Monday, November 18, 2024

पूरी तरह कामयाब रहा बिजनौर महोत्सव

 पूरी तरह कामयाब रहा बिजनौर महोत्सव

कार्यक्रम की सफलता से बहुत उत्साजहित है बिजनौरी

अशोक मधुप

वरिष्ठध पत्रकार

बि‍जनौर जनपद के दो सौ  साल पूरे होने पर आयोजि‍त  बि‍जनौर महोत्सधव अपनी आन -बान और शान  के साथ  संपन्नौ  हो गया।इसके साथ्‍ ही बिजनौरवासियों में एक चेतना का संचार कर गया। इस कार्यक्रम में देश- विदेश से बड़ी संख्या में बिजनौरी शिरकत करने आए। बिजनौर महोत्सेव से जुड़ने वाले बिजनौरी अब अपने  जनपद के विकास की बात कर रहे हैं।जनपद के विकास की योजनाएं  बना रहे है।सबका प्रयास है कि  बिजनौर जनपद में विकास की त्रिवेणी पूरी क्षमता से प्रवाहित हो।   

बिजनौरवासियों को अबतक अफसोस रहा है कि  विकास के मामले में शुरू  से ही बिजनौर को  नजर अंदाज  किया  गया है। बिजनौर के  विकास के लिए आए प्रोजेक्टत बड़े नेता अपने क्षेत्र में ले गए।प्राय: बिजनौर का सांसद  उस दल से चुना जाता रहा ,जिसकी केंद्र में सरकार नही होती थी। सो न उसकी सुनी गई न उसके क्षेत्र में विकास ही हुआ।

बिजनौर महोत्सीव के लिए बिजनौर जिला प्रशासन ने कई माह से तैयारी शुरू कर दी थी। इसी के परिणामस्विरूप बड़ी तादाद में बिजनौरी प्र्रशासन द्वारा बनाए इस व्हावटसएप ग्रुप से जुड़े।उन्होंसने सोचना शुरू कर दिया की बिजनौर का विकास कैसे हो। बिजनौर महोत्सेव में देशभर से तो बिजनौरी कार्यक्रम में पहुंचे ही, कनाड़ा,बंगलादेश  और  दुबर्इ  आदि से भी बिजनौरी कार्यक्रम में  शिरकत करने आए। सबने   पूरे मन से कार्यक्रम का आनंद लिया। 

उद्घाटन के बाद आठ नवंबर की शाम को प्रवासी बिजनौरियों ने गंगा बैराज पर  गंगा  आरती में भाग लिया। गंगा  आरती इतनी भव्य  थी  कि देखकर  लगता था कि ये  आरती बिजनौर में नही बनारस या हरिद्वार में गंगाघाट पर हो रही हो। गंगा आरती के संयोजक सौरभ  सिंघल ने इस आरती  कराने के लिए बनारस से आठ  योग्यक पंडित बुला रखे थे।उन्होंकने आरती विधि विधान से कराई। आने वाले मेहमानों को  गंगा जल से भरी एक-एक गंगा जलहरी भी भेंट की गई। 

बिजनौर महोत्सेव में सांस्कृातिक कार्यक्रम ,  कवि सम्मे लन और मुशायरे में शामिल होने वाले प्राय:  बाहरी कलाकार और  कवि थे।इसलिए बिजनौर के युवाओं ने जनपद के कवियों के लिए सात नवंबर की रात में मुशायरा रख लिया।नौ और   इसमें जनपद के कवियों  ने कविताएं प्रस्तुरत किए।  नौ और  दस में हुउ जनपद के स्कूवली छात्र - छात्राओं अैर जनपद के कलाकारों ने कार्यक्रम प्रस्तुीत किए।इन्हेंल देखकर कोर्इ  ये नही कह सकता थी ये बड़े या मुंबई की फिल्मीय दुनिया के कलाकारों से कमतर हैं। कक्षा  सात के छात्रों के आरकेस्ट्रा ने तो  पूरे कार्यक्रम में अपनी धूम रखी।

 नाटक अभिज्ञान शाकुंतलम् दर्शकों  पर अपनी अमिट छाप छोड़ गया।

बिजनौर की एक सांग मंडली ने सांग प्रस्तुोत कर जनपद की पुरानी सांग खेलने की परंपरा को जिवित करने का प्रयास किया।ऐसे  ही चांदपुर के  चाहरबैत के गायकों ने अरब से आई इस गायन कला की प्रस्तु ति से दर्शर्कों का मन मोह लिया। चाहरबैत अरब से आर्इ कला है।  इसे पठानी कला के नाम से भी जाना जाता  है।  

बेसिक शिक्षा की कक्षा  सात की बालिकाओं के कार्यक्रम को देखकर सारे दर्शक वाह-वाह कर उठे। किसी को नही लगा कि यह स्था नीय बालिकाएं हैं।ऐसे ही जनपद के  सीमावृति गांव की महिलाओं  ने गढ़वाली नृत्यऐ करके अपनी प्रतिभा का दर्शकों को लोहा मनवा दिया।     


बिजनौर वासियों ने मंथन कार्यक्रम में   बिजनौर के विकास पर चर्चा की । ये भी चर्चा हुई कि बिजनौर को  पर्यटन के नक्शे   पर लाने के लिए क्याभ- क्यार किया जाए।यह भी तय हुआा कि इसके लिए बिजनौर की अलग से वेवसाइट बनाई  जाए। जनपद के संपर्क मार्ग पर प्रचार के हार्डिंग लगाए जाए।युवाओं को गाइड के लिए प्रशिक्षित किया जाए।जनपद में बढ़ते पर्यटन को देखते हुए पर्यटकों के निवास के स्‍‍थान बढाए जाएं। जनपद में होम स्टेप का प्रचलन शुरू कि‍या जाए।

वास्तरवि‍क कार्यक्रम  आठ नौ दस नवंबर को था किंतु स्कूटल और कालेज में कार्यक्रम कई  दिन पहले से शुरू हो गए थे। अधिकारिक कार्यक्रम की समाप्तिक के बाद भी स्कूएल  कालेज में कार्यक्रम अब भी जारी हैं। पूरे जनपद को सजाने में प्रशासन स्तूर से कोई  कमी नही रखी गई। जगह जगह पर  लगे होर्डिग इस कार्यक्रम केा भव्यम  बना रहे थे।  बिजनौर शहर को सजाने में तो बिजनौर पालिका ने कोई कसर ही नही छोड़ी।  

राज्यई ललित कला केंद्र की और से रानी भाग्यलवती महिला महाविद्यालय के सभागार में आयोजित  पांच दिवसीय प्रदर्शनी भी बहुत लोकप्रिय हुई। इसमें बिजनौर और प्रदेश के   चित्रकारों ने  राष्ट्री य  अस्मिहता और बिजनौर की थीम पर चित्र बनाए।इस प्रदर्शनी का जनपद के चित्रकार, कला प्रेमी और छात्र-छात्राओं ने अवलोकन किया। ये प्रदर्शनी जनपद के युवा और प्रतिभाओं का  मा्र्ग प्रश्‍स्ता करने का कार्य करेगी।

बिजनौर महोत्सनव के अवसर पर जनपद के सभी  विद्यालयों ने अपने यहा अलग अलग कार्यक्रम आयोजित करके जनरूचि  और जनभागीदारी पैदा करने का कार्य किया।     

जनपदवासियों और प्रशासन ने बाहर से आने वाले बिजनौरियों के स्वागगत में कोई  कसर नही छोड़ी।  उनका भरपूर सम्माकन किया गया।कार्यक्रम में शामिल होने वालों से प्रशासन और बिजनौरवासियों ने जिले के विकास में भरपूर सहयोग की अपील की।  आगंतुक बिजनौरी भी  मन ही मन में में ये सौंगध लेकर गए कि अपने जनपद के विकास में अब उन्हेंन योगदान करना  है। कोई  कोर कसर नही छोड़नी है।

आज हालत है कि जिले के आईएएस, पीसीएस और  बड़े अधिकारियों ने अपना -अलग ग्रुप बना लिया   है। इस ग्रुप में शामिल सभी बिजनौर के विकास पर बात कर रहे है। सबका प्रयास है कि अब तक हुई जनपद की उपेक्षा की कमी वह जल्दीह से जल्दी पूरी कर दें।  

अखबारों ने इस कार्यक्रम के कवरेज के लिए विशेष प्रबंध किए। स्थारनीय दैनिक  बिजनौर टाइम्सए और चिंगारी ने तो इस अवसर पर विशेष  परिशिष्ठी  निकाले।     

bइस कार्यक्रम की खास बात यह रही कि इसका संदेश  दुनिया भर में बसे भारतीयों तक पंहुचा। वे सब अब बिजनौर और  उसके होने वाले विकास में अपना योगदान देने का  प्रयास कर रहे हैं। जिलाधिकारी  देवदत्ते जी के समय 1998 और 1999 में भी हालाकिं बिजनौर महोत्सव की तरह  विदुर महोत्स व हुए थे, किंतु वह एक प्रकार से सरकारी कार्यक्रम ही बनकर रह गए। उनमें जनभागीदारी नही बढ़ी। उससे  बिजनौरवासी  नही जुड़ सके। इस बार जनपद वासियोंकी भागीदारी बढ़ी। प्रशासन ने उन्हें  जगह –जगह से बुलाया।उनसे आह्वान किया कि बिजनौर आपका  जिला है।इसके विकास में आप योगदान करें। आप सब अपने जिले को आगे लाने के लिए कार्य करें।

इस कार्यक्रम की सबसे बड़ी उपलब्धि  यह है कि इस बार के कार्यक्रम में राजनैतिक व्यीक्‍तियों को अलग रखा गया।यह कार्यक्रम शुद्ध  बिजनौरवासियों का बनकर ही रहा।   इस कार्यक्रम में एक कमी लगी की  कार्यकम के दौरान बिजनौर जनपद के विकास का कोई स्प ष्टम  एजेंडा  नही बन सका।यदि ये हो जाता तो  और बेहतर होता।

इस का्र्यक्रम के आयोजन के बाद अब यह निश्चि त होता लग रहा है कि अब ये बिजनौर महोत्स व बिजनौर की भूमि पर प्रतिवर्ष हुआ करेगा। और उम्मीाद है कि आने वाले कायर्क्रमों  में प्रत्ये क वर्ष  बिजनौरवासियों की भागीदारी बढ़ेगी।इसके लिए जिला प्रशासन कार्यक्रम में आने वालों का डाटा  भी इसी लिए तैयार कर रहा है।  

अशोक मधुप

 ( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

अब कनाड़ा में खालिस्तान बनने की प्रक्रिया शुरू

अशोक मधुप, वरिष्ठ  पत्रकार

अभी कुछ माह पूर्व  25 मई को हमने अपने लेख्‍ में कहा था  कि कनाडा में खालिस्‍तान समर्थकों की गतिविधि को भारत नजर अंदाज करता रहे। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो को खालिस्‍तानियों का समर्थन करने दे, जल्‍दी ही खालिस्‍तान कनाडा में बने। भारत में नही। ऐसा होता अब नजर आने लगा है।खालिस्‍तानी वहां मांग करने लगे हैं कि कनाडा  हमारा है। बाकी दुनिया भर के लोग अपने-अपने देश  वापस जांए।

 कनाडा में निकाले गए एक ‘नगर कीर्तन’ के दो मिनट के वायरल वीडियो में खालिस्तान समर्थकों ने कनाडाई लोगों को ‘घुसपैठिया’ कहा।  उन्हें ‘इंग्लैंड और यूरोप वापस जाने’ के लिए कहा। वीडियो में जुलूस में शामिल लोगों को यह कहते हुए सुना जा सकता है। ‘यह कनाडा है, हमारा अपना देश। तुम कनाडाई वापस जाओ.। भारतीय खुफिया सूत्रों ने इस घटना को कनाडा में  नॉर्मल करार दिया । कहा कि खालिस्तानी धीरे-धीरे देश के सभी पहलुओं पर ‘कब्जा’ कर रहे हैं। ठीक से निगरानी न होने की वजह से ये खालिस्तानी समूह स्थानीय कनाडाई लोगों से भी नियंत्रण छीन रहे हैं। हिंदुओं से सुरक्षा के लिए पैसे मांगे जा रहे हैं और अब उनकी कॉलोनियों में स्थानीय लोगों को खतरा हैं।

 कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो भारत में खालिस्तान बनाने की मांग करने वाले अतिवादियों पर सत्‍ता संभालने के बाद से पूरी तरह मेहरबान है।भारत द्वारा इन अतिवादियों के  बारे में दी गई  जानकारी पर वे कुछ कार्रवाई  नही कर रहे,  अपितु भारत पर ही आरोप लगा रहे हैं कि भारत से फरार अपराधी खालिस्तानी अतिवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में उसके राजनयिक का हाथ है। हमने पहले लेख में  कहा था भारत को चाहिए कि यह कनाडा  के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो  को भारत के खालिस्तान का समर्थन करने वाले अतिवादियों का समर्थन करने दें। कुछ समय  ऐसा  ही चलने दें।हां सार्वजनिक रूप से भारत उसे चेतावनी  देने का सिलसिला जारी रखें। अपने यहां  खालिस्तान समर्थकों पर सख्ती रखें।कुछ समय ऐसा  ही चलता रहा तो यह निश्चित है कि अब खालिस्तान भारत में नही कनाडा में बनेगा। कनाडा की धरती पर बनेगा। हमारा  पहला कथन अब सही होता दीखने लगा है। कुछ समय ऐसा ही होता रहा तो ये खालिस्तान समर्थक कनाडा के लिए ही सिर दर्द बनेंगे। कनाडा़  ने सख्‍ती की तो ये उसके खिलाफ विद्रोह पर उतर आएंगे। 

आज जो कनाड़ा  कर रहा है, कभी वही भारत के कुछ नेताओं ने किया था।  वह पंजाब में खालिस्तान  की बढ़ती गतिविधियों  को नजर अंदाज करते रहे।परिणाम स्वरूप पंजाब में रहने वाले  हिंदुओं को पंजाब छोड़ने के लिए कहा जाने  लगा।  उन पर हमले होने  शुरू  हो गए।  सिख आंतकवाद पंजाब में ही नही बढ़ा,अपितु  उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्र को भी उसने अपनी चपेट में लेना शुरू कर दिया।इस दौरान पंजाब में धार्मिक  नेता भिंडरावाला तेजी से लोकप्रिय हुए  ।  कहा  जाता  है कि राजनैतिक लाभ के लिए केंद्र की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने उसे प्रश्य देना शुरू कर दिया। हालत यह हुई  कि वहीं भिंडरावाला कांग्रेस के लिए भस्मासुर साबित हुआ।  उसने स्वर्ण मंदिर में डेरा जमा लिया।  मजबूरन  प्रधानमंत्री इंदिरा  गांधी को  भिंडरावाला को स्वर्ण  मंदिर से  निकालने के लिए फौज का सहारा लेना पड़ा।बाद में   प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी केही दो सिख सुरक्षा गार्ड ने उनकी हत्या कर दी।

आज जो  कनाडा में हो रहा है,  वह 40 साल से  खालिस्तान समर्थकों को पोषित किए जाने का  परिणाम है।कनाडा में खालिस्तान समर्थक आंदोलन पिछली सदी के आठवें दशक में शुरू हो गया था। पियरे ट्रूडो के प्रधानमंत्री बनने के बाद इसकी जड़ें गहरी हुईं। उनके कार्यकाल के दौरान ही तलविंदर परमार भारत में चार पुलिसकर्मियों की हत्या करने के बाद कनाडा भाग गया था।

प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जून 1973 में कनाडा की यात्रा की थी और पियरे ट्रूडो के साथ उनके व्यक्तिगत संबंध सौहार्दपूर्ण थे। लेकिन, पियरे ट्रूडो ने 1982 में तलविंदर परमार को भारत प्रत्यर्पित करने का अनुरोध ठुकरा दिया। इसके लिए बहाना बनाया गया कि भारत का रुख महारानी के प्रति पर्याप्त रूप से सम्मानजनक नहीं है।

पियरे ट्रूडो के पद छोड़ने के ठीक एक साल बाद तलविंदर परमार ने जून 1985 में एयर इंडिया की फ्लाइट 182 (कनिष्क) में बम विस्फोट की साजिश की। इसमें विमान में सवार सभी 329 लोग मारे गए। हालाकि मरने वालों मे अधिकतर कनाडा के  ही नागरिक थे।इस विमान हादसे में कुछ तो पूरे परिवार  ही  खत्म हो गए।अगर पियरे ट्रूडो ने तलविंदर परमार को भारत प्रत्यर्पित करने का इंदिरा गांधी का अनुरोध मान लिया होता, तो कनिष्क विमान में विस्फोट नहीं हुआ होता। भारतीय-कनाडाई राजनीति के जानकार   मानने लगे हैं कि जो  गलती पियरे ट्रूडो  ने तब की थी,वहीं उनके बेटे जस्टिन ट्रूडो भी आज कर रहे हैं।अपनी सरकार चलाने के लिए कनाडा में खालिस्तान समर्थक उग्रवादियों के प्रति सहानुभूति रखकर वही गलती कर रहे हैं।कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने भारत के ऊपर बेबुनियाद आरोप लगाकर कनाडा में पल रहे खालिस्तानी समर्थकों को हवा दे दी है। प्रधानमंत्री के इन आरोपों के बाद कनाडा के अलग-अलग राज्यों में खालिस्तान समर्थकों ने ऐसी साजिश रचनी शुरू कर दी, जिससे वहां रह रहे न सिर्फ भारतीयों बल्कि डिप्लोमेट्स और भारतीय दूतावास के लिए बड़ा खतरा पैदा हो गया है बल्कि  कनाडा में बसे भारतीय हिंदुओं को भी खतरा बनेगा।   रक्षा मामलों के विशेषज्ञों का मानना है कि कनाडा की जमीन पर पहले से ही खालिस्तान समर्थकों को कनाडा की सरकार प्रश्रय देती आई है। यही वजह है कि कनाडा सरकार के समर्थन के चलते भारत विरोधी गतिविधियां इस देश के अलग-अलग हिस्सों में लगातार चलती रहती हैं। बीते कुछ समय में खालिस्तान जनमत संग्रह के नाम पर कनाडा की सरकार न सिर्फ इन भारत विरोधी खालिस्तानियों को सुरक्षा मुहैया कराती आई है बल्कि कार्यक्रम स्थलों की भी उपलब्ध करवाती आई है।पिछले दिनों  एक शोभा  यात्रा में  पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरागांधी की हत्या की झांकी निकालना भी इसी कड़ी का हिस्सा  है। जानकारों का मानना है कि जिस तरीके से कनाडा के प्रधानमंत्री ने भारत के ऊपर बेबुनियाद आरोप लगाया है उसका असर अगले कुछ दिनों में ही बहुत तेजी से दिखना शुरू हो सकता है।कनाडा के प्रधानमंत्री के बयान के बाद के हालात में क्रम में सिख फॉर जस्टिस (SFJ) के नेता गुरपतवंत सिंह पन्नू की ओर से हिंदू समुदाय को धमकी दी गई है।  एसएफजे के पन्नू ने कनाडा के हिंदुओं को धमकी दी है । पन्नू ने उन्हें कनाडा छोड़ने के लिए कहा है। जो  पन्नू ने कनाड़ा के हिंदुओं से कहा है, ऐसा ही कभी पंजाब में आंतकवाद की शुरूआत में हिंदुओं से कहा गया था। उसके बाद  उनपर हमले शुरू हो गए थे। कनाडा में धमकी से पहले ही हिंदुओं पर हमले होने लगे हैं। 
इन धमकियों को लेकर कनाडा में भारतीय मूल के सांसद चंद्र आर्य  ने एक  न्यूज चैनल के साथ इंटरव्यू में कहा कि कनाडा में खालिस्तानी समूहों से बढ़ते खतरों के मद्देनजर अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय भयभीत है।कनाडा में हिंदू लोगों की सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंताएं हैं।दरअस्ल कनाडा में खालिस्तान समर्थकों को पाकिस्तान पाल रहा है।  कनाड़ा  इन्हें प्रश्रय  दे रहा है। अमेरिका आज के हालात में भारत का विरोध नही कर पा रहा किंतु इस मामले में  उसका भी रवैया ठीक नही है।कनाडा के हिंदुओं को  धमकी देने वाला   सिख फॉर जस्टिस (SFJ) का नेता गुरपतवंत सिंह पन्नू कनेडा और अमेरिकी नागरिक है।  पन्नू भारत का फरार और इनामी आंतकी है।इसके बावजूद वह अमेरिका में सरे आम रह रहा है।

भारत को चाहिए कि वह भारत में खालिस्तान समर्थकों के प्रति सख्ती जारी रहे। कनाडा  में भारत के खिलाफ  कार्रवाई  करने वालों पर मुकदमें दर्ज करने के साथ उनके आईओसी कार्ड जब्त करता  रहे।इनकी भारत की संपत्ति भी कब्जे में ले।आज कनाडा जो  कर रहा है, कल उसके ही सामने आएगा।खालिस्तान समर्थक वहां रहने वाले हिंदू और अन्‍य कनाडा निवासियों पर हमले करेंगे।कानून व्यवस्था कनाडा की खराब होगी।  मजबूरन  जब  कनाडा सरकार सख्ती करेगी तो ये  खालिस्तान समर्थक कनाडा के निवासी  भिंडरावाला  की तरह उसी के सामने संकट खड़ा  करेंगे। 

(लेखक वरिष्‍ठ पत्रकार हैं)


Tuesday, October 15, 2024

मदरसों के बंद करने का नही ,सुधार का सुझाव देना था

 


अशोक मधुप

वरिष्ठ पत्रकार

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को पत्र लिख मदरसों और मदरसा बोर्डों को दी जाने वाली सरकारी फंडिंग बंद करने की सिफारिश की है. NCPCR ने मदरसा बोर्डों को बंद करने का भी सुझाव दिया है. आरटीई अधिनियम, 2009 के अनुसार मौलिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए मदरसों से बाहर और स्कूलों में दाखिला दिए जाने की बात कही है. राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की ये सिफारिश न्यायसंगत  नही है. आयोग को चाहिए था कि मदरसा व्यवस्था में सुधार की सिफारिश करता.सुधार के लिए मदरखा बोर्ड और  मदरसों को समय देता. दी गई निर्धारित  अवधि में आदेश न  मानने वाले मदरसों और उनके बोर्ड की  सहायता  रोकने की सिफारिश करता.

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग NCPCR ने ये भी सिफारिश की है कि सभी गैर-मुस्लिम बच्चों को मदरसों से निकालकर स्कूलों में भर्ती कराया जाए. इसके साथ ही, मुस्लिम समुदाय के बच्चे जो मदरसा में पढ़ रहे हैं, चाहे वे मान्यता प्राप्त हों या गैर-मान्यता प्राप्त, उन्हें औपचारिक स्कूलों में दाखिला दिलाया जाए.NCPCR ने ये भी सिफारिश की है कि सभी गैर-मुस्लिम बच्चों को मदरसों से निकालकर आरटीई अधिनियम, 2009 के अनुसार बुनियादी शिक्षा प्राप्त करने के लिए स्कूलों में भर्ती कराया जाए. साथ ही, मुस्लिम समुदाय के बच्चे जो मदरसा में पढ़ रहे हैं, चाहे वे मान्यता प्राप्त हों या गैर-मान्यता प्राप्त, उन्हें औपचारिक स्कूलों में दाखिला दिलाया जाए और आरटीई अधिनियम, 2009 के अनुसार निर्धारित समय और पाठ्यक्रम की शिक्षा दी जाए. NCPCR की ये रिपोर्ट इस उद्देश्य से तैयार की गई है कि हम एक व्यापक रोडमैप बनाने की दिशा में मार्गदर्शन करें जो यह सुनिश्चित करे कि देश भर के सभी बच्चे सुरक्षित, स्वस्थ वातावरण में बड़े हों. ऐसा करने से वे अधिक समग्र और प्रभावशाली तरीके से राष्ट्र निर्माण प्रक्रिया में सार्थक योगदान देने के लिए सशक्त होंगे.

वर्ष 2021 में आयोग ने अल्पसंख्यक समुदायों के बच्चों की शिक्षा पर भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21ए के संबंध में अनुच्छेद 15(5) के तहत छूट के प्रभाव पर एक रिपोर्ट जारी की. रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया कि किस तरह मदरसा जैसे धार्मिक शिक्षण संस्थानों में पढ़ने वाले बच्चों को भारत के संविधान द्वारा दिए गए शिक्षा के उनके मौलिक अधिकार का लाभ नहीं मिल रहा है.इसके बाद वर्ष 2022 में जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने प्राथमिक स्तर पर बच्चों को औपचारिक स्कूलों से दूर रखने के कृत्य को उचित ठहराने के लिए NIOS के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए. इस समझौता ज्ञापन के तहत मदरसा में पढ़ने वाले बच्चों को ओपन स्कूल से परीक्षा देने की अनुमति दी गई. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21ए के अनुसार निःशुल्क और अनिवार्य प्रारंभिक शिक्षा सभी बच्चों का मौलिक अधिकार है.शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 बच्चों को यह अधिकार प्रदान करता है और कक्षा III, V और VIII के लिए ओपन स्कूलिंग की पेशकश करना शिक्षा के अधिकार अधिनियम, 2009 के साथ सीधे टकराव में है. देश में लगभग 15 लाख स्कूल हैं और सरकार ने बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा तक पहुंच प्रदान करने के लिए हर 1-3 किलोमीटर पर स्कूल स्थापित किए हैं. हालांकि, यदि राज्य सरकार कुछ क्षेत्रों में स्कूल को मान्यता प्रदान नहीं कर रही है, तो NIOS छात्रों को ओपन स्कूल के माध्यम से प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने का विकल्प प्रदान कर सकता है. उन्होंने NIOS की भूमिका की भी जांच की मांग की है.

बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने मदरसों और मदरसा बोडौँ को सरकारी फंडिंग पर सवाल उठाते हुए कहा है कि इन्हें सरकारी अनुदान (फंडिंग) बंद कर देना चाहिए. शीर्ष बाल अधिकार संस्था ने मदरसों के कामकाज को लेकर गंभीर चिंता जताते हुए यह भी कहा कि मदसा बोर्ड भी बंद होने चाहिए. कानूनगो ने इस संबंध में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को पत्र लिखा है. आयोग ने हाल ही में मदरसों पर एक रिपोर्ट "गार्जियन आफ फेथ आर ओग्रेसस आफ राइट्स ? कान्स्टीट्यूशनल राइटस आफ चिल्ड्रन वर्सेस मदरसा" भी जारी की है यानी आस्था के संरक्षक या अधिकारों के बाधक. आयोग ने राज्यों को भेजी चिट्ठी के साथ यह रिपोर्ट भी संलग्न की है. इसमें कहा है कि राइट टु एजूकेशन (आरटीई) एक्ट 2009 के दायरे से बाहर रहकर धार्मिक संस्थाओं के काम करने से बच्चों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। मदरसों को आरटीई एक्ट से छूट देने से इनमें पढ़ने वाले बच्चे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से वंचित रहते हैं.

मदरसों को सरकारी फंडिंग रोकने की सिफारिश करते हुए कहा गया है कि सरकारी फंड ऐसे किसी संस्थान पर खर्च नहीं किया जा सकता जो शिक्षा के अधिकार में बाधा हो, क्योंकि ऐसा करना बाल अधिकारों का हनन होगा. आयोग ने कहा है कि धार्मिक शिक्षा प्रदान करना संबंधित समुदाय की जिम्मेदारी है और उसके लिए उन्हें संविधान में उचित प्रविधान दिए गए हैं. राज्य बिना किसी तुष्टीकरण के संविधान और आरटीई एक्ट के तहत उसे दी गई जिम्मेदारी को समझें और बच्चों को गुणवत्तापूर्ण औपचारिक शिक्षा देना सुनिश्चित करने में संसाधन लगाएं. ऐसा नहीं करना संस्थागत तरीके से मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करना है.

आयोग ने कहा है कि सिर्फ एक बोर्ड गठित कर देने या यूडीआइएसई कोड ले लेने का मतलब यह नहीं है कि मदरसा आरटीई एक्ट के प्रविधानों का पालन कर रहे हैं. किसी भी संस्था को शिक्षा की आड़ में दी गई फंडिंग अगर आरटीई एक्ट को लागू करने में बाधा डालती है तो यह असंवैधानिक है. इसलिए आयोग सिफारिश करता है कि सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में मदरसों और मदरसा बोर्ड को दी जाने वाली स्टेट फंडिंग बंद की जाए. मदरसा बोर्ड को बंद किए जाएं.एनसीपीसीआर ने यह भी कहा है कि गुणवत्तापूर्ण औपचारिक शिक्षा पाना सभी बच्चों का आरटीई एक्ट के तहत अधिकार है और इसे उपलब्ध कराना राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है. इस कर्तव्य को पूरा न करना न सिर्फ बच्चों के कल्याण के खिलाफ है बल्कि संवैधानिक सिद्धांतों और मूल्यों के भी खिलाफ है. आयोग ने रिपोर्ट में सिफारिश की है कि राज्य सरकारें सुनिश्चति करें कि मदरसों में पढ़ने वाले सभी मुस्लिम बच्चों का औपचारिक स्कूलों में दाखिला हो और वे आरटीई एक्ट के पाठ्यक्रम के मुताबिक शिक्षा ग्रहण करें. मदरसों में पढ़ने वाले गैर मुस्लिम बच्चों को भी मदरसों से निकाला जाए और उन्हें औपचारिक स्कूल में दाखिला दिया जाए.

अपने पत्र में NCPCR ने ये भी कहा है कि मदरसों से निकलकर मुस्लिम बच्चों को बेहतर तालीम के लिए सरकारी या निजी स्कूल में दाखिल कराया जाय. NCPCR के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने यह पत्र लिखा है. इसकी कॉपी वायरल हो रही है. कानूनगो ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को यह पत्र लिखा है. उन्होंने सभी सक्षम अधिकारियों से मदरसों को मिलने वाली फंडिंग रोकने को कहा है. 

एनसीपीसीआर निदेशक प्रियांक कानूनगो ने इसी के साथ मदरसा बोर्ड को भंगद करने की मांग की है. आयोग ने इस मुद्दे पर नौ साल तक अध्ययन करने के बाद अपनी अंतिम रिपोर्ट जारी की है. उस रिपोर्ट में कहा गया है कि लंबे रिसर्च के बाद ये पता चला है कि करीब सवा करोड़ से ज्यादा बच्चे अपने बुनियादी शिक्षा के अधिकार से वंचित हैं. उन्हें इस तरह से टॉर्चर किया जा रहा है कि वे कुछ लोगों के गलत इरादों के मुताबिक़ काम करेंगे.

जिन लोगों ने इन मदरसों पर कब्जा कर लिया है, वे कहते थे कि वे भारत-पाकिस्तान विभाजन के दौरान पूरे भारत में इस्लाम का प्रचार करना चाहते थे. 7-8 राज्यों में मदरसा बोर्ड हैं. मदरसा बोर्डों को बंद करने की सिफारिश की है क्योंकि उनके जरिए चंदा इकट्ठा किया जा रहा है. इस फंडिंग को रोका जाना चाहिए और मदरसा बोर्ड को भंग किया जाना चाहिए. और इन मदरसों में पढ़ने वाले हिंदू बच्चों को फौरन स्कूलों में एनरोल किया जाना चाहिए.

देवबंदी उलेमाओं ने इस आदेश का विरोध किया है. उन्होंने  कहा कि हमारे अकाबिर इसलिए नही चाहते थे कि दीनी मदरसों के लिए चलाने को   सरकारी मदद ली जाए.उन्होंने कहा कि यदि आयोग को लगता है कि मदरसा बोर्ड  द्वारा संचालित मदरसे सही काम नही कर रहे तो  उनकी कमियों को दूर करने का सुझाव  दिया  जाना  चाहिए था।

दरअस्ल मदरसा  शिक्षा कभी भी  सरकारी मदद लेने के पक्ष में नही रही.राजनैतिक दल अपने मफाद के लिए खुद मदरसों और मदरसा बोर्ड को सहायता देने लगे.बाहरी मदद किसे  बुरी लगती है.परिणाम स्वरूप मदरसा बोर्ड  और मदरसे इस सुविधा  को लेने लगे. आयोग के आदेश पर भाजपा  सरकारें जरूर मदरसा बोर्ड  की सहायता रोकेंगी ,  बाकी दूसरी  सरकारें  अपने  राजनैतिक मफाद देखेंगी. हालाकि भाजपा दलों की प्रदेश   सरकारों को यह निर्णय लागू  करना  सरल नही होगा. सहायता रूकने  पर मामला न्यायालय  जाएगा. न्यायालय भी यही कहेगा कि पहले व्ययस्था में सुधार के लिए कहा  जाना  चाहिए था.उसके लिए समय दिया  जाता. आदेश न मानने  वाले मदरसा बोर्ड  और मदरसों पर उसके बाद कार्रवाई होनी चाहिए थी.

अशोक मधुप

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

 

 

 

 

Wednesday, October 2, 2024

सरंक्षित हों तीर्थस्थल की हिन्दू वंशावलियों की पंजिका


अशोक मधुप

वरिष्ठ पत्रकार

हिंदू तीर्थस्थल धार्मिक मान्यताओं  और पूजन अर्चन के लिए विख्यात है।इन सब कार्य को इन स्थलों के ब्राह्मण पंडित कराते  हैं। ये  ब्राह्मण पंडित पंडा कहे जाते  हैं।ये  पंडा  सदियों से एक कार्य करते और कराते  आ रहे हैं। ये  पंडा अपने पास आने वाले यजमान( भक्तों )के परिवार का इतिहास अपनी बहियों में संजोते जा रहें   हैं। ये काम सदियों से अनवरत रूप से  जारी है। ये हिन्दू वंशावलियों की पंजिकाएं  एतिहासिक धरोहर हैं। आज इनके संरक्षण की आवश्यक्ता है।इनके संजोकर रखने की जरूरत   है।

हिंदू   परिवारों को  इस बारे में बहुत कम यान के बराबर जानकारी है। उन्हें पता भी नही कि इन स्थानों पर उनके परिवार का इतिहास संग्रहित है। सदियों से बहियों में  ये रिकार्ड व्यापारी के खाते की तरह लिखकर रखा  जा रहा है। अधिकतर भारतीयों व वे परिवार जो विदेश में बस गए  उनको आज भी पता नहीं कि इन तीर्थस्थल की पंडो की   बहियों में उनके परिवार की वंशावली दर्ज है। हिन्दू परिवारों की पिछली कई पीढ़ियों की विस्तृत वंशावलियां  इन पंडा के पास संग्रहित हैं।ये पंडा  आने वाले यजमान से उसके परिवार की जानकारी नोट करने के बाद उसके हस्ताक्षर कराकर बही में अपने  पास रखते हैं। ये पंडा ये  बहियां अपनी आने वाली अपनी पीढ़ी को  सौंपते  जाते  हैं। ये  बहियां जिलों व गांवों के आधार पर वर्गीकृत की गयीं हैं।प्रत्येक जिले की पंजिका का विशिष्ट पंडित होता है। यहाँ तक कि भारत के विभाजन के उपरांत जो जिले व गाँव पाकिस्तान में रह गए व हिन्दू भारत आ गए उनकी भी वंशावलियां यहाँ हैं। कई स्थितियों में उन हिन्दुओं के वंशज अब सिख हैंतो कई के मुस्लिम अपितु ईसाई भी हैं। किसी − किसी की  सात वंश या उससे भी ज्यादा की जानकारी पंडों के पास रखी इन वंशावली पंजिकाओं से होना साधारण सी बात है।

शताब्दियों पूर्व से  हिन्दू पूर्वजों ने हरिद्वार या किसी  पावन नगरी की यात्रा की1  तीर्थयात्रा के लिए या/  शव- दाह या स्वजनों के अस्थि व राख का गंगा जल में किया होगा तो वे संबद्ध  पंडा के पास गए होंगे। ये पंडा  इन आने वालों के रहने खाने तक की वयवस्था करते हैं1 इन पंडाओं ने अपनी पंजिका में  वंश- वृक्ष को संयुक्त परिवारों में हुए सभी विवाहोंजन्म व मृत्युओं के विवरण दर्ज किया हुआ हैं।वर्तमान में धार्मिक स्थल पर  जाने वाले भारतीय हक्के- बक्के रह जाते हैं जब वहां के पंडित उनसे उनके  अपने वंश- वृक्ष को नवीनीकृत कराने को कहते हैं।

आजकल जब संयुक्त हिदू परिवार का चलन ख़त्म हो गया है।  लोग एकल परिवारों को तरजीह दे रहे हैं,ये  पंडित चाहते हैं कि आगंतुक अपने फैले परिवारों के लोगों व अपने पुराने जिलों- गाँवोंदादा- दादी के नाम व परदादा- परदादी और विवाहोंजन्मों और मृत्यु, परिवारों में हुए  विवाह  आदि की पूरी जानकारी के साथ वहां आएं। आगंतुक परिवार के सदस्य को सभी जानकारी नवीनीकृत करने के उपरांत वंशावली पंजीका को भविष्य के पारिवारिक सदस्यों के लिए व प्रविष्टियों को प्रमाणित करने के लिए हस्ताक्षरित करना होता है। साथ आये मित्रों व अन्य पारिवारिक सदस्यों से भी साक्षी के तौर पर हस्ताक्षर करने की विनती की जा सकती है।

इन तीर्थ स्थल के पुरोहितों के पास देश और दुनिया भर के यजमानों का दशकों पुराना लिखित रिकॉर्ड वंशावली के रूप में मौजूद है। किसी यजमान के आने पर चंद मिनटों में ही संबंधित पुरोहित कंप्यूटर से भी तेज गति से वंशावली देखकर उनके पूर्वजों की जानकारी दे देते हैं। पितृ पक्ष के दौरान इन तीर्थ स्थल पर  आने वाले लोग अपने तीर्थ पुरोहितों के पास आकर वंशावली में अपने वंश के बारे में जरूर जानते हैं। ये पंडे  जनपद के  हसाब से  हैं। तीर्थ स्थल में पहने वालों को  पता है कि किस जनपद के पंडा  कौन हैं। किसी दूसरे के  यजमान को कोई अन्य पंडा  खुद क्रिया− कर्म  नही कराता। संबधित जिले के पंडा के पास उसे  भेज देता है।   

शताब्दियों से  हो रहा ये लेखन भोज पत्रों और ताम्र पत्रों के बाद   अब कागज की बहियों पर शुरू किया गया। तीर्थ पुरोहितों के पास सैकड़ों वर्ष पुरानी बहियां आज भी सुरक्षित हैं। तीर्थ पुरोहितों की बहियों में देश भर के राजाओंमहाराजाओंसाधुसंतोंराजनेताओं एवं आम लोगों के परिवारों के वंश लेखन बहियों में मौजूद हैं। अकेले हरिद्वार में 30 हजार से अधिक की संख्या में वंशावली की बहियां सुरक्षित और संरक्षित हैं। इन बहियों में लेखन करने के लिए अलग स्याही तैयार करके तीर्थ पुरोहित वही लेखन करते हैंजो काफी वर्षों तक सुरक्षित रहती है। इन वंशावलियों में जातियोंगोत्रोंउपगोत्रों का भी जिक्र रहता है। सबसे अहम बात इन बहियों में देखने को मिलती हैं कि तीर्थ पुरोहितों ने लेखन को भेदभाव से दूर रखा है। जहां राजाओं, महाराजाओं की वंशावलियां जिस क्रम में अंकित हैंउसी क्रम में तीर्थ नगरी में पहुंचने वाले अन्य श्रद्धालुओं की हैं। विभिन्न राजवंशों की मुद्रांएहस्त लेखनदान पत्रअंगूठे और पंजों के निशान बहियों में मौजूद हैं। यहां की वंशावलियों में देश की कई रियासतों के राजाओं के आने के उल्लेख दर्ज हैं।

अक्तूबर २००७ में हमें इंडियन वर्किग  जर्नलिस्ट की एक कांफ्रेस में बद्रीनाथ जाने का अवसर मिला। मेरे साथ गए मेरे दोस्त नरेंद्र मारवाड़ी भी थे। हम मारवाड़ी के साथ  बद्रीनाथ में,अजमेर के  महावर  वालों की धर्मशाला में चले गए। ये मारवाड़ी के परिवारवालों की धर्मशाला हैं1वहां पंडित जी से बात की।वंशानुक्रम के बारे में बताया  बात करते-करते पंडित जी ने अपनी बही खोलकर उनके गोत्र का विवरण खोला तो पता चला कि मारवाड़ी के पिता जी 41वर्ष पूर्व यहां यात्रा को आए थे। यात्रा को आने के बाद हुए उनके दो बच्चों का विवरण दर्ज नहीं थे। पंडित जी  ने बही देखकर   बताया कि  ९३ साल पूर्व उनके दादा जी बद्रीनाथ आए थे। दोनों के आने की तिथि तक वही में दर्ज थी। उनके हस्ताक्षर भी बही में मौजूद थे। मित्र को अपने बाबा का नाम ज्ञात था। यहां बही से उन्होंने अपने बाबा के पिता उनके भाईबाबा के दादा और उनके भाईयों आदि का विवरण नोट किया। पंडित जी ने अपनी वही में मित्र से अपने और उनके बच्चेभाई और भाइयों के बच्चों की जानकारी नोट की। नीचे तारीखमाह,सन डालकर हस्ताक्षर कराए।

सदियों से  चले  आ रहा इतिहास को  संजोकर रखना  एक दुरूह कार्य है।इस कार्य को ये पंडे  सुगमता से पीड़ियों से करते  चले  आ रहे  हैं। आज    इस  इतिहास को संजोने  और संरक्षण की जरूरत है। अच्छा  रहे कि इनका  कंप्यूटरीकरण  हो  जाए। बहियों को लेमिनेट करके भी  संरक्षित किया  जा सकता है। कैसे भी हो , ये  होना चाहिए, नही तो  समय के साथ ये  गलता और खराब होता  चला जाएगा।। ये काम इनके व्यक्तिगत स्तर से संभव नही। सरकार को अपने स्तर से कराना  होगा, तभी ये संभव हो  पाएगा।

 

अशोक मधुप

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

Tuesday, September 17, 2024

चीन पर कभी यकीन नही किया जा सकता

 

चीन पर कभी यकीन नही किया  जा  सकता

अशोक मधुप

वरिष्ठ  पत्रकार

लगातार चार साल से चले  आ रहे भारत चीन के बीच तनाव के कम होने के संकेत हैं।  भारत और चीन के द्विपक्षीय संबंधों को लेकर हाल में घटनाक्रम  बहुत तेजी से घटा है। चीन भारत सीमा से सेना का पीछे हटना  बहुत अच्छा  है किंतु चीन की बात पर आंख मुंदकर यकीन नही किया जा सकता। समझौते करने के बाद अपनी बात से मुकरना उसकी आदत रही है। धोखा  देना  चीन का चरित्र है। उसपर पूरी तरह से नजर रखनी होगी। उसकी चाल के अनुरूप हमें अपना  व्यवहार  और तैयारी करना होंगी।

भारत चीन सीमा विवाद के सुलझने के संकेत गुरुवार को ही सेंट पीटर्सबर्ग में ब्रिक्स एनएसए लेवल की समिट के साइडलाइन्स पर हुई उस बैठक के दौरान ही दिख गए थे जो एनएसए अजित डोभाल और चीनी विदेश मंत्री वांग यी के बीच हुई थी। भारतीय विदेश मंत्रालय की ओर से बैठक के बाद जारी प्रेस नोट में इस बात का जिक्र था कि दोनों देशों ने बचे हुए क्षेत्रों में भी पूर्ण डिसएंगेजमेंट की दिशा में काम करने को लेकर सहमति जताई है। जानकार मानते हैं कि गतिरोध दूर करने करने की दिशा में ले जाने की प्रक्रिया एकाएक नहीं होती। इसके लिए बैकग्राउंड में काम होता रहता है ।

ओआरएफ में फेलो और चीन मामलों के जानकार कल्पित मणकिकर कहते हैं कि ' ऐसा एक लंबी प्रक्रिया के तहत होता है। दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और दोनों देशों के विदेश मंत्री लगातार मुलाकात करते आ रहे हैं। पिछले चार सालों से बॉर्डर मुद्दों को सुलझाने को लेकर कोशिशें लगातार हो रही है। सेना के कमांडर स्तर पर बातें अलग से होती रही हैं।भारत और चीन दोनों की ओर से इस तरह की कोशिशें की जा रही थी। हालांकि अब जो दिख रहा है, उसके मद्देनजर इस तरह की कोशिशें क्या दिशा लेंगी, इसे लेकर अभी वेट एंड वॉच की स्थिति में ही रहा जा सकता है। बॉर्डर पर आए गतिरोध के मद्देनजर विदेश मंत्रियों और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की बैठकें किए जाने का एक मैकेनिज्म तैयार किया गया है।

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने पूर्वी लद्दाख में सीमा मुद्दे पर गुरुवार को कहा कि सैनिकों की वापसी से संबंधित मुद्दे लगभग 75 प्रतिशत तक सुलझ गए हैं लेकिन बड़ा मुद्दा सीमा पर बढ़ते सैन्यीकरण का है। जिनेवा में थिंकटैंक के एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि जून 2020 में गलवन घाटी में हुए टकराव ने भारत-चीन संबंधों को समग्र रूप से प्रभावित किया।

जयशंकर ने कहा कि विवादित मुद्दों का समाधान ढूंढ़ने के लिए दोनों पक्षों में बातचीत चल रही है। हमने कुछ प्रगति की है। मोटे तौर पर सैनिकों की वापसी संबंधी करीब तीन-चौथाई मुद्दों का हल निकाल लिया गया है। लेकिन इससे भी बड़ा मुद्दा यह है कि हम दोनों ने अपनी सेनाओं को एक-दूसरे के करीब ला दिया है और इस लिहाज से सीमा का सैन्यीकरण हो रहा है।

सूत्रों का  कहना  है कि भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच पूर्वी लद्दाख में कुछ टकराव वाले बिंदुओं पर गतिरोध बना हुआ है। भारत कहता रहा है कि सेना  के पूर्व स्थान पर पहुंचे  बिना सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति नहीं होगी, चीन के साथ संबंध सामान्य नहीं हो सकते। जयशंकर ने कहा कि 2020 में जो कुछ हुआ, वह कुछ कारणों से कई समझौतों का उल्लंघन था जो अभी भी हमारे लिए पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हैं। चीन ने वास्तविक नियंत्रण रेखा पर बहुत बड़ी संख्या में सैनिकों को तैनात किया और स्वाभाविक रूप से जवाबी तौर पर हमने भी अपने सैनिकों को भेजा।

2020 की झड़प के बाद से दोनों देश सीमा पर बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए भी प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं, जिसे वास्तविक नियंत्रण रेखा के रूप में भी जाना जाता है। भारत द्वारा उच्च ऊंचाई वाले हवाई अड्डे तक एक नई सड़क का निर्माण चीनी सैनिकों के साथ 2020 में होने वाली घातक झड़प के मुख्य कारणों में से एक माना जा रहा है ।

इस बार चीनी सेना के सीमा से पीछे हटने का कारण चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की केंद्रीय समिति के राजनीतिक ब्यूरो के सदस्य वांग काबयान भी है। उन्होने इस बात पर जोर दिया कि अशांत विश्व का सामना करते हुए, दो प्राचीन पूर्वी सभ्यताओं और उभरते विकासशील देशों के रूप में चीन और भारत को स्वतंत्रता पर दृढ़ रहना चाहिए. उन्होंने आगे कहा कि एकता और सहयोग का चयन करना चाहिए तथा एक-दूसरे को नुकसान पहुंचाने से बचना चाहिए। वांग ने उम्मीद जताई कि दोनों पक्ष व्यावहारिक दृष्टिकोण के जरिए अपने मतभेदों को उचित ढंग से हल करेंगे और एक-दूसरे के साथ मिलकर काम करने का उचित तरीका ढूंढेंगे । चीन-भारत संबंधों को स्वस्थ, स्थिर और सतत विकास के रास्ते पर वापस लाएंगे।

 

इतना सब हो रहा है पर जरूरी यह है कि दोनों का मई 2020 की यथास्थिति  पर वापस लौटना ही समाधान है। निश्चित रूप से पीछे हटना समाधान नहीं है। यदि निश्चित रूप से समाधान के रास्ते पर चले तो भारत नुकसान में  ही रहेगा। इन सब को देखकर भारत को चलना होगा। मई 2020 की स्थिति पर चीन सहमत होगा, ऐसा नही लगता।

 

 

सीमा  विवाद के चार साल के दौरान समाचार आए की चीन सीमा पर नए हवाई  अड्डे−सैनिक छावनी उनके लिए बंकर बना रहा है। अपने   सीमा से सटे क्षेत्र में गांव विकसित कर  रहा  है।भारतीय क्षेत्र के स्थानों क नाम  बदल रहा है।हालाकि विवाद की अवधि में भारत ने भी  सीमा पर सुरक्षा ढांचा विकसित किया है।नए एयरबेस तैयार कर रहा है। ठंडे स्थानों में रहने के लिए सैनिकों को प्रशिक्षित करने के साथ ही उनके लिए बर्फ के दौरान भी  रहने के लिए  सौलर से गर्म करने  वाले   उनके टैंट बना  रहा है।  इस प्रक्रिया  को भारत का और तेज करना  होगा।  सीमा रेखा के सटाकर गांव विकसित करने होंगे तोकि चीन की गतिविधि पर नजर रखी जा सके।एक तरह से चीन की प्रत्येक कार्रवाई का उत्तर उसके कदम ही से आगे बढकर देना  होगा।

एक बात और  चीन कभी का काबू में आ गया होगा, काश हम भारतीय सही अर्थ में देशभक्त होते।मई 2020 में चीन से विवाद होने पर भारतीयों की फेसबुक पर बड़ी देशभक्ति  दिखाई दी। लगाकि अब भारत में चीन का बना सामान नही आएगा। दीपावली पर व्यापारियों के आंकड़े भी आए कि चीन से बना  कोई सामान नही मंगाया गया। जबकि आंकड़े  इसके विपरीत हैं।आर्थिक शोध संस्थान ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई)   के अनुसार वित्त वर्ष 2023-24 में भारत और चीन के बीच कुल 118.4 अरब डॉलर का व्यापार हुआ। वहीं, अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार 118.3 अरब डॉलर रहा। 2021-22 और 2022-23 में भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार अमेरिका रहा था। अब चीन है।अमेरिका से हम अस्त्र− शस्त्र  जैसे  महंगे सामान लेते हैं। इसलिए वहां से आयात जयादा होना चाहिए था।  चीन जानता  है कि भारतीय और भारतीय व्यापारी सस्ते के लालच में उसका ही माल खरीदेंगे। इसलिए वह हठधर्मी पर है,यदि चीन का  आयात दस प्रतिशत भी घट  गया  होता तो चीन कभी का भारत के आगे झुककर समझौता करने को मजबूर हो   जाता।