Monday, January 26, 2009

चिकित्सा व्यवसाय में ह्रदयहीनता


चिकित्सा को बहुत जिम्मेदारी का पेशा बताया गया है किंतु आजकल इसमे मानवीयता एवं हृदयहीनता ज्यादा आ गई है। मेरा शहर बहुत छोटा है,यहां सरकारी अस्पताल में चिकित्सक नही, प्राईवेट रात को नर्सिंग होम नही खोलते। पूर्व राज्यमंत्री स्वामी आेमवेश उपचार न मिलने के कारण उसी हालत में मेरठ ले जाए गए! यही हादसा एक आैर मरीज के साथ हुआ ।परिजन रात भर लिए घूमते रहे एंव उन्हें उपचार न मिला ! परिणामस्वरूप मौत हो गई। झालू की एक युवती को चिकित्सक तो मिला किंतु रविवार का दिन होने के कारण कोई लेब खुली नही मिली । मजबूरन मरीज को मेरठ ले जाना पड़ा।
मेरठ के हालात बिजनौर से भी ज्यादा खराब है। मेरे बड़े साले साहब की तबियत खराब हुई। उन्हें मेरठ के जाने माने अस्पताल जंसवंत राय में भर्ती कराया गया।चिकित्सक सबेरे आठ बजे देखकर क्रिकेट मैच खेलने गए तो रात आठ बजे तक भी नही लौटे।इसी बीच उनकी मौत हो गई। पता चला कि चिकित्सकों का कहीं क्रिकेट मैच था।इस अस्पताल में रात से अगले दिन तक मौजूद रहा मेरा बेटा कहता है कि पूरे दिन कोई चिकित्सक मरीज को देखने नहीं आया।
कई साल पहले मेरी पत्नी की बडी़ बहिन का आल इंडिया मैडिकल इंस्टीटयूट में ब्रेन ट्यूमर का आपरेशान हुआ। वार्ड में आने पर उल्टी होनी शुरू हुई। मरीज के साथ मौजूद मेरी पत्नी ने जाकर स्टाफ को बताया तो उन्होंने एक सिरप लिख दिया। कह दिया कि एक साइड को मुंह कर लिटा दें।शाम तक कोई देखने नही आया। पूछे जाने पर किसी ने यह भी नही बताया कि सिरप कैसे दिया जाएगा। दिन भर उन्हें उल्टी होती रहीं एवं फेफडो़ में जाती रहीं। बाद मे कई दिन बेंटिलेटर पर रखा पर वे बच नही सकीं ।चिकितसा जगत में यह क्या हो गया। कहां गया चिकित्सक का समर्पण, कहां गई सवेंदनांए,कहां चली गई मानवता।