंसा का शिकार हो रहे हैं। समाचार पत्र और टीवी चैनल लगभग रोज़ाना ऐसी ख़बरें दिखाते हैं।हालत यह है कि बाप बेटी को मार रहा है ।बेटी बाप को मार रही है ।पति-पत्नी को मार रहा है। पत्नी −पति की हत्याकर रही है।भाई− बहिन को मारते नही झिझक रहा तो भाई की हत्या करते बहन के हाथ नही कांप रहे।मां बेटे और बेटी का हत्या कर रही है तो बेटा और बेटी मां को ही नही बाप की भी हत्या कर रहे हैं।ऐसा लगता है कि भारत की परिवार व्यवस्था टूट चुकी है। रिश्तों पर स्वार्थ हावी हो गया है। व्यक्तिवाद ने समाज पर अपना अधिकार कर लिया।

इन घटनाओं ने यह प्रश्न खड़ा कर दिया है कि आखिर इंसान को इतना निर्दयी और क्रूर कौन बना रहा है? जिन संबंधों में विश्वास, अपनापन और प्रेम होना चाहिए, वहां नफरत, तनाव और हिंसा क्यों बढ़ रही है?लगता है कि भारतीय परिवार टूटने  का असर यह हुआ है कि  एकल परिवार अब अपने तक सीमित होने की जद्दोजहद में  है।पहले संयुक्त परिवार होते है।सामूहिक चूल्हा होता था। सामूहिक खान − पान था। हमारे बचपन तक खाना  रसोई के पास जमीन पर बैठकर जीमा जाता था।परिवार के बुजुर्ग बच्चे साथ बैठकर भोजन करते थे। सब दुख− सुख के साथी थे।प्रायः जरूरत के सामान सब घर के आसपास मिल जाते थे।धीरे – धीरे  परिवार की जरूरते बढ़ने लगीं। युवक रोजगार के लिए बाहर जाने लगे।धीरे− धीरे उनके साथ पत्नी और बच्चे नौकरी वाले स्थान पर रहने लगे। आज आदमी अपने तक सीमित होकर रह गया। व्यक्तिवाद हावी हो गया।

लगता है कि जैसे समाज ने सारे रिश्ते जंगल बनाकर रहेंगे। हम आदि व्यवस्था से भी आदम की ओर बढ़ते जा रहे हैं ।इन सब रिश्तों को दोबारा कैसे जिंदा किया जाए इस पर विचार करना

होगा।पहले के समय में संयुक्त परिवार होते थे। परिवार के बुज़ुर्ग विवादों को संभालते, बच्चों को संस्कार देते और छोटी-छोटी गलतियों को समय रहते सुधार लेते। आज अधिकांश परिवार न्यूक्लियर फैमिलीयानी छोटे परिवार बन गए हैं। ऐसे में

पति-पत्नी के झगड़े सुलझाने वाला कोई नहीं होता।माता-पिता और बच्चों के बीच पीढ़ीगत संवाद टूट गया है।अकेलापन और अवसाद  घर कर जाता है।जब संवाद टूटता है तो ग़लतफ़हमियाँ बढ़ती हैं और छोटी-सी बात हिंसा तक पहुँच जाती है।

पहले मोहल्ले और गाँव के लोग भी परिवार के सदस्य जैसे होते थे। यदि किसी परिवार में कलह होती थी तो पड़ोसी हस्तक्षेप करके सुलह करा देते थे। आज लोग एक-दूसरे से अलग-थलग हो गए हैं।निजताके नाम पर लोग किसी के मामलों में बोलना नहीं चाहते।इस चुप्पी का नतीजा है कि छोटे विवाद हिंसक रूप ले लेते हैं।परिवारों में हिंसा का एक बड़ा कारण आर्थिक तनाव भी है।महँगाई, बेरोज़गारी और आर्थिक असमानता ने लोगों को चिड़चिड़ा बना दिया है।पिता बेरोज़गार बेटे पर गुस्सा निकालते हैं, बेटा अपमानित होकर पिता की हत्या तक कर देता है।पति-पत्नी के बीच आर्थिक जिम्मेदारियों को लेकर झगड़े होते हैं जो कभी-कभी खून-खराबे में बदल जाते हैं।शराब, ड्रग्स और अन्य नशे परिवारिक हिंसा की जड़ हैं। नशे में व्यक्ति का विवेक खत्म हो जाता है और वह अपने ही परिवार को मारने तक से नहीं हिचकिचाता। भारत में लगभग 30 प्रतिशत घरेलू हिंसा के मामलों में नशे को मुख्य कारण माना गया है।

आज के समय में शिक्षा का उद्देश्य केवल नौकरी या पैसा कमाना रह गया है। बच्चों को नैतिक शिक्षा, संस्कार और धैर्य सिखाने की परंपरा कमजोर हो चुकी है।सम्मान और सहनशीलता की जगह आत्मकेंद्रितताबढ़ रही है।लोग रिश्तों को बोझ समझने लगे हैं।आपसी विश्वास और त्याग की भावना खत्म हो रही है।यही कारण है कि भाई-बहन, पति-पत्नी, माँ-बेटे जैसे पवित्र रिश्ते भी हत्या जैसे अपराध तक पहुँच जाते हैं।

मोबाइल, टीवी, इंटरनेट और सोशल मीडिया ने जीवन की धारा को बदला है।युवा वर्ग आभासी (Virtual) दुनिया में ज्यादा जी रहा है।परिवार को समय न देकर फ्रस्ट्रेशन’ (तनाव) में डूब जाता है।अपराध आधारित वेब सीरीज़ और हिंसक वीडियो गेम ने भी संवेदनाओं को कुंद कर दिया है।लोग वास्तविक जीवन में भी गुस्से और हिंसा को सामान्य मानने लगे हैं।

आज मानसिक स्वास्थ्य सबसे बड़ी समस्या है। डिप्रेशन, तनाव और मनोविकृति से पीड़ित लोग अक्सर हिंसा की ओर बढ़ जाते हैं।कई बार माता-पिता अवसाद में आकर अपने ही बच्चों की हत्या कर देते हैं।युवा अवसादग्रस्त होकर माता-पिता पर हमला कर बैठते हैं।मानसिक रोगों की पहचान और इलाज की व्यवस्था की कमी के कारण ऐसी घटनाएँ बढ़ रही हैं।परिवारों में संपत्ति विवाद हिंसा का बड़ा कारण है।भाई-भाई की हत्या कर देते हैं।बेटे-बेटियाँ माँ-बाप की संपत्ति हथियाने के लिए उन्हें मौत के घाट उतार देते हैं।ज़मीन-जायदाद के झगड़े अक्सर खून-खराबे तक पहुँच जाते हैं।

पारिवारिक हिंसा सिर्फ़ अपराध नहीं है, बल्कि समाज की चेतावनी भी है। यह हमें बताता है कि हम रिश्तों के मूल्य, संस्कारों और आपसी संवाद को खोते जा रहे हैं। अगर समय रहते सुधार नहीं किया गया तो परिवार जैसी संस्था ही कमजोर हो जाएगीहमें यह समझना होगा कि पैसा, आधुनिकता और तकनीक से ज़्यादा महत्वपूर्ण मानवता, प्रेम और विश्वास है। यदि रिश्तों में करुणा, धैर्य और संवाद कायम रहेगा तो न बाप बेटी को मारेगा, न बेटी बाप को, न पति पत्नी पर हाथ उठाएगा और न ही भाई-बहन, माँ-बाप, बेटे-बेटी हत्या तक पहुँचेंगे।

 

 

अशोक मधुप

(लेखक  वरिष्ठ  पत्रकार हैं)

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Thursday, September 4, 2025

बेसिक शिक्षा में गुरू जी को क्लर्क मत बनाइए


अशोक मधुप

उत्तर प्रदेश के  बेसिक शिक्षा विभाग में गुरू जी को क्लर्क बनाने का अभियान चल रहा है। इसे रोका जाना  चाहिए। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ  जी को इसमें दख्ल देना चाहिए। गुरू  की गरिमा बचाने के लिए उन्हें आगे आना चाहिए।नहीं रोका गया तो प्रदेश की बेसिक शिक्षा को पतन की और जाने से नही रोका  जा सकेगा।

गुरूजी का पद समाज में सम्मान का पद है। गुरू जी शिक्षा की महत्वपूर्ण  कड़ी हैं। वह बच्चों को शिक्षा  देने के साथ आदर्श, नैतिकता, मानवता के गुण विकसित करते हैं।इसीलिए गुरू को गोविंद से बड़ा दर्जा दिया गया है।दोहा है− गुरू गोविंद दो खड़े, काके लागूं पाएं,  बलिहारी गुरू  आपने , गोविंद दियो बताए।  गुरू सम्मान और गुरू  परंपरा का पतन  महाभारत काल से होना  शुरू  हुआ। जब गुरू राज दरबारी होने लगे।  बाद में मुस्लिम काल और ब्रिटिश काल में उनकी जीविका की जिम्मेदारी सरकार  ने संभाल ली।  जो  उन्हें अधोनत  करती चली गई। इसके बावजूद समाज में आज भी गुरू जी का बड़ा सम्मान है। आदर है।आज की पीढ़ी भी अपने गुरू के चरण स्पर्श करते देखी जा सकती है। हालाकि समाज के पतन का असर सब क्षेत्र में आया है।  इससे गुरू जी बचे रहें, यह कहना गलत होगा,  फिर भी यहां अभी   बहुत धर−भर है ।

पिछले कुछ साल से देखा जा रहा है कि निरीक्षण  पर आने वाले विभागीय  और प्रशासनिक अधिकारी बच्चों के सामने शिक्षकों का  अपमान करते नहीं  चूकते। छात्रों के सामने उनसे उल्टे− सीधे प्रश्न पूछते हैं।  न बताने पर छात्रों के सामने उन्हें अपमानित करते हैं।सोचिए अपने  सामने डांट और अपमानित हुए शिक्षक को   उनके छात्र  कैसे सम्मान देंगेॽशिक्षको से  अलग बुलाकर भी तो पूछताछ हो सकती है।वेसे भी निरीक्षण में आए  अधिकारियों को समझना चाहिए कि अब शिक्षक योग्यता के बल पर रखे जा रहे हैं। मैरिट पर उनका चयन हो रहा है।    उनका सम्मान बनाये रखने की सबकी जिम्मेदारी है।

बेसिक शिक्षा को सुधारने की बात चलती है। बच्चों को स्कूल लाने के लिए मिड डे मील, छात्रवृति और ड्रेस आदि देकर उन्हें स्कूल लाने  की बात की जा रही है।इनसे बच्चे स्कूल नही आएंगे।  आएंगे तो  सिर्फ परिषदीय स्कूलों में शिक्षा का माहौल बनाने से।माहौल बनाने पर कोई ध्यान नही दे रहा।  शिक्षक को कामचोर, बेइमान , नाकारा बताने और अपमानित करने का काम हो रहा है। यदि शिक्षा को बेसिक शिक्षा को सुधारना  होगा, तो  गुरू का सम्मान बहाल करना पड़ेगा।

आज स्थिति यह है कि परिषदीय  शिक्षक से पढ़ाई  कम कराई जारही है,उससे  पढ़ाई  से  ईतर ज्यादा कार्य लिए जा रहे हैं।जनगणना में शिक्षकों की डयूटी लगाई  जाती है।पल्स पोलियो अभियान को कामयाब बनाने घरों से बच्चे बूथ तक बुलाने की जिम्मेदारी उन्हें सौंपी जाती है।  वोटर लिस्ट बनाने,  उनके संशोधन और प्रदर्शन और चुनाव में   शिक्षकों की डयूटी  लगाई जाती है।  एक शिक्षक ने अपना  नाम न छापने की शर्त पर बताया कि पिछले डेढ़ साल से डीबीटी के काम में उलझे हुए हैं।इसमें  प्रत्येक छात्र की सूचनांए  संकलित करनी होती हैं ।इसके लिए छात्र के  अभिभावकों के आधार नंबर तथा अकाउंट नंबर से आधार और मोबाइल का लिंक होना जरूरी है।गांव के लोग त्रुटिपूर्ण आधार बनवाए हुए हैं ।इनके करेक्शन के लिए अभिभावकों को बैंक या ब्लॉक कार्यालय भेजना शिक्षक के काम में शामिल हो गया  है।अभिभावक प्रायः अपनी दिहाड़ी छोड़कर  नहीं जाते। अभिभावकों के आधार कार्ड ठीक कराने के लिए  शिक्षकों  पर दबाव बनाया जाता है। अक्सर शिक्षक अपनी जेब से किराया खर्च करके उन्हें आधार कार्ड ठीक कराने भेजते हैं ।ऐप ठीक से काम नहीं करता और शिक्षक परेशान होते रहते हैं।इसके अलावा कोरोना काल में जब स्कूल बंद थे तो उन दिनों के कन्वर्जन कॉस्ट का भुगतान करने के लिए एक −एक बच्चे के बैंक खाते आईएफएससी कोड आदि की डिटेल बनाकर बैंक में भेजनी पड़ती है।उन दिनों के मिड डे मील के खाद्यान का कैलकुलेशन करना पड़ता था कि कौन बच्चा कितने दिन विद्यालय में रहा। उतने ही किलोग्राम चावल और गेहूं की क्वांटिटी तैयार करके राशन डीलर को देनी होती है । सरकार द्वारा दिए गए एक राशन वितरण प्रपत्र पर 10−12 तरह की डिटेल्स प्रत्येक बच्चे की भरकर उन्हें देनी होती है। इसे दिखाकर वह राशन प्राप्त करते हैं।विद्यालय की पुताई कराना, पाठ्य पुस्तकें बीआरसी से या न्याय पंचायत केंद्र से उठाकर लाना  उनकी डयूटी में शामिल हो गया है।रोजाना तरह− तरह की सूचनाएं विभाग द्वारा मांगी जाती हैं, वह तैयार करके भेजनी होती हैं।सड़क सुरक्षा सप्ताह हो या संचारी रोग पखवाड़ा, जल संरक्षण हो या भूमि संरक्षण ,टीवी के मरीज को गोली लेना हो या कितने अभिभावकों ने कोविड-19 की वैकसीन लगवाई, यह डाटा पता करना सब शिक्षक के जिम्मे है।बच्चों को लंबे समय से आयरन और अल्बेंडाजोल की गोली खिलाई जारही हैं। फिर  भी गोली खिलाने के  लिए एक दिन का प्रशिक्षण उन्हें बदस्तूर हर साल दिया जाता है।अभी  प्रतापगढ़ के डीएम ने आदेश किया है कि गांव के टीबी मरीजों को उपचार होने तक परीषदीय शिक्षक उन्हें गोद लेंगे।डीएम का आदेश  है।अब टीचर क्या −क्या करेॽ

होना यह चाहिए कि गैर शिक्षेतर कार्य के लिए संविदा पर व्यक्ति रखें जाए।  उनसे कार्य लिया जाए।इससे बहुत से बेरोजगार युवाओं को रोजगार मिलेगा, उधर शिक्षक सब चीजों से मुक्त होकर बच्चों को पढ़ाने के कार्य में लगेंगे।  इससे इन विद्यालयों में शिक्षा का माहौल  बन सकेगा।    उत्तर प्रदेश के स्कूल शिक्षा महानिदेशक विजय किरन आनंद का एक आदेश सोशल मीडिया पर चल रहा है। इसमें इन्होंने जिला बेसिक शिक्षाधिकारियों से कहा है कि  मानिटरिंग से पता चलता है कि परिषदीय स्कूल के शिक्षक अवकाश नही ले रहे।इससे  लगता है कि आप उनकी उपस्थिति की सही से जांच नही कर रहे।यह स्वीकारीय   नही है।आपको निर्देशित किया जाता है कि आप क्षेत्र के विद्यालयों का नियमित निरीक्षण करें।स्कूल से गैर हाजिर शिक्षकों की अनुपस्थिति  लगांए।

अब इन महानिदेशक महोदय को कौन समझाए कि शिक्षक को साल में 14 आकस्मिक अवकाश मिलते हैं। उन्हें वह आड़े सयम  के लिए संभाल कर रखता है। मजबूरी में ही ये अवकाश लिए जाते हैं।छोटी −मोटी बीमारी में भी वह डयूटी पर जातें हैं।  गैर हाजरी लगने के डर से भयंकर  बारिश भी उन्हें नही रोकती।

जब तक बेसिक शिक्षा में  उच्च पद पर बैठे अधिकारी सही स्थिति नही समझेंगे,  हालात में सुधार होने वाला  नही हैं। गुरू को क्लर्क बनाने से काम नही चलेगा। अधिकारियों को उसका सम्मान कराना सिखाना होगा।

अशोक मधुप

(लेखक  वरिष्ठ पत्रकार हैं)

Sunday, August 31, 2025

एक सिंतबर के लिए अ हिंदुस्तानी गजल से मशहूर हुए दुष्यंत कुमार

 

अशोक मधुप

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आज एक सिंतबर  है प्रसिद्ध  हिंदी गजलकार दुष्यंत कुमार की जन्मदिन  है।  बिजनौर के राजपुर नवादा गांव में एक सिंतबर 1933 में जन्मे दुष्यंत कुमार का मात्र 43 वर्ष की आयु में 30 दिसंबर 1975 को भोपाल में  उनका निधन हुआ।

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हिंदी साहित्यकार −गजलकार दुष्यंत कुमार   हिंदी गजल के लिए जाने जाते हैं। वे हिंदी गजल के लिए विख्यात है किंतु  उन्हें यह ख्याति हिंदी गजलों के लिए नहीं , हिंदुस्तानी गजलों के लिए मिली। संसद से  सड़क तब मशहूर हुए उनके शेर हिंदुस्तानी हिंदी में हैं।  हिंदुस्तानी हिंदी में  उन्होंने सभी प्रचलित शब्दों को इस्तमाल किया। शब्दों को प्रचलित रूप में इस्तमाल किया।

वे अपनी पुस्तक साए में धूप की भूमिका में खुद कहते हैं “ ग़ज़लों को भूमिका की ज़रूरत नहीं होनी चाहिए; लेकिन,एक कैफ़ियत इनकी भाषा के बारे में ज़रूरी है। कुछ उर्दू—दाँ दोस्तों ने कुछ उर्दू शब्दों के प्रयोग पर एतराज़ किया है।उनका कहना है कि शब्द ‘शहर’ नहीं ‘शह्र’ होता है, ’वज़न’ नहीं ‘वज़्न’ होता है।

—कि मैं उर्दू नहीं जानता, लेकिन इन शब्दों का प्रयोग यहाँ अज्ञानतावश नहीं, जानबूझकर किया गया है। यह कोई मुश्किल काम नहीं था कि ’शहर’ की जगह ‘नगर’ लिखकर इस दोष से मुक्ति पा लूँ,किंतु मैंने उर्दू शब्दों को उस रूप में इस्तेमाल किया है,जिस रूप में वे हिन्दी में घुल−मिल गये हैं। उर्दू का ‘शह्र’ हिन्दी में ‘शहर’ लिखा और बोला जाता है ।ठीक उसी तरह जैसे हिन्दी का ‘ब्राह्मण’ उर्दू में ‘बिरहमन’ हो गया है और ‘ॠतु’ ‘रुत’ हो गई है।

—कि उर्दू और हिन्दी अपने—अपने सिंहासन से उतरकर जब आम आदमी के बीच आती हैं तो उनमें फ़र्क़ कर पाना बड़ा मुश्किल होता है। मेरी नीयत और कोशिश यही रही है कि इन दोनों भाषाओं को ज़्यादा से ज़्यादा क़रीब ला सकूँ। इसलिए ये ग़ज़लें उस भाषा में लिखी गई हैं जिसे मैं बोलता हूँ।

—कि ग़ज़ल की विधा बहुत पुरानी,किंतु विधा है,जिसमें बड़े—बड़े उर्दू महारथियों ने काव्य—रचना की है। हिन्दी में भी महाकवि निराला से लेकर आज के गीतकारों और नये कवियों तक अनेक कवियों ने इस विधा को आज़माया है।”

ग़ज़ल पर्शियन और अरबी  से उर्दू में आयी। ग़ज़ल का मतलब हैं औरतों से अथवा औरतों के बारे में बातचीत करना। यह भी कहा जा सकता हैं कि ग़ज़ल का सर्वसाधारण अर्थ हैं माशूक से बातचीत का माध्यम। उर्दू के  साहित्यकार  स्वर्गीय रघुपति सहाय ‘फिराक’ गोरखपुरी  ने ग़ज़ल की  भावपूर्ण परिभाषा लिखी हैं।  कहते हैं कि, ‘जब कोई शिकारी जंगल में कुत्तों के साथ हिरन का पीछा करता हैं और हिरन भागते −भागते किसी ऐसी झाड़ी में फंस जाता हैं जहां से वह निकल नहीं सकता, उस समय उसके कंठ से एक दर्द भरी आवाज़ निकलती हैं। उसी करूण स्वर को ग़ज़ल कहते हैं। इसीलिये विवशता का दिव्यतम रूप में प्रगट होना, स्वर का करूणतम हो जाना ही ग़ज़ल का आदर्श हैं’।

दुष्यंत  की गजलों की खूबी है साधारण बोलचाल के शब्दों का प्रयोग,  हिंदी− उर्दू के घुले मिले शब्दों का प्रयोग । चुटीले व्यंग  उनकी गजल की खूबी है।वे व्यवस्था और समाज पर चोट करते हैं।  ये ही उन्हें सीधे  आम आदमी के दिल तक ले जाती है। उनकी ये शैली उन्हें अन्य कवियों से अलग और लोकप्रिय करती है।

आम आदमी और व्यवस्था पर चोट करने वाले  दुष्यंत कुमार के शेर, व्यवस्था पर चोट करते उनके शेर  सड़कों से  संसद गूंजतें है। शायद दुष्यंत कुमार अकेले ऐसे साहित्यकार होंगे , जिसके शेर सबसे ज्यादा बार संसद में पढ़े गए हों। सभाओं में नेताओं ने उनके शेर सुनाकर व्यवस्था पर चोट की हो।सरकार को जगाने और जनचेतना का कार्य किया हो।उन्होंने हिंदी गजल भी लिखी, पर वह इतनी प्रसिद्धि  नही पा सकी, जितनी हिंदुस्तानी हिंदी में लिखी  गजल लोकप्रिस हुईं।

उनके गुनगुनाए  जाने वाले उनके कुछ  हिंदुस्तानी हिंदी के शेर हैं−




−वो आदमी नहीं है मुकम्मल बयान है, 


माथे पे उस के चोट का गहरा निशान है। 




−रहनुमाओं की अदाओं पे फ़िदा है दुनिया, 


इस  बहकती  हुई    दुनिया   को    सँभालो      यारों।

−कैसे आकाश में सूराख़ नहीं हो सकता ,


एक पत्थर तो तबीअ'त से उछालो यारों।




− यहां तो  सिर्फ गूंगे और बहरे लोग बसतें है,

खुदा  जाने यहां पर किस तरह जलसा हुआ होगा, 


−गूँगे निकल पड़े हैं ज़बाँ की तलाश में ,


सरकार के ख़िलाफ़ ये साज़िश तो देखिए।

−पक गई हैं आदतें बातों से सर होंगी नहीं, 


कोई हंगामा करो ऐसे गुज़र होगी नहीं  ।

आज मेरा साथ दो वैसे मुझे मालूम है ,


पत्थरों में चीख़ हरगिज़ कारगर होगी नहीं। 


इन ठिठुरती उँगलियों को इस लपट पर सेंक लो, 


धूप अब घर की किसी दीवार पर होगी नहीं ।




−सिर से सीने में कभी पेट से पाँव में कभी ,


इक जगह हो तो कहें दर्द इधर होता है ।




−मत कहो आकाश में कोहरा घना है,

ये किसी की व्यक्तगत आलोचना है।

 

 

−ये   जिस्म झुककर बोझ से दुहरा हुआ होगा,

मैं सज्दे में नही था, आपको धोखा  हुआ होगा।

−तुमने इस तालाब में रोहू पकड़ने के लिए,

छोटी—छोटी मछलियाँ चारा बनाकर फेंक दीं।

−हम ही खा लेते सुबह को भूख लगती है बहुत

तुमने बासी रोटियाँ नाहक उठा कर फेंक दीं।

 

गजल

हो गई है पीर पर्वत  सी पिंघलनी चाहिए,

अब हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।

आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,


शर्त थी लेकिन कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।


हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,


हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।




सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,


मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।


मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,


हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।

 

अशोक मधुप

(लेखक  वरिष्ठ  पत्रकार हैं)

Monday, August 25, 2025

आम जीवन सरल बनाने में मदद कीजिए

 आम जीवन सरल बनाने में मदद कीजिए

अशोक मधुप

वरिष्ठ  पत्रकार

सरकारों का काम आदमी के जीवन को सरल बनाना है।तकनीक के माध्यम से उसे ऐसी सुविधांए देना है कि वह परेशान न हो, किंतु भारत में हो इसके विपरीत रहा है। उन्हें अलग −अलग काम के लिए थोड़ी− थोड़ी बात के  लिए परेशान किया जा रहा है। उनके जीवन को दुरूह किया जा रहा है।

 आज सबसे  बड़ी परेशानी हैं बैंको में जाकर खाते की केवाईसी कराने की।बैंकों की केवाईसी के नाम पर बैंक खाताधारक को  परेशान किया जा रहा है।हालत यह है कि केवाईसी करानी है, इसकी उसे सूचना भी नही मिलती। उसे उसके लिए बैंक की ओर से  मैसेज भी नही आता। 

मेल आनी चाहिए। किंतु ऐसा हो नही रहा। वैसे  प्रत्येक ट्रांजेक्शन के  मैसेज आते रहते हैं।  केबाईसी कराना  है, इसका   पता तब चलता है जब  खातेधारक के चैक का भुगतान रोक दिया जाता है। वह पेमेंट नही कर पाता ।भुगतान रोकने के कारण चैक जारी करने वाले पर संबधित बैक या सस्थाएं  चार सौ से आठ सौ  रूपये तक का  जुर्माना लगा देती है।मैंने पिछले साल ओरियंटल इंशोरेंस कंपनी को अपनी मेडिक्लेम पोलिसी के लिए चैक दिया। चैक बैंक गया तो भुगतान रूक गया। मैं बैंक गया।  बैंक प्रबंधक ने खाता देखकर  कहा कि  खाता आपका जारी है। चैक का भुगतान कैसे रूका पता नहीं। उनके एक स्टाफ ने देखकर बताया कि खाता  बंद किया हुआ है। बैंक प्रबंधक ने कहा कि अब सब कंप्यूटराइज है। हमें पता नही चलता और खुद जाता है। बैंक स्टाफ के पता है या नही । इससे खाताधारक को क्या लेना। मेरे से तो इंशोरेंस कंपनी ने चैक डिस ओनर होने के  छह सौ रूपये अतिरिक्त वसूल लिए।मुझे तो फालतू का छह सौ रूपये का दंड़  पड़ गया।

अभी लाकर आपरेट करने बैंक जाना पड़ा तो  बैंक स्टाफ ने  कहा कि इसकी केवाईसी कराईये। हमने कहा कि अभी  खाते की तो कराई है।उनका कहना था कि बैंक लॉकर की भी करानी है।  लाँकर बैंक के खाते से जुड़ा  है,  यह बताने पर भी बैंक कर्मी नही माने।यदि आपके पास चार−  पांच    बैंक खाते हैं तो प्रत्येक दो साल से केवाईसी कराने  जरूर जाना होगा।

अभी  तक बैंक खाते चालू रखने के लिए केवाईसी करानी थी।अब बिजली विभाग के मैसेज आ रहे हैं, कि अपने कनेक्शन की ईकेवाईसी कराईए।आज जहां चारों ओर धोखे का जाल फैला है। ठग आपको फंसाने में  लगे हैं,  ऐसे में किस मैसेज को सही माना जाए, किसे  गलत यह कैसे  पता  चले। अभी परिवहन विभाग का मैसेज आया है कि  आधार आथोराइजेशन माध्यम से अपने ड्राइविंग लाइसैंस पर अपना मोबाइल नंबर  अपडेट कराइए। समझ नही आ रहा कि क्या− क्या कराएं। हम पर ये सब करना नही आता।इसका मतलब ये की रोज जनसेवा केंद्र पर  जाइये। लाइन में लगिए और पैसा भी दीजिए। लगता है कि कहीं ये जनसेवा केंद्र की आय बढ़ाने के लिए तो  नही किया जा रहा।

अभी  पिछले दिनों आदेश आया कि अपना आधार कार्ड प्रत्येक दस साल में अपडेट कराना है।मैं छोटे शहर में रहता हूं। यहां कि आबादी  दो लाख के करीब है। पूरे शहर में आधार कार्ड अपडेट  कराने का एक ही सैंटर है। मुख्य डाकघर। उसमें आधार कार्ड बनवाने वालों की सवेरे आठ बजे से  लाइन लग जाती है।हम 75 साल से ऊपर के पति −पत्नी कैसे उस लाइन में लगें , ये कोई  सोचने  और बताने वाला नही है। दूसरे केंद्र का  दरवाजा खुलने  पर इस तरह धक्का−मुक्की होती है कि हम लाइन में  लगे तो  हाथ − पांव तुड़ाकर जरूर  अस्पताल जांएगे।

केद्र सरकार /  रिजर्व बैंक को आदेश करना चाहिए कि बैंक अपने यहां अतिरिक्त स्टाफ रखे।  उसक कार्य सिर्फ  खातेधारकों से समय लेकर उनके खातों की केवाईसे कराना  हो।सरकार जिस तरह वोट बनवाती है। वोटर का वेरिफिकेशन कराती है।  उसी तह से केवाईसी कराई जाए।इसके बैंक खाता धारकों को सुविधा होगी।केवाईसी कराने के लिए रखे  जाने वाले युवाओं को रोजगार मिलेगा।यही काम  राज्य की बिजली कंपनी कर सकती हैं।  विभागीय मीटर रीडर माह में एक बार रीडिंग लेने उपभोक्ता के घर जाते हैं। वे ही उपभोक्ता से केवाईसी के पेपर लेले।मीटर रीडर को उपभोक्ता जानते हैं उन्हें पेपर देते किसी उपभोक्ता  को परेशानी भी नही होगी।मीटर रीडर आफिस आकर इस कार्य में लगे स्टाफ को पेपर देकर केवाईसी कराए।हो  यह रहा है कि संबधित विभाग बैंक/ बिजली अपना कार्य उपभोक्ता पर डाल उसके जीवन को कठिन बना रहे  हैं,  जबकि उन्हे अपने ग्राहकों को सुविधांए   देनी चाहिए थीं। ऐसा  ही आधार कार्ड  अपडेट कराने के लिए व्यवस्था की जानी चाहिए। हां इसके लिए उपभोक्ता से थोड़ा  बहुत चार्ज लिया जा सकता है।अभी  एक मैसेज आया कि आपका इन्कमटैक्स का रिटर्न स्वीकार कर लिया गया है। मैंने अभी रिटर्न भरा नही, सो    ये मैसेज बेटे को भेज दिया  कि शायद उसने  रिटर्न भरा हो ।  उसका जबाब आया कि पापा इस मैसेज के लिंक पर क्लिक मत करना । ये गलत लगता है।  

आज सबसे  बड़ी समस्या  है कि सही और गलत का कैसे तै हो।किसी न किसी तरह धोखे में लेकर रोज हजारों व्यक्ति रोज ठगे जा रहे हैं।इससे  कैसे बचा जाए?ऐसे   हालात में  जीवन दुरूह होता  जा रहा है। केंद्र और राज्य सरकारों को  आम आदमी का जीवन को सरल बनाने के लिए काम करना  चाहिए। 

अशोक मधुप

(लेखक  वरिष्ठ  पत्रकार हैं)

Friday, August 15, 2025

वृद्धावस्था अभिशाप भी वरदान भी

 वृद्धावस्था अभिशाप भी वरदान भी। ये अपके जीने का तरीका है कि आप उसे अभिशाप समझतें हैं या वरदान।अभिशाप समझेंगे तो जल्दी चल देंगे।वरदान समझेंगे तो आनंद लेंगे। ज्यादा जीवन जिएंगे।वृद्धावस्था में भी युवा जैसा भोगेंगे ।

जिन्होंने रिटायर होते ही अपने का रिटायर मान लिया। उनकी कहानी जल्दी खत्म हो गई। जिंन्होंने नही माना, वह मस्त रहे।
बिजनौर के एक शायर हुए हैं शौक बिजनौरी।वह कलेक्ट्रेट में डीएम के पेशकार होते थे। सेवानिवृति पर उनके लिए  कलेक्रेस ट में विदाई समारोह रखा  गया।उन्होंने कहा – आप विदाई पर जो मुझे  गले में जो पहना रहें हैं। उन्हें फूलों की माला कहना। गजरे कहना। हार मत कहना। मैंने नौकरी से   हार नही मानी । मैं  रिटायर नही हो रहा। नौकरी को रिटायर करके जा रहा हूं। मैंने 30 साल नौकरी की और देखना उससे ज्यादा समय पेंशन लूंगा।हुआ भी ऐसा ही। वे लगभग 95 साल जिए। आखिरी  के समय में उन्हें कान से कुछ ऊंचा सुनाई देने  लगा था। घुटनों में दर्द था । मैंने उनसे कहा− कुछ दवा लीजिए। 
उन्होंने जो कहा वह सुखद और आश्चर्य करने वाला है।उन्होंने कहा− 90  साल से ज्यादा उम्र हो गई ।आज तक इंजेक्शन नहीं लगवाया। कोई दवा नही खाई। अब किसलिएॽ किसके लिए ॽ
हां कुछ चीजे ध्यान रखने की है। बुढ़ापा आना है तो इसका खुद प्लान कीजिए। इसके लिए पहले से ही बजट बनाकर रखिये। उसी तरह निवेश कीजिए। इताना ज्यादा भी नहीं कि जवानी में बदहाल जीवन जिया जाए। एक परिवार के मुखिया ने अपने बच्चों से कहा कि  घर में छह माह का अनाज है। या तो शुरू के छह माह खालो । उसके बाद फाके रहना।  या शुरू के छह माह भूखे  रहो । बाद के छह माह खा लेना।
हमें न शुरू के छह माह भूखे  रहना है न बाद के । हमें थोड़ा कम खाकर ,  उसी में से बचाकर पूरे साल काम चलाना है।
दूसरी बात यह कि यह सोचकर जवानी में मस्ती मत मारिए कि  बुढ़ापे में बच्चे आपके लिए करेंगे। सोने के पालने में झुलाएंगे। वे 
करेंगे। अपनी सामर्य्ए के हिसाब से खूब करेंगे। फिर भी आप बुढापे के लिए प्लान कीजिए । बचाइये। ये भी ध्यान रखिए कि बच्चों के भी अपने परिवार होंगे। उन्हें उसके लिए भी करना है।उनसे आपात्काल की मदद की सोचिए बस। प्रयास कीजिए कि किसी से मांगना न पड़े। भले ही वे आपके बच्चे हैं। 
यह भी ध्यान रखिए कि जीते जी अपनी संपत्ति का बंटवारा मत कीजिए। अपना धन अपनी संपत्ति अपने पास रखिए। विश्व प्रसिद्ध रेमंड कंपनी   के स्वामी संपत्ति बांटकर आज परेशान हैं। बच्चे न उन्हें घर में घुंसने देते हैं, न फैक्ट्री में। हां वसीयत जरूर करके रखिए । बैंक खातों और कागजों में नाँमनी जरूर कराईए।अपने जीवन साथी के साथ दो नंबर पर अपने बच्चों  को  नाॐमनी करा सकतें हैं।
−जवानी में ही स्वास्थ्य बीमा जरूर लीजिए। आगे चलकर वह मंहगा  हो जाता है। अपने  को व्यस्त करिए। लीखिए , पढ़िए या किसी सामाजिक कार्य में लग  जाइये  ।खाली मत रहिए।खाली दिमाग शैतान का घर होता है।
इस दुनिया में आए हैं तो आपके कार्य निर्धारित हैं। उसके बाद चल देना है। भगवान राम राक्षसों के विनाश के लिए आए थे। राज करने के लिए नहीं। राज करने का समय आया तो मुनि जी बुलावा  लेकर आ गए । मुनि जी के बुलावा आने का  इंतजार  मत कीजिए। उनके आने से पहले किसी अच्छे  कार्य के लिए जीवन अर्पित
कर दीजिए। जो कीजिए निस्वार्थ भाव से कीजिए । लिप्सा , माया, मोह और पुरस्कार के लालच में मत रहिए।
अशोक मधुप

धर्म के पाखंड में फंसी सभ्यता


प्रारंभ में आदमी जंगल में रहता। शिकार करता और अपना पेट भरता। ये जंगल का कानून था। समय सबको बदलता है। इस व्यवस्था में बदलाव शुरू हुआ। पहले महिला -पुरूष अकेले थे। इसके बच्चे हुए। इनकी संख्या बढ़ी।धीरे - धीरे परिवार बनने बना।

परिवार बनने के साथ इस कानून को बदलने की प्रक्रिया प्रांरभ हुई।जंगल राज में शक्ति संपन्न की महत्ता थी। परिवार बनने पर सबके लिए संसाधन के बंटवारे की बात हुई। संसाधनों के बंटवारे पर काम शुरू हुआ। परिवार के लिए नियम कायदे बनने लगे। कई परिवारों का कबीला बना। यहां संसाधनों के कबीले में बांटने की बात हुई। इन संसाधनों के बंटवारे की व्यवस्था बनाने के लिए एक प्रमुख की जरूरत हुई।ऐसे व्यक्ति की जो ताकतवर को कमजोर का हक न मारने दें। जो सही को सही कह सके, जनता के साथ न्याय कर सके , ऐसा ही व्यक्ति कबीले का मुखिया बना।

विकास के सिद्वान्त के अनुसार कबीले बढ़ने लगे । कई कबीलों बने ।इन कबीलों की बस्ती बनी।इन बस्तियों के गांव बने। गांवों की सुरक्षा और व्यवस्था के लिए कबीले के प्रमुख की तरह इनका भी एक प्रमुख बनाया गया। कई गांव के प्रमुखों पर व्यवस्था बनाने के लिए समाज ने जरूरत महसूस की। इस संरचना में राजा की उत्पत्ति हुई। एक कबीला प्रमुख बना। कई कबीलों और गांव पर राजा बना।

राजा की व्यवस्‌था निर्माण के समय किसी के दिमाग में आया कि राजाओं के ऊपर भी व्यवस्था की देेखरेख करने वाला कोई होगा। इसी सोच से ईश्वर की उत्पत्ति हुई। राजा अपनी राज व्यवस्था देखने वाला और ईश्वर राजा प्रजा सबका नियन्ता।सबका दाता। सबका खेवन हार। सबके ऊपर शासन करने वाला हो गया।

ईश्वर बनाने की प्रक्रिया में धर्म और समाज की व्यवस्‌था करने वालों ने अपने को सबसे ऊपर रखा।राजा की व्यवस्था बनाने वाले ने राजा को प्रमुख रखा किंतु राजा से गुरू को भी बड़ा बना दिया। परिवार के लिए सलाह हो या राज्य के लिए कोई व्यवस्था । इसके लिए गुरू का निर्णय राजा से ऊपर रहा । किसी भी राजा की हिम्मत नहीं हुई कि अपने गुरू की बात टाल दे। गुरू का वाक्य उनके लिए ब्रहम वाक्य बन गया। ऐसा वाक्य जिसे टाला नहीं जा सकता। इस व्यवस्‌था में ब्राहण सर्वोपर‌ि है। ब्राहण हत्या ,ब्रह्म हत्या हो गई। वो हत्या जिससे बढ़कर कोई पाप नहीं हो सकता। राजगुरू राजा से ऊपर पंहुच गया। व्यवस्था बनाने वाला ब्राह्मण श्रेष्ठ हो गया।

राजा राजगुरू और व्यवस्‌था बनाने वाला ब्राह्मण आम जनता से ऊपर हो गया।।व्यवस्था बना दी कि जिस अपराध को करने में आग आदमी का सिर काटना चाहिए। ब्राहमण के लिए उसका सिर घुटना देना काफी है। क्योकि व्यवस्था बनाने वाले सत्ता के नजदीक थे, तो उन्होंने सत्ता के बाद अपना लाभ देखा। अपने हिसाब से नियम बनाए। अपने को प्रमुख बनाए रखने के लिए काम किया।यहीं सब गड़बड़ हुआ।

राज व्यवस्था में गुरू को बड़ा दर्जा मिला। राजा से भी बड़ा। राजाज्ञा से बड़ी गुरू आज्ञा हो गई।

धर्म में इससे भी आगे हो गया। धर्म में गुरू भक्त को गोविदं से मिलवाने का माध्यम बन गया। इस व्यवस्था में गुरू गोविंद (भगवान) से ऊपर जा बैठा। गुरू गोविंद दोऊ खड़े काके लागूं पाय, बलियारी गुरू आपने गोविंद दिया बताए। जैसे दोहे लिखे गए। गुरू महिला पर साहित्य रखा गया। भगवान की व्यवस्था बनाने वालों ने अपने को भगवान से बड़ा बनाया।

ये गुरू सर्व सत्ता संपन्न हो गए। भगवान को मिलवाने वाले गुरू भगवान बन बैठे।खुद को भगवान घोषित करने लगे।भक्तों के लिए सही रूप में यहीं भगवान हो गए।भक्त इन्हें भगवान मानने लगे।इनके कहने पर अपना सर्वस्व न्यौछावर करना आम हो गया। इसे ये बड़ा पूण्य मानने लगे। राम-रहीम के कहने पर

अपनी बेटी डेरे  में सेवा के देते इन्हें झिझक महसूस नहीं होती। बेटी को डेरे को  सौंपते उसे समझातें  हैं मनसा, वाचा कर्मणा भगवान की सेवा करना । बेटी डेरे और आश्रम के हाल देख ,मां बाप को मर्यादा के तहत सब सही नहीं बताती। बस इशारों में इतना ही कहती है कि यहां कुछ गड़बड़ है। ठीक नहीं है। मां -बाप अपनी बेटी की बात पर यकीन नहीं करते। कहतें हैं। तेरा मन भटक रहा है। भगवान में मन लगा। भगवान की सेवाकर । उनका कहा मान । उनके लिए बेटी छोटी पड़ गई। गुरू बड़ा हो गया। जब गुरू बड़ा हो गया तो फिर उसके पापाचार का विरोध कैसे हो।

समाज में परेशानी ज्यादा है। कोई बेटे की नौकरी के लिए परेशान है। किसी को बिटिया के लिए ठीक से वर नहीं मिल रहा। जो मिल रहा है वह दहेज ज्यादा मांग रहा है। कहीं भाइयों में बटवारें का विवाद है। कोई इसलिए परेशान है ‌कि इसके माता- पिता संपत्ति का भाइयों में बराबर बंटवारा नहीं कर रहे। किसी को डर है कि उसका पिता भाई कें बटवांरे में ज्यादा संपत्ति न दे दे। किसी की पत्नी पड़ौसी से लगी है तो क‌िसी का पत‌ि दूसरी महिला के चक्कर में पड़ा है। पति- पत्नी इसलिए परेशान हैं कि बेटा बेटी उनकी बताई जगह शादी करने को तैयार नहीं हैं। कहीं परिवार में पति बीमार है तो कहीं पत्नी में ।

हालात यह है कि समाज का लगभग प्रत्येक आदमी किसी ने किसी कारण परेशान है।किसी न किसी समस्या से ग्रस्त है। ऐसे में आदमी अपनी समस्या का निदान खोजना चाहता है। इस दौरान  इन गुरूओं और उनके शिष्यों के आडंबर की  कहानियों   उस तक पंहुचती रहती हैं।  वह इन्हें सत्य मान लेता है।  इन समस्याओं का निदान उसे गुरू की शरण ही नजर आती है।  अब चाहे गुरू समोसा हरी चटनी से खाने को कहे या लाल से।शुगर के मरीज को जमकर मीठा खाने  की सलाह ही क्यों न दें।

इन गुरूओं ,बाबाओं और भगवानों के बड़े बडे मायाजाल है। इनकी अपनी अपनी कथांए हैं। अपना अपना प्रचार तंत्र है। इसमें इन्होंने नई नई कथाएं फैला रखी है। अपनी गाथांए फैला रखी हैं। कोई कहता है कि उसके बाबा ने कैँसर के मरीज को भभूत देकर ठीक कर दिया। कोई कहता है कि बाबा के आशीर्वाद से उसका मुकदमा छूट गया। नही तो ऐसा लग रहा था हकि उसे फांसी नहीं तो आजीवन कारावास जरू र होता। एक बाबा के बारे में तो प्रसिद्घ है कि उनके बीमारी की जगह हाथ फैरने से बीमारी ठीक हो जाती है।किसी के छूने मात्र से जिन्न या भूत भाग जाता है। जो जितना बड़ा गुरू है। जितना बड़ा महात्मा हैै, उसका उतना ही बड़ा माया जाल है। कहीं निर्मल बाबा की दुनिया है। कहीं राम रहीम का डेरा। कहीं आश्राराम बापू का आश्रम।

इसी धर्म की व्यवस्था के मायाजाल में  धर्म ज्ञानी किसी की सुनने को तैयार नहीं। महाराजा जनक की सभा में इसी कारण , इससी अहम ,इसी शक्ति के बल पर गार्गी  को सुनना पडता है।  उसे  आगह करते कहा जाता है- बस गार्गी  बस । आगे बोली तो सिर धड़ से अलग हो जाएगा। बेचारी गार्गी शास्त्र ही जानती थी। शास्त्रार्थ ही समझती थी। तलवार नहीं। इसीलिए  नही समझ पाई कि कैसे सिर अलग हो जाएगा।ऐसा ही यहां होता है। इस व्यवस्था के खिलाफ बोलने वाले की जवान बंदकर दी जाती है। कही धन से कही ताकत से। फंस जाने पर ये दंगे करवाने से भी बाज नहीं आते।

एक बात और गुरू शिष्य केे गलत रास्ते से रोकने वाला है, किंतु गुरू को  रोकने वाला कोई  नहीं। अपने को सबसे ऊपर मानने वाले गुरू केे सही या गलत बताने वाला कोई  नहीं। रामायण में रावण को विभीषण,कुंभकरण पत्नी मंदोदरी सही गलत का ज्ञान तो कराने का प्रयास करतें हैँ । इन गुरूओं को  तो कोई कुछ कहने की स्थिति में ही नहीं हैं। क्योंकि भक्तों के लिए इनका एक-एक शब्द भगवान का आदेश है। एक एक वाक्य ब्र्र्र्रह्म है।ऐसा भगवान का आदेश जहां किंतु -परंतु को जगह नहीं है।  धन के लोभ में न पड़ने की सलाह देने वाले गुरू  खुद धन के चक्कर में  पड़ जातें हैं। काम को  पाप बताने वाले आशाराम बापूू,रामरहीम खुद काम और कामनी के रम जातें है। भक्त इनके  पापकर्म को  जानते भी कृष्ण की रासलीला समझ सबको   नजर अंदाज कर देतें हैं। वे  उनके पापाचार को गलत नही मानते। गलत मानते तो गोपियों संग कृष्ण का कृत्य   रासलीला न होती ।

किसी विद्वान ने धर्म  को अफीम का नशा कहा गया है। ये नशा हम भारतीयों के रोम- रोम मे समा गया है।  भगवान का परिचय कराने वाले वालें गुरूओं  की सर्वोपरि सत्ता से हम निकल नहीं पाते। इस नशे में फंसकर उसके बाहर की दुनिया हमें नजर नहीं आती।  गुरूओं का मायाजाल हमें इससे मुक्ति से बाहर की सोचने नहीं देता।

अशोक मधुप

Wednesday, August 13, 2025

पूरे देश के आवारा कुत्तों पर कार्रवाई क्यों नही?


अशोक मधुप

वरिष्ठ  पत्रकार

दिल्ली एनसीआर में आवारा कुत्तों के बढ़ते खतरे पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी नाराजगी जाहिर की है। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली/ एनसीआर के नागरिक प्रशासन और स्थानीय निकाय को सख्त निर्देश जारी किए हैं। इनमें आवारा कुत्तों को पकड़नेउनकी नसबंदी करने और उन्हें आश्रय गृह में रखने के निर्देश दिये गए हैं।सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि अगर कोई व्यक्ति या संगठन आवारा कुत्तों के खिलाफ कार्रवाई में अड़ंगा डालता है तो उसके खिलाफ भी कार्रवाई करें। जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने सोमवार को सुनवाई के दौरान कहा कि 'एनसीटी-दिल्लीएमसीडीएनएमडीसी तुरंत आवारा कुत्तों को पकड़ने के लिए अभियान शुरू करें और खासकर उन इलाकों में जहां आवारा कुत्तों का खतरा ज्यादा है।पीठ ने स्थानीय निकायों को निर्देश दिया कि आठ हफ्तों में वे आवारा कुत्तों को रखने के लिए आश्रय स्थल बनाने की जानकारी दें। अदालत ने कहा कि आवारा कुत्तों के खिलाफ कार्रवाई में कोई समझौता नहीं किया जाना चाहिए। अगर कोई व्यक्ति या संगठन इस काम में आड़े आए तो उसके खिलाफ भी कार्रवाई करें।पीठ ने ये भी कहा कि 'एमसीडी/एनडीएमसी और दिल्ली एनसीआर के संबंधित प्राधिकरण दैनिक आधार पर आवारा कुत्तों को पकड़ने का रिकॉर्ड रखें और पकड़े जाने के बाद एक भी आवारा कुत्ता वापस छोड़ा नहीं जाना चाहिए और सभी को आश्रय स्थल में रखा जाए।पीठ ने कहा कि अगर इस मामले में लापरवाही की गई तो हम सख्त कार्रवाई करेंगे।अदालत ने कहा आवारा कुत्तों के बारे में शिकायत मिलने के चार घंटे के भीतर कार्रवाई होनी चाहिए और कुत्तों की नसबंदी के बाद उन्हें वापस पुरानी जगह न छोड़ा जाए। अदालत ने कहा कि रेबीज की वैक्सीन की उपलब्धता भी चिंता का कारण है। अदालत ने वैक्सीन की उपलब्धता की भी पूरी रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया। पीठ ने कहा कि नवजातछोटे बच्चे किसी भी कीमत पर इन आवारा कुत्तों के शिकार नहीं बनने चाहिए।सुप्रीम कोर्ट ने एक हेल्पलाइन स्थापित करने के भी निर्देश दिए।  पीठ ने कहा कि एक हफ्ते में हेल्पलाइन स्थापित की जाएताकि इस पर लोग कुत्तों के काटने की घटनाओं को रिपोर्ट कर सकें। न्यायालय ने कहाकि  'आवारा कुत्तों को पकड़कर शेल्टर में रखेंअड़ंगा डालने वालों पर कार्रवाई करें' 

जस्टिस पारदीवाला ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि 'नसबंदी हो चुकी है या नहींसबसे पहली चीज है कि समाज आवारा कुत्तों से मुक्त होना चाहिए। एक भी आवारा कुत्ता शहर के किसी इलाके या बाहरी इलाकों में घूमते हुए नहीं पाया जाना चाहिए। हमने नोटिस किया है कि अगर कोई आवारा कुत्ता एक जगह से पकड़ा जाता है और उसकी नसबंदी करके उसे उसी जगह छोड़ दिया जाता हैये बेहद बेतुका है और इसका कोई मतलब नहीं बनता। आवारा कुत्ते क्यों वापस उसी जगह छोड़े जाने चाहिए और किस लिए?' पीठ ने कहा कि हालात बेहद खराब हैं और इस मामले में तुरंत दखल दिए जाने की जरूरत है। सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की तरफ से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल ऑफ इंडिया तुषार मेहता ने भी अदालत से अपील की कि वे इस मामले में सख्ती से दखल दें ताकि आवारा कुत्तों की समस्या का समाधान हो सके। मेहता ने कहा कि नसबंदी से कुत्तों की सिर्फ संख्या बढ़नी रुकती हैलेकिन रेबीज का संक्रमण फैलाने की उनकी क्षमता कम नहीं होती।

सवाल यह है कि ये आदेश दिल्ली /एनसीआरके लिए ही क्यों हैं।देश में भी तो नागरिक रहते हैं। उनके लिए क्यों नही। आवारा कुत्तों का आंतक तो पूरे देश में है। देश में कुत्तों के काटने से  औसतन प्रति वर्ष  29 हजार से ज्यादा व्यक्ति मरते हैं। यह तो संख्या वह है जो रिपोर्ट हो जाती है। गांव देहात के मामले से रिपोर्ट ही नही हो पाते। न वे खबरों की सुर्खियां  बनते हैं।

उत्तर प्रदेश का बिजनौर बहुत छोटा जिला है। यहां हाल ही में 24 जुलाई की शाम थाना अफजलगढ़ क्षेत्र के गांव झाड़पुरा भागीजोत में खेत पर काम कर रहीं 65 वर्षीय वृद्धा को आवारा कुत्तों के झुंड ने नोच कर मार डाला। तीन अगस्त को हीमपुर दीपा के गांव गांगू नंगला में हिंसक कुत्ते ने हमला कर दो बच्चों सहित 10 लोगों को बुरी तरह से घायल कर डाला। छह जून 2025 को  अफजलगढ़ में पांच साल की बच्ची यास्मीन को आवारा कुत्तों के झुंड ने नोच-नोचकर मार डाला. दरअसलबच्ची मां के साथ दूध लेने गई थी और पीछे रह जाने पर  बच्ची कुत्तों के हि लग गई।

 23 अक्तूबर 2023 को देश की प्रमुख चाय कंपनियों में से एक वाघ बकरी चाय के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर पराग देसाई का निधन हो गया है। मीडिया खबरों के मुताबिक 49 साल के पराग पिछले हफ्ते अहमदाबाद में मॉर्निंग वॉक पर निकले थे। इस दौरान आवारा कुत्तों ने उन पर हमला कर दिया। खुद को बचाने में वह फिसलकर गिर गए और उन्हें ब्रेन हेमरेज होने से निधन हो  गया ।

भारत सरकार के स्वास्थ्य एंव परिवार कल्याण मंत्रालय ने पिछले साल संसद में हुए एक सवाल का जवाब देते हुए बताया  कि 2019 में 72 लाख 77 हजार 523 कुत्तों के हमले रिपोर्ट हुए। वहीं साल 2020 में कुल 46 लाख 33 हजार 493 कुत्तों के हमलों  रिपोर्ट हुएजबकि साल 2021 में कुल 1701133 कुत्तों के काटने के मामले रिपोर्ट हुए।साल 2022, जुलाई तक भारतीय लोगों पर हुए कुत्तों के हमले की कुल संख्या स्वास्थ्य एंव परिवार कल्याण मंत्रालय के अनुसार, 14 लाख 50 हजार 666 थी। इन हमलों में कई लोगों ने अपनी जान भी गंवाई है। ये हमले आवारा और पालतू दोनों कुत्तों के हैं। इसके साथ ही इन हमलों के शिकारबच्चेबुजुर्ग और जवान तीनों हुए हैं।

साल 2018 में मेडिकल जर्नल लैंसेट में छापी  इस रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत में हर साल 20 हज़ार लोग रेबीज के कारण मरते हैं. इनमें से ज्यादातर रेबीज के मामले कुत्तों द्वारा इंसानों तक पहुंचे हैं।ऐसा नहीं है कि हर कुत्ते के काटने से आपको रेबीज हो सकता हैलेकिन ज्यादातर आवारा कुत्तों के काटने से रेबीज का खतरा रहता है।  कुत्तों के  इन हमलों के सबसे ज्यादा शिकार छोटे बच्चे ,महिलाएं और जवान होते  हैं।

सुप्रीम कार्ट को यह समझना  होगा  कि अवारा कुत्तों की परेशानी दिल्ली− एनसीआर में ही नही  है, ये पूरे भारतवर्ष की समस्या है।देश के देहात के तो हडवार ( मरे जानवर डालने के स्थान के पास) रहने वाले कुत्ते  तो और भी ज्यादा खतरनाक होते  हैं।ये महिलाएं,बीमार और बच्चों समेत अकेले आते  जाते व्यक्ति को मारकर उसके मांस से अपना पेट भरतें हैं ।आवारा कुत्तों की समस्या भारत व्यापी है ।  इसलिए  इस मामले  पर कार्रवाई भी   देशव्यापी होनी चाहिए।   

अशोक मधुप

( लेखक वरिष्ठ  पत्रकार हैं)